December 17, 2008
शहादत पर सियासत - बेशर्म नेताओं की बेहूदा जुबान
( कमल सोनी )>>>> मुझे यह कहते हुए गर्व का एहसास होता है के में एक भारतीय हूँ लेकिन दुःख भी होता देश के नेताओं की बेहूदा पर मुंबई हमले के बाद हमारे देश के नेताओं ने जिस तरह से बयान दिए हैं उससे उनकी बेशर्मी और बेहूदगी का अहसास स्वतः ही हो जाता है सत्ता के गलियारे में बैठे इन नेताओं से तो देश की सुरक्षा व्यवस्था की दिशा में कोई काम नहीं किया जाता दूसरा एक जवान देश के नाम अपनी जान कुर्बान कर देता और उसकी शहादत पर गर्व करने के बजाय उस पर व्यंगात्मक टिप्पणी की जाती है या फिर उसकी मौत पर इन नेताओं द्वारा सवाल उठाये जाते हैं केंद्रीय मंत्री अब्दुर रहमान अंतुले ने मुंबई आतंकी हमलों में शहीद हेमंत करके के मौत पर सवालिया निशान लगाए थे जिसके बाद संसद समेत पूरे देश से उन्हें आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है अंतुले ने कहा था कि उनको नहीं पता कि मुंबई एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे आतंकवाद के शिकार हुए या किसी और बात के, जिसके बाद उन्हें प्रधान मंत्री को अपना इस्तीफा तक सौपना पड़ा हलाकि इसकी अभी आधिकारिक तौर पर पुश्टी नहीं हुई है दूसरी और उस शहीद मेजर के पिता की पीड़ा को कौन समझेगा जो उसने नेता को बाहर का रास्ता दिखाने को बाध्य हो गया स्तब्ध हो गया पूरा देश केरल के सीएम के बयान को सुनकर कि अगर संदीप उन्नीकृष्णन शहीद नहीं होते तो कोई कुता भी उनके दरवाजे नहीं आता । अपने इस बयान के बाद मुख्यमंत्री ने न सिर्फ अपने पद की गरिमा को ठेस पहुंचाई बल्कि पूरे देश का अपमान किया ये वही हैं ना जो हर पाँच वर्ष में रंग बदलते हैं? ये वही झूठों के बादशाह हैं जो चुनाव के वक्त अपनी वादों की पिटारी खोल कर तमाशा दिखाने बैठ जाते हैं उस एक वोट के बदले में हमें मिलाती है बेरोजगारी, असुरक्षा, भ्रष्टाचार, अनीति खुद लालबत्ती और सुरक्षा के घेरे में रहने वाले इन नेताओं को पूरे देश की असुरक्षा का ज़रा भी एहसास नहीं है उनकी इस बयानबाजी से समझ नहीं आता कि किस मिट्टी के बने हैं जिन पर किसी भी गाली का असर तो होता नहीं उल्टे बेलगाम जुबान से समय, मौका और परिस्थितियों को ना समझते हुए ऐसी शर्मनाक बयानबाजी करते हैं। शहीद उन्नीकृष्णन के पिता ने तो सिर्फ घर घर में प्रवेश करने से रोका था अगर और कोई होता तो शायद वही सलूक करता जिसके वो लायक हैं देश के मासूम सपूत इस देश और देशवासियों की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए और हमारे नेताओं के मुँह से ऐसी मिट्टी झर रही है। क्या बेहतर यह नहीं होता कि वे सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना करते हुए कहते कि मैं शहीद के पिता की पीड़ा समझ सकता हूँ और इस समय उनका गुस्सा जायज है। मैं उनके गुस्से का सम्मान करता हूँ । लेकिन वो कहावत है न "बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर" हर नेता चाहे वे किसी भी पार्टी के हों उन्हें एक बात को अच्छी तरह से समझ में आ जानी चाहिए कि आज वे सब सड़क पर खड़े हैं। उनके सारे भेद खुल चुके हैं। आज देश का बच्चा-बच्चा उनके नाम पर गालियाँ दे रहा है। और उन पर सौपी गई अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी पर अफ़सोस व्यक्त कर रहा है एक शहीद के लिए इतनी निम्न स्तर की भाषा का प्रयोग करना हमारे देश के संस्कारों में नहीं हैं अफ़सोस तो इस बात का भी है कि देश के नेता इतना भी नहीं जानते कि एक शहीद के परिवार की व्यथा को समझते हुए संवेदना प्रकट करने का तरीका क्या है तब तो उन्हें इसी तरह की भाषा में समझाना होगा, यही उनके स्तर की है । देश की जनता अब इन्हें सुधरने और सम्हलने का मौका भी नहीं देना चाहती । इनकी झूठी माफी को भी नामंजूर किया जाना चाहिए सारा देश इस समय संदीप उन्नीकृष्णन और शहीद हेमंत करकरे के परिजनों के दर्द को गहराई से महसूस कर रहा है। मुंबई में हुए हमलों के बाद सारा देश एक जुट है और आज गद्दी पर बैठे इन नेताओं को होश में आ जाना चाहिए कि अब कोई धोखा नहीं चलेगा कोई फरेब नहीं चलेगा कोई बयानबाजी बर्दाश्त नहीं की जायेगी अब वे देश की जनता को अपने झूठे वादे और बड़ी बड़ी घोषणाओं से गुमराह नहीं कर सकते यही समय है कि वे अपनी खोई हुई साख बचाने एकजुट होकर काम करें
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1 comment:
भाई जान, क्या कहें इन नेताओ को पता नही कब क्या कहेदे क्या करदे...............
भगवान भी नही जानता.!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
-राजीव महेश्वरी
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