April 23, 2009

मध्यप्रदेश की १३ लोकसभा सीटों पर औसतन मात्र ४७.३% मतदान

१५ वीं लोकसभा के लियी आज दूसरे चरण में मध्यप्रदेश की २९ में से १३ लोकसभा क्षेत्रों में मतदान शाम ५ बजे संम्पन्न हुआ छुट पुट घटनाओं तथा कुछ जगहों पर चुनाव के बहिष्कार की घटनाओं को छोड़ मतदान आमतौर पर शांतिपूर्ण तरीके से संम्पन्न हुआ मुख्य चुनाव आयुक्त जे एस माथुर ने बताया कि मध्यप्रदेश की १३ लोकसभा सीटों पर औसतन ४७.३% मतदान हुआ है सबसे ज़्यादा मतदान छिंदवाडा लोकसभा क्षेत्र से था जहां मतदान का प्रतिशत ६३.३ रहा वहीं सबसे कम खजुराहो लोकसभा क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत ४०.२ रहा कुल ४७.३% औसतन मतदान में पुरुषों का प्रतिशत ५२.२ तथा माहिलाओं का प्रतिशत ४१.८ रहा जिन १३ संसदीय क्षेत्रों में मतदान होगा उनमें खजुराहो, सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, जबलपुर, मंडला, बालाघाट छिंदवाडा, होशंगाबाद, विदिशा, भोपाल, बैतूल शामिल हैं चुनाव आयोग ने कुल चार मतदान केन्द्रों त्योंथर, सिमरिया, नरता(उदयपुरा), रमखिरिया(उदयपुरा) में पुनः मतदान होने की संभावना जतायी है कटनी में पीठासीन अधिकारी ड्यूटी के दौरान शराब के नशे में पाए जाने पर उसे तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया


कहाँ कितना मतदान
बालाघाट - ५०.८%, बेतूल - ४४%, भोपाल - ४२.६%, छिंदवाडा - ६३.३%, होशंगाबाद - ४७.४%, जबलपुर - ४५.२%, खजुराहो - ४०.२%, मंडला - ४८.१%, रीवा - ४९.८%, सतना - ५०.७%, शहडोल - ४६.३%, सीधी - ४५.६%, विदिशा - ४३.२%


बहरहाल इन चुनावों में पूरे प्रदेश से चुनाव बहिष्कार की भी खबरें आती रहीं हैं चुनाव बहिष्कार की घटनाओं और मतदान के इस गिरते स्तर के बारे आप क्या कहना चाहेंगे ?

April 22, 2009

एक रिसर्च - दुनिया भर की मुख्य नदियों के जल स्तर में भारी गिरावट दर्ज

दुनिया भर की मुख्य नदियों के जल स्तर में गिरावट दर्ज की गई है एक अध्ययन में निकले निष्कर्षों के मुताबिक़ जलवायु परिवर्तन की वजह से नदियों का जल स्तर जल स्तर घाट रहा है और आगे इसके भयावह परिणाम सामने आएंगे अमेरिकन मीटियरॉलॉजिकल सोसाइटी की जलवायु से जुड़ी पत्रिका ने वर्ष 2004 तक, पिछले पचास वर्षों में दुनिया की 900 नदियों के जल स्तर का विश्लेषण किया है जिसमें यह तथ्य निकलकर आया है कि दुनिया की कुछ मुख्य नदियों का जल स्तर पिछले पचास वर्षों में गिर गया है यह अध्ययन अमेरिका में किया गया है अध्ययन के अनुसार इसकी प्रमुख वजह जलवायु परिवर्तन है पूरी दुनिया में सिर्फ़ आर्कटिक क्षेत्र में ही ऐसा बचा है जहाँ जल स्तर बढ़ा है और उसकी वजह है तेज़ी से बर्फ़ का पिघलना भारत में ब्रह्मपुत्र और चीन में यांगज़े नदियों का जल स्तर अभी भी काफ़ी ऊँचा है मगर चिंता ये है कि वहाँ भी ऊँचा जल स्तर हिमालय के पिघलते ग्लेशियरों की वजह से है. भारत की गंगा नदी भी गिरते जल स्तर से अछूती नहीं है उत्तरी चीन की ह्वांग हे नदी या पीली नदी और अमरीका की कोलोरेडो नदी दुनिया की अधिकतर जनसंख्या को पानी पहुँचाने वाली इन नदियों का जल स्तर तेज़ी से गिर रहा है अध्ययन में यह भी पता चला है कि दुनिया के समुद्रों में जो जल नदियों के माध्यम से पहुँच रहा है उसकी मात्रा भी लगातार कम हो रही है इसका मुख्य कारण नदियों पर बाँध बनाना तथा खेती के लिए नदियों का मुँह मोड़ना बताया जा रहा है लेकिन ज़्यादातर विशेषज्ञ और शोधकर्ता गिरते जल स्तर के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं उनका मानना है कि बढ़ते तापमान की वजह से वर्षा के क्रम में बदलाव आ रहा है और जल के भाप बनने की प्रक्रिया तेज़ हो रही है. मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा का भी जल स्तर काफी तेज़ी से गिर रहा है जिसका मुख्य कारण नर्मदा के दोनों तटों पर घटते वन्य क्षेत्र और जलवायु परिवर्तन माना जा रहा है विशेषज्ञों ने प्राकृतिक जल स्रोतों की ऐसी क़मी पर चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा है कि दुनिया भर में लोगों को इसकी वजह से काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. उनका कहना है कि जैसे जैसे भविष्य में ग्लेशियर या हिम पिघलकर ग़ायब होंगे इन नदियों का जल स्तर भी नीचे हो जाएगा.

April 18, 2009

फिर चले जूते - असम में कांग्रेसी सांसद पर चले जूते

फिर चले जूते लेकिन इस बार मामला कुछ और है इस बार न तो किसी पत्रकार ने किसी नेता पर जूता चलाया और न ही किसी पार्टी की किसी कार्यकर्ता ने अपनी नेता पर घटना असम की है जहाँ मतदाताओं ने सांसद पर जूते चलाये हैं असम के कौनबारी ग्राम में
नाराज मतदाताओं ने शुक्रवार को धुब्री लोकसभा सीट से कांग्रेस के मौजूदा सांसद पर जूते फेंके और पथराव कर दिया। सांसद अनवर हुसैन जब ग्राम के निकट गौरीपुर में एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे तो मतदाताओं ने उन्हें निशाना बनाया। मतदाता वहां एक
पुल का निर्माण करने का वादा नहीं निभाने को लेकर हुसैन से नाराज थे इसलिए उन्होंने सांसद पर जूते फेंके और पथराव किया। साथ ही वहां की जनता में इस बात से भी रोष व्याप्त था संसद सदस्य के तौर पर अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान वह एक बार भी
उनके क्षेत्र में नहीं आए थे।

April 17, 2009

इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में


यूं तो चुनाव आते ही इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता उसकी सत्यता और पारदर्शिता पर कई सवाल उठाये जाते रहे हैं इसी तारतम्य में एक बार फिर इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ गई है लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता को लेकर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर में एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसे माननीय न्यायालय ने विचारार्थ स्वीकार कर लिया गया है
याचिका कर्ता शेलेन्द्र प्रधान और अनिल चावला ने द्वारा प्रस्तुत याचिका में कहा गया है कि इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की कभी भी किसी निष्पक्ष एजेंसी द्वारा जाँच नहीं की गई है हालाकि इससे पूर्व वर्ष १९९० में इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की जांच के सम्बन्ध में विचार किया गया था याचिका कर्ता का कहना है कि विगत १९ वर्षों में एक बार भी इन इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन की जांच नहीं कराइ गई साथ ही याचिका कर्ताओं ने यह भी तर्क दिया है कि दो दशक पूर्व विकसित तकनीक को आज सुरक्षित और विश्वसनीय मानने का कोई तर्कसंगत या वैज्ञानिक आधार नहीं बनता साथ ही पिछले कुछ वर्षों में विकसित हुई हैकिंग तकनीकी भी सुरक्षित इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के लिए खतरा है
याचिका के साथ भोपाल के एक मतदान केंद्र के ग्यारह मतदाताओं के शपथ पत्र संलग्न किये गए हैं इन शपथ पत्रों में मतदाताओं ने कहा है कि २००८ के विधानसभा चुनाव में उन्होंने शैलेन्द्र प्रधान के पक्ष में मतदान किया था लेकिन शैलेन्द्र प्रधान को तीन ही वोट मिले यह ईवीएम की सत्यता पर एक सवालिया निशान है
वैज्ञानिकों की राय :- याचिकाकर्ताओं ने याचिका के साथ अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिकों टाडा युग्यिकोंदो, एडम्स स्टपल फील्ड, एवियल दी रुबिन, डेन एस वेलेच का वह शोध पत्र दाखिल किया है जिसमें यह दावा किया गया है कोई भी पूर्ण सुरक्षित ईवीएम मशीन नहीं बनाई जा सकती साथ ही विकसित देश और वैज्ञानिकों के कथन के अनुसार कोई भी मशीन पूरी तरह से त्रुटि रहित नहीं बनाई जा सकती वैज्ञानिकों का कहना है कि त्रुटी की संभावना चले एक लाख में एक हो या फिर १० लाख में एक लेकिन वह कभी शून्य नहीं हो सकती
कैसे होता है अन्य देशों में मतदान :- याचिका में कहा गया है कि विकसित देशों में विकसित देशों में वोटिंग मशीन में वोट डालने के बाद मतदाता के लिए यह सुनिश्चित कर लेने की व्यवस्था होती है कि कि उसका मत उसी प्रत्याशी को गया है जिसका उसने बटन दबाया है इसके लिए प्रत्येक मतदाता को वोटिंग मशीन से एक प्रिंट आउट मिलता है जिसमें उसके द्वारा चनित प्रत्याशी का नाम मुद्रित होता है मतदाता उसी प्रिंट आउट को एक अन्य मतपेटी में डाल देता है ऐसे में किसी भी असमंजस या विवाद की स्थिति में मतपेटी के आधार पर पुनः गणना की जा सकती है याचिका कर्ता के अनुसार भारत में मतदाता के पास यह जानने का कोई तरीका नहीं कि उसका मत उसी प्रत्याशी को गया है जिसका उसने बटन दबाया है
क्या है ईवीएम ? :- इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) जैसा की नाम से ही पता चलता है कि ऐसी मशीन जिसका प्रयोग मतदान के लिए होता है समय, पैसा और कर्मचारियों की बचत के उद्देश्य से देश में इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के ज़रिये मतदान प्रारंभ हुआ इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) मुख्यतः दो भाग में होती है पहला बैलेट यूनिट जहां मतदाता से समक्ष प्रत्याशियों के नाम उनका चुनाव चिन्ह और ठीक उसके बगल में एक बटन होता है जिसे दबाकर वह अपना पसंदीदा प्रत्याशी चुनता है दूसरा भाग कंट्रोल यूनिट होता है जिसका कंट्रोल पीठासीन अधिकारी के पास होता है इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) स्वतंत्र और बैटरी से संचालित होती है मशीन के कंट्रोल यूनिट पर एक रिजल्ट बटन होता जो की पूरी तरह से सील होता है मतदान संपन्न होने के बाद मतगणना स्थल पर इस रिजल्ट बटन को दबाकर परिणाम प्राप्त कर लिया जाता है आवश्यकता पड़ने पर परिणाम का प्रिंट आउट भी लिया जा सकता है
बहरहाल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता उसकी सत्यता और पारदर्शिता के लिए कोई विशेष व्यवस्था भी आवश्यक है बार बार इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता उसकी सत्यता और पारदर्शिता यदि सवालों के घेरे में आती है तो यह मतदाता पर भी नकारात्मक प्रभाव छोड़ती है इसी को दृष्टिगत रखते हुए मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग और मध्यप्रदेश मुख्य चुनाव अधिकारी तथा ईवीएम के निर्माताओं को इस सम्बन्ध में जवाब देने हेतु छेः सप्ताह का समय दिया है

April 16, 2009

बीजेपी के सिपाही ने आडवाणी पर फेंकी चप्पल

फिर चली चप्पल, मप्र के कटनी जिले में एक चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचे भाजपा के वरिष्ठ नेता और पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी पर पार्टी के ही एक नाराज कार्यकर्ता ने चप्पल फेंक दी। कटनी में लाल कृष्ण आडवाणी की सभा के दौरान बीजेपी के कार्यकर्ता व कटनी जिले के पूर्व जिला अध्यक्ष पावस अग्रवाल ने पहले तो धक्का मुक्की की उसके बाद अपने साथ लाये लकडी के चप्पल आडवाणी पर फेंक दी हांलाकि यह चप्पल आडवाणी को नहीं लगी व् आडवानी इसके बाद सहज दिखे तथा इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की चप्पल फेंकने वाले व्यक्ति को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है
गौरतलब है की इससे पूर्व भी हाल ही में जूता फेंकने की घटना गृह मंत्री पी. चिदंबरम के साथ हो चुकी है कांग्रेस ने इस घटना की निंदा की है
मप्र विधानसभा स्पीकर ईश्वर दास रोहाणी के साथ आडवाणी यहां एक चुनावी सभा को संबोधित करने पहुचें थे। इस घटना के बाद पूरे इलाके में अफरातफरी मच गई। पावस अग्रवाल ने कहा कि आडवाणी की कथनी और करनी में अंतर वे पार्टी के नीतियों और पार्टी के कार्यकलापों से कुछ दिनों से नाराज़ थे

April 10, 2009

अपराधियों की राजनीति में बढ़ती भागीदारी



राजनीति में अपराधियों की भागीदारी देश के लिए बेहद चिंता का विषय है १४ वीं लोकसभा में ९६ ऐसे सांसद हैं जिन पर अपराधिक मामले दर्ज हैं राजनेता हमेशा यह कहकर बच निकलते हैं कि उन पर लगाए आरोप किसी राजनीतिक साजिश का हिस्सा है लेकिन इन मामलों में गैर इरादतन ह्त्या, और आत्महत्या के लिए उकसाने वाले ८४ मामले हैं इसके अलावा लूटपाट के १७, अपहरण के ११, जबरन वसूली के २८, बलात्कार १ मामले शामिल हैं जो किसी भी राजनीतिक साजिश का हिस्सा नहीं लगते राजनीतिक दलों में मार्च २००३ के कोर्ट के फैसले को लेकर बेहद परेशानी है जिसमें प्रत्याशियों को उनके नामांकन पत्र में आपराधिक मामलों, जमा पूंजी, देनदारियों और शैक्षणिक योग्यताओं का ब्योरा देना ज़रूरी कर दिया गया था लेकिन इसके बाद भी राजनीतिक दलों के वायदे और उनके घोषणा पत्र से राजनीति के अपराधीकरण और राजनीति में बाहुबलियों की भागीदारी में रोक लगाने जैसे अहम् मुद्दे गायब हैं ख़ास बात तो यह भी हयाई कि कोई भी राजनीतिक पार्टी दागियों और अपराधियों से अछूती नहीं है
इस बीच दो अहम् फैसले जो सामने आये उससे आम जनता ने थोड़ी राहत महसूस की जब पटना हाई कोर्ट ने पप्पू यादव और सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी
हालाकि आज के समय में जनता से देश के दागी नेताओं की असलियत छिपी नहीं है १४ लोकसभा में चाहे कितने ही दागी सांसद क्यों न हों लेकिन १५ लोकसभा में होने वाले चुनावों में यदि को बाहुबली या आपराधिक प्रवृत्ती का कोई उम्मीदवार खडा होता है तो जनता को अपने मताधिकार का सही प्रयोग करते हुए इन बाहुबलियों और अपराधियों को वोट नहीं देना चाहिए
१४ लोकसभा में दागी सांसदों की स्थिति



राज्यवार दागी सांसद


April 8, 2009

अभिव्यक्ति का नया माध्यम - जूता

मंगलवार को कांग्रेस मुख्यालय नई दिल्ली में गृहमंत्री पी. चिदंबरम की प्रेस कांफ्रेंस में वो बाकया सामने आया जिसने कुछ माह पूर्व इराक़ में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश की प्रेस कांफ्रेंस की याद दिला दी कांग्रेस मुख्यालय में दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल सिंग ने गृह मंत्री पर जूता दे मारा दैनिक जागरण को भी इससे बहुत हैरानी हुई और उसने इस घटना की निंदा भी की साथ ही घटना को नैतिक पत्रकारिता के खिलाफ बताते हुए संस्थान अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की बात भी कही लेकिन क्या किसी कार्यवाही का औचित्य बनता है जब पी. चिदंबरम ने स्वयं कह दिया कि जरनैल सिंह ने भावनाओं में बहाकर सब कुछ किया स्वयं जरनैल भी यही बात स्वीकारते हुए कहते हैं कि "मेरा तरीका ज़रूर गलत था पर में भावावेश में था" सिक्खों को न्याय नहीं मिला दरअसल जरनैल सिंह ८४ दंगो के मामले में जगदीश टाइटलर को सीबीआई द्वारा क्लीन चित दिए जाने पर खफा थे हालांकि कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से उन्हें माफ़ करने की घोषणा कर दी लेकिन बात यहाँ अभिव्यक्ति की आती है भले वह विरोध स्वरुप ही क्यों न हो इराकी पत्रकार जैदी ने जब अपना जूता बुश पर फैंका तो उसका इरादा बिष के मुंह पर मारना था एक बार निशाना चुका तो फिर दूसरा जूता फैंका और यह सब करके वह अपना विरोध जता रहा था
इराकी पत्रकार की प्रतिक्रया बर्बादी पर भडास थी जबकी जरनैल का जूता प्रकरण अपने समाज को न्याय न मिलाने का विरोध हालांकि इस घटना के बाद टाइटलर और सज्जन का टिकट कतना तो पक्का हुआ कांग्रेस ने पहले ही इसके संकेत दे दिए क्यूंकि एन चुनाव के वक्त वह इस मामले को बेवजह टूल नहीं देना चाहते
बहरहाल पत्रकारिता के नज़रिए से देखा जाए तो यह घटना पत्रकारिता को कलंकित करती है पहले ही विवादों में घिरे मीडिया पर एक नया दाग है जरनैल वहां एक प्रतिष्ठित अखबार के प्रतिष्ठित पत्रकार की हैसियत से गए थे वहां जहां कोई आम इंसान नहीं पहुँच सकता था और एक पत्रकार होने के नाते उन्हें किसी जाती या धर्म विशेष तक अपनी विचारधारा को सीमित नहीं करना चाहिए यह घटना कहीं न कहीं पत्रकारिता के गिरते स्तर का भी प्रतीक है
बहरहाल उस घटना के बाद राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गईं हैं जैदी के जूते की कीमत लाखों डॉलर लगाईं गई थी तो शिरोमणि अकाली दल ने भी जरनैल के जुटी की कीमत २ लाख लगा दी यह भी संभव है कि अकाली दल उन्हें चुनाव लड़ने की पेशकश करे
लेकिन पत्रकारिता के नज़रिए से न देखा जाए तो जैदी और जरनैल के ये जूता प्रकरण अभिव्यक्ति का माध्यम ज़रूर बन गए हैं

April 7, 2009

कुकुरमुत्तों की तरह पैदा हो गए राजनीतिक दल

<><><>(कमल सोनी)<><><> एकता ही शक्ति है का नारा देने वाले हमारे देश के नेता किस तरह से आम जनता को बाँट रहे हैं इसका सीधा अनुमान देश में निरंतर बढ़ती राजनीतिक दलों की संख्या से लगाया जा सकता है अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए इन नेताओं ने पूरे देश को धर्म, जाती, आरक्षण, क्षेत्रीयता और प्राशासनिक आधारों पर बाँट रखा है और वास्तव में जनता को देश, समाज, धर्म और अपने अधिकारों के प्रति गंभीर चिंतन - मनन का मौका ही न मिले जनता सही-गलत, उचित-अनुचित, में स्वयं फैसला न कर सके जनता के सामने असमंजस और भ्रम की स्थिति बनी रहे और इन नेताओं की स्वार्थ की रोटियाँ सिकती रहें यही मुख्या वजह है की हमारे देश में कुकुरमुत्तों की तरह राजनितिक पार्टियां पैदा हो गई हैं और निरंतर इनकी संख्या में इजाफा भी हो रहा है सुशासन की बात करने वाले इन राजनितिक दलों में अनुशासन का घोर आभाव नज़र आता है
दुनिया के अधिकांशतः लोकतांत्रिक राष्ट्रों में चाहे वहां राष्ट्रपति पद्धति का ही लोकतंत्र क्यों न हो उन देशों में दो से चार राजनीतिक दल नज़र आते हैं अगर कहीं इनकी संख्या ज़्यादा भी हो तो वहां धर्म, जाती, सम्प्रदाय और क्षेत्रीयता जैसी कोई बात नहीं होती और वे सभी राष्ट्रीय दल होते हैं उदहारण के लिए फ्रांस में लगभग दर्ज़न भर राजनितिक दल हैं लेकिन वहां राष्ट्रपति पद्धति का लोकतंत्र होने के कारण वह ज़्यादा साफ़ पाक नज़र आता है भारत की तरह ही जापान में भी गठबंधन की राजनीति चलती है परन्तु वहां सभी राष्ट्रीय पार्टियां हैं अमेरिका में भी दो दलीय व्यवस्था है ब्रिटेन में तें दल हैं लेकिन मुख्या संघर्ष दो दलों के बीच ही होता हैं यही वजह है कि इन देशों का लोकतंत्र भारतीय लोकतंत्र के मुकाबले ज़्यादा मजबूत और साफ़ सुथरा है हमारे महान भारतीय लोकतंत्र की तरह इन देशों में सरकार बनाने की कावायद के चलते सांसदों की खरीद फरोख्त नहीं होती और न ही किसी गठबंधन का घटक दल किसी मुद्दे विशेष पर समर्थन वापस लेकर मध्यावधि चुनाव जैसे हालात पैदा करता और न ही इन देशों की राजनीति और सत्ता अवैध कमाई का साधन हैं
लेकिन ठीक इसके विपरीत हमारे देश में राजनीति का व्यापारीकरण हो गया यहाँ नेता अपने, अपने परिवार और अपने परिचितों का उद्धार करने के लिए आते हैं दूसरा अंग्रेज़ चले गए और अपनी नीति छोड़ गए "फूट डालो और राज करो" यह नीति हमारे देश के नेताओं का सबसे बड़ा हथियार है कोई इसका प्रत्यक्ष तो कोई आप्रत्यक्ष रूप से इस्तेमाल करता है ऐसा नहीं है कि संवैधानिक व्यवस्था में कोई सार्थक बदलाव लाकर इस समस्या का कोई हल नहीं निकाला जा सकता सब संभव है लेकिन ऐसा होने पर इन नेताओं की अवैध कमाई, दबंगता और बाहुबल पर अंकुश लग जायेगा जो स्वयं ये राजनेता नहीं चाहते क्यूंकि कानून बनाने वाले भी तो यही हैं
मौजूदा हालत तो ये हैं कि जिसका जहां वर्चस्व होता है वो वहीं अपनी राजनीति का शो रूम खोलकर बैठ जाता है किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल ने अपने किसी नेता की बात नहीं मानी तो नेताजी अपने समर्थकों समेत पार्टी से अलग होकर नई पार्टी बना लेते हैं और फिर वही राष्ट्रीय दल अपनी ही पार्टी से अलग हुए नेता के दरवाजे पर सरकार बनाने के लिए हाथ जोड़े समर्थन मांगता फिरता है और क्षेत्रीय दल समर्थन देने की नाम पर किसी मंत्रालय की डिमांड कर देते हैं अब यहाँ योग्यता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता सरकार बनाने के लिए राष्ट्रीय दल मजबूर होता है क्षेत्रीय दलों की बात मानने के लिए उदाहरण के लिए बीजेपी से अलग हुई उमा भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी बना ली शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस का गठन कर लिया तो करुणाकरण ने कांग्रेस से अलग होकर केरल कांग्रेस बना ली ये तो महज़ उँगलियों पर गिन लेने वाले चाँद उदाहरण ही हैं देश में ऐसी कोई पार्टी नहीं बची जो इस राजनीतिक उथल-पुथल से अछूती हो चुनाव नज़दीक आते ही ये उथल-पुथल और बढ़ जाती है दूसरी और दुगनी रफ्तार से कषेत्रीय दलों की संख्या और सक्रियता बढ़ रही है जिन पार्टियों का प्रभाव तीन-चार जिलों तक सीमित रहता है वह पार्टी खुद को राष्ट्रीय पार्टी घोषित कर देती है जिस पार्टी की पास छेह से सात सांसद भी हो गए उस पार्टी का प्रमुख खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर देता है
सबसे दुखद पहलू तो ये है कि टेलीविजन, फिल्मी सितारों और राजनीति से संन्यास ले चुके खिलाड़ियों की राजनीति में भूमिका बढ़ रही है दबंगों. बाहुबलियों और अपराधियों की भी अच्छी खासी भीड़ है इस बीच हाल ही में दिए गए दो महत्वपूर्ण फैसलों में जनता ने तब थोड़ी राहत महसूस की जब सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त और पटना हाई कोर्ट ने पप्पू यादव के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी
आज देश के राजनितिक गलियारों में जो उठा-पटक मची है और उससे जो राजनीतिक परिद्रश्य उभरकर आता है यह अपने आप में बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण लगता है और भविष्य में भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत कतई नहीं देता चुनाव आयोग में भी मान्यता संबन्धी नियम कड़े नहीं होने के कारण पार्टियों को क्षेत्रीय स्टार पर मान्यता तो मिल ही जाती है
बहरहाल देश की राजनीतिक पार्टियों की संख्या की बात करें तो वर्ष २००४ के आम चुनावों में देश में ६ राष्ट्रीय दल और ३६ क्षेत्रीय दल थे वहीं गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की संख्या १७३ थी लेकिन इस बार के चुनावों में राष्ट्रीय पार्टियों की संख्या ७ और क्षत्रिय दलों की संख्या ४४ है गैर मान्यता प्राप्त दलों की संख्या में भी इजाफा हुआ है इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज देश की जनता के सामने किस तरह से भ्रम और असमंजस की स्थिति बनी हुई है