October 16, 2009

पंचकल्याण पर्व दीपावली (दीपावली विशेष)

सभी बलोगर मित्रों को कमल सोनी की ओर से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..................
भोपाल (कमल सोनी) 16/अक्टूबर/2009/(ITNN)>>>> भारत में पर्व संस्कृति की दीर्घ परंपरा में दीपावली जैसा कोई दूसरा पर्व नहीं है। दीपावली पांच दिनों का श्रृंखलाबद्ध माननीय त्योहार है। कार्तिकमास कृष्णपक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा अमावस्या और शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तथा द्वितीया तक आयोजित यह पर्व केवल आगम-निगम का सम्मेलन ही नही होता बल्कि जीवन के तमाम कर्मपक्ष इन्हीं पांच दिनो में अनुस्यूत हो उठते है। कार्तिक की अमावस्या को दीवाली कहा जाता है। इस दिन देश भर में चौतरफा दीपमालाएं प्रज्जवलित की जाती है। नदी तटों, देव मंदिरों, चौराहों और गलियो में जलते हुए दीपक अमावस्या के निविड़ अंधकार को पराजित कर खिलखिला उठते है। इस दिन घूरे के भी दिन बहुरते है। छोटे-बड़े सभी एक रूप। यह है दीपावली का ममैव पक्ष। भ्रतहरि का कहना है, 'कृतिनाम् अपि स्फुरति एष निर्मल विवेद दीपक:' अर्थात दीपावली मनाने वाले कृतीजन मिट्टी के दीए तो जलाते ही हैं, साथ ही वे अपने विवेक-दीपक भी जला लेते है। दीपावली पंचकल्याण पर्व है। इसे पांच दिनों के श्रृंखलाबद्ध कृत्यों द्वारा सम्पन्न किया जाता है। इसका मुख्य त्योहार है अमावस्या, परन्तु अमावस्या के दो दिन पहले से दो दिन बाद तक यह पर्व मनाया जाता है। दो दिन पहले के पर्व है - धनतेरस और नरक चतुर्दशी।
धनतेरस :- धनतेरस दीपावली की शुरुआत होती है। इस दिन क्रेता-विक्रेताओं का उत्तोजक संगमन होता है। दीपवृक्षों और दीप प्रखंडिकाओं से दुकानें सजाई जाती है। आजकल बिजली की सजावटे कलात्मक बाजारों को चुनौतियां देने की कोशिश कर रही है परन्तु प्राचीनता अपना अस्तित्व कायम रखना चाहती है। ग्लोबल बाजार रहे तो रहे। धनतेरस के बाजार में स्वर्ण, रजत पात्र से लेकर स्टेनलेस स्टील तक के पात्रों की बिक्री हो जाती है। दीपावली को शिष्टाचारी भक्त लगभग आधी रात को क्रीत पात्रों सहित लक्ष्मी पूजन करते है। लक्ष्मी और गणेश की स्थापना करते हैं। बाएं गणेश दाहिने लक्ष्मी। धनतेरस की पूजा का अर्थ ही है लक्ष्मी का आवाहन। गणेश स्थायी सुरक्षा देने वाले देवता माने जाते है। इस प्रकार धनतेरस दीपावली के उत्सव को काफी सघन बना देता है।
नरक चौदस :- इसे नरक चतुर्दशी इसलिए कहा जाता है कि इसी दिन घर का सारा कूड़ा-कतवार बाहर निकालकर एक स्थान पर फेंक देते है। शाम होते-होते कतवार के उस ढेर पर घर के सबसे बड़े दीए को कड़ुवा तेल से भरकर चारों मुंह जला देते है। किसी भी ओर से नरकासुर के आने की संभावना नहीं रह जाती। कार्तिक की कृष्णा चतुर्दशी 'यम' का दिन होती है। यम और यमी की पूजा दीपावली को वैदिक परंपरा से जोड़ देती है। पद्मपुराण, भविष्य पुराण, गरुड़ पुराण और स्कंद पुराण जैसे कई दूसरे पुराणों में दीपावली पर्व की राष्ट्रीय धारा पर बड़ी-बड़ी कथाएं लिखी गई है।
दीपावली :- धनतेरस और नरक चतुर्दशी पूर्व पर्वो के बाद कृषिकर्मा दीपावली आती है। दीपावली को महानिशा और शुभ रात्रि माना गया है। इस रात में सूर्य और चंद्रमा की युति शुक्र की तुला राशि में होती है जो कि भौतिक सुखों और संपन्नता को प्रदान करती हैं। श्रीसूक्त और भविष्यपुराण के अनुसार लक्ष्मीजी का वास बिल्ववृक्ष में माना गया है। दीपावली की रात के तीसरे और चौथे प्रहर में मंत्र और यंत्रों को सिद्ध करके संपन्नता प्राप्त की जा सकती है।
प्रात:काल ही मिट्टी के दीए और काजल पारने की मृत्तिका घटी खरीदे जाते है। दिन में दीपावली का विशेष पकवान बनता है। विशेष इस अर्थ में कि सूरन का भर्ता और नए आलू के साथ नए बैगन की सब्जी अवश्य बनाते है। यहा यह कह देना असंगत न होगा कि सूरन और बैगन आर्यकालीन द्रविड़ों के मुख्य भोग्य थे, जिन्हे वे यम-दिशा में उगाते थे। बाद में आर्यो ने भी इन्हे खाना शुरू कर दिया। दीपावली पर ओदन और उड़द का बड़ा का पकवान निश्चित बनता है। दीपावली पर ऋग्वेदिक आर्यो का सबसे प्रिय खेल द्यूतक्रीड़ा था। महाभारत का पूरा युद्ध ही द्यूत-क्रीड़ा का परिणाम माना गया है। ये सभी कर्म निगमवादी है, परन्तु दीपावली को आगमवादियों ने भी कम महत्व नहीं दिया है। दीपावली की आधी रात को तंत्रसाधना का बहुविधान किया गया है। दीपावली की आधी रात के करीब घंटी में पारा गया काजल पूरे घर को लगाया जाता है। इससे आंख की रोशनी तो बढ़ती है है तांत्रिक साधकों की नजर भी नहीं लगती। दीपावली की सारी रात श्वान निद्रा तक सीमित रहती है क्योंकि उषाकाल होते ही घर की कोई स्त्री शूर्पवादन करते हुए घर के कोने-कोने से दरिद्रता का निष्काषन और ईश्वरता का प्रवेशन करती है।
दीपावली पर प्रचलित कथा :-
भगवान राम अयोध्या लौटें : 14 साल के वनवास के बाद भगवान राम, रावण का वध करकर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस आये थे इसी दिन अयोध्या अपने राजा की वापसी मनाता है, दीपावली के दिन अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर भगवान राम का स्वागत किया था एक युद्ध जिसमें भगवान राम ने रावण को मार डाला था
अन्नकूट :- दीपावली की रात बीती और शुक्ल प्रतिपदा लगते ही अन्नकूट की सजावट प्रारंभ हो जाती है। अन्नकूट देवता के भोगोपरांत प्राय: सभी मंदिरों, घरों में दर्शन-पूजन और कथा श्रवण तथा दीपदान का विधान होता है। अन्नकूट के भोग के लिए छप्पन प्रकार के व्यंजन बनते है। अन्नकूट के दिन भगवान को कच्चा भोग लगाया जाता है यानि आज के दिन अनाज के व्यंजन बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है आज के दिन गोवर्धन पूजा भी की जाती है, यही वह दिन है जो कृष्ण इंद्र हार के रूप में मनाया जाता है. आज ही के दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया था इसीलिये अन्नकूट के दिन कृष्ण मंदिरों में गोवर्धन पूजा का विशेष आयोजन भी किया जाता है
भैयादूज :- दीपावली के पाँच दिन चलने वाले महोत्सव में शामिल है 'भाई दूज' उत्सव। भैयादूज अन्नकूट के दूसरे दिन पड़ता है। हिंदू समाज में भाई-बहन के अमर प्रेम के दो ही त्योहार हैं। पहला है रक्षा बंधन जो श्रावण मास की पूर्णिमा को आता है तथा दूसरा है भाई दूज जो दीपावली के तीसरे दिन आता है। भाई दूज को यम द्वितीया भी कहते हैं। परम्परा है कि रक्षाबंधन वाले दिन भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देकर उपहार देता है और भाई दूज वाले दिन बहन अपने भाई को तिलक लगाकर, उपहार देकर उसकी लम्बी उम्र की कामना करती है। रक्षा बंधन वाले दिन भाई के घर तो, भाई दूज वाले दिन बहन के घर भोजन करना अति शुभ फलदाई होता है।
भाई दूज की कथा : - सूर्यदेव की पत्नी छाया की कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को खड़ा देखकर हर्ष-विभोर हो गई। प्रसन्नचित्त हो भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर माँगने को कहा। तब बहन ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहाँ भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहे। यमराज 'तथास्तु' कहकर यमपुरी चले गए।
दीपावली(विशेष संयोग) "लक्ष्मी के साथ सूर्य, शनि को भी पूजें" :- दीपावली पर इस बार तुला संक्रांति और शनि अमावस्या भी पड़ रही है। अतरू जो लोग लोहा या उससे जुड़ा व्यापार करते हैं उनके लिए यह लाभदायक है। ज्योति पर्व पर इस बार जो योग बन रहे हैं, वह सभी के लिए अच्छे हैं। ज्योतिषाचार्य आशु गुरु कहते हैं कि दीपावली शनिवार को पड़ रही है, अतरू शनि से संबंधित लोगों के लिये यह लाभ दायक है। जो लोग शेयर, जमीन, लोहा आदि से जुड़ा व्यापार करते हैं, उनके लिए यह शुभदायक होगी। पूजन सायं 07:22 बजे से 09:15 बजे तक किया जायेगा। इस दौरान वृष लगन होगी। जो लोग सिद्घि करना चाहते हैं उनके लिए रात्रि 01:52 से लेकर 04:05 तक है।
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने लोगों का भ्रम दूर किया। बताया कि 17 अक्टूबर को ही दीपावली पूजन है, क्योंकि इस दिन दोपहर 12:37 से अमावस्या लग रही है। महालक्ष्मी पूजन रात्रि को ही होता है, इसलिए दूसरे दिन यह तिथि रात्रि में नहीं होगी। उन्होंने बताया कि दक्षिणावर्ती शंख में चांदी का सिक्का और साबुत चावल, गौरीशंकर रुद्राक्ष, स्फटिक श्रीयंत्र को एक साथ रखकर दीपावली पूजन करें। इससे सभी मनोकामना पूर्ण होंगी।
ज्योतिष विभाग की पूर्व अध्यक्ष डा:किरन जेटली ने बताया कि 17 अक्टूबर दोपहर 11:30 बजे से तुला संक्रांति भी है। प्रातरू सूर्य की उपासना से सुख-समृद्घि आती है। इस दिन प्रातरू गेंहू, तांबे का बर्तन, लाल फूल आदि दान करना लाभदायक है। उनके अनुसार प्रदोष काल (संध्या समय) सायं 05:45 से 11:35 बजे तक मुहुर्त सर्वश्रेष्ठ है।
दीपावली की रात्रि को निम्न उपाय भी करें :-
>> इस दिन श्रीयंत्र को स्थापित कर गन्ने के रस और अनार के रस से अभिषेक करके लक्ष्मी मंत्रों का जाप करें।
>> दीपावली की रात्रि को पीपल के पत्ते पर दीपक जलाकर नदी में प्रवाहित करें। उसके दूर जाने की प्रतीक्षा करें। इससे आर्थिक संकट दूर होंगे।
>> लक्ष्मी पूजन के समय अपने बहीखातों व कलम-दवात का पूजन करना चाहिए।
>> दीपावली को रात्रि में हात्थाजोड़ी को सिंदूर में भरकर तिजोरी में रखने से धन में वृद्धि होती है।
>> सात गोमती चक्र और काली कोड़ियों को व्यापार वाले स्थान में रखने से निरंतर व्यापार में वृद्धि होती रहती है।
>> घर पर हमेशा बैठी हुई लक्ष्मीजी की और व्यापारिक स्थल पर खड़ी हुई लक्ष्मीजी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।
>> लक्ष्मीजी को गन्ना, अनार, सीताफल अवश्य चढ़ाएं।
>> इस दिन पूजा स्थल में एकाक्षी नारियल की स्थापना करें। यह साक्षात लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। जिस घर में एकाक्षी नारियल की पूजा होती हो, वहां लक्ष्मी का स्थाई वास होता है।
>> दीपावली की रात्रि में श्रीसूक्त, कनकधारा स्तोत्र एवं गोपाल सहस्रनाम का पाठ करने से लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

October 10, 2009

ओबामा को नोबेल, क्या नोबेल पर भी राजनीति हावी ?

भोपाल (कमल सोनी) 10/अक्टूबर/2009 >>>> अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को वर्ष 2009 का शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा लेकिन सबसे अहम् सवाल यह है कि अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को नोबेल क्यों नहीं मिला जबकि ओबामा खुद महात्मा गांधी को "रियल हीरो" मानते है ओबामा को वर्ष 2009 का शांति का नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा से फिर एक नया विवाद उठ खडा हुआ है इससे पूर्व भी शांति के लिए दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार पर विवाद उठ चुके हैं वर्षो से इनकी चयन प्रक्रिया पर उंगली उठती रही है। यूं कहें कि शांति के नोबेल पुरस्कार और विवादों का चोली-दामन का साथ है तो गलत न होगा। ख़ास बात तो यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा स्वयं नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उनके चयन पर ‘आश्चर्यचकित’ हैं और उन्हें इस पर संदेह है कि क्या वह इस सम्मान के हकदार हैं।
हैरत में डालने वाली एक ख़ास बात तो यह है कि अभी उन्हें पद संभाले हुए एक साल भी नहीं हुआ फिर एक साल में उन्होंने ऐसा क्या कर दिया कि उन्हें 2009 का शांति का नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा कर दी गई इसमें कोई दो मत नहीं कि ओबामा के प्रयास सराहनीय नहीं हैं नोबेल पुरस्कारों के लिए बनी निर्णायक समिति ने अपने बयान में कहा है कि बराक ओबामा को यह पुरस्कार देने का निर्णय उनके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक प्रयासों को विशेष गति देने के लिए किया गया है
इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए ओबामा के चुने जाने की खबर अमेरिकियों के साथ ही शेष विश्व के लोगों के लिए भी चौंका देने वाली ही है क्योंकि उनका नाम न तो संभावितों की सूची में कहीं था और न ही नोबेल शांति पुरस्कार के दावेदारों में उनके बारे में कोई अटकल थी। ओबामा ऐसे तीसरे पदस्थ राष्ट्रपति हैं जिन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला है। वर्ष 1906 में टी. रूजवेल्ट और 1919 में वूड्रो विल्सन को भी नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है। वर्ष 2002 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर को भी यह पुरस्कार मिला था।
यहाँ एक ख़ास बात और गौर करने लायक यह है कि अमेरिका को भले ही कई लड़ाइयों के लिए दोषी ठहराया जाता रहा हो, लेकिन शांति के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वालों में सबसे आगे अमेरिकी ही हैं। 1901 में शुरुआत से अब तक करीब दो दर्जन अमेरिकियों को यह पुरस्कार मिल चुका है।
एक और रोचक तथ्य यह है कि ओबामा ने 20 जनवरी 2009 को अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में काम शुरू किया। नोबेल शांति पुरस्कार के नाम लेने की अंतिम तारीख 1 फरवरी 2009 थी। यानी 11 दिन के उनके कार्यकाल पर उन्हें विश्व में अमन स्थापित करने का सम्मान दे दिया गया! यही नहीं, निर्णायकों ने अपने वोट जून में दे दिए थे- यानी तब भी चार माह हुए थे ओबामा के उन प्रयासों को, जो किसी और को तो खैर दिखे तक नहीं, किन्तु नोबेल कमेटी को ‘असाधारण, अद्वितीय’ लगे। सम्मान की घोषणा वाले दिन तक भी वे नौ माह पुराने ही ‘शांति के क्रांतिकारी’ हैं।
अंततः अब हर आदमी के दिल में एक ही सवाल जन्म ले रहा है कि अब कहीं यह पुरस्कार राजनीति से प्रेरित तो नहीं हो गया ?
सन १९८० से शांति के लिए नोबल पुरस्कार विजेताओं की सूची :-
<><><> 2009: यूं एस प्रेसिडेंट बराक ओबामा
<><><> 2008: मर्त्ति आहतिसाड़ी
<><><> 2007: इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज, अल गोरे
<><><> 2006: मुहम्मद युनुस, ग्रामीण बैंक
<><><> 2005: इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेन्सी, मोहमद एल्बरादी
<><><> 2004: वंगारी माथाई
<><><> 2003: शिरीन एबादी
<><><> 2002: फोर्मेर यूं एस प्रेजिडेंट जिमी कार्टर
<><><> 2001: यूनाइटेड नेशन्स, कोफी अन्नान
<><><> 2000: किम डे-ज़ंग
<><><> 1999: मेडेसिंस साँस फ़्रन्तियरर्स
<><><> 1998: जॉन ह्युमे, डेविड त्रिम्ब्ल
<><><> 1997: इंटरनेशनल काम्पैन तो बैन लैंडमाइंस, जोडी विलियम्स
<><><> 1996: कार्लोस फिलिपे ज़िमेनेस बेलो, जोसे रामोस-होर्ता
<><><> 1995: जोसफ रोटब्लाट, पुगवाश कोंफ्रेंस ऑन साइंस एंड वर्ल्ड अफेयर्स
<><><> 1994: यासेर अराफात, शिमोन पेरेस, यित्ज्हक राबिन
<><><> 1993: नेल्सन मंडेला, ऍफ़.डब्ल्यू. दे क्लर्क
<><><> 1992: रिगोबेर्ता मंचू तुम
<><><> 1991: औंग सान सू क्यी
<><><> 1990: मिखाइल गोर्बाचेव
<><><> 1989: 14th दलाई लामा
<><><> 1988: यूएन पीसकीपिंग फोर्सेस
<><><> 1987: ऑस्कर अरिअस सांचेज़
<><><> 1986: एली विएसेल
<><><> 1985: इंटरनेशनल फिजिसियन फॉर द प्रिवेंशन ऑफ़ न्यूक्लियर वार
<><><> 1984: डेसमंड टूटू
<><><> 1983: लेक वालेसा
<><><> 1982: अल्वा मिर्डल, अलफोंसो गार्सिया रोब्ल्स
<><><> 1981: ऑफिस ऑफ़ द यूं एन हाई कमीश्नर फॉर रिफ्यूजी
<><><> 1980: अदोल्फो पेरेज़ एस्कुइवेल

October 2, 2009

क्या गांधी को सिर्फ गोडसे ने मारा ?

आज दो अक्टूबर यानि गांधी जयंती वो दिन जिस दिन अहिंसा के पुजारी ने जन्म लेकर इस धरती को पुण्य किया था लेकिन आज २ अक्टूबर का दिन महज़ एक औपचारिकता बनकर ही रह गया है राजनेता राष्टपिता को श्रद्धा सुमन अर्पित कर गांधी विचारों को अपनाने का संकल्प लेते हैं यह सिलसिला काफी तो समय से चल रहा है कल से फिर धर्म, जात और क्षेत्रीयता के नाम पर देशवासियों को बाँट कर अपने स्वार्थ की रोटियाँ सेकना शुरू कर देगे स्कूल, कॉलेज के छात्र छात्राएं हों या फिर, कामकाजी वर्ग, या फिर व्यवसाई वर्ग, हट व्यक्ति दो अक्तूबर को गाँधी जयंती से ज्यादा छुट्टी के दिन के रूप में जानता हैं । आज की आधुनिक पीढ़ी गाँधी के विचारों से पूरे तरह अनजान है । यही वजह है कि अहिंसा के पुजारी के इस देश में हिंसा अपने चरम पर है स्वदेशी अपनाने का नारा देने वाले गांधी के देशवासी अपनी संस्कृति छोड़ विदेशी को अपनाने में जुटे हुए हैं
गांधी के विचारों से अनजान है यही वजह है कि उनमें धैर्य नही है, आज की हिंसक घटनाओं का सीधा असर देश की ऍम जनता पर पद रहा है लेकिन किसी को क्या ? गांधी जयन्ती तो हर साल आती है ! राजनैतिक पार्टियों एवं अन्य संगठनो का नजरिया बिल्कुल साफ है, मांगे मनवानी हो शहर बंद कर दो, सरकार से नाराजगी है, नेताओ के पूतले फूंक दो, सरकार से बात मनवानी है, बसे फूंक दो । विरोध प्रदर्शन करना है रेलें फूंक दो । हम ऐसे ही हैं और ऐसे ही रहेंगे हमें क्या ? "ये फूंक दो-जला दो प्रथा" गांधी के देश की संस्कृति बनती जा रही है । कौन कहता है गांधी को गोडसे ने मारा, आज हर दिन हर पल, चौक चौराहों से लेकर सदन तक गांधी के विचारों और आदर्शों की क्रमिक हत्या होती है । और वो हत्याएं करने वाले भी हम में से ही एक हैं "जैसे राम से बड़ा राम का नाम" वैसे ही "गांधी से बड़े गांधी के विचार" जिनकी हमारे देश में हर रोज़ हत्या होती है क्या हम कह सकते हैं ? कि - गांधी को सिर्फ गोडसे ने मारा