January 30, 2010

मासूमों को कुचलता रईसों पर छाया रफ़्तार और शराब का नशा

कमल सोनी>>>> कल रात मुंबई में शराब के नशे में धुत एक महिला ने अपनी कार से ६ लोगों को कुचल दिया. मुंबई में शुक्रवार देर रात हुए कार हादसे में मरने वालों की संख्या अब दो हो गई है. शनिवार सुबह घटना में गंभीर रूप से घायल पुलिस सब इंस्पेक्टर दीनानाथ शिंदे की भी मौत हो गई. इससे पहले सुबह एक बाइक सवार ने भी हादसे में दम तोड़ दिया. कार नशे में धुत एक महिला चला रही थी नशे में धुत एक महिला ने अपनी होंडा सीआरवी से 6 लोगों को कुचल दिया. नशे की हालत में इस महिला ने पुलिस जीप, टैक्सी और एक बाइक को जबरदस्त टक्कर मारी. नशे में गाड़ी चलाने वाली महिला का नाम नूरिया यूसुफ हवेलीवाला है, वो एक मल्टीनेशनल कंपनी में एक्जीक्यूटिव है, पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है. नूरिया बीती रात अपने दोस्त के साथ शराब के नशे में मरीन ड्राइव पर गाड़ी चला रही थी. जैसे ही पुलिस ने इसे रोकना चाहा इसने गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी. लेकिन गाड़ी बेकाबू हो गई. पहले इसने एक टैक्सी को टक्कर मारी फिर पुलिस की क्वालिस और मोटरसाइकल पर भी अपनी गाड़ी चढ़ा दी. फिलहाल पुलिस ने महिला का मेडिकल टेस्ट करा दिया है और उससे पूछताछ की जा रही है. पुलिस ने कार चला रही महिला को गिरफ्तार कर उस पर गैर−इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है. हादसे में गंभीर रूप से घायल मोटरसाइकिल सवार अफजल मुखमोजिया को अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहां चिकित्सकों ने उन्हे मृत घोषित कर दिया. हादसे में घायल पुलिसकर्मियों को बाम्बे अस्पताल और गोकुलदास तेजपाल अस्पताल में भर्ती करवाया गया है. घायल पुलिसकर्मियों की पहचान लाला शिंदे, दीनाननाथ शिंदे, शेलेन्द्र जादव, अशोक शिंदे और अर्जुन गायकवाड़ के रूप में हुई है. जिसने पुलिस सब इंस्पेक्टर दीनानाथ शिंदे की मौत हो गई है.

लेकिन यह कोई पहली घटना नहीं है इससे पूर्व भी मुंबई समेत देश के अन्य शहरों में नशे में धुत होकर रईसजादे सड़क पर मासूमों को अपना निशाना बनाते हैं फिर पैसे और रुआब के बल पर बरी भी हो जाते हैं. मुंबई में बीती रात हुई इस घटना के बाद वो सभी वाकये आंखो के सामने आ गए जिनमें रईसजादों ने नशे में धुत्त होकर बेकसूरों को कुचला है. हांलाकि बाद में इनमें से कुछ ही को सजा मिल पाई और बाकी ने अपने रूतबे के बीच अपनी इस गलती को कहीं छुपा दिया. या फिर गैर इरादतन हत्या का आरोप लगा दिया गया जिससे इन्हें ज्यादा नुकसान नहीं हुआ. पैसे का गुरूर उस पर शराब के नशे में डूबे युवाओं के हाथ जब स्टेरिंग थामते हैं तो रफ्तार अपने आप बढ़ जाती है. फिर इन्हें ये नजर नहीं आता कि चक्के सड़क पर हैं भी या नहीं, और मदहोशी में ये लगाम संभाल नहीं पाते. इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है उन बेकसूरों को जिनकी बदनसीबी उन्हें इनकी कार के सामने ला खड़ा करती है.

आंकड़ों पर नज़र डालें तो इससे पूर्व इसी तरह की कार दुर्घटनाएं हुईं है बैंग्लोर के इंदिरा नगर क्षेत्र में हिट एंड रन केस में चार लोगों की मौत हो गई थी जबकि एक बुरी तरह जख्मी हो गया था. तेज रफ्तार से आ रही होंडा एकॉर्ड कार ने अलसुबह इन लोगों को अपना निशाना बनाया था. मरने वाले लोग मॉर्निंग वॉक कर रहे थे. कार मिटसुन स्टील प्राइवेट लिमिटेड के नाम पर रजिस्टर थी. मशहूर बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान भी नशे में धुत होकार ड्राइव करते हुए फुटपाथ पर सो रहे मजदूरों को अपनी गाड़ी से कुचल दिया था. बांद्रा में चार लोगों पर सलमान ने कार चढ़ाई थी जिसमें एक की मौत हो गई थी. सलमान खान के वकील ने इस मामले में दलील ये दी की न तो सलमान गाड़ी चला रहे थे न ही उन्होंने शराब पी रखी थी. वकील ने ये सफाई दी की गाड़ी सलमान के बॉडीगार्ड रविंद्र चला रहे थे. रविंद्र की 2007 मे मौत हो गई और मामला रफा दफा हो गया लेकिन पीड़ितों को कोई इन्साफ नहीं मिला. ठीक इसी तरह का हादसा 2006 फरवरी में हुआ था जब रात्रि गश्त कर रहे दो पुलिस कांस्टेबल जयदेव धवाडे़ औऱ गोविंद सावंत को शिव सृष्टी रोड़ के पास सुबह 4 बजकर 15 मिनट पर ह्यूंडई एक्सेंट कार ने रौंद दिया. इस हादसे में दोनों बुरी तरह जख्मी हो गए. यह कार बिजनेसमैन नौशाद हाशमी चला रहे थे, पुलिस ने हाशमी को गिरफ्तार कर लिया और बाद में पता चला की वह नशे की हालत में था.

इन कार हादसों में बीएमडब्ल्यू कांड को कौन भूल सकता है बीएमडब्लयू केस अब तक का हिट एंड रन का सबसे बड़ा उदाहरण है. जिसमें पूर्व नौसेना प्रमुख स्व. सुरेश नंदा के बेटे बिजनेसमैन संजीव नंदा पर तीन पुलिसकर्मियों समेत छह लोगों को अपनी बीएमडब्ल्यू कार से कुचलकर जान से मारने का आरोप लगा था. 10 जनवरी 1999 को संजीव नंदा ने पुलिस चेकपोस्ट पर अल सुबह 4 बजकर 50 मिनट पर पुलिसवालों को रौंद दिया था. बाद में वह कार लेकर भाग गया और उसे अपने दोस्त के यहां साफ करवाई. घटना के वक्त संजीव के साथ उसके कुछ दोस्त भी कार में सवार थे. संजीव ने अपने और अपने पिता के रूतबे से इस केस को दबाने की पूरी कोशिश की थी. लेकिन मीडिया में मामला उछलने के बाद ही संजीव नंदा को सजा मिली.

ऐसे कई मामले और भी हैं जहां इस तरह की कार दुर्घटनाओं ने कई मासूमों को मौत के घाट उतार दिया और गुनेहगार अपने रुतबे और पैसे के बल पर बच निकले. इन सबके बावजूद सरकार ने इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कोई ठोस कार्यवाही नहीं की. ऐसे में अहम सवाल यह उठाता है कि क्यों न ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए यातायात के नियमों में संशोधन कर कुछ कड़े प्रावधान बनाये जाएँ ? और उनको सख्ती से लागू भी किया जाए तथा सख्त से सख्त सज़ा का प्रावधान किया जाये ताकि रईसों पर क़ानून का दर हो और इस तरह की घटनाओं पर रोक लगे जा सके.

January 17, 2010

प्रतिस्पर्धा के दबाव में आत्महत्या को मजबूर छात्र


(कमल सोनी) >>>> मौजूदा परिवेश में हमारे समाज में युवाओं की एक आत्मबल्हीन पीढी तैयार हो गई है. इसका सीधा अंदाजा इन दिनों देश भर से स्कूली बच्चों के आत्महत्याओं की खबरें से ही लगाया जा सकता है. हालाकि उनकी आत्महत्याओं के पीछे क्या कारण रहे हैं यह खुलकर सामने नहीं आये है लेकिन अनुमानों के मुताबिक़ बच्चों पर बढ़ता पढ़ाई का बोझ और कड़ी प्रतिस्पर्धा के इस दौर में माता पिता का अपने बच्चों पर सबसे आगे निकल जाने का बढ़ता दबाव ही इन बच्चों के आत्महत्या का मुख्य कारण माना जा रहा है. विगत एक सप्ताह में मुंबई में आठ से भी अधिक बच्चों ने आत्महत्या कर लीं. कई बार स्कूल के शिक्षक और शिक्षिकाओं द्वारा पढाई के लिए प्रताड़ित करने के बाद छात्र छात्राओं द्वारा आत्महत्या करने की खबरें भी आती रहीं है. यहां ज्वलंत सवाल यह है कि आखिर बच्चों में आत्महत्या की ये घटनाएं क्या इस शिक्षा प्रणाली के दोष के कारण घटित हों रहीं है अथवा परीक्षा प्रणाली के दोष के कारण, या फिर परिवार व समाज का प्रतिस्पर्धी माहौल इन्हें आत्मघाती बना रहा है. या फिर संभवतः ये तीनो कारण ही बच्चों को इतनी कम उम्र में आत्महत्या के लिए प्रेरित कर रहे है.
गौरतलब है कि अभी सेमेस्टर परीक्षा परिणाम आया ही है कि उसकी नाकामी के चलते विगत दो-तीन दिनों में देश के कई हिस्सों में अब तक दर्जनों से भी अधिक हाईस्कूल, इंटर व तकनीकि शिक्षा के छात्र आत्महत्या कर चुके हैं. सच्चाई यह है कि स्कूली बच्चों में ये सभी आत्महत्याएं परीक्षाओं में नाकामी के भय के चलते ही हो रही हैं. दरअसल, सत्र के मध्य में स्कूली छात्रों पर परीक्षा परिणामों को लेकर भारी दबाब रहता है. यह परीक्षा परिणामों से उपजे मानसिक दबाब का ही दुष्परिणाम है कि उनमें आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. विगत वर्ष दिल्ली में किए गए एक शैक्षिक अध्ययन के निष्कर्ष के मुताबिक परीक्षाओं के मध्य बच्चों पर इतना अधिक मानसिक दबाव बढ़ा कि इसके कारण उनके बीच आत्महत्या के लगभग 300 प्रयास किए गए. आकडे़ बताते हैं कि वर्ष 2006 में 5857 छात्रों ने केवल परीक्षा के दबाव के चलते आत्महत्या कर ली थी. जो भी छत्र छात्राएं परीक्षा में फेल होने पर आत्महत्या कर चुके हैं, उनकी उम्र महज़ 11 वर्ष से 24 वर्ष के बीच ही रही है.

ऐसा नहीं है कि इन बच्चों के मध्य पनप रही मानसिक दबाब जनित आत्महत्या की घटनाओं से सरकारें बेखबर हैं. मगर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमजोरी ने इस शिक्षा प्रणाली को अपने हाल पर आंसू बहाने को मजबूर कर दिया है. शैक्षिक शोध यह भी बताते हैं कि बच्चों पर इस मानसिक दबाब के लिए इस शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ बच्चों के कैरियर के विकास से जुड़ा समाज में जो प्रति‌र्स्पधी माहौल कायम हो गया है वह भी कम उत्तरदायी नहीं है. भारतीय सामाजिक ढांचे में आ रहे सतत विखराव, संयुक्त परिवार प्रणाली का विखंडन, नगरों में मां-बाप दोनों का कार्यशील होने जैसे कारणों से बच्चे परिवारों में लगातार उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं. बच्चों की यही उपेक्षा और प्रतिस्पर्धी माहौल में उनका अकेलापन शायद उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर रहा है.

आज स्थिति यह है कि बच्चों की शारीरिक व मानसिक स्थिति को जाने व समझें बिना मा-बाप का ध्यान परीक्षा अथवा प्रतियोगिता में बच्चों के प्रोगेसिव रिपोर्ट पर रहता हैं. मनोचिकित्सकों का मानना है कि स्वयं को आत्महत्या की ओर ले जाने वाले बच्चे गहरे अवसाद के शिकार होते हैं. यह अवसाद किसी असफलता, अप्रत्याशित त्रासदी अथवा बच्चे के कक्षा में प्रथम आने के दबाव से जुडी होती है. निरंतर प्रताड़ना बच्चों को गहरे अवसाद, निराशा एवं कमजोर व दीन- हीन भावना की ओर ले जा रहीं है. इसी कारण बच्चा स्वयं अपराध बोध के भावों से ग्रस्त है. उसके मन में यह ग्रंथि पनप रही है कि सामान्य अथवा प्रतियोगी परीक्षा में कम अंक रह जाने के हालात को न समझकर मां-बाप उसकी अल्प सफलता पर उसे प्रताड़ित ही करेंगे. सही मायने में परिवार व समाज में बच्चों से निरंतर संवाद का अभाव उन्हें वह मार्ग प्रदान नहीं कर रहा है, जहां चलकर वे अपने दबाब की भावना से खुद को मुक्त कर सकें.

युवाओं के नैतिक विकास में उनके परिवार की अहम् भूमिका है. मां बाप बच्चों के पहले शिक्षक होते है लेकिन पिछले एक दशक में भारतीय पारिवारिक प्रणाली में जिस तरह से बदलाव आया है उसमें तेजी संयुक्त परिवार प्रणाली का समाप्त हुई है और एकल परिवार प्रणाली का चलन बढ़ा है. पूर्व में संयुक्त परिवारों में दादा, दादी, नाना, नानी व परिवार के अन्य बडे़ सदस्य बच्चों में इस प्रकार के बाहरी दबाब को सहन करने में बच्चों के लिए शाक एब्जार्वर का काम करते थे. और ये सदस्य बच्चों की पढ़ाई जैसे दबाव से जुड़ी विषम परिस्थितियों को संभाल लेते थे, आत्महत्या की बढ़ती हुई इस प्रवृत्ति को रोका जाना बेहद जरूरी है, पर कैसे? मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, और वह समूह में रहना पसंद करता है उसका पहला समूह उसका परिवार ही होता है. अपनी हर आवश्यकताओं के लिए चाहे वह भावनात्मक हों या शारीरिक, दूसरे पर निर्भर होता है और उनमें सबसे पहले होता है 'परिवार' . परिवार वह संस्था है, जो जीवन संघर्ष को प्रेरित करती है और इस संघर्ष में भावनात्मक संबल भी प्रदान करती है, लेकिन दुर्भाग्यवश अगर ऐसा नहीं होता, तो व्यक्ति बिखर जाता है, विशेषकर बात जब किशोर बच्चों की हो. यों तो किशोरावस्था कभी भी सहज नहीं रही है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में समाज की संरचना में जो परिवर्तन आए है. उससे एकल परिवार बच्चों के मन में पनप रहे मानसिक दबाब के इस मनोविज्ञान को पढ़ने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं. बच्चों के लिए चाहे वह किशोर हो या फिर युवा उसका परिवार ही उसके लिए सुरक्षा कवच होता है. इस सुरक्षा को टूटने न देना प्रत्येक अभिभावक का कर्तव्य है. यदि हमें भावी पीढ़ी के जीवन को किसी भी अनहोनी से बचाना है, तो भावनात्मक संबल के साथ-साथ संवाद बनाए रखने की भी आवश्यकता है. अपनों द्वारा दिया गया प्रेम और विश्वास ही बच्चों को जीवन की निराशाओं से बचाएगा और यही आत्महत्या को रोकने का कारगर उपाय है.

January 7, 2010

हरिद्वार कुम्भ 14 जनवरी से


(कमल सोनी)>>>> हरि की नगरी हरिद्वार एक बार फिर महाकुंभ मेले के लिए तैयार है. आगामी 14 जनवरी से हरिद्वार कुम्भ मेला प्रारम्भ हो रहा है. कुम्भ मेले में शाही स्नान के साथ अखाड़ों की झांकियां मुख्या आकर्षण का केंद्र होंगी. यूं तो हरिद्वार में कुम्भ मेला १ जनवरी से प्रारम्भ हो चुका है जो की ३१ मई तक चलेगा. लेकिन १४ जनवरी को पहला शाही स्नान होगा तथा 28 अप्रैल बुधवार वैशाख अधिमास पूर्णिमा स्नान होगा. विशेषज्ञों की माने तो कुम्भ का प्रारम्भ पहले शाही स्नान के दिन से ही माना जाता है. 14 जनवरी से शुरू होने वाले महाकुंभ का श्रद्धालुओं में विशेष महत्व है. कुम्भ महापर्व भारत ही नहीं विश्व का सबसे महानतम् मानवीय समागम है. इस अवसर पर भारत ही नहीं विश्वभर के महानतम संत, विचारक, दार्शनिक, समाजसेवी एवं सभी वर्गों के शीर्ष पुरुष एकत्र होकर दार्शनिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं अन्य मानवीय परोप्रेक्ष्यों में राष्ट्र एवं विश्व के कल्याण का चिंतन करते है तथा संत, सद्गुरु जन मनुष्य होने का अर्थ और परम सत्य की प्राप्ति, आत्म साक्षात्कार या भगवत प्राप्ति रूप मनुष्य के परम लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करते है. विरक्त वैष्णव मंडल पंजाब के अध्यक्ष महंत गंगा दास वैरागी महाराज ने बताया कि इस बार विभिन्न समुदायों के 13 अखाड़ों के हरिद्वार में जुटने की संभावना है. उन्होंने बताया कि अखाड़ों में ही नहीं, बल्कि आम जनजीवन और विदेशी पर्यटकों में काफी उत्साह है.
सुरक्षा के इन्तेजाम :- महाकुंभ में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की सुविधा का ध्यान रखते हुए उत्तराखंड प्रशासन भी विशेष प्रबंधों में जुटा हुआ है. मुख्य स्नान के दिन करीब एक करोड़ श्रद्धालुओं के जुटने की संभावना है. इसे देखते हुए करीब छह किलो मीटर क्षेत्र में घाट बनाए गए हैं. इन्हें मिलाकर इस बार 10 किलोमीटर क्षेत्र में घाटों की व्यवस्था की गई है. कुंभ मेले में आतंक घटनाएं रोकने के लिए मेले में इस बार हरियाणा, पंजाब व यूपी से आये करीब सौ घुड़सवार पुलिसकर्मियों की सेवाएं भी ली जा रही हैं. ये घुड़सवार मेले में भीड़ को नियंत्रित करने के अलावा संदिग्ध लोगों पर पैनी नजर भी रखेंगे. शाही स्नान वाले दिन घुड़सवार पुलिस के जवान हरकी पैड़ी क्षेत्र में सुरक्षा को तैनात रहेंगे. महाकुंभ में देश विदेश के करोड़ों श्रद्धालुओं के यहां पहुंचने की उम्मीद है. इस परिप्रेक्ष्य में इस बार मेले में पंजाब, हरियाणा, यूपी से करीब सौ घुड़सवार पुलिस के जवानों की यहां तैनाती की गई है. घुड़सवार पुलिस के ये जवान रात और दिन में अपनी ड्यूटी मुस्तैदी के साथ घूमकर देंगे और भीड़ को नियंत्रण में करेंगे. साथ ही वह मेला क्षेत्र में संदिग्ध लोगों पर पैनी नजर रखेंगे. घुड़सवार पुलिस के जवानों को विशेष रूप से इस बात की हिदायत दी गई है कि वे मेले में भीड़ को एक जगह एकत्रित न होने दें. घुड़सवार पुलिस के जवानों को यदि कोई व्यक्ति संदिग्ध लगेगा तो वह उसे रोककर तलाशी ले सकेंगे. कुंभ मेला डीआईजी आलोक शर्मा ने बताया कि तीन प्रदेशों से घुड़सवार पुलिस के जवान यहां पहुंच चुके हैं. उन्होंने बताया इन घुड़सवार पुलिस के जवानों का काम सिर्फ मेले की भीड़ को नियंत्रण करने का होगा और जिस दिन शाही स्नान होगे घुड़सवार पुलिस के जवानों को हरकी पैड़ी क्षेत्र में विशेष तौर तैनात किया जाएगा. ये भीड़ पर निगरानी रखेंगे, साथ ही कोई भी व्यक्ति संदिग्ध नजर आने पर समुचित कार्रवाई करेंगे. यूं तो इस तरह के इंतजाम किये जा रहे हैं कि आतंकवादी मेले में किसी तरह की गतिविधियों को अंजाम न दे सकें, फिर भी एहतियातन घुड़सवार पुलिस को निर्देश दिये गये हैं कि संदिग्ध लोगों पर सख्त नजर रखें. उन्होने बताया कि इनके ठहरने के लिये घोड़ा अस्तबल वैरागी कैम्प में बनाया गया है. हरिद्वार की आबादी को ‘फ्लोटिंग’ आबादी की संज्ञा देते हुए अयोध्या हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञानदास महाराज ने बताया कि यहां स्थाई आबादी ढ़ाई लाख है, जबकि होटलों, आश्रमों और धर्मशालाओं में रहने वालों को भी जोड़ दिया तो यह आंकड़ा करीब पांच लाख पहुंच जाएगा. इस चुनौती से निपटने के लिए अस्थाई निवास बनाए जा रहे हैं.
हरिद्वार :- हिन्दुओ के अत्यन्त महत्वपूर्ण नगरी में जिसे मोझ नगरी व कुम्भ नगरी भी कहा जाता है. गंगा द्वार अथवा हरिद्वार भ्रारत का विश्व प्रसिद्व तीर्थ है,
अयोध्या,मथुरा,माया,काच्ची,अवन्तिका
पुरी,द्वारावती,चैव सप्तैता तीर्थ मोझदायिका..
इस शलोक में माया से अर्थ मायापुर अर्थात हरिद्वार से है यह भारत के चार प्रमुख कुम्भ क्षेत्रो में से एक एंव सात मोझदायक तीर्थो में से एक है इसके जो नाम प्रचलित है उनमें कपिलाद्वार, स्वर्गद्वार, कुटिलदर्रा, तैमुरलंग वर्णित चौपालीदर्रा, मोयुलो इत्यादि है लगभग आठवी शती में इसका नाम हरिद्वार पडा. यह तीर्थ हिमालय या शिवालिक के मध्य से प्रारम्भ हो जाता है. गंगा के दायी और विल्वक और बायी ओर के पर्वत का नाम नीलपर्वत है हजारों वर्ष की ऐतिहासिक अवधि के दौरान यह अनेक नामो से विख्यात रहा है उत्तराखण्ड के चारों धामों, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री के लिये प्रवेश द्वार के रूप में प्रसिद्ध हरिद्वार ज्योतिष गणना के आधार पर ग्रह नक्षत्रों के विशेष स्थितियों में हर बारहवें वर्ष कुम्भ के मेले का आयोजन किया जाता है. मेष राशि में सूर्य और कुम्भ राशि में बृहस्पति होने से हरिद्वार में कुम्भ का योग बनता है.
स्नान का महत्व :- हिंदू मान्यता में कुंभ का महत्व समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है. मंथन से निकले अमृत के लिए असुरों और देवताओं में खींचतान हुई थी, जिससे अमृत की बूंदें हरिद्वार सहित चार स्थानों में गिरी थीं. यहीं से पतित पावनी गंगा पहाड़ों से उतरकर मैदान की ओर बहती है. कुछ वैज्ञानिक भी मानते हैं कि कुंभ योग के समय गंगा का पानी पॉजीटिव हीलिंग इफ्ेक्ट से भरपूर होता है. ऐसा सूर्य-चंद्रमा और वृहस्पति के इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन के असर से होता है.
कब होता है कुंभ :- ज्योतिषियों के मुताबिक जब वृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में दाखिल होता तब महाकुंभ का योग बनता है. हर 12 साल के बाद महाकुंभ का आयोजन होता है. देश में चार स्थानों प्रयाग उत्तर प्रदेश, हरिद्वार उत्तराखंड, उज्जैन मध्य प्रदेश और नासिक महाराष्ट्र में होता है.
पौराणिक संदर्भ :- एक कथा है कि बार-बार सुर असुरो में संघर्ष हुआ जिसमें उन्होने विराट मद्रांचल को मथनी और नागराज वासुकी को रस्सी बनाकर सागर का मन्थन किया. सागर में से एक-एक कर चौदह रत्न निकले, विष, वारूणि, पुष्पक विमान, ऐरावत हाथी, उच्चेःश्रेवा अश्व, लक्ष्मी, रम्भा, चन्द्रमा, कौस्तुभ मणि, कामधेनु गाय, विश्वकर्मा, धन्वन्तरि और अमृत कुम्भ. जब धन्वन्तरि अमृत का कुम्भ लेकर निकले तो देव और दानव दोनों ही अमृत की प्राप्ति को साकार देखकर उसे प्राप्त करने के लिये उद्यत हो गये लेकिन इसी बीच इन्द्र पुत्र जयन्त ने धन्वन्तरि के हाथों से अमृत कुम्भ छीना और भाग खडा हुआ, अन्य देवगण भी कुम्भ की रक्षा के लिये अविलम्ब सक्रिय हो गये. इससे बौखलाकर दैत्य भी जयन्त का पीछा करने के लिये भागे. जयन्त 12 वर्षो तक कुम्भ के लिये भागता रहा. इस अवधि में उसने 12 स्थानों पर यह कुम्भ रखा. जहां-जहां कुम्भ रखा वहां-वहां अमृत की कुछ बुन्दें छलक कर गिर गई और वे पवित्र स्थान बन गये इसमें से आठ स्थान, देवलोक में तथा चार स्थान भू-लोक अर्थात भारत में है. इन्हीं बारह स्थानों पर कुम्भ पर्व मानने की बात कही जाती है. चूंकि देवलोक के आठ स्थानों की जानकारी हम मुनष्यों को नहीं है अतएव हमारे लिये तो भू-लोक उसमें भी अपने देश के चार स्थानों का महत्व है. यह चार स्थान है हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक. नक्षत्रों, ग्रहों और राशियों के संयोग से इस कुम्भ यात्रा का योग 6 और 12 वर्षो में इन स्थानों पर बनता है. अर्द्ध कुम्भ का पर्व केवल, प्रयाग और हरिद्वार में ही मनाया जाता है. ग्रह और राशियों के संगम के अनुसार इन स्थानों पर स्नान करना मोक्ष दायी माना जाता है. हाल ही में वर्ष 2004 में अद्धकुम्भ का आयोजन हरिद्वार में सम्पन्न हुआ. पूर्ण कुम्भ का आयोजन हरिद्वार में वर्ष 2010 में निर्धारित है.
अविरल जल नहीं तो शाही स्नान नहीं :- उधर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री महंत ज्ञानदास ने ऐलान किया कि गंगा में अविरल जल शाही स्नान के समय प्रवाहित नहीं किया गया तो शाही स्नान नहीं होगा. उन्होंने गंगा में जल कम होने पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि अभी हाल ही में उनके पास रिपोर्ट आई कि उत्तारकाशी में जल विद्युत परियोजनाओं की वजह से गंगा का जल प्रवाहित नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा कि गंगा में वास्तव में अलकनंदा का जल प्रवाहित हो रहा है. ऐसे में महाकुंभ के शाही स्नान पर अविरल गंगा की धारा के बिना कोई शाही स्नान नहीं होगा. सरकार को यदि साधु-संतों को शाही स्नान कराना है तो गंगा का जल अविरल हरकी पैड़ी तक लाने के लिए हर कोशिश करनी होगी.
हरिद्वार कुंभ मेला 2010 स्नान पर्व की महत्वपूर्ण दिन :-
<><><> 14 जनवरी 2010 दिन गुरुवार मकर संक्रान्ति
<><><> 15 जनवरी शुक्रवार मौनी अमावस्या सूर्यग्रहण स्नान
<><><> 20 जनवरी बुधवार बसंत पंचमी
<><><> 30 जनवरी 2010 शनिवार माघ पूर्णिमा
<><><> 12 फरवरी 2010 शुक्रवार श्री महाशिवरात्रि स्नान शाही स्नान
<><><> 15 मार्च2010 सोमवार सोमवती अमावस्या शाही स्नान
<><><> 16 मार्च मंगलवार नवसंवतारंभ स्नान
<><><> 24 मार्च2010 बुधवार श्री राम नवमी स्नान
<><><> 30 मार्च 2010 मंगलवार चैत्र पूर्णिमा पर्व स् नान वैष्णव अखाडे स्नान
<><><> 14 अप्रैल 2010 बुधवार मेष संक्रान्ति शाही स्नान पर्व
<><><> 28 अप्रैल बुधवार वैशाख अधिमास पूर्णिमा स्नान

हरिद्वार महाकुम्भ - कार्यक्रम :-
<><><> सम्पूर्ण गीता ज्ञान यज्ञ - दिनांक ११ फरवरी २०१० से ६ अप्रैल २०१० तक
<><><> योगासन, प्राणायाम, ध्यान प्रतिदिन प्रातः - दिनांक ११ फरवरी २०१० से १४ अप्रैल २०१० तक
<><><> १०८ श्री मद्‍ भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ - दिनांक ७ अप्रैल २०१० से १४ अप्रैल २०१० तक
<><><> समष्टि भंडारा (पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी)
<><><> अष्टोत्तर शत (१०८) श्री राम चरितमानस परायण - १६ मार्च वर्ष परतिपदा से २४ मार्च रामनवमी तक
<><><> होलिकोत्सव - २८ फरवरी २०१०
<><><> प्रतिदिन संत सेवा - दिनांक १२ फरवरी २०१० से १४ अप्रैल २०१० तक
<><><> चंडी यज्ञ - १६ मार्च वर्ष प्रतिपदा से २४ मार्च रामनवमी तक
<><><> भजन संध्या समय-समय पर
<><><> प्रश्नोत्तर समय-समय पर
<><><> धन्यवाद सभा - १५ अप्रैल २०१०