May 24, 2010

क्या आम आदमी के लिहाज़ से केंद्र सरकार के कार्यकाल का पहला साल संतोषजनक है ?



भारत के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने केन्द्र सरकार के दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष पूर्ण होने पर आज नई दिल्ली में केंद्र सरकार की उपलब्धियां गिनाईं और इस कार्यकाल को 'अहम उपलब्धियों' भरा कार्यकाल बताया. तमाम मुद्दों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकार की उपलब्धियां तो गिनाई पर उन्होंने यूपीए सरकार के कामकाज की समीक्षा के संबंध में अपनी ओर से स्वयं कोई नम्बर नहीं दिया और इसका फैसला जनता तथा मीडिया पर छोड़ दिया. उन्होंने कहा कि पिछले चंद दिनों से मीडिया में सरकार की नीतियों पर काफी बहस हुई है और मीडिया ने नम्बर भी दिए हैं. उन्होंने अपनी ही सरकार के कार्यकाल पर नंबर नहीं दिए जाने को अनुचित बताया. अब यदि यह अनुचित था तो पिछले साल उन्होंने यूपीए सरकार को १० में से छः नंबर क्यों दिए थे. और इस बार वे अपनी की सरकार को नंबर देने से क्यों कतराए. उन्होंने कहा नंबर देने का फैसला भारत की जनता और मीडिया करेगी. अब चूँकि यूपीए सरकार के कार्यकाल के एक वर्ष पूर्ण हो चुके हैं ऐसे में एक अहम सवाल यह उठता है. कि क्या आम आदमी के लिहाज़ से यह कार्यकाल संतोषजनक रहा. हालांकि बीजेपी ने नक्सलवाद और महंगाई जैसे मुद्दों पर प्रधानमंत्री से अपनी नीति स्पष्ट करने को कहा है. बीजेपी नेता अरूण जेटली ने कहा है कि आमतौर पर किसी भी सरकार का पहला साल बहुत आसानी से बीतता है. इस सरकार का कार्यकाल बीएसपी, एसपी और आरजेडी के अवसरवादी समर्थन से शुरू हुआ जिसके चलते सरकार को लगा मानो उसने चांद को हासिल कर लिया हो. इसके बाद से ही उसकी राजनीति में अहंकार पैदा हो गया. दूसरे कार्यकाल के पहले साल में सरकार को अपने कई मंत्रियों को लाल आंखें भी दिखानी पड़ी. आईपीएल विवाद के चलते शशि थरूर को विदेश राज्यमंत्री पद से हटा दिया गया तो चीन को लेकर गृह मंत्रालय के रुख पर टिप्पणी के मामले में जयराम रमेश भी बाल बाल बचे. संसद में कटौती प्रस्ताव के दौरान सरकार संकट में घिरी नजर आ रही थी लेकिन विपक्ष की एकता में ऐसी सेंध लगी कि कटौती प्रस्ताव लाने वाली भारतीय जनता पार्टी को शर्मसार होना पड़ा और सरकार ने विरोध आसानी से किनारे कर दिया. सुरक्षा के मोर्चे पर भारत को मुंबई के बाद से पुणे में जर्मन बेकरी को छोड़ कर किसी अन्य बड़े आतंकवादी हमले का सामना नहीं करना पड़ा है. लेकिन माओवादियों की चुनौती सरकार के माथे पर पसीना ला रही है. हाल के दिनों में माओवादियों ने सीआरपीएफ जवानों पर हमले तेज किए हैं जिसमें 110 जवानों की मौत हो चुकी है. यूपीए सरकार ने इस कार्यकाल में महिला आरक्षण बिल राज्यसभा में पेश किया तो शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल करने का भी श्रेय हासिल किया. लेकिन महंगाई के मुद्दे पर सरकार की कड़ी आलोचना होती रही, तो आर्थिक मोर्चे पर देश को बेहतर स्थिति में रखने के मामले पर केंद्र सरकार अपनी पीठ थपथपाती रही. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि लंबे-चौड़े वादों पर ज़बरदस्त जीत के साथ दोबारा सत्ता में आई यूपीए सरकार का रिपोर्ट कार्ड क्या कहता है. और जनता जितने नंबर देती है उसमें सरकार पास होगी या फेल ?

क्या आपके लिए यह कार्यकाल संतोषजनक रहा ?

May 6, 2010

कसाब को फांसी: फांसी की सजा तो अफजल गुरु को भी मिली पर अब तक फांसी क्यों नहीं हुई ?


(कमल सोनी)>>>> आज आर्थर रोड जेल की विशेष अदालत ने मुंबई हमलों के दोषी पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को 4 मामलों में फांसी की सजा का ऐलान तो कर दिया. निश्चित रूप से यह भारतवासियों के लिए हर्ष का विषय है. पूरे देश में हर्ष का माहौल है. फटाखे फोड़े जा रहे हैं मिठाइयां भी बांटी जा रही हैं. भारत माता की जय और वन्देमातरम जैसे देशभक्ति नारों की गूँज भे सुनाई देने लगी. लेकिन एक अहम सवाल यहाँ यह उठाता है कि संसद पर हमले के दोषी अफसल गुरू को भी फांसी की सजा सुनाई गई थी. लेकिन अब तक उसे फांसी क्यों नहीं दी गई. मुंबई हमले के मामले में जिस तेजी से विशेष अदालत ने चार मामलों में कसाब को फांसी और पांच अन्य मामलों में उम्रकैद की सजा सुनाई. वह भी काबिले तारीफ़ है. लेकिन कसाब को फांसी के फंदे तक पहुचने में अभी काफी वक्त है. कसाब को सजा दिलवाने वाले सरकारी वकील उज्जवल निकम भी मानते हैं कि कसाब को मौत की सजा को अंजाम तक पंहुचाने के लिए अभी लंबा सफर तय करना होगा. निकम ने कहा कि कसाब को भी अपील का अधिकार है और जिस तरह का प्रोसिजर है, मुझे लगता है अंजाम तक पंहुचने में डेढ़ से दो साल तो लगेगा ही. विशेष कोर्ट की ओर से सुनाई गई सजा की पुष्टि हाईकोर्ट से करानी होगी. हाईकोर्ट में अपील के लिए कसाब को 90 दिन का वक्त मिलेगा. अगर कसाब अपनी सजा के खिलाफ अपील कर देता है, तो हाईकोर्ट फिर पूरे मामले की सुनवाई करेगा. हाईकोर्ट की सजा के बाद कसाब सुप्रीम कोर्ट जा सकता है. अगर सुप्रीम कोर्ट भी उसकी सजा पर मुहर लगा दे, तो इन सबके बाद राष्ट्रपति के यहां आवेदन देने का अधिकार भी है. राष्ट्रपति के पास करीब 28 मर्सी पेटिशन पहले से लंबित है. अगर ये मान भी लें कि सरकार 26/11 मुकदमे को प्राथमिकता देते हुए आगे बढ़ाए, तो भी उसे इस हिसाब से अंजाम तक पंहुचने में साल भर का समय तो लगेगा ही. ऐसे में यदि यह मान भी लिया जाय कि उपरी अदालते विशेष अदालत के फैसले को सही करार देते हुए कसाब की फांसी की सज़ा बरकरार रखती है. तो कहीं कसाब का मामला भी राष्ट्रपति तक पहुँच कर पिछले पेंडिंग मामलों की सूची में शामिल न हो जाए. अफजल गुरु को 13 दिसंबर,2001 को संसद पर हुए हमले में कसूरवार करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई गई थी. लेकिन अभी तक उसे फांसी नहीं दी गई. कई बार यह मामला संसद में भे गूंजा. खुद अफजल गुरू ने भी स्वयं ही अपने बारे में जल्द फैसला लेने की बात कही हैं ऐसे में उसे अब तक फांसी पर क्यों नहीं लटकाया गया. वैसे कसाब मामले में जो सजा सुनाई गई है उससे एक बात तो साफ हो गई है कि भारत विरोधी कार्रवाइयों को अंजाम देने वालों का यही हश्र होगा. अब यह सरकार पर है कि वह इस सजा को जल्द से जल्द अमल में लाए, यह मामला संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की तरह राजनीतिक कारणों से लटकना नहीं चाहिए, नहीं तो देश के खिलाफ साजिश करने वालों के हौसले बुलंद होंगे. कसाब किसी भी लिहाज से दया का पात्र नहीं है. कसाब मामले में जो सजा सुनाई गई है, उसका हर भारतीय स्वागत कर रहा है. आज हम इस हमले के दौरान शहीद हुए पुलिसकर्मियों, एनएसजी जवानों और सुरक्षा गार्डों को कोटि-कोटि नमन करते हैं और शपथ लेते हैं कि वह अपने पीछे अदम्य साहस और देशभक्ति की जो विरासत छोड़ कर गये हैं, उसे हम आगे बढ़ाएंगे साथ ही हमले के दौरन शिकार बनी मासूम जनता को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए यह शपथ भी लेते हैं कि आतंकवाद का नामोनिशां मिटा कर रहेंगे, भारत के खिलाफ उठने वाला हर कदम किसी भी सूरत में सफल नहीं होने दिया जाएगा.

May 5, 2010

नार्को टेस्ट: सुप्रीम कोर्ट का फैसला जाँच एजेंसियों के लिए जबरदस्त झटका


भोपाल 05/मई/2010/(ITNN)>>>> सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर देश की जांच एजेंसियों को करारा झटका लगा है जिसमें कोर्ट ने नार्को टेस्ट को असंवैधानिक करार देते हुए कहा है कि बिना आरोपी की मर्जी के नार्को टेस्ट नहीं किया जा सकेगा. मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन. न्यायमर्ति जे.एम. पंचाल और न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान की खंडपीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अभियुक्त की सहमति के बगैर नार्को टेस्ट, ब्रेन मैपिंग या पॉलीग्राफी टेस्ट नहीं किया जा सकता. खंडपीठ की ओर से न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी अभियुक्त का जबरन नार्को टेस्ट उसके मानवाधिकारों एवं उसकी निजता के अधिकारों का उल्लंघन है. बुधवार को सुनाए गए फ़ैसले में सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि दवा के प्रभाव में अभियुक्त या संदिग्ध अभियुक्त से लिए गए बयान से उसकी निजता के अधिकार का हनन होता है. यानि अब नार्को टेस्ट के लिए किसी भी अपराधी या आरोपी को बाध्य नहीं किया जा सकेगा. नार्को टेस्ट को लेकर अब तक की स्थिति भी यही थी कि नार्को टेस्ट से लिया गया बयान एक पुख़्ता सबूत के तौर पर पेश नहीं हो सकता था लेकिन उसे अदालत में मुख्य सबूत के साथ जोड़कर देखा जा सकता था. साथ ही नार्को टेस्ट के द्वारा हासिल की गई जानकारी को जांच का एक हिस्सा माना जाता था. अब अपने फैसले में कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि कोई अपराधी या आरोपी नार्को टेस्ट को तैयार हो जाता है तब भी उसके बयान को सबूत के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता.

गौरतलब है कि नार्को टेस्ट को लेकर पूरे देश में अभियुक्तों ने इसके ख़िलाफ़ अलग अलग अदालतों में अपील दायर की थी और सुप्रीम कोर्ट ने इन सब मामलों पर सुनवाई के बाद अपना फ़ैसला सुनाया है. अंडरवल्र्ड की दुनिया में गॉडमदर के नाम से मशूहर संतोकबेन जडेजा और माफिया सरगना अरूण गवली ने इन परीक्षणों की वैधता को चुनौती दी थी. दोनों की याचिकाओं पर न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है. अदालत ने यह भी कहा कि बलपूर्वक ऎसे परीक्षण संविधान की धारा 20 (3) का उल्लंघन है. इसके तहत प्रावधान है कि किसी मामले में किसी भी आरोपी को स्वयं के खिलाफ गवाही देने को बाध्य नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर विधि आयोग की भी सलाह ली थी. संयुक्त राष्ट्र में पहले से ही इस तरह के टेस्ट पर प्रतिबंध है. गौरतलब है कि पिछले दिनों में कई बड़े मामले, मिसाल के तौर पर तेलगी केस, आरूषि हत्याकांड, निठारी केस सबमें इसका इस्तेमाल हुआ था. आरूषि हत्याकांड मामले में उसके माता-पिता की ब्रेन मेपिंग कराई गई थी. अबू सलेम का भी पोलीग्राफ टेस्ट कराया गया था. हाल ही में राजस्थान एटीएस ने दरगाह ब्लास्ट के मामले में हुई गिरफ्तारियों में एक आरोपी देवेन्द्र गुप्ता के नार्को टेस्ट की अदालत से अनुमति ली है. इसके अलावा अब्दुल करीम तेलगी, साध्वी प्रज्ञा के अलावा नार्को टेस्ट कराये गए आरोपियों के सूची लम्बी है.

क्या है नार्को परीक्षण :- नार्को परीक्षण का प्रयोग किसी व्यक्ति से जानकारी प्राप्त करने के लिए दिया जाता है जो या तो उस जानकारी को प्रदान करने में असमर्थ होता है या फिर वो उसे उपलब्ध कराने को तैयार नहीं होता दूसरे शब्दों मे यह किसी व्यक्ति के मन से सत्य निकलवाने लिए किया प्रयोग जाता है. अधिकतर आपराधिक मामलों में ही नार्को परीक्षण का प्रयोग किया जाता है. हालांकि बहुत कम किन्तु यह भी संभव है कि नार्को टेस्ट के दौरान भी व्यक्ति सच न बोले. इस टेस्ट में व्यक्ति को ट्रुथ सीरम इंजेक्शन के द्वारा दिया जाता है. जिससे व्यक्ति स्वाभविक रूप से बोलता है. नार्को विश्लेषण एक फोरेंसिक परीक्षण होता है, जिसे जाँच अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक और फोरेंसिक विशेषज्ञ की उपस्थिति में किया जाता है. भारत में हाल के कुछ वर्षों से ही ये परीक्षण आरंभ हुए हैं, किन्तु बहुत से विकसित देशों में वर्ष १९२२ में मुख्यधारा का भाग बन गए थे, जब राबर्ट हाउस नामक टेक्सास के डॉक्टर ने स्कोपोलामिन नामक ड्रग का दो कैदियों पर प्रयोग किया था. जिस व्यक्ति पर नार्को किया जाता है वह व्यक्ति जो भी बोलता है वह अनायास ही बोलता है यानि कि कुछ भी सोच समझकर नहीं बोलता. हालांकि कई उदाहरण ऐसे भी हैं जब यह पाया गया कि व्यक्ति ने नार्को टेस्ट के दौरान भी झूठ बोला है. वस्तुत: नार्को टेस्ट में व्यक्ति की मानसिक क्षमता और भावनात्मक दृढ़ता पर ही सब कुछ निर्भर करता है. नार्को टेस्ट कानूनी रूप से सबूत के तौर पर तो नहीं लिए जाते हैं, परंतु विभिन्न अपराधों की जांच में बहुत उपयोगी साबित होते रहे हैं.

कैसे होता है परिक्षण :- नार्को विशलेषण शब्द नार्क से लिया गया है, जिसका अर्थ है नार्कोटिक. हॉर्सले ने पहली बार नार्को शब्द का प्रयोग किया था. १९२२ में नार्को एनालिसिस शब्द मुख्यधारा में आया जब १९२२ में रॉबर्ट हाऊस, टेक्सास में एक ऑब्सेट्रेशियन ने स्कोपोलेमाइन ड्रग का प्रयोग दो कैदियों पर किया था. नार्को परीक्षण करने के लिए सोडियम पेंटोथॉल, सोडियम एमेटल, इथेनॉल, बार्बिचेरेट्स, स्कोपोल-अमाइन, टेपाज़ेमैन आदि को आसुत जल में मिलाया जाता है. परीक्षण के दौरान व्यक्ति को सोडियम पेंटोथॉल का इंजेक्शन लगाया जाता है. व्यक्ति को दवा की मात्रा उसकी आयु, लिंग, स्वास्थ्य और शारीरिक परिस्थिति के आधार पर दी जाती है. यदि परीक्षण के दौरान अधिक मात्रा दे दी जाये तो वह कोमा में भी जा सकता है या उसकी मृत्यु भी हो सकती है. परीक्षण में प्रश्नों के उत्तर देते हुए पूरी तरह से व्यक्ति होश में नहीं होता है और इसी कारण से वह प्रश्नों के सही उत्तर देता है क्योंकि वह उत्तरों को घुमा-फिरा पाने की स्थिति में नहीं होता है. इस ड्रग के प्रभाव में न केवल वह अर्ध बेहोशी की हालत में चला जाता है बल्कि उसकी तर्क बुद्धि (रिजिनिंग) भी कार्यशील नहीं रहती है. वह व्यक्ति जो एक तरह से सम्मोहन अवस्था में चला गया होता है, वह अपनी तरफ़ से अधिक कुछ बोलने की स्थिति में नहीं होता बल्कि पूछे गए कुछ सवालों के बारे में ही कुछ बता सकता है. यह भी माना जाता है कि नार्को टेस्ट में व्यक्ति हमेशा सच ही उगलता है, जबकि बहुत कम किन्तु फिर भी उस अवस्था में भी वह झूठ बोल सकता है, एवं विशेषज्ञों को गुमराह कर सकता है.

नार्को परीक्षण अवैज्ञानिक हैं :- नार्को टेस्ट को जहाँ विकसित विश्व के बहुत से देशों ने ऐसे परीक्षणों को अन्वेषण से मुख्य रूप से पृथक कर दिया हो, अधिकतर गणतांत्रिक विश्व जिनमे अमेरिका और ब्रिटेन भी शामिल हैं, वहाँ ऐसे परीक्षण कुछ समय से प्राय: लुप्त हो गए हैं. भारत में इसका प्रयोग आरंभ होने के बाद किसी अपराध के संदिग्ध को पकड़ते ही लोग उसके नार्को परीक्षण की मांग करने लगते हैं. उनका ये मानना होता है कि इस परीक्षण के बाद सच्चाई सामने निश्चित ही आ जायेगी, जबकि इसके पूरे प्रतिशत नहीं होते हैं. भारतीय संविधान का एक प्रमुख तत्त्व है धारा २०, अनु.३. इसके तहत "किसी व्यक्ति को जिस पर कोई आरोप लगे हैं, उसे अपने विरुद्ध गवाह के रूप में प्रयोग नहीं किया जाएगा." यदि नार्को परीक्षण की मूल अंतर्वस्तु को समझाने की कोशिश करेंगे तो इसके द्वारा व्यक्ति को किसी रूप में स्वयं के विरुद्ध ही गवाह के रूप में प्रयोग किए जाने की संभावना बनी रहती है. लेकिन विगत कुछ निर्णयों में माननीय न्यायालयों के द्वारा परीक्षण के पक्ष में मत दिया गया है. भारत के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान नेशनल इंस्टिटयूट ऑफ मेण्टल हेल्थ एण्ड न्यूरो साइंसेस के निदेशक की अध्यक्षता में बनी विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों की समिति कमेटी ने ब्रेन मैपिंग आदि परीक्षणों के बरे में कहा है कि ये परीक्षण अवैज्ञानिक हैं और उन्हें जांच के उपकरण के रूप में प्रयोग करने पर तत्काल रोक भी लगानी चाहिए. नार्को परीक्षण के अलावा सच उगलवाने के लिए पॉलीग्राफ, लाईडिटेक्टर टेस्ट और ब्रेन मैपिंग टेस्ट किया जाता है.

क्या नार्को परिक्षण पर भारत में भी प्रतिबन्ध लग जाना चाहिए ?