February 11, 2010

सबसे ज़्यादा होशियार शार्क पर विलुप्ती का संकट

(कमल सोनी)>>>> आप सभी ने शार्क का नाम तो अवश्य सुना होगा. आइये उसके बारे में जाने कुछ खास बातें. शार्क समुद्र में रहती है, यह तो सभी जानते हो, लेकिन यह समुद्र के अन्य प्राणियों में सबसे बेहतरीन शिकारी तो होती ही है. समुद्री जानवरों में सबसे ज़्यादा होशियार भी होती है. साथ ही अन्य मछलियों से ज़्यादा खूंखार भी. शार्क के विशाल जबड़े ओर बड़े बड़े दांतों के बाल पर यह कछुआ ओर सील जैसे बड़े जानवरों को भी आसानी से अपना निवाला बना लेती है. अपने दाँतों और जबड़ों से यह दूसरी मछलियों, कछुओं यहाँ तक की लकड़ी की नावों तक को काट देती है. यह अपने दाँतों की सहायता से चमड़ी को काट सकती है और हड्डियों को भी चबा सकती है. कुछ दिनों बाद इसके दांत अपने आप ही घिस जाते हैं और उस जगह नए दाँत आ जाते हैं. टाइगर शार्क और सफेद शार्क कभी-कभी मनुष्यों पर भी हमला कर देती हैं, लेकिन ज्यादातर शार्क मनुष्यों से डरती हैं और उन्हें देख कर दूर चली जाती हैं. शार्क की सबसे खास बात होती है उसकी सूंघने की क्षमता. शार्क लगभग १०० किमी दूर से ही अपने शिकार की मौजूदगी का पता लगा लेती है. यह अपने सर पर मौजूद छिद्रनुमा एंतीनों के ज़रिये इस बात का पता लगा लेती है कि शिकार कहाँ छिपा है. वैसे तो सभी एनिमल थोड़ी-बहुत मात्रा में बिजली पैदा करते हैं, लेकिन मात्रा कम होने के कारण यह महसूस नहीं होती है. शार्क ही ऐसी मछली है, जिसमें बिजली महसूस की जा सकती है. अन्य मछलियों की तरह इसमें भी गिल्स स्लिट पाई जाती हैं, जिनकी संख्या 10 होती है. ये पाँच-पाँच दोनों तरफ मौजूद होती हैं. शार्क के तैरने का तरीका बिलकुल अलग होता है. सबसे पहले यह सिर घुमाती है, उसके बाद शरीर और आखिर में अपनी लंबी पूँछ. शार्क की पूँछ नीचे से छोटी और ऊपर से बड़ी होती है. इसके ऐसा शेप होने से इसे तैरने में सहायता मिलती है.

कैसी होती है शार्क :- शरीर बहुत लम्बा होता है जो शल्कों से ढका रहता है. इन शल्कों को प्लेक्वायड कहते हैं. त्वचा चिकनी होती है. त्वचा के नीचे वसा (चर्बी) की मोटी परत होती है. इसके शरीर में हड्डी की जगह उपास्थि (कार्टिलेज) पाई जाती है. शरीर नौकाकार होता है. इसका निचला जबड़ा ऊपरी जबड़े से छोटा होता है. अतः इसका मुँह सामने न होकर नीचे की ओर होता है जिसमें तेज दाँत होते हैं. यह एक माँसाहारी प्राणी है. शार्क के शरीर में देखने के लिए एक जोड़ी आँखें, तैरने के लिए पाँच जोड़े पखने और श्वांस लेने के लिए पाँच जोड़े क्लोम होते हैं. ग्रेट व्हाइट शार्क 15 वर्ष की युवा अवस्था में पूर्ण विकसित होकर लगभग 20 फीट से अधिक हो जाती है. वहीं टाइगर शार्क युवा अवस्था में लगभग 16 फीट की हो जाती है. इन दोनों को ही आक्रामक और घातक प्रजातियों में रखा जाता है. शार्क की स्किन स्मूथ नहीं होती है. इसे छूने पर बिलकुल सैंड पेपर पर हाथ लगाने का अहसास होता है. शार्क बहुत प्रकार की होती है. कुछ शार्क को उनके शेप के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है जैसे- कुकीकटर शार्क, हेमरहेड शार्क, प्रिकली डॉम फिश शार्क, वूबबिगांग शार्क और ग्रेट व्हाइट शार्क.

बन सकती हैं डॉलफिन जैसी :- अभी तक यह माना जाता रहा है कि शार्क मछलियां खतरनाक होती हैं. उनका मकसद ही दूसरों को नुकसान पहुंचाना होता है लेकिन अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाला रिसर्च पेश किया है, जिसके मुताबिक शार्क मछलियां भी डॉलफिन की तरह आपकी दोस्त बन सकती हैं. यदि उन्हें ट्रेनिंग दी जाए तो वह सभी मनोरंजक कारनामे कर सकती हैं, जिन्हें डॉलफिन्स को ही करते देखा गया है. अमेरिका के सी लाइफ सेंटर्स पर शार्क मछलियों पर कुछ प्रयोग किये गए है. यहां सौ से भी अधिक शार्क मछलियों को डॉलफिन्स की तरह ट्रेनिंग दी गई है. वैज्ञानिकों का मानना है कि शार्क केवल मनुष्यों पर हमले ही नहीं करतीं, बल्कि उन्हें लोगों के मनोरंजन के लिए ट्रेंड भी किया जा सकता है. इन सेंटर्स पर ट्रेनर्स शार्क मछलियों को रंगीन बोर्डस और म्यूजिक के जरिए ट्रेनिंग दी हैं. वैज्ञानिक इवान पैवलोव शार्क को उसी तरह से प्रशिक्षण दे रहे हैं जैसे कुत्तों को दिया जाता है.

विलुप्ती की कगार पर :- शार्क की कई प्रजातियों पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. ये आकलन पर्यवारण संरक्षण के लिए बने अंतरराष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) ने किया है. इस सूची में 64 प्रकार की शार्क का विवरण है जिनमें से 30 फ़ीसदी पर लुप्त होने का खतरा है. आईयूसीएन के शार्क स्पेशलिस्ट ग्रुप से जुड़े लोगों का कहना है कि इसका मुख्य कारण ज़रूरत से ज़्यादा शार्क और मछली पकड़ना है. हैमरहेड शार्क की दो प्रजातियों को लुप्त होने वाली श्रेणी में रखा गया है. इन प्रजातियों में अक्सर फ़िन या मीनपक्ष को हटाकर शार्क के शरीर से हटा कर फेंक दिया जाता है. इसे फ़िनिंग कहते हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पशु-पक्षियों पर नज़र रखने की कोशिश के तहत आईयूसीएन ने नई सूची जारी कर चेतावनी दी थी. संगठन का कहना है कि शार्क ऐसी प्रजाति है जिसे बड़े होने मे काफ़ी समय लगता है और नए शार्क कम पैदा होते हैं.

रक्षा के लिए पर्याप्त कदम नहीं :- आईयूसीएन शार्क ग्रुप के उपाध्यक्ष सोंजा फ़ॉर्डहैम का कहना है कि ख़तरे के बावजूद शार्क की रक्षा के लिए पर्याप्त क़दम नहीं उठाए गए हैं. उन्होंने कहा है कि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन प्रजातियों को बड़े पैमाने पर पकड़ा जा रहा है जिसका मतलब है कि वैश्विक स्तर पर कदम उठाने की ज़रूरत है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने करीब एक दशक पहले शार्क को होने वाले खतरों से आगाह किया था. कई बार शार्क ग़लती से उन जालों में फँस जाते हैं जो मछली पकड़ने के लिए फेंके जाते हैं लेकिन पिछले कई सालों से शार्क को भी निशाना बनाया जा रहा है ताकि उन्हें माँस, दाँत और जिगर का व्यापार किया जा सके. हैमरहैड जैसी प्रजातियों ख़ास तौर पर शिकार बनती हैं क्योंकि उनके फ़िन काफ़ी उच्च गुणवत्ता के होते हैं. गौरतलब है कि शार्क के फ़िन की एशियाई बाज़ार में काफ़ी माँग है.


1 comment:

Anonymous said...

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