February 8, 2010

करोड़ों खर्च: फिर भी नहीं सुधरी नदियों की दशा

(कमल सोनी)>>>> देश में बहने वाली नदियों का बढता प्रदूषण बेहद चिंता का विषय बनता जा रहा है. इसका मुख्य कारण है कारखानों ओर शहरों का गंदा पानी प्रवाहित किया जाना. जो नदियाँ प्रदूषण का दंश झेल रही हैं उनमें यमुना, नर्मदा ओर गंगा देश की प्रमुख नदियाँ भी शामिल हैं. यमुना के प्रदूषण स्तर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यमुना में ओक्सिजन लेवल शून्य तक पहुँच गया है. सबसे अलग भारत जैसे सांस्कृतिक देश में धार्मिक महत्व वाली इन नदियों में कारखानों ओर शहरों का गंदा जल प्रवाहित किया जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. इन नदियों की सफाई के लिए जहां करोड़ों खर्च किये जा रहे हैं वहीं इन्हें प्रदुषण मुक्त करने के कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहे. मध्यप्रदेश की जीवनदायनी और धार्मिक महत्व रखने वाली नर्मदा नदी भी अब प्रदूषित नदियों की श्रेणी में आ गई है चिंता की बात तो यह है कि नर्मदा अपने उदगम स्थल अमरकंटक में ही सबसे ज़्यादा मैली हो गई है मध्यप्रदेश प्रदूषण निवारण मंडल की एक रिपोर्ट के मुताबिक पुण्य दायनी नर्मदा अब मैली हो गई है और यदि अभी इसके प्रदूषण मुक्त करने के प्रयास नहीं किया गए तो आगे इसके और भी अधिक मैली होने की संभावना है रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि अपने उदगम स्थान से रेवा सागर संगम तक के लगभग १२५० किमी के सफ़र में नर्मदा नदी का जल यदि सबसे ज़्यादा प्रदूषित है तो वह है धार्मिक घाटों पर. साथ ही शहरों का प्रदूषित जल भी नर्मदा में प्रवाहित किया जाता है. दूसरी ओर यमुना के प्रदुषण के बारे में तो सभी परिचित हैं.

सभी प्रयास असफल :- इन नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए केंद्र ओर राज्य सरकारें कई सालों से प्रयासरत हैं. लेकिन सरकार के ये प्रयास बिलकुल नाकाफी साबित हो रहे हैं. केंद्र ओर राज्य सरकारों के तमाम प्रयासों के बावजूद देश में लगभग १५० नदियाँ प्रदूषित हैं. इनमें कई तो ऐसी नदियाँ हैं जो कि गंदे नाले में परिवर्तित हो गई हैं. इसका सीधा उदाहरण है मध्यप्रदेश का जबलपुर शहर. जहां का मोती नाला कभी मोती नदी हुआ करता था. लेकिन शहर का गंदा पानी कई दशकों से इसमें बहाए जाने के कारण अब यह मोती नाले में तब्दील हो गया है. ठीक इसी तरह एक रिपोर्ट के अनुसार नदियों को पर्दूशन मुक्त करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा नदी संरक्षण योजना चलाई जा रही है. यह योजना देश के २० राज्यों की ३८ नदियों को प्रदूषण मुक्त करने का काम कर रही है. इस योजना में १६७ शहरों को शामिल किया गया है. केंद्र सरकार ने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए गत वर्ष गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन किया. तथा वर्ष २००९-१० में गंगा की साफ़ सफाई के लिएय २५० करोड रु. आवंटित भी किये गए. इससे पूर्व भी १९८५ में तत्कालीन केंद्र सरकार ने गंगा कार्य योजना प्रारम्भ कर ८३७ करोड रुपये गंगा की साफ़ सफाई पर खर्च किये थे बाद में गंगा कार्ययोजना फेज २ प्रारम्भ की गई जिसमे अन्य नदियों यमुना, गोमती, दामोदर ओर महानंदा को भी शामिल कर लिया गया.

बचाया का सकता है यमुना को :- यदि समय रहते सार्थक प्रयास किये गए तो बेहद प्रदूषित नदी यमुना को बचाया जा सकता है. इस बात का खुलासा केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की एक रिपोर्ट में किया गया है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा है कि अब भी कोशिश कर नर्मदा को बचाया जा सकता है. बोर्ड का कहना है कि यद्दपि यमुना का ओक्सिजन लेवल शून्य तक पहुँच गया है लेकिन फिर भी इसे बचाया जा सकता है. जिसके लिए शीघ्र अतिशीघ्र कार्यवाही करनी होगी. इससे पहले भी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दिली जल बोर्ड ओर पर्यावरण मंत्रालय के चेतावनी दे चुका है. लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव में इस दिशा में कोई सार्थक प्रयास नहीं किये जा रहे. यमुना के प्रदूषित होने का अंदाजा बोर्ड की एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक गंगा अपने बहाव क्षेत्र का कुल २ प्रतिशत दिल्ली में बहती है लेकिन इतनी दूरी में ही इसका पानी ७० प्रतिशत प्रदूषित हो जाता है. जिसके बाद यमुना का पानी पीने के लिए तो दूर खेती ओर कपडे धोने के लायक भी नहीं रह जाता. बोर्ड का कहना है कि यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए काफी प्रयास किये जाने की आवश्यकता है. युमना के विषय में इस बात का खुलासा भी हुआ है यमुना के २२ किमी बहने से पहले यमुना का पानी इस्तेमाल के लयक होता है लेकिन दिल्ली के बाद इसका पानी इस्तेमाल के लायक नहीं रहता.

कई एजेंसिया प्रयासरत :- मध्यप्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अलावा कुछ एजेंसियां भी राज्य की नदियों को प्रदुषण मुक्त करने के लिए प्रयासरत हैं. ये एजेंसियां प्रदेश की जीवनदायनी नर्मदा सहित बेतवा, तापी, बाणगंगा, केन, क्षिप्रा, चम्बल, ओर मन्दाकिनी की साफ सफाई में लगी हुई हैं. इसके अलावा पश्चिम बंगाल में कोलकाता मेट्रोपोलिटन विकास प्राधिकरण गंगा को, उत्तरप्रदेश जल निगम गंगा, यमुन, गोमती को प्रदूषण मुक्त करने प्रयासरत हैं.

क्या हो सार्थक हल :- इन नदियों को यदि जल्द से जल्द स्वच्छ न किया गया तो वो दिन दूर नहीं जब ये नदियाँ सिर्फ इतिहास बनकर रह जायंगी. इन नदियों के प्रदूषण का मुख्य कारण है इसमें प्रवाहित किया जाने वाला कचरा. चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो. दूसरा सबसे बड़ा कारण है धार्मिक कारण. इन नदियों में प्रतिदिन लोग अपने घरों से पूजा के बाद के अवशेष लाकर बहा देते हैं साथ ही प्रतिदिन स्नान और उसमें कपडे धोना जानवरों को नहलाना इत्यादि अनेकों कारण नर्मदा को प्रदूषित कर रहे हैं. इन सबसे अलग कारखानों का रासायनिक कचरा भी इन नदियों में बहा दिया जाता है. लेकिन यदि इन नदियों में कचरा प्रवाहित होना बंद हो जाए तो इन नदियों का पानी स्वतः स्वच्छ हो सकता है. अन्यथा सारे प्रयास विफल ही साबित होंगे. इन रासायनिक कचरों के नदियों में प्रवाहित होने के कारण इन नदियों में स्वयं को साफ़ करने की क्षमता भी कम हुई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक नदियों में एक प्रकार का जीव पाया जाता है जो पत्थरों को जोड़ता है पानी को फिल्टर करता है यह प्रकृति का ही एक स्वरुप है जिससे नदियाँ स्वयं को स्वच्छ रखती हैं लेकिन पिछले कुछ सालों में इसमें कमी के चलते नदियों में स्वयं को स्वच्छ करने की क्षमता में भी कमी आई है यदि आज इन नदियों को बचाने की मुहिम न छेड़ी गई तो वह दिन दूर नहीं जब या तो नदियाँ पूरी तरह से प्रदूषित हो जायेगी या उनका अस्तित्व भी खतरे में पड़ जायेगा इन नदियों को स्वच्छ रखने में धार्मिक, सामाजिक, राजनितिक और प्रशासनिक सभी के सहयोग की आवश्यकता है साथ ही ज़रुरत है आमजनमानस में नदियों के महत्व और आगामी भविष्य में नदियों की ज़रुरत को प्रसारित कर जागरुक बनाया जाए ताकि लोग स्वतः ही इन्हें प्रदूषित करने से परहेज़ करें.

1 comment:

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया लिखा आपने .. पहली प्राथमिकता नदियों को सुधारने की ओर देने की आवश्‍यकता है .. वैसे सरकार के किस विभाग में खर्च के अनुरूप काम हो रहा है .. कहीं भी नहीं !!