भोपाल (कमल सोनी) 10/फरवरी/2010/(ITNN)>>>> संगाई दक्षिण इसे वर्मी में थमीं ओर मणिपुरी भाषा में संगाई कहते हैं. दक्षिण एशिया में इस प्रजाती के तीन हिरन पाए जाते हैं पहला थाईलैंड का संगाई, दूसरा वर्मा का संगाई ओर तीसरा मणिपुर का संगाई. भारत में यह हिरन सिर्फ मणिपुर में पाया जाता है. मणिपुर पृथ्वी पर एक मात्र ऐसा स्थान है जहां ब्रो एंट लर्ड हिरण पाया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में संगाई कहते हैं। जहां यह संगाई पाए जाते हैं उस स्थान को 1997 में एक नेशनल पार्क घोषित किया गया था, जिसका नाम लोकतक झील रहा गया. जहां का क्षेत्रफल 40 वर्ग किलो मीटर है। यह अनोखी भौतिक विशेषताओं वाला पार्क है जहां लगभग पूरा पार्क पानी की सतह के नीचे डूबा है और जहां वनस्पतियों के टुकड़े गुच्छा बनाकर तैरते दिखाई देते हैं जैसे घास, झाडियां और मिट्टी जिसे फुमडी कहते हैं। वैसे पर्यटन के लिहाज़ से मणिपुर को संगाई हिरणों के लिए ही जाना जाता है. संगाई के लिए मणिपुर अब अंतिम शरणस्थली है.
किसी समय में सभी जातियों के संगाई हिरण वियतनाम से लेकर मणिपुर तक काफी अधिक संख्या में पाए जाते थे. लेकिन मानवीय अतिक्रमण के चलते लोकतक झील में पाए जाने वाले संगाई का अस्तित्व पर अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं. यदि इनके संरक्षण पर ध्यान ना दिया गया तो संगाई हिरण की विलुप्ति निश्चित है. लुप्तप्राय वन्य जीव का दर्ज़ा मिल जाने के बाद भी इनकी संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. किसी समय में वियतनाम से लेकर पश्चिमी मणिपुर तक हज़ारों की संख्या में पाए जाने वाले संगाई की संख्या जहां पिछली गणना में १६७ थी तो इस बार वह घटकर १०० रह गई है. अब यदि यह यहाँ से भी समाप्त हो गया. तो धरती से संगाई का नामोनिशान मिट जाएगा. ओर संगाई सिर्फ एक इतिहास बन जायेगा. संगाई की तीनो प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं जिनमें सबसे ज़्यादा दयनीय स्तिथि मणिपुर संगाई की है. थाईलैंड में संगाई की एक चौथे प्रजाती भी हुआ करती थी. लेकिन पर्याप्त संरक्षण के आभाव में १९३२ से १९३७ के मध्य यह प्रजाती विलुप्त हो गई.
संगाई का बसेरा :- संगाई का बसेरा लोकतक झील के दक्षिणी हिस्से में तैरती कई की मोटी परत पर उगी हुई घास है. संगाई का यह बसेरा 40 वर्ग किलो मीटर तक फैला हुआ है. इसका मुख्या क्षेत्र १५ वर्ग किमी. है जहां ये संगाई निवास करते हैं. लोकतक झील पूर्वोत्तर भारत की ताज़े पानी की सबसे बड़ी झील है. जिसमें वर्ष भर पानी भरा रहता है. संगाई को इन तैरती घास पर रहना पसंद है. सन १९५२ में मणिपुर सरकार ने इस प्रजाति को विलुप्त घोषित कर दिया था. लेकिन कुछ समय बाद इनका झुण्ड दिख जाने पर इनके संरक्षण ओर इनकी संख्या बढ़ाने की दिशा में काम शुरू हुआ. लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं मिले.
कैसे दिखते हैं :- संगाई एक सुदर ओर शानदार हिरण है. तथा दूर से दिखने पर साम्भर की तरह ही दिखता है. लेकिन इसका आकार संभार से छोटा होता है. संगाई के कन्धों की लम्बाई १०० सेंटीमीटर से लेकर १२० सेंटीमीटर तक होती है. पूंछ को मिलाकर इनकी कुल लम्बाई १२० सेंटीमीटर से १५० सेंटीमीटर रहती है. नर संगाई का रंग कालापन लिए हुए गहरा भोरा या बादामी होता है. इसकी एक खूबी ओर यह होती है कि यह मौसम के अनुसार अपना रंग बदलता है. सर्दियों में गहरा भूरा तथा गर्मियों में हल्का भूरा हो जाता है.
दिवाचार होते हैं :- संगाई हिरण दिवाचार होते हैं अर्थात ये दिन में भोजन करते हैं ओर रात्री में आराम करते हैं. ये मुख्यतः झुंडों में प्रातः काल से ही चरना आरम्भ कर देते हैं. इसे खुले मैदानों, झाडी वाले समतल वनों, तथा दलदल वाले जंगलों में चरना पसंद है.
संरक्षण के लिए स्थानीय प्रयास :- विलुप्ती की कगार पर पहुँच चुके संगाई के संरक्षण के लिए स्थानीय स्तर पर भी कई प्रयास किये जा रहे हैं. संगाई की लगातार कम संख्या होते देख पार्क के आसपास के लोगों ने इनके संरक्षण के लिए क्लब का गठन किया है. इसके अलावा उनके साथ कुछ गैर सरकारी संगठन ने मिलकर इन्वायरमेंटल सोशल रिफौर्मेशन एंड संगाई प्रोटेक्शन फोरम बनाया है. इनकी इकाइयां झील के चारों तरफ हैं जो संगाई के साथ साथ अन्य दुर्लभ प्राणियों के संरक्षण की दिशा में काम कर रहे हैं.
शिकार विलुप्ती का कारण :- संगाई की लगातार कम होती संख्या के पीछे इसका शिकार मुख्या कारण माना जा रहा है. मानवीय हस्तक्षेप की वजह से संगाई का अस्तित्व तो वैसे भी संकट में था रही सही कसर उग्रवादियों ने पूरे कर दी. दूसरी ओर संगाई का मुख्या बसेरा लोकतक झील का विनाश भी आरम्भ हो गया. जो कि संगाई के लिए शुभ नहीं है.
किसी समय में सभी जातियों के संगाई हिरण वियतनाम से लेकर मणिपुर तक काफी अधिक संख्या में पाए जाते थे. लेकिन मानवीय अतिक्रमण के चलते लोकतक झील में पाए जाने वाले संगाई का अस्तित्व पर अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं. यदि इनके संरक्षण पर ध्यान ना दिया गया तो संगाई हिरण की विलुप्ति निश्चित है. लुप्तप्राय वन्य जीव का दर्ज़ा मिल जाने के बाद भी इनकी संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. किसी समय में वियतनाम से लेकर पश्चिमी मणिपुर तक हज़ारों की संख्या में पाए जाने वाले संगाई की संख्या जहां पिछली गणना में १६७ थी तो इस बार वह घटकर १०० रह गई है. अब यदि यह यहाँ से भी समाप्त हो गया. तो धरती से संगाई का नामोनिशान मिट जाएगा. ओर संगाई सिर्फ एक इतिहास बन जायेगा. संगाई की तीनो प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं जिनमें सबसे ज़्यादा दयनीय स्तिथि मणिपुर संगाई की है. थाईलैंड में संगाई की एक चौथे प्रजाती भी हुआ करती थी. लेकिन पर्याप्त संरक्षण के आभाव में १९३२ से १९३७ के मध्य यह प्रजाती विलुप्त हो गई.
संगाई का बसेरा :- संगाई का बसेरा लोकतक झील के दक्षिणी हिस्से में तैरती कई की मोटी परत पर उगी हुई घास है. संगाई का यह बसेरा 40 वर्ग किलो मीटर तक फैला हुआ है. इसका मुख्या क्षेत्र १५ वर्ग किमी. है जहां ये संगाई निवास करते हैं. लोकतक झील पूर्वोत्तर भारत की ताज़े पानी की सबसे बड़ी झील है. जिसमें वर्ष भर पानी भरा रहता है. संगाई को इन तैरती घास पर रहना पसंद है. सन १९५२ में मणिपुर सरकार ने इस प्रजाति को विलुप्त घोषित कर दिया था. लेकिन कुछ समय बाद इनका झुण्ड दिख जाने पर इनके संरक्षण ओर इनकी संख्या बढ़ाने की दिशा में काम शुरू हुआ. लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं मिले.
कैसे दिखते हैं :- संगाई एक सुदर ओर शानदार हिरण है. तथा दूर से दिखने पर साम्भर की तरह ही दिखता है. लेकिन इसका आकार संभार से छोटा होता है. संगाई के कन्धों की लम्बाई १०० सेंटीमीटर से लेकर १२० सेंटीमीटर तक होती है. पूंछ को मिलाकर इनकी कुल लम्बाई १२० सेंटीमीटर से १५० सेंटीमीटर रहती है. नर संगाई का रंग कालापन लिए हुए गहरा भोरा या बादामी होता है. इसकी एक खूबी ओर यह होती है कि यह मौसम के अनुसार अपना रंग बदलता है. सर्दियों में गहरा भूरा तथा गर्मियों में हल्का भूरा हो जाता है.
दिवाचार होते हैं :- संगाई हिरण दिवाचार होते हैं अर्थात ये दिन में भोजन करते हैं ओर रात्री में आराम करते हैं. ये मुख्यतः झुंडों में प्रातः काल से ही चरना आरम्भ कर देते हैं. इसे खुले मैदानों, झाडी वाले समतल वनों, तथा दलदल वाले जंगलों में चरना पसंद है.
संरक्षण के लिए स्थानीय प्रयास :- विलुप्ती की कगार पर पहुँच चुके संगाई के संरक्षण के लिए स्थानीय स्तर पर भी कई प्रयास किये जा रहे हैं. संगाई की लगातार कम संख्या होते देख पार्क के आसपास के लोगों ने इनके संरक्षण के लिए क्लब का गठन किया है. इसके अलावा उनके साथ कुछ गैर सरकारी संगठन ने मिलकर इन्वायरमेंटल सोशल रिफौर्मेशन एंड संगाई प्रोटेक्शन फोरम बनाया है. इनकी इकाइयां झील के चारों तरफ हैं जो संगाई के साथ साथ अन्य दुर्लभ प्राणियों के संरक्षण की दिशा में काम कर रहे हैं.
शिकार विलुप्ती का कारण :- संगाई की लगातार कम होती संख्या के पीछे इसका शिकार मुख्या कारण माना जा रहा है. मानवीय हस्तक्षेप की वजह से संगाई का अस्तित्व तो वैसे भी संकट में था रही सही कसर उग्रवादियों ने पूरे कर दी. दूसरी ओर संगाई का मुख्या बसेरा लोकतक झील का विनाश भी आरम्भ हो गया. जो कि संगाई के लिए शुभ नहीं है.
1 comment:
मानव जाति की लालच का फल न जाने कितनों को भुगतना पडेगा ??
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