March 22, 2010

'जल नहीं तो कल नहीं' - जल बचाओ



(कमल सोनी)>>>> "रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून" आज २२ मार्च को पूरे विश्व में जल दिवस मनाया जा रहा है. यानि जल बचाने के संकल्प का दिन. धरती पर जब तक जल नहीं था तब तक जीवन नहीं था और यदि आगे जल ही नहीं रहेगा तो जीवन के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती. वर्त्तमान समय में जल संकट एक विकराल समस्या बन गया है. नदियों का जल स्तर गिर रहा है. कुएं, बावडी, तालाब जैसे प्राकृतिक स्त्रोत सूख रहे हैं. घटते वन्य क्षेत्र के कारण भी वर्षा की कमी के चलते जल संकट बढ़ रहा है. वहीं उद्योगों का दूषित पानी की वजह से नदियों का पानी प्रदूषित होता चला गया. लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. आँकड़े बताते हैं कि विश्व के लगभग ८८ करोड लोगों को पीने का शुद्ध पानी नही मिल रहा है. ताज़े पानी के महत्त्व पर ध्यान केन्द्रित करने और ताज़े पानी के संसाधनों का प्रबंधन बनाये रखने के लिए राष्ट्र संघ प्रत्येक वर्ष २२ मार्च का दिन अंतर्राष्ट्रीय जल दिवस के रूप में मनाता है. सुरक्षित पेय जल स्वस्थ्य जीवन की मूल भूत आवश्यकता है फिर भी एक अरब लोग इससे वंचित हैं. जीवन काल छोटे हो रहे हैं- बीमारियाँ फैल रही हैं. आठ में से एक व्यक्ति को और पूरी दुनियाँ में ८८ करोड़ ४० लाख लोगों को पीने के लिए साफ़ पानी नहीं मिल पा रहा. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष ३५ लाख ७५ हज़ार लोग गंदे पानी से फैलने वाली बीमारी से मर जाते हैं. मरने वालों में अधिकांश संख्या १४ साल से कम आयु के बच्चों की होती है जो विकासशील देशों में रहते हैं. इसे रोकने के लिए अमरीका विकास सहायता के तहत पूरी दुनियाँ में हर साल जल आपूर्ति और साफ़ पीने का पानी सुलभ कराने के लिए करोडों डॉलर खर्च कर रहा है.

जल बचाना ज़रूरी :- प्रकृति जीवनदायी संपदा जल हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. चक्र को गतिमान रखना हमारी ज़िम्मेदारी है, चक्र के थमने का अर्थ है, हमारे जीवन का थम जाना. प्रकृति के ख़ज़ाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है. हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित न होने दें और पानी को व्यर्थ न गँवाएँ यह प्रण लेना आज के दिन बहुत आवश्यक है. पानी हमारे जीवन की पहली प्राथमिकता है, इसके बिना तो जीवन संभव ही नहीं क्या आपने कभी सोचा कि धरती पर पानी जिस तरह से लगातार गंदा हो रहा है और कम हो रहा है, अगर यही क्रम लगातार चलता रहा तो क्या हमारा जीवन सुरक्षित रहेगा कितनी सारी आपदाओं का सामना करना पड़ेगा और सबकी जिन्दगी खतरे में पड़ जाएगी इस लिए हम सबको अभी से इन सब बातों को ध्यान में रख कर पानी की संभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी उठानी चाहिए यह दिवस तो २२ मार्च को मनाया जाता है और वैसे भी पानी की आवश्यकता तो हमें हर पल होती है फिर केवल एक दिन ही क्यों, हमें तो हर समय जीवनदायी पानी की संभाल के लिए उपाय करते रहना चाहिए, यह दिन तो बस हमें हमारी जिम्मेदारी का अहसास कराने के लिए मनाए जाते हैं.

दुनिया भर की मुख्य नदियों के जल स्तर में भारी गिरावट दर्ज - रिसर्च :- दुनिया भर की मुख्य नदियों के जल स्तर में गिरावट दर्ज की गई है एक अध्ययन में निकले निष्कर्षों के मुताबिक़ जलवायु परिवर्तन की वजह से नदियों का जल स्तर जल स्तर घट रहा है और आगे इसके भयावह परिणाम सामने आएंगे अमेरिकन मीटियरॉलॉजिकल सोसाइटी की जलवायु से जुड़ी पत्रिका ने वर्ष २००४ तक, पिछले पचास वर्षों में दुनिया की ९०० नदियों के जल स्तर का विश्लेषण किया है. जिसमें यह तथ्य निकलकर आया है कि दुनिया की कुछ मुख्य नदियों का जल स्तर पिछले पचास वर्षों में गिर गया है. यह अध्ययन अमेरिका में किया गया है. अध्ययन के अनुसार इसकी प्रमुख वजह जलवायु परिवर्तन है. पूरी दुनिया में सिर्फ़ आर्कटिक क्षेत्र में ही ऐसा बचा है. जहाँ जल स्तर बढ़ा है. और उसकी वजह है. तेज़ी से बर्फ़ का पिघलना भारत में ब्रह्मपुत्र और चीन में यांगज़े नदियों का जल स्तर अभी भी काफ़ी ऊँचा है. मगर चिंता ये है कि वहाँ भी ऊँचा जल स्तर हिमालय के पिघलते ग्लेशियरों की वजह से है. भारत की गंगा नदी भी गिरते जल स्तर से अछूती नहीं है. उत्तरी चीन की ह्वांग हे नदी या पीली नदी और अमरीका की कोलोरेडो नदी दुनिया की अधिकतर जनसंख्या को पानी पहुँचाने वाली इन नदियों का जल स्तर तेज़ी से गिर रहा है. अध्ययन में यह भी पता चला है. कि दुनिया के समुद्रों में जो जल नदियों के माध्यम से पहुँच रहा है. उसकी मात्रा भी लगातार कम हो रही है. इसका मुख्य कारण नदियों पर बाँध बनाना तथा खेती के लिए नदियों का मुँह मोड़ना बताया जा रहा है. लेकिन ज़्यादातर विशेषज्ञ और शोधकर्ता गिरते जल स्तर के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनका मानना है कि बढ़ते तापमान की वजह से वर्षा के क्रम में बदलाव आ रहा है. और जल के भाप बनने की प्रक्रिया तेज़ हो रही है. मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा का भी जल स्तर काफी तेज़ी से गिर रहा है. जिसका मुख्य कारण नर्मदा के दोनों तटों पर घटते वन्य क्षेत्र और जलवायु परिवर्तन माना जा रहा है. विशेषज्ञों ने प्राकृतिक जल स्रोतों की ऐसी क़मी पर चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा है. कि दुनिया भर में लोगों को इसकी वजह से काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. उनका कहना है. कि जैसे जैसे भविष्य में ग्लेशियर या हिम पिघलकर ग़ायब होंगे इन नदियों का जल स्तर भी नीचे हो जाएगा.

जल है तो कल है :- जल बचाने के लिए आमजनमानस को स्वयं विचार करना होगा. क्योंकि जल है तो कल है. हमें स्वयं इस बात पर गौर करना होगा कि रोजाना बिना सोचे समझे हम कितना पानी उपयोग में लाते हैं. २२ मार्च “विश्व जल दिवस” है. पानी बचाने के संकल्प का दिन. पानी के महत्व को जानने का दिन और पानी के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन. समय आ गया है जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें. बारिश की एक-एक बूँद कीमती है. इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है. यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा. पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है जिसकी गोदी में हज़ारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियाँ हज़ारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं. कहाँ गई वे नदियाँ, कोई नहीं बता सकता. नदियों की बात छोड़ दो, हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं, इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है. पानी का महत्व भारत के लिए कितना है. यह हम इसी बात से जान सकते हैं. कि हमारी भाषा में पानी के कितने अधिक मुहावरे हैं. आज पानी की स्थिति देखकर हमारे चेहरों का पानी तो उतर ही गया है, अब पानी हमें रुलाएगा, यह तय है. तो चलो हम सब संकल्प लें कि हर समय अपनी जिम्मेदारी को निभाएंगे इस तरह हम बहुत सारे जीवों का जीवन बचाने में अपना सहयोग दे सकते हैं.

March 9, 2010

बधाई....अंततः राज्यसभा में पास हुआ महिला आरक्षण बिल, मिले 186 मत


(कमल सोनी)>>>> राज्यसभा में अंततः महिला आरक्षण विधेयक पास हो ही गया. कुल १८७ मत पड़े, जिनमें विधेयक के पक्ष में १८६ और विपक्ष में १ वोट पड़ा. इससे पूर्व आज जब पुनः सरकार ने इस पर बहस करनी चाही. तो इस बिल का विरोध कर रहे सांसद फिर हंगामा करने लगे. लेकिन इस अनियंत्रित हंगामें को देख सदन में मार्शल बुलाकर विरोध कर रहे सांसदों को सदन से सख्ती से बाहर कर दिया. जिसके बाद महिला आरक्षण बिल ध्वनि मत से पारित करवा दिया गया. ध्वनि मत से बिल पास होने के बाद इस पर बहस कराई गई और वोटिंग प्रक्रिया पूरी हुई. और अंततः महिला आरक्षण बिल पास हो गया.

निलंबित सदस्यों को मार्शलों ने किया बाहर :- राज्यसभा में हुए एक अभूतपूर्व घटनाक्रम में महिला आरक्षण के प्रावधान वाले संविधान संशोधन विधेयक के विरोधी सात निलंबित सदस्यों को सदन से बाहर करने के लिए मार्शलों की ताकत का इस्तेमाल किया गया तथा इसके विरोध स्वरूप सपा के कमाल अख्तर ने कांच का ग्लास तक तोड़ दिया और करीब आधे घंटे तक सदन में जबर्दस्त अफरा-तफरी मची रही. तीन बार के स्थगन के बाद जब उच्च सदन की बैठक शुरू हुई तो सातों निलंबित सदस्य आसन के समक्ष धरने पर ही मौजूद थे. इनमें सपा के कमाल अख्तर, आमिर आलम खान, वीरपाल सिंह और नंद किशोर यादव, जदयू के निलंबित सदस्य डॉ. एजाज अली, राजद के सुभाष यादव तथा लोजपा के साबिर अली शामिल हैं. इन्हीं के साथ राजद के राजनीति प्रसाद और सपा के रामनारायण साहू भी आसन के समक्ष आकर विरोध व्यक्त करने लगे. सभापति हामिद अंसारी ने इन सदस्यों से वापस चले जाने की कई बार अपील की. इसी बीच उन्होंने संविधान 108वां संशोधन विधेयक पर चर्चा की घोषणा करते हुए विपक्ष के नेता अरुण जेटली का नाम पुकारा. जेटली अपने स्थान पर बोलने के लिए खड़े हुए लेकिन हंगामे के कारण वह बहुत देर तक अपनी बात शुरू नहीं कर पाये. काफी समय तक सदन में हंगामा जारी रहने के बीच ही सभापति ने विधेयक पर मत विभाजन की घोषणा कर दी. इसके बाद उन्होंने लॉबी खाली करवाने का आदेश दिया. सदन में उस समय 30 से ज्यादा मार्शल मौजूद थे. इन मार्शलों ने एक-एक कर सातों निलंबित सदस्यों को जबर्दस्ती उठाकर सदन से बाहर कर दिया. सबसे अंत में सपा के कमाल अख्तर को मार्शलों ने सदन से जबर्दस्ती बाहर किया. इससे पहले अख्तर सपा, बसपा, जद (यू) और अन्नाद्रमुक के संसदीय नेताओं की बैठने वाली अग्रिम पंक्ति की एक सीट पर खड़े होकर नारेबाजी करने लगे. विरोध के दौरान ही उन्होंने मेज पर पड़ा कांच का एक गिलास पटक दिया. इसके बाद मार्शल उन्हें उठाकर सदन से बाहर ले गए. कमाल अख्तर तथा अन्य निलंबित सदस्यों को जबर्दस्ती सदन से बाहर निकाले जाने का विरोध कर रहे सपा तथा राजद सदस्यों में भाजपा के विनय कटियार समेत कई अन्य सदस्य भी शामिल हो गए. भाजपा के सदस्य मांग कर रहे थे कि सदन को व्यवस्था में लाया जाना चाहिए और इस तरह मार्शल का प्रयोग कर सदन नहीं चलाया जा सकता. इससे पहले, भारी शोरगुल और हंगामे की वजह से सभापति ने विधेयक को बिना चर्चा के ही पारित कराने के उद्देश्य से मत विभाजन का निर्देश दे दिया था. यहां तक कि उन्होंने इस पर ध्वनि मत भी ले लिया था, लेकिन बाद में स्थिति शांत होने पर उन्होंने पुन: चर्चा शुरू कराने का निर्देश दिया.

क्या है विरोध :- पिछले १३ वर्षों से महिला आरक्षण विधेयक आम सहमति के अभाव में लटका पड़ा है. जब भी इसे पेश करने की कोशिश हुई है संसद में ज़बरदस्त हंगामा हुआ है. लेकिन इस बार कांग्रेस, भाजपा और वामपंथी दलों के सदस्यों की संख्या विरोध कर रहे छोटे दलों के सदस्यों पर भारी पड़ सकती है. जो छोटे दल इसका विरोध कर रहे हैं उनमें लालू यादव की आरजेडी, मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी और देवगौड़ा शामिल हैं. इस विधेयक को लेकर बहस का मुद्दा यह है कि इस आरक्षण में पिछड़ी, दलित तथा मुस्लिम महिलाओं को अलग से आरक्षण दिया जाना चाहिए, वरना ज्यादातर सीटों पर पढ़ी-लिखी शहरी महिलाओं का कब्ज़ा हो जाएगा. यानि विरोध कर रहे सांसद आरक्षण के अंदर आरक्षण की मांग कर रहे थे. मुलायम सिंह यादव ने कहा कि ये पिछड़ों, मुसलमानों और दलितों को संसद में आने देने से रोकने की साज़िश है तो लालू यादव ने इसे भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की साज़िश बताया. दूसरी ओर देशभर के मुस्लिम संगठनों ने महिला विधेयक के मौजूदा स्वरूप पर विरोध में प्रदर्शन की चेतावनी दी है. जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर अख्तरुल वासिम ने कहा है कि जब पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण के अंदर आरक्षण दे सकते हैं तो राष्ट्रीय पंचायत में ऐसा करने से क्यों परहेज किया जा रहा है.

जदयू का समर्थन :- एक तरफ जदयू अध्यक्ष शरद यादव विधेयक के विरोध में हैं. तो दूसरे तरफ पार्टी के दूसरे प्रमुख नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इसके समर्थन में हैं जिससे पार्टी के समीकरण बदल गए हैं. जनता दल-यू के सदस्यों की राय नीतीश कुमार के बयान के बाद विभाजित हो गई है. राज्यसभा में जदयू के सात सांसदों में जॉर्ज फर्नाडीस बीमार होने के कारण अनुपस्थित हैं. बाकी छह सांसदों को नीतीश का करीबी माना जाता है, इसीलिए उनके विधेयक के समर्थन में रहने की उम्मीद है. विधेयक के पक्ष में वकालत करने वालों का तर्क है कि पिछड़ी महिलाओं के लिए आरक्षण की बहस में कोई दम नहीं है. विधेयक के विरोधियों को बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल-यू के नेता नीतीश कुमार के समर्थन देने की घोषणा से झटका लगा है. तो केंद्र सरकार को राहत मिली है.

महिला आरक्षण बहुत जरूरी - जेटली :- राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने कहा है कि देश के विधायी निकायों में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण बहुत जरूरी है. महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए जेटली ने मंगलवार को कहा, "जो लोग कहते हैं कि महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने के लिए आरक्षण की आवश्यकता नहीं है, वे गलत हैं. स्वतंत्रता के 63 वर्षों बाद भी आज लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सिर्फ 10.7 फीसदी है. ऐसे में आरक्षण से ही महिलओं को उचित प्रतिनिधित्व मिल सकता है." जेटली ने कहा कि बीते कई वर्षों के बाद आज वह मौका आया है जब यह ऐतिहासिक विधेयक पारित किया जाएगा. यह अवसर सभी के लिए ऐतिहासिक और अद्भुत है. उन्होंने अन्य दूसरे देशों में महिला आरक्षण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महिला आरक्षण क्षेत्रों के आधार पर होना चाहिए.

लोकतंत्र की ह्त्या - कमाल अख्तर :- सदन से बाहर किये जाने के बाद सपा के कमाल अख्तर ने कहा कि यह लोकतंत्र की ह्त्या है. हमें अपने अधिकारों से वंचित किया गया. अख्तर ने कहा यह बिल मुसलमान, पिछडा वर्ग और दलित विरोधी है. उन्होंने सरकार पर जबरन बिल पास करने का आरोप भी लगाया.

महिला दिवस पर राष्ट्रिय शर्म :- अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर देश में सोमवार का दिन राज्यसभा में काला सोमवार लेकर आया जब केंद्र सरकार ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम आगे बढाते हुए राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल तो पेश किया. लेकिन इस बिल के विरोधियों ने सदन की मर्यादा को तार-तार करते हुए बिल की प्रतियाँ फाड़ दीं. इसे महिला दिवस पर सबसे बड़ी शर्म ही कहा जायेगा कि सांसदों के हंगामेदार रवैये के कारण न तो इस पर बहस हो सकी और न ही वोटिंग कराई जा सकी. हंगामा इतना ज़बरदस्त था कि सांसदों ने सदन की मर्यादा को तार-तार कर दिया. महिला आरक्षण बिल पर मचे बवाल के कारण राज्‍यसभा को कई बार स्‍थगित किया गया. पहले बारह बजे, फिर दो बजे, और फिर तीन बजे के बाद अब राज्‍य सभा को चार बजे तक के लिए स्‍थगित कर दिया गया. लेकिन बाद में राज्यसभा की कार्यवाही आज तक के लिए स्थगित की गई थी.

बहरहाल भले ही महिला आरक्षण बिल को १४ सालों का इन्तेज़ार करना पड़ा लेकिन अंततः राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पास हो गया. अब आगे यह उम्मीद भी लगाईं जा रही है कि आगे यह बिल लोक सभा में भी जल्द से जल्द पेश होगा और भारी बहुमत से पास भी होगा. इस बिल के पास होने के बाद महिलाओं में उत्साह का माहौल है. कुछ महिलाओं ने इसे आज़ादी के बाद महिलाओं के लिए सबसे बड़ा दिन करार दिया है. अब यह देखना होगा कि आने वाले समय में महिला आरक्षण बिल महिला सशक्तिकरण की दिशा में कितना कारगर साबित होगा.



March 8, 2010

समाज की उन्नति, समृद्धी नारी विकास पर निर्भर


* आठ मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
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(कमल सोनी)>>>> आज पूरा विश्व अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है. और इस दिन कई विशेष कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है. वैसे भी विश्व के समग्र व यथेष्ट विकास के लिए महिलाओं के विकास को मुख्य धारा से जोडना परम आवश्यक है. नारी की स्थिति समाज में जितनी महत्वपूर्ण, सुदृढ़, सम्मानजनक व सक्रिय होगी, उतना ही समाज उन्नत, समृद्ध व मज़बूत होगा. इस बात को आधुनिक विचारक व चिंतक भी स्वीकार करते हैं. बात भारतीय परिद्रश्य की करें तो नारी का त्याग और बलिदान भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है. भारत में जहाँ एक और नारी को शक्ति स्वरूपा मना जाता है तो दूसरी और रूढीवादी विचारधारा में जकडे हमारे समाज में महिलाओं की वर्त्तमान वास्तविक स्थिति किसी से छिपी नहीं हैं. ऐसे में एक अहम सवाल यह उठता है कि क्या आज ही के दिन महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए ? लगातार कई सालों से महिला दिवस के रूप में हम एक औपचारिकता निभाते आ रहे हैं लेकिन आज एक बार फिर हमें महिलाओं के अस्तित्व को पहचानने की कोशिश करनी होगी. क्या सिर्फ आज के ही दिन महिला सम्मान की बातें करने से महिला सम्मान की सुरक्षा हो जाती है. या ये सिर्फ यह एक ख़ाना पूर्ति ही है? अथवा महज़ एक औपचारिकता ? पुरुष प्रधान इस समाज में जरूरत इस बात की है कि आज महिलाएं स्वयं अपने अस्तित्व को पहचाने.

सृष्टि के आरंभ से नारी अनंत गुणों की आगार रही है. पृथ्वी सी क्षमता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र सी गंभीरता, चंद्रमा सी शीतलता, पर्वतों सी मानसिक उच्चता हमें एक साथ नारी हृदय में दृष्टिगोचर होती है. वह दया करुणा, ममता और प्रेम की पवित्र मूर्ति है और समय पड़ने पर प्रचंड चंडी का भी रूप धारण कर सकती है. वह मनुष्य के जीवन की जन्मदात्री भी है. नर और नारी एक दूसरे के पूरक है. किंतु बदलते समय और विश्व के औद्योगीकरण के साथ महिलाओं के मानवीय गुणों की गहरी परीक्षा का प्रारंभ हुई. यह महसूस किया जाने लगा कि काम, पैसा और मेहनत का मूल्य मानवीय विशेषताओं से आगे निकलने लगा है और महिलाएँ इस दौड़ में पीछे रह गई हैं. उनकी इस पीड़ा को विश्व के अनेक देशों मे आवाज़ मिली. और पुरुषों के समान अधिकार की एक नई आवाज़ ने जन्म लिया. उनके उत्थान और पुरुषों के समान अधिकार प्रदान करने के लिए विश्व में कई परिवर्तन हुए. ८ मार्च १९०८ में ब्रिटेन में महिलाओं ने 'रोटी और गुलाब' के नारे के साथ अपने अधिकारों के प्रति सजगता दिखाते हुए प्रदर्शन किया. जहां रोटी उनकी आर्थिक सुरक्षा का प्रतीक था तो गुलाब अच्छे जीवन शैली का प्रतीक था. भारत की पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने भी कहा था, ''ऐसा कोई काम नहीं है जिसे महिलाएँ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नही कर सकती.'' और एक प्रधानमंत्री होते हुए वे समाज के सामने एक ज्वलंत उदाहरण भी थीं.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास :- वर्त्तमान में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ८ मार्च को मानया जाता है. लेकिन अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आवाहन पर यह दिवस सबसे पहले २८ फरवरी १९०९ में मनाया गया. इसके बाद यह फरवरी के आखरी रविवार के दिन मनाया जाने लगा. १९१० में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे अन्तरराष्ट्रीय दर्जा दिया गया. उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिलवाना था क्योंकि, उस समय अधिकतर देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था. १९१७ में रुस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया. यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी. ज़ार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिये. उस समय रुस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर. इन दोनो की तारीखों में कुछ अन्तर है. जुलियन कैलेंडर के मुताबिक १९१७ की फरवरी का आखरी रविवार २३ फरवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन ८ मार्च थी. इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है. इसी लिये ८ मार्च, महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. महिला दिवस अब लगभग सभी विकसित, विकासशील देशों में मनाया जाता है. यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक तरक्की दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए.
अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष :- अलग-अलग देशों की सरकारों ने अपनी-अपनी स्थित के अनुसार इस संबंध में नियम बनाए एवं वैधानिकता प्रदान किया. प्रथम अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष मैक्सिको में हुआ. चर्तुथ अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष के अवसर पर बीजिंग में विश्व के लगभग १८९ देशों ने हिस्सा लिया और विश्व भर मे महिलाओं के जीवन को सुधारने के लिए कठिन लक्ष्य के प्रति दृढ संकल्प और एकजुटता दिखाई. १९७५ मे अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष का भारत में उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था.

हालातों में सुधार की ज़रूरत :- आज, प्रथम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मनाये जाने के लगभग सौ वर्ष बाद भी हमें क्या नज़र आता है? क्या महिलाओं की स्थिति में उतना सुधार हुआ जितना होना चाहिए एक तरफ, दुनिया की लगभग हर सरकार एवं कई अन्य संस्थान अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर खूब धूम मचाते हैं. वे महिलाओं को 'ऊपर उठाने' की अपनी 'कामयाबियों' का डिंडोरा पीटने से भी नहीं चूकते हैं और महिलाओं के लिये कुछ करने के बड़े-बड़े वादे करते हैं. दूसरी ओर, सारी दुनिया में महिलायें आज भी हर प्रकार के बेरहम शोषण और दमन के शिकार हो रही है. महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचार के आंकड़े तो यही दर्शाते हैं. भारत के राजनेता महिलाओं के सशक्तिकरण और उत्थान के लिए बड़े बड़े वायदे तो करते हैं, भाषण भी देते हैं, वे तो इस बात का भी जिक्र करते हैं कि अब बी.पी.ओ., पर्यटन, परिवहन व सेवा उद्योग जैसे कई क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा संख्या में लड़कियों व महिलाओं को नौकरियां मिल रही हैं, कि वे अच्छे कपड़े पहनकर वातानुकूलित दफ्तरों में काम कर रही हैं, परन्तु क्या यह सब महिलाओं के लिये कोई विकास है ? शायद नहीं. क्योंकि इन क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं को भारी शोषण झेलना पड़ता है. इन कामों में उनकी कुशलता व योग्यता का कोई संवर्धन नहीं होता, उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिलती. काम पर जाने के बाद भी, वर्तमान पिछड़ी सामाजिक व्यवस्था के चलते, महिलाओं को न तो बराबरी दी जाती है और न ही इज्ज़त. चाहे सड़कों पर हो या काम की जगह पर, उन्हें तरह-तरह के अमानवीय व्यवहार, अपमान व हमलों से दो चार होना ही पड़ता है.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस महज़ एक दिन औपचारिकता मात्र नहीं है. समूचे विश्व को इस बात पर विचार करना होगा कि महिलाओं को आर्थिक तथा सामाजिक स्तर पर स्वतंत्रता कैसे प्राप्त हो ? इस पुरुष प्रधान दुनिया में आर्थिक तथा सामाजिक आज़ादी के बिना पुरुषों के वर्चस्व को समाप्त नहीं किया जा सकता. दूसरी तरफ़ एक ऐसा समाज भी है जहाँ रूढ़िवादी नेतृत्व धर्म के नाम पर महिलाओं के अधिकारों का हनन करता है. इस समस्या के निराकरण के लिए महिलाओं को अधिक से अधिक शिक्षित करने के लिए एक ईमानदार प्रयास होना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का मूल उद्देश्य पूर्ण होगा.

February 27, 2010

दुराचार पर सदाचार की विजय और विजय पर रंगों से उत्सव मनाने का पर्व - होली



(कमल सोनी)>>>> होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है. यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व वैसे तो पांच दिनों का हॉट है लेकिन मुख्य रूप से दो दिन मनाया जाता है. पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है. दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं, और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं. एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है. इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं. राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है. राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है. फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं. होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है. उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है. इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है. खेतों में सरसों खिल उठती है. बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है. पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं. खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं. किसानों का ह्रदय ख़ुशी से नाच उठता है. बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं. चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है.

क्यों मनाई जाती है होली ? :- होली क्यों मनाई जाती है ? इस पर कई कथाएं भी प्रचलित हैं. होली एक सामाजिक पर्व है. और यह भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में मनाया जाता है. यह रंगों से भरा रंगीला त्योहार, बच्चे, वृद्ध, जवान, स्त्री-पुरुष सभी के ह्रदय में जोश, उत्साह, खुशी का संचार करने वाला पर्व है. यह एक ऐसा पर्व है जिसे संपूर्ण विश्व में किसी ना किसी रूप में मनाया जाता है. इसके एक दिन पहले वाले सायंकाल के बाद भद्ररहित लग्न में होलिका दहन किया जाता है. इस अवसर पर लकडियां, घास-फूस, गोबर के बुरकलों का बडा सा ढेर लगाकर पूजन करके उसमें आग लगाई जाती है. वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था. उस समय खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था. अन्न को होला कहते है, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पडा. वैसे होलिकोत्सव को मनाने के संबंध में अनेक मत प्रचलित है. कुछ लोग इसको अग्निदेव का पूजन मानते हैं, तो कुछ इसे नवसंम्बवत् को आरंभ तथा बंसतामन का प्रतीक मानते हैं. इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था. अतः इसे मंवादितिथि भी कहते हैं.

प्रचलित कथाएं :- बसंतोत्सव रंगों के पर्व होली पर कई कथाएं भी प्रचलित हैं. जिनमे सबसे ज्यादा प्रचलित कहानी है, हिरण्यकशिपु की. माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था. अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था. उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी. हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था. प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा. हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था. कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती. हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे. आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया. ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है. प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है. वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है.

प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है. कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था. इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था. होली खेलते राधा और कृष्णहोली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से है. यह कितना पुराना है इसके विषय में ठीक जानकारी नहीं है लेकिन इसके विषय में इतिहास पुराण व साहित्य में अनेक कथाएँ मिलती है. इन कथाओं पर आधारित साहित्य और फ़िल्मों में अनेक दृष्टिकोणों से बहुत कुछ कहने के प्रयत्न किए गए हैं. लेकिन हर कथा में एक समानता है कि असत्य पर सत्य की विजय और दुराचार पर सदाचार की विजय और विजय को उत्सव मनाने की बात कही गई है. होली का त्योहार राधा और कृष्ण की पावन प्रेम कहानी से भी जुडा हुआ है. वसंत के सुंदर मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है. मथुरा और वृन्दावन की होली राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबी हुई होती है. बरसाने और नंदगाँव की लठमार होली तो प्रसिद्ध है ही देश विदेश में श्रीकृष्ण के अन्य स्थलों पर भी होली की परंपरा है. यह भी माना गया है कि भक्ति में डूबे जिज्ञासुओं का रंग बाह्य रंगों से नहीं खेला जाता, रंग खेला जाता है भगवान्नाम का, रंग खेला जाता है सद्भावना बढ़ाने के लिए, रंग होता है प्रेम का, रंग होता है भाव का, भक्ति का, विश्वास का. होली उत्सव पर होली जलाई जाती है अंहकार की, अहम् की, वैर द्वेष की, ईर्ष्या मत्सर की, संशय की और पाया जाता है विशुद्ध प्रेम अपने आराध्य का, पाई जाती है कृपा अपने ठाकुर की.

कंस और पूतना की कथा :- पूतनावधकंस ने मथुरा के राजा वसुदेव से उनका राज्य छीनकर अपने अधीन कर लिया स्वयं शासक बनकर आत्याचार करने लगा. एक भविष्यवाणी द्वारा उसे पता चला कि वसुदेव और देवकी का आठवाँ पुत्र उसके विनाश का कारण होगा. यह जानकर कंस व्याकुल हो उठा और उसने वसुदेव तथा देवकी को कारागार में डाल दिया. कारागार में जन्म लेने वाले देवकी के सात पुत्रों को कंस ने मौत के घाट उतार दिया. आठवें पुत्र के रूप में कृष्ण का जन्म हुआ और उनके प्रताप से कारागार के द्वार खुल गए. वसुदेव रातों रात कृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के घर पर रखकर उनकी नवजात कन्या को अपने साथ लेते आए. कंस ने जब इस कन्या को मारना चाहा तो वह अदृश्य हो गई और आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले तो गोकुल में जन्म ले चुका है. कंस यह सुनकर डर गया और उसने उस दिन गोकुल में जन्म लेने वाले हर शिशु की हत्या कर देने की योजना बनाई. इसके लिए उसने अपने आधीन काम करने वाली पूतना नामक राक्षसी का सहारा लिया. वह सुंदर रूप बना सकती थी और महिलाओं में आसानी से घुलमिल जाती थी. उसका कार्य स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था. अनेक शिशु उसका शिकार हुए लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए और उन्होंने पूतना का वध कर दिया. यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अतः पूतनावध की खुशी में होली मनाई जाने लगी.

कई रंग होली के :- बसंतोत्सव पर्व होली के कई रंग हैं. यानि होली अलग अलग रूपों में माने जाती है. ब्रज के बरसाना गाँव में होली एक अलग तरह से खेली जाती है जिसे लठमार होली कहते हैं. यहाँ की होली में मुख्यतः नंदगाँव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगाँव के थे और राधा बरसाने की थीं. नंदगाँव की टोलियाँ जब पिचकारियाँ लिए बरसाना पहुँचती हैं तो उन पर बरसाने की महिलाएँ खूब लाठियाँ बरसाती हैं. पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है. और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है. नंदगाँव और बरसाने के लोगों का विश्वास है कि होली की लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है. अगर चोट लगती भी है तो लोग घाव पर मिट्टी मलकर फ़िर शुरु हो जाते हैं. इस दौरान भाँग और ठंडाई का भी ख़ूब इंतज़ाम होता है. होली उत्तर भारत के अलावा अन्य प्रदेशों मे भी मनाई जाती है, हाँ थोड़ा बहुत रुप स्वरुप बदल जाता है. जैसे हरियाणा की धुलन्डी. हरियाणा मे होली के त्योहार मे भाभियों को इस दिन पूरी छूट रहती है कि वे अपने देवरों को साल भर सताने का दण्ड दें. इस दिन भाभियां देवरों को तरह तरह से सताती है और देवर बेचारे चुपचाप झेलते है, क्योंकि इस दिन तो भाभियों का दिन होता है. देवर अपनी प्यारी भाभी के लिये उपहार लाता है. इसके अलावा होली का एक और रंग है. वह है, बंगाल का बसन्तोत्सव. गुरु रबीन्द्रनाथ टैगोर ने होली के ही दिन शान्तिनिकेतन मे वसन्तोत्सव का आयोजन किया था, तब से आज तक इस यहाँ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. पूरे बंगाल मे इसे ढोल पूर्णिमा अथवा ढोल जात्रा के तौर पर भी मनाया जाता है, लोग अबीर गुलाल लेकर मस्ती करते है. श्रीकृष्ण और राधा की झांकिया निकाली जाती है. महाराष्ट्र में रंग पंचमी और कोंकण का शिमगो प्रसिद्द हैं. महाराष्ट्र और कोंकण के लगभग सभी हिस्सों मे इस त्योहार को रंगों के त्योहार के रुप मे मनाया जाता है. मछुआरों की बस्ती मे इस त्योहार का मतलब नाच,गाना और मस्ती होता है. इसके अलावा पंजाब का होला मोहल्ला भी होली मानाने का अपना ही अंदाज़ है. पंजाब मे भी इस त्योहार की बहुत धूम रहती है. सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री अनन्दपुर साहिब मे होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है. सिखों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है. साथ ही तमिलनाडु की कामन पोडिगई जो कि कामदेव को समर्पित होता है. इसके पीछे भी एक किवदन्ती है. प्राचीन काल मे देवी सती (भगवान शंकर की पत्नी) की मृत्यू के बाद शिव काफी क्रोधित और व्यथित हो गये थे. इसके साथ ही वे ध्यान मुद्रा मे प्रवेश कर गये थे. उधर पर्वत सम्राट की पुत्री भी शंकर भगवान से विवाह करने के लिये तपस्या कर रही थी. देवताओ ने भगवान शंकर की निद्रा को तोड़ने के लिये कामदेव का सहारा लिया. कामदेव ने अपने कामबाण के शंकर पर वार किया. शंकर भगवान को बहुत गुस्सा आया कि कामदेव ने उनकी तपस्या मे विध्न डाला है इसलिये उन्होने अपने त्रिनेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया. अब कामदेव का तीर तो अपना काम कर ही चुका था, सो पार्वती को शंकर भगवान पति के रुप मे प्राप्त हुए. उधर कामदेव की पत्नी रति ने विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को जीवित करने की गुहार की. ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया. यह दिन होली का दिन होता है. आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रुप मे गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने मे पीड़ा ना हो. साथ ही बाद मे कामदेव के जीवित होने की खुशी मे रंगो का त्योहार मनाया जाता है.

आधुनिकता का रंग :- होली रंगों का त्योहार है, हँसी-खुशी का त्योहार है, लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते है. प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, भांग-ठंडाई की जगह नशेबाजी और लोक संगीत की जगह फ़िल्मी गानों का प्रचलन इसके कुछ आधुनिक रूप हैं. लेकिन इससे होली पर गाए-बजाए जाने वाले ढोल, मंजीरों, फाग, धमार, चैती और ठुमरी की शान में कमी नहीं आती. अनेक लोग ऐसे हैं जो पारंपरिक संगीत की समझ रखते हैं और पर्यावरण के प्रति सचेत हैं. इस प्रकार के लोग और संस्थाएँ चंदन, गुलाबजल, टेसू के फूलों से बना हुआ रंग तथा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा को बनाए हुए हैं, साथ ही इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान भी दे रहे हैं. रासायनिक रंगों के कुप्रभावों की जानकारी होने के बाद बहुत से लोग स्वयं ही प्राकृतिक रंगों की ओर लौट रहे हैं. होली की लोकप्रियता का विकसित होता हुआ अंतर्राष्ट्रीय रूप भी आकार लेने लगा है. बाज़ार में इसकी उपयोगिता का अंदाज़ इस साल होली के अवसर पर एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठान केन्ज़ोआमूर द्वारा जारी किए गए नए इत्र होली है से लगाया जा सकता है.

होली की शुभकामनाएं ..........

खेलें इको फ्रेंडली होली........(होली विशेष)



(कमल सोनी)>>>> यदि आप इस बार होली को किसी नए अंदाज़ में सेलीब्रेट करना चाहते हैं. तो रंगों के इस त्यौहार को इको फ्रेंडली बनायें. होली ऐसी हो जिसमें ज्यादा से ज़्यादा प्राकृतिक रंगों का प्रयोग हो. सबसे ज्यादा अप होली को तभी इंजॉय कर सकेंगे जब वह सूखी होगी. इससे आप जल सरंक्षण भी कर सकते हैं. गौर करें गर्मी की दस्तक होली से ही प्रारम्भ होती है. साथ ही गर्मी की दस्तक के पहले ही जलस्तर गिरावट आने लगती है जो कि एक चिंता का विषय है. इसके फलस्वरूप पानी में रंग मिलाकर हजारों लीटर पानी बर्बाद कर देने से पानी की समस्या और विकराल हो सकती है. पानी की कमी को देखते हुए लोगों को चाहिए कि वह सूखी होली खेलें. इस तरह वह जल संरक्षण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. हालांकि कई सामाजिक संस्थाएं और आमजन इस दिशा में लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं. पानी की बर्बादी रोकने के लिए सबको मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे. वर्तमान जलसंकट को देखते हुए लोगों को होली की उमंग भारी पड़ सकती है एक अनुमान के मुताबिक उमंग व उल्लास के साथ रंगों से सराबोर होकर होली मनाने पर एक शहर में एक दिन में 1 करोड़ 52 लाख 57 हजार 946 लीटर पानी अतिरिक्त खर्च होता है. होली खेलने वालों ने अगर प्राकृतिक रंग या गुलाल से होली खेली तो कुल 36 लाख 95 हजार 518 लीटर पानी की बचत होगी. आज भी कुछ लोग हैं जो प्रकृति से प्राप्त फूल-पत्तियों व जड़ी-बूटियों से रंग बना कर होली खेलते हैं. उनके अनुसार इन रंगों में सात्विकता होती है और ये किसी भी तरह से हानिकारक नहीं होते. विशेषज्ञों के अनुसार सामान्य तौर पर नहाने में 20 लीटर पानी प्रतिदिन प्रति व्यक्ति खर्च होता है. सूखे रंग या गुलाल से होली खेलने के पश्चात 40 लीटर पानी खर्च होगा पर अगर यही होली कैमिकल युक्त रंगों से खेली जाती है तो रंग छुड़ाने व नहाने में 60 लीटर पानी की खपत होगी. साथ ही पानी मिले रंगों से जो पानी बर्बाद होगा वो अलग.

जल है तो कल है :- जल बचाने के लिए आमजनमानस को स्वयं विचार करना होगा. क्योंकि जल है तो कल है. हमें स्वयं इस बात पर गौर करना होगा कि रोजाना बिना सोचे समझे हम कितना पानी उपयोग में लाते हैं. यहाँ खास बात यह गौर करने लायक है कि आगामी २२ मार्च “विश्व जल दिवस” है. जी हाँ पानी बचाने के संकल्प का दिन. पानी के महत्व को जानने का दिन और पानी के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन. आँकड़े बताते हैं कि विश्व के १.४ अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नही मिल रहा है. प्रकृति जीवनदायी संपदा जल हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. चक्र को गतिमान रखना हमारी ज़िम्मेदारी है, चक्र के थमने का अर्थ है, हमारे जीवन का थम जाना. प्रकृति के ख़ज़ाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है. हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित न होने दें और पानी को व्यर्थ न गँवाएँ यह प्रण लेना आज के दिन बहुत आवश्यक है. यह दिवस हमें होली के दिन भी पानी बचाने का संदेश दे रहा है. आज हमें एक अहम सवाल खुद से पूछने की आवश्यकता है. कि क्या आप पूरा एक दिन बिना पानी के गुजारने की कल्पना कर सकते हैं ? जाहिर है नहीं. पानी अनमोल है, इसलिये संकल्प करें कि इस होली पर पानी बचाकर न सिर्फ़ आप अपने बल्कि समूचे विश्व को एक नए रंग में रंग देंगे.

मंडावा की सूखी होली की बात ही अलग :- मंडावा की सूखी होली में जयपुर, दिल्ली व बंबई ही नहीं विदेशों से भी सैलानी यहां आते हैं. यहां की होली में ना फुहड़पन, ना कीचड़, ना पानी और ना ही पक्का रंग, फिर भी रंग ऐसा चढ़े की छुटाए ना छूटे. चेहरे पर लगाया जाता है तो सिर्फ अबीर-गुलाल. पक्के रंग व पानी के प्रयोग पर पब्लिक का प्रतिबंध है. सूखी व शालीन होली की यह परंपरा करीब सौ साल से चली आ रही है. कुछ सालों से यहां होली पर पर्यटकों की संख्या भी बढ़ने लगी है.

स्वयं अपने घर पर बनायें प्राकृतिक रंग :- होली रंगों का त्योहार है जितने अधिक से अधिक रंग उतना ही आनन्द, लेकिन इस आनन्द को दोगुना भी किया जा सकता है प्राकृतिक रंगों से खेलकर, पर्यावरण मित्र रंगों के उपयोग द्वारा भी होली खेली जा सकती है और यह रंग घर पर ही बनाना एकदम आसान भी है. इन प्राकृतिक रंगों के उपयोग से न सिर्फ़ आपकी त्वचा को कोई खतरा नहीं होगा, परन्तु रासायनिक रंगों के इस्तेमाल न करने से कई प्रकार की बीमारियों से भी बचाव होता है.

ऐसे बनायें लाल रंग :-
<<*>> लाल गुलाब की पत्तियों को अखबार पर बिछाकर सुखा लें, उन सूखी पत्तियों को बारीक पीसकर लाल गुलाल के रूप में उपयोग कर सकते हैं जो कि खुशबूदार भी होगा.
<<*>> रक्तचन्दन (बड़ी गुमची) का पावडर भी गुलाल के रूप में उपयोग किया जा सकता है, यह चेहरे पर फ़ेसपैक के रूप में भी उपयोग होता है.
<<*>> रक्तचन्दन के दो चम्मच पावडर को पाँच लीटर पानी में उबालें और इस घोल को बीस लीटर के पानी में बड़ा घोल बना लें… यह एक सुगन्धित गाढ़ा लाल रंग होगा.
<<*>> लाल हिबिस्कस के फ़ूलों को छाया में सुखाकर उसका पावडर बना लें यह भी लाल रंग के विकल्प के रूप में उपयोग किया जा सकता है.
<<*>> लाल अनार के छिलकों को मजीठे के पेड़ की लकड़ी के साथ उबालकर भी सुन्दर लाल रंग प्राप्त किया जा सकता है.
<<*>> टमाटर और गाजर के रस को पानी में मिलाकर भी होली खेली जा सकती है.

पीला रंग :-
<<*>> दो चम्मच हल्दी को चार चम्मच बेसन के साथ मिलाकर उसे पीला गुलाल के रूप में उपयोग किया जा सकता है.
<<*>> अमलतास और गेंदे के फ़ूलों की पत्तियों को सुखाकर उसका पेस्ट अथवा गीला रंग बनाया जा सकता है.
<<*>> दो चम्मच हल्दी पावडर को दो लीटर पानी में उबालें, गाढ़ा पीला रंग बन जायेगा.
<<*>> दो लीटर पानी में 50 गेंदे के फ़ूलों को उबालने पर अच्छा पीला रंग प्राप्त होगा…

हरा रंग :-
<<*>> गुलमोहर, पालक, धनिया, पुदीना आदि की पत्तियों को सुखाकर और पीसकर हरे गुलाल के रूप में उपयोग किया जा सकता है.
<<*>> किसी भी आटे की बराबर मात्रा में हिना अथवा दूसरे हरे रंग मिलाकर भी हरे गुलाल के रूप में उपयोग किया जा सकता है.
<<*>> एक लीटर पानी में दो चम्मच मेहंदी को घोलने पर भी हरे रंग का प्राकृतिक विकल्प तैयार किया जा सकता है.

नीला :-
<<*>> एक लीटर गरम पानी में चुकन्दर को रात भर भिगोकर रखें और इस बैंगनी रंग को आवश्यकतानुसार गाढ़ा अथवा पतला किया जा सकता है.
<<*>> 15-20 प्याज़ के छिलकों को आधा लीटर पानी में उबालकर गुलाबी रंग प्राप्त किया जा सकता है.
<<*>> नीले गुलमोहर के फ़ूलों को सुखाकर उसके पावडर द्वारा तैयार घोल से भी अच्छा नीला रंग बनाया जा सकता है.
<<*>> नीले गुलमोहर की पत्तियों को सुखाकर बारीक पीसने पर नीला गुलाल भी बनाया जा सकता है.

भगवा रंग :-
<<*>> हल्दी पावडर और चन्दन पावडर को मिलाकर हल्का नारंगी पेस्ट बनाया जा सकता है.
<<*>> परम्परागत रूप से जंगलों में पाये जाने वाले टेसू के फ़ूलों को उबालकर भी नारंगी केसरिया रंग प्राप्त किया जाता है.

ऐसे खेलें होली :-
<<*>> अधिक से अधिक सूखे रंगों से होली खेलें, अधिक से अधिक प्राकृतिक रंगों से होली खेलें, आजकल प्राकृतिक रंग आसानी से बाजार में उपलब्ध होते हैं.
<<*>> होली खेलने से पहले पूरे शरीर और खासकर बालों पर अच्छी तरह से तेल मालिश कर लें या किसी लोशन का लेप लगा लें, इससे होली खेलने के बाद बालों और त्वचा का रंग छुड़ाने में आसानी होगी.
<<*>> होली खेलने से पहले नाखून को पॉलिश कर लें, ताकि होली खेलने के बाद भी वे वैसे ही चमकते हुए दिखेंगे और उसकी अधिक सफ़ाई नहीं करना पड़ेगी.
होली की शुभकामनाएं ..........