December 1, 2009

भोपाल गैस त्रासदी: ज़ख्म के 25 बरस, मरहम को तरस रहे पीड़ित

* ठीक 25 साल पहले भोपाल में बरसी थी आसमान से मौत
* 2-3 दिसम्बर 1984 को युनियन कार्बाइड कारखाने से अकस्मात मिथाइल आइसोसायनाईट अन्य रसायनों का हुआ था रिसाव

* 25 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड का जहरीला प्रदूषण नहीं छोड़ रहा पीछा
* आज भी कई लोग शारीरिक और मानसिक कमजोरी से हैं पीड़ित
* गैस पीड़ितों की संख्या में सरकारी आंकड़े और गैर सरकारी आंकड़ों में भिन्नता
* यूनियन कार्बाइड के मुखिया वारेन एंडरसन को 5 दिसंबर 1984 को ही दे दी गई थी ज़मानत
* 25 बरस बीत जाने बाद भी दोषियों को कि सज़ा नहीं

भोपाल (कमल सोनी) >>>> ठीक 25 साल पहले दो-तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात भोपाल में मौत का कहर बरसाने वाली रात थी। तब से लेकर अब तक इस भीषण भोपाल गैस त्रासदी को गुजरे हुए 25 वर्ष हो गए हैं, लेकिन आज भी इस इलाके में जाने पर लगता है मानों कल की ही बात हो. आज 25 साल बाद भी हर सुबह दुर्घटना वाले दिन की अगली सुबह ही नजर आती है. यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से ज़हरीले गैस रिसाव और रसायनिक कचरे के कहर का प्रभाव आज भी बना हुआ है. बच्चे अपंग होते रहे, मां के दूध में ज़हरीले रसायन पाये जाने की बात भी सामने आई, चर्म रोग, दमा, कैंसर और न जाने कितनी बीमारियां धीमा ज़हर बनकर आज भी गैस प्रभावितों को अपनी चपेट में ले रही हैं. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आज से 25 वर्ष पहले हुए दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक हादसे को लोग अभी तक नहीं भूल पाए हैं.

क्या थी त्रासदी :- मध्य प्रदेश के भोपाल शहर मे 2-3 दिसम्बर सन् 1984 की रात भोपाल वासियों के लिए काल की रात बनकर सामने आई। इस दिन एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है. 2-3 दिसम्बर 1984 को युनियन कार्बाइड कारखाने से अकस्मात मिथाइल आइसोसायनाईट अन्य रसायनों के रिसाव होने से कई जाने गईं थी. इस त्रासदी को 25 साल पूरे होने आए हैं, उस त्रासदी के वक्त जो जख्म यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली जहरीली हत्यारी गैस ने दिए थे वह आज भी ताजा हैं. हजारों लोगों को आधी रात हत्यारी गैस ने मौत की नींद सुला दिया, सैंकड़ो को जानलेवा बीमारी के आगोश में छोड़ गई यह जहरीली गैस. आज भी गैस के प्रभाव उन लोगों में साफ देखे और महसूस किए जा सकते हैं. उनकी यादों में वह आधी रात दहशत और दर्द की काली स्याही से इतिहास बनकर अंकित हो गई है. उसे न अब कोई बदल सकता है और न ही मिटा सकता.


25 साल बाद भी नहीं पीछा छोड़ रहा जहर :- भोपाल गैस त्रासदी के 25 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड का जहरीला प्रदूषण पीछा नहीं छोड़ रहा है। सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरंमेंट द्वारा किए गए परीक्षण में इस बात की पुष्टि हुई है कि फैक्ट्री और इसके आसपास के 3 किमी क्षेत्र के भूजल में निर्धारित मानकों से 40 गुना अधिक जहरीले तत्व मौजूद हैं। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने बताया कि फैक्ट्री के कचरे को लेकर भोपाल की जनता को आवाज उठानी चाहिए.


भूजल प्रदूषित :- मध्य प्रदेश प्रदूषण बोर्ड के अलावा कई सरकारी और ग़ैरसरकारी एजेंसियों ने पाया है कि फैक्ट्री के अंदर पड़े रसायन के लगातार ज़मीन में रिसते रहने के कारण इलाक़े का भूजल प्रदूषित हो गया है. कारखाने के आस-पास बसी लगभग 17 बस्तियों के ज़्यादातर लोग आज भी इसी पानी के इस्तेमाल को मजबूर हैं. एक सर्वेक्षण के मुताबिक़ इसी इलाक़े में रहने वाले कई लोग शारीरिक और मानसिक कमजोरी से पीड़ित है. गैस पीड़ितों के इलाज और उन पर शोध करने वाली संस्थाओं के मुताबिक़ लगभग तीन हज़ार परिवारों के बीच करवाए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि इस तरह के 141 बच्चे हैं जो या तो शारीरिक, मानसिक या दोनों तरह की कमजोरियों के शिकार हैं कई के होंठ कटे हैं, कुछ के तालू नहीं हैं या फिर दिल में सुराख हैं, इनमें से काफ़ी सांस की बीमारियों के शिकार हैं. दूसरी और इसे एक विडम्बना ही कहेंगे कि अब तक किसी सरकारी संस्था ने कोई अध्ययन भी शुरू नहीं किया है या न ये जानने की कोशिश की है कि क्या जन्मजात विकृतियों या गंभीर बीमारियों के साथ पैदा हो रही ये पीढियां गैस कांड से जुड़े किन्ही कारणों का नतीजा हैं या कुछ और. और ना ही शासन ने अब तक इस तरह के बच्चों को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की है. इन बस्तियों में नज़र दौडाने पर अधूरा पडा सरकारी काम अपने ढुलमुल रवैये की कहानी खुद बताता है.

कितने हुए प्रभावित :- जिस वख्त यह हादसा हुआ उस समय भोपाल की आबादी कुल 9 लाख के आसपास थी और उस समय लगभग 6 लाख के आसपास लोग युनियन कार्बाइड कारखाने की जहरीली गैस से प्रभावित हुए थे सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ लगभग 3000 लोग मारे गए थे. खैर ये थे सरकारी आंकड़े लेकिन यदि गैर सरकारी आंकड़ों की बात की जाए तो अब तक इस त्रासदी में मरने वालों की संख्या 20 हज़ार से भी ज़्यादा है. और लगभग 6 लाख लोग आज भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं.

क्या है सरकारी क़वायद :- 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात हुई गैस के रिसाव के बाद 1985 में भारत सरकार ने भोपाल गैस विभीषिका अधिनियम पारित कर जिसके बाद अमेरिका में यूनियन कार्बाइड के खिलाफ अदालती कार्यवाही शुरू हुई. लेकिन इससे पूर्व ही यूनियन कार्बाइड के मुखिया वारेन एंडरसन को 5 दिसंबर 1984 को ही भोपाल आने पर ज़मानत दे दी गई थी साथ देश से बाहर जाने अनुमति भी. अमेरिकी अदालत ने इसे क्षेत्राधिकार की बात करते हुए अदालती कार्यवाही भारत में ही चलाने के बात कही. जिसके पश्चात भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर फरवरी 1989 को यूनियन कार्बाइड से 470 मिलियन डालर यानि उस वख्त के हिसाब से लगभग सात सौ दस करोड़ इक्कीस लाख रूपए लेना स्वीकार कर लिया. उसमें से मवेशियों के लिए 113 करोड़ और बाकी की राशी लगभग 1 लाख 5 लज़ार पीडितो के लिए अनुमानित थी जिनको 1989 के आदेशों के मुताबिक़ 57 हज़ार रुपये प्रति व्यक्ति मिलाने वाले थे. जबकि उस दौरान तक पीड़ितों की संख्या बढाकर 5 लाख पहुँच गई थी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 31 अक्टूबर 2009 तक पांच हज़ार चौहत्तर हज़ार तीन सौ बहत्तर गई पीड़ितों को मुआवजा दिया जा चुका है वह भी सिर्फ 200 रुपये प्रतिमाह अंतरिम राहत के तौर पर. कुछ लोगों का यह कहना है कि गैस पीड़ितों को मुआवजे में कम राशि दी गई है मृतकों के परिवार को महज़ 1 लाख रुपये की दो किस्त देकर मामला दबा दिया गया. तो कुछ पीड़ितों को मात्र 25 हज़ार रुपये दे दिए गए.

न्याय को तरस रहे हैं पीड़ित :- 2-3 दिसंबर की दरमियानी रात जहां भोपाल में हवा में मौत घुली थी तो आज कई पीड़ितों जिंदगियों में मौत घुली हुए है एक नई पीढ़ी तैयार हो गई, सरकारें आई और चली गईं, लेकिन किसी को गैस पीड़ितों की सुध नहीं आई. मुआवजा तो दूर असहाय लोगों को ईलाज के लिए भी तरसना पड़ गया. गैस पीड़ितों के लिए एक केन्द्रीय आयोग गठित होना चाहिए, यह बात 25 सालों के बाद केन्द्र सरकार को समझ में आई है. हालांकि केन्द्रीय आयोग बनने में भी अभी कई पेंच हैं. बहरहाल हालात अभी भी उतने ही खराब हैं, जितने कि हादसे के बाद अगली सुबह में थे. गैस जनित बीमारियों से आज करीब सवा लाख लोग जूझ रहे हैं और प्रभावित लोगों की औसत उम्र महज 46-47 वर्ष रह गई है. टी.बी. एवं कैंसर जैसी भयानक बीमारियां लोगों को काल के गाल में धकेल रही हैं. हैण्डपंप पानी के स्थान ज़हर उगल रहे हैं और मजबूरन लोगों को यही पानी पीना पड़ता है. हालांकि पानी सप्लाई का कुछ जरूर हुआ है, लेकिन अभी कसर बाकी है. पानी सप्लाई कर देना मुद्दा नहीं है, मुद्दा पीड़ितों के दीर्घकालीन अस्तित्व और पर्यावरण से अधिक जुड़ा है. इतने वर्षों के बाद भी सरकार अभी यह फैसला नहीं कर पाई है कि कारखाने के भीतर दबे 10 हजार टन रसायनिक कचरे का निपटान कैसे किया जाए. हालात यह हो गए हैं कि आज करीब 3 किलोमीटर का क्षेत्र घातक रसायनों के जमीन में रिसाव के कारण स्थिती संवेदनशील हो चुकी है, जो स्वास्थ्य के लिहाज से किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता.

केंद्र नहीं दे रहा मदद :- नगरिय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर का कहना है कि गैस त्रासदी एक्ट 1985 के अंतर्गत केंद्र सरकार ने गैस पीड़ितों को मदद देने की पूरी जिम्मेदारी ली थी. इसके बावजूद 1999 से अब तक कोई राशि केंद्र सरकार ने नहीं दी है. राज्य सरकार गैस पीड़ितों पर 250 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है. राज्य सरकार ने 982 करोड़ रुपए की कार्य योजना केंद्र को भेजी है जो मंजूर की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार एक स्मारक भी बनाना चाहती है. इसके लिए राज्य सरकार ने 11 करोड़ रुपए भी मंजूर किए हैं.

बहरहाल अफसोस की बात तो यह है कि इतना बड़ा हादसा होने के बाद इसके ज़िम्मेदारों को कोई सजा नहीं मिली सज़ा तो दूर इस हादसे से प्रभावित हुए लोगों की सही न्याय भी नहीं मिला. जबकि इस हादसे में सबसे ज़्यादा प्रभावित ऐसे लोग थे जो रोज़ कुआ खोदने और रोज़ पानी पीने का काम किया करते थे. काफ़ी विरोध के बाद 1992 में भोपाल की एक अदालत ने वारेन एंडरसन के खिलाफ वारंट जारी कर सीबीआई से इस मामले में कार्यवाही करने को कहा था. 2001 से यूनियन कार्बाइड पर मालिकाना डाओ केमिकल्स अमेरिका का है जिसने अभी तक कारखाना परिसर से जहरीला रासायनिक कचरा हटाने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. और आज भी 25 वर्षों से गैस पीड़ित इस ज़ख्म के साथ दर्द भरा जीवन जीने को मजबूर है और मरहम को तरस रहे हैं इसे हमारे देश की विडम्बना कहें या फिर इस देश के निवासियों का दुर्भाग्य, सरकार 11 करोड़ रुपये खर्च कर स्मारक बनाने की बात तो करती है लेकिन भ्रष्टाचार में डूबे सरकारी तंत्र में सुधार लाकर वास्तविक गैस पीड़ितों न्याय दिलाने की दिशा में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठा सकती.

November 10, 2009

भोपाल गैस त्रासदी: आम लोगों के लिए खुलेगा युनियन कार्बाइड कारखाना


कमल सोनी >>>> तीन दिसंबर 1984 से लेकर अब तक भोपाल गैस त्रासदी को गुजरे हुए 25 वर्ष होने वाले हैं, लेकिन आज भी इस इलाके में जाने पर लगता है मानों कल की ही बात हो. आज 25 साल बाद भी हर सुबह दुर्घटना वाले दिन की अगली सुबह ही नजर आती है. यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से ज़हरीले गैस रिसाव और रसायनिक कचरे के कहर का प्रभाव आज भी बना हुआ है। बच्चे अपंग होते रहे, मां के दूध में ज़हरीले रसायन पाये जाने की बात भी सामने आई, चर्म रोग, दमा, कैंसर और न जाने कितनी बीमारियां धीमा ज़हर बनकर आज भी गैस प्रभावितों को अपनी चपेट में ले रही हैं।


मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आज से 25 वर्ष पहले हुए दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक हादसे को लोग अभी तक नहीं भूल पाए हैं, लेकिन अब आम लोग उस यूनियन कार्बाइड कारखाने को करीब से देख सकेंगे, जिससे हुए गैस रिसाव से सैकड़ों लोग मारे गए थे। आगामी 3 दिसंबर को भोपाल गैस त्रासदी को 25 साल पूरे हो जाएंगे। यह कारखाना कैसा है, हादसे के वक्त कहां से गैस रिसी थी, मौत का वह कुआं कौन-सा है जिसमें से कई शव निकाले गए थे, इसे आम लोगों ने अब तक देखा नहीं है। यह कारखाना 20 नवंबर से पांच दिसंबर तक आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा। इसके लिए कारखाने से 25 फीट दूर बेरीकेट्स लगाए जाएंगे। प्रदेश के गैस त्रासदी एवं पुनर्वास मंत्री बाबूलाल गौर ने प्रशासनिक अमले के साथ सोमवार शाम कारखाने का निरीक्षण किया।


गौर का कहना है कि कारखाने को आम लोगों के लिए खोलने के पीछे मकसद यह है कि लोग जान सकें कि कारखाने में खतरनाक रासायनिक कचरा नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि विभिन्न वैज्ञानिक संगठन कचरे का परीक्षण कर स्पष्ट कर चुके हैं कि कारखाने में मौजूद अपशिष्ट खतरनाक नहीं है। इतना ही नहीं कारखाना परिसर में लगे वृक्ष और घास-फूस भी अपशिष्ट के खतरनाक नहीं होने की पुष्टि करते हैं।


क्या थी त्रासदी :- मध्य प्रदेश के भोपाल शहर मे 3 दिसम्बर सन् 1984 की रात भोपाल वासियों के लियी काल की रत बनाकर सामने आई इस दिन एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। ३ दिसम्बर १९८४ को युनियन कार्बाइड कारखाने से अकस्मात मिथाइल आइसोसायनाईट अन्य रसायनों के रिसाव होने से कई जाने गईं थी


न्याय को तरस रहे हैं पीड़ित :- एक नई पीढ़ी तैयार हो गई, सरकारें आई और चली गईं, लेकिन किसी को गैस पीड़ितों की सुध नहीं आई। मुआवजा तो दूर असहाय लोगों को ईलाज के लिए भी तरसना पड़ गया। गैस पीड़ितों के लिए एक केन्द्रीय आयोग गठित होना चाहिए, यह बात 25 सालों के बाद केन्द्र सरकार को समझ में आई है। हालांकि केन्द्रीय आयोग बनने में भी अभी कई पेंच हैं। बहरहाल हालात अभी भी उतने ही खराब हैं, जितने कि हादसे के बाद अगली सुबह में थे। गैस जनित बीमारियों से आज करीब सवा लाख लोग जूझ रहे हैं और प्रभावित लोगों की औसत उम्र महज 46-47 वर्ष रह गई है। टी।बी. एवं कैंसर जैसी भयानक बीमारियां लोगों को काल के गाल में धकेल रही हैं। हैण्डपंप पानी के स्थान ज़हर उगल रहे हैं और मजबूरन लोगों को यही पानी पीना पड़ता है। हालांकि पानी सप्लाई का कुछ जरूर हुआ है, लेकिन अभी कसर बाकी है। पानी सप्लाई कर देना मुद्दा नहीं है, मुद्दा पीड़ितों के दीर्घकालीन अस्तित्व और पर्यावरण से अधिक जुड़ा है। इतने वर्षों के बाद भी सरकार अभी यह फैसला नहीं कर पाई है कि कारखाने के भीतर दबे 10 हजार टन रसायनिक कचरे का निपटान कैसे किया जाए। हालात यह हो गए हैं कि आज करीब 3 किलोमीटर का क्षेत्र घातक रसायनों के जमीन में रिसाव के कारण स्थिती संवेदनशील हो चुकी है, जो स्वास्थ्य के लिहाज से किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता।


केंद्र नहीं दे रहा मदद :- गौर ने बताया कि गैस त्रासदी एक्ट 1985 के अंतर्गत केंद्र सरकार ने गैस पीड़ितों को मदद देने की पूरी जिम्मेदारी ली थी। इसके बावजूद 1999 से अब तक कोई राशि केंद्र सरकार ने नहीं दी है। राज्य सरकार गैस पीड़ितों पर 250 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। राज्य सरकार ने 982 करोड़ रुपए की कार्य योजना केंद्र को भेजी है जो मंजूर की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार एक स्मारक भी बनाना चाहती है। इसके लिए राज्य सरकार ने 11 करोड़ रुपए भी मंजूर किए हैं।



October 16, 2009

पंचकल्याण पर्व दीपावली (दीपावली विशेष)

सभी बलोगर मित्रों को कमल सोनी की ओर से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..................
भोपाल (कमल सोनी) 16/अक्टूबर/2009/(ITNN)>>>> भारत में पर्व संस्कृति की दीर्घ परंपरा में दीपावली जैसा कोई दूसरा पर्व नहीं है। दीपावली पांच दिनों का श्रृंखलाबद्ध माननीय त्योहार है। कार्तिकमास कृष्णपक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा अमावस्या और शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तथा द्वितीया तक आयोजित यह पर्व केवल आगम-निगम का सम्मेलन ही नही होता बल्कि जीवन के तमाम कर्मपक्ष इन्हीं पांच दिनो में अनुस्यूत हो उठते है। कार्तिक की अमावस्या को दीवाली कहा जाता है। इस दिन देश भर में चौतरफा दीपमालाएं प्रज्जवलित की जाती है। नदी तटों, देव मंदिरों, चौराहों और गलियो में जलते हुए दीपक अमावस्या के निविड़ अंधकार को पराजित कर खिलखिला उठते है। इस दिन घूरे के भी दिन बहुरते है। छोटे-बड़े सभी एक रूप। यह है दीपावली का ममैव पक्ष। भ्रतहरि का कहना है, 'कृतिनाम् अपि स्फुरति एष निर्मल विवेद दीपक:' अर्थात दीपावली मनाने वाले कृतीजन मिट्टी के दीए तो जलाते ही हैं, साथ ही वे अपने विवेक-दीपक भी जला लेते है। दीपावली पंचकल्याण पर्व है। इसे पांच दिनों के श्रृंखलाबद्ध कृत्यों द्वारा सम्पन्न किया जाता है। इसका मुख्य त्योहार है अमावस्या, परन्तु अमावस्या के दो दिन पहले से दो दिन बाद तक यह पर्व मनाया जाता है। दो दिन पहले के पर्व है - धनतेरस और नरक चतुर्दशी।
धनतेरस :- धनतेरस दीपावली की शुरुआत होती है। इस दिन क्रेता-विक्रेताओं का उत्तोजक संगमन होता है। दीपवृक्षों और दीप प्रखंडिकाओं से दुकानें सजाई जाती है। आजकल बिजली की सजावटे कलात्मक बाजारों को चुनौतियां देने की कोशिश कर रही है परन्तु प्राचीनता अपना अस्तित्व कायम रखना चाहती है। ग्लोबल बाजार रहे तो रहे। धनतेरस के बाजार में स्वर्ण, रजत पात्र से लेकर स्टेनलेस स्टील तक के पात्रों की बिक्री हो जाती है। दीपावली को शिष्टाचारी भक्त लगभग आधी रात को क्रीत पात्रों सहित लक्ष्मी पूजन करते है। लक्ष्मी और गणेश की स्थापना करते हैं। बाएं गणेश दाहिने लक्ष्मी। धनतेरस की पूजा का अर्थ ही है लक्ष्मी का आवाहन। गणेश स्थायी सुरक्षा देने वाले देवता माने जाते है। इस प्रकार धनतेरस दीपावली के उत्सव को काफी सघन बना देता है।
नरक चौदस :- इसे नरक चतुर्दशी इसलिए कहा जाता है कि इसी दिन घर का सारा कूड़ा-कतवार बाहर निकालकर एक स्थान पर फेंक देते है। शाम होते-होते कतवार के उस ढेर पर घर के सबसे बड़े दीए को कड़ुवा तेल से भरकर चारों मुंह जला देते है। किसी भी ओर से नरकासुर के आने की संभावना नहीं रह जाती। कार्तिक की कृष्णा चतुर्दशी 'यम' का दिन होती है। यम और यमी की पूजा दीपावली को वैदिक परंपरा से जोड़ देती है। पद्मपुराण, भविष्य पुराण, गरुड़ पुराण और स्कंद पुराण जैसे कई दूसरे पुराणों में दीपावली पर्व की राष्ट्रीय धारा पर बड़ी-बड़ी कथाएं लिखी गई है।
दीपावली :- धनतेरस और नरक चतुर्दशी पूर्व पर्वो के बाद कृषिकर्मा दीपावली आती है। दीपावली को महानिशा और शुभ रात्रि माना गया है। इस रात में सूर्य और चंद्रमा की युति शुक्र की तुला राशि में होती है जो कि भौतिक सुखों और संपन्नता को प्रदान करती हैं। श्रीसूक्त और भविष्यपुराण के अनुसार लक्ष्मीजी का वास बिल्ववृक्ष में माना गया है। दीपावली की रात के तीसरे और चौथे प्रहर में मंत्र और यंत्रों को सिद्ध करके संपन्नता प्राप्त की जा सकती है।
प्रात:काल ही मिट्टी के दीए और काजल पारने की मृत्तिका घटी खरीदे जाते है। दिन में दीपावली का विशेष पकवान बनता है। विशेष इस अर्थ में कि सूरन का भर्ता और नए आलू के साथ नए बैगन की सब्जी अवश्य बनाते है। यहा यह कह देना असंगत न होगा कि सूरन और बैगन आर्यकालीन द्रविड़ों के मुख्य भोग्य थे, जिन्हे वे यम-दिशा में उगाते थे। बाद में आर्यो ने भी इन्हे खाना शुरू कर दिया। दीपावली पर ओदन और उड़द का बड़ा का पकवान निश्चित बनता है। दीपावली पर ऋग्वेदिक आर्यो का सबसे प्रिय खेल द्यूतक्रीड़ा था। महाभारत का पूरा युद्ध ही द्यूत-क्रीड़ा का परिणाम माना गया है। ये सभी कर्म निगमवादी है, परन्तु दीपावली को आगमवादियों ने भी कम महत्व नहीं दिया है। दीपावली की आधी रात को तंत्रसाधना का बहुविधान किया गया है। दीपावली की आधी रात के करीब घंटी में पारा गया काजल पूरे घर को लगाया जाता है। इससे आंख की रोशनी तो बढ़ती है है तांत्रिक साधकों की नजर भी नहीं लगती। दीपावली की सारी रात श्वान निद्रा तक सीमित रहती है क्योंकि उषाकाल होते ही घर की कोई स्त्री शूर्पवादन करते हुए घर के कोने-कोने से दरिद्रता का निष्काषन और ईश्वरता का प्रवेशन करती है।
दीपावली पर प्रचलित कथा :-
भगवान राम अयोध्या लौटें : 14 साल के वनवास के बाद भगवान राम, रावण का वध करकर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस आये थे इसी दिन अयोध्या अपने राजा की वापसी मनाता है, दीपावली के दिन अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर भगवान राम का स्वागत किया था एक युद्ध जिसमें भगवान राम ने रावण को मार डाला था
अन्नकूट :- दीपावली की रात बीती और शुक्ल प्रतिपदा लगते ही अन्नकूट की सजावट प्रारंभ हो जाती है। अन्नकूट देवता के भोगोपरांत प्राय: सभी मंदिरों, घरों में दर्शन-पूजन और कथा श्रवण तथा दीपदान का विधान होता है। अन्नकूट के भोग के लिए छप्पन प्रकार के व्यंजन बनते है। अन्नकूट के दिन भगवान को कच्चा भोग लगाया जाता है यानि आज के दिन अनाज के व्यंजन बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है आज के दिन गोवर्धन पूजा भी की जाती है, यही वह दिन है जो कृष्ण इंद्र हार के रूप में मनाया जाता है. आज ही के दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया था इसीलिये अन्नकूट के दिन कृष्ण मंदिरों में गोवर्धन पूजा का विशेष आयोजन भी किया जाता है
भैयादूज :- दीपावली के पाँच दिन चलने वाले महोत्सव में शामिल है 'भाई दूज' उत्सव। भैयादूज अन्नकूट के दूसरे दिन पड़ता है। हिंदू समाज में भाई-बहन के अमर प्रेम के दो ही त्योहार हैं। पहला है रक्षा बंधन जो श्रावण मास की पूर्णिमा को आता है तथा दूसरा है भाई दूज जो दीपावली के तीसरे दिन आता है। भाई दूज को यम द्वितीया भी कहते हैं। परम्परा है कि रक्षाबंधन वाले दिन भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देकर उपहार देता है और भाई दूज वाले दिन बहन अपने भाई को तिलक लगाकर, उपहार देकर उसकी लम्बी उम्र की कामना करती है। रक्षा बंधन वाले दिन भाई के घर तो, भाई दूज वाले दिन बहन के घर भोजन करना अति शुभ फलदाई होता है।
भाई दूज की कथा : - सूर्यदेव की पत्नी छाया की कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को खड़ा देखकर हर्ष-विभोर हो गई। प्रसन्नचित्त हो भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर माँगने को कहा। तब बहन ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहाँ भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहे। यमराज 'तथास्तु' कहकर यमपुरी चले गए।
दीपावली(विशेष संयोग) "लक्ष्मी के साथ सूर्य, शनि को भी पूजें" :- दीपावली पर इस बार तुला संक्रांति और शनि अमावस्या भी पड़ रही है। अतरू जो लोग लोहा या उससे जुड़ा व्यापार करते हैं उनके लिए यह लाभदायक है। ज्योति पर्व पर इस बार जो योग बन रहे हैं, वह सभी के लिए अच्छे हैं। ज्योतिषाचार्य आशु गुरु कहते हैं कि दीपावली शनिवार को पड़ रही है, अतरू शनि से संबंधित लोगों के लिये यह लाभ दायक है। जो लोग शेयर, जमीन, लोहा आदि से जुड़ा व्यापार करते हैं, उनके लिए यह शुभदायक होगी। पूजन सायं 07:22 बजे से 09:15 बजे तक किया जायेगा। इस दौरान वृष लगन होगी। जो लोग सिद्घि करना चाहते हैं उनके लिए रात्रि 01:52 से लेकर 04:05 तक है।
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने लोगों का भ्रम दूर किया। बताया कि 17 अक्टूबर को ही दीपावली पूजन है, क्योंकि इस दिन दोपहर 12:37 से अमावस्या लग रही है। महालक्ष्मी पूजन रात्रि को ही होता है, इसलिए दूसरे दिन यह तिथि रात्रि में नहीं होगी। उन्होंने बताया कि दक्षिणावर्ती शंख में चांदी का सिक्का और साबुत चावल, गौरीशंकर रुद्राक्ष, स्फटिक श्रीयंत्र को एक साथ रखकर दीपावली पूजन करें। इससे सभी मनोकामना पूर्ण होंगी।
ज्योतिष विभाग की पूर्व अध्यक्ष डा:किरन जेटली ने बताया कि 17 अक्टूबर दोपहर 11:30 बजे से तुला संक्रांति भी है। प्रातरू सूर्य की उपासना से सुख-समृद्घि आती है। इस दिन प्रातरू गेंहू, तांबे का बर्तन, लाल फूल आदि दान करना लाभदायक है। उनके अनुसार प्रदोष काल (संध्या समय) सायं 05:45 से 11:35 बजे तक मुहुर्त सर्वश्रेष्ठ है।
दीपावली की रात्रि को निम्न उपाय भी करें :-
>> इस दिन श्रीयंत्र को स्थापित कर गन्ने के रस और अनार के रस से अभिषेक करके लक्ष्मी मंत्रों का जाप करें।
>> दीपावली की रात्रि को पीपल के पत्ते पर दीपक जलाकर नदी में प्रवाहित करें। उसके दूर जाने की प्रतीक्षा करें। इससे आर्थिक संकट दूर होंगे।
>> लक्ष्मी पूजन के समय अपने बहीखातों व कलम-दवात का पूजन करना चाहिए।
>> दीपावली को रात्रि में हात्थाजोड़ी को सिंदूर में भरकर तिजोरी में रखने से धन में वृद्धि होती है।
>> सात गोमती चक्र और काली कोड़ियों को व्यापार वाले स्थान में रखने से निरंतर व्यापार में वृद्धि होती रहती है।
>> घर पर हमेशा बैठी हुई लक्ष्मीजी की और व्यापारिक स्थल पर खड़ी हुई लक्ष्मीजी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।
>> लक्ष्मीजी को गन्ना, अनार, सीताफल अवश्य चढ़ाएं।
>> इस दिन पूजा स्थल में एकाक्षी नारियल की स्थापना करें। यह साक्षात लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। जिस घर में एकाक्षी नारियल की पूजा होती हो, वहां लक्ष्मी का स्थाई वास होता है।
>> दीपावली की रात्रि में श्रीसूक्त, कनकधारा स्तोत्र एवं गोपाल सहस्रनाम का पाठ करने से लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

October 10, 2009

ओबामा को नोबेल, क्या नोबेल पर भी राजनीति हावी ?

भोपाल (कमल सोनी) 10/अक्टूबर/2009 >>>> अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को वर्ष 2009 का शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा लेकिन सबसे अहम् सवाल यह है कि अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को नोबेल क्यों नहीं मिला जबकि ओबामा खुद महात्मा गांधी को "रियल हीरो" मानते है ओबामा को वर्ष 2009 का शांति का नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा से फिर एक नया विवाद उठ खडा हुआ है इससे पूर्व भी शांति के लिए दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार पर विवाद उठ चुके हैं वर्षो से इनकी चयन प्रक्रिया पर उंगली उठती रही है। यूं कहें कि शांति के नोबेल पुरस्कार और विवादों का चोली-दामन का साथ है तो गलत न होगा। ख़ास बात तो यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा स्वयं नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उनके चयन पर ‘आश्चर्यचकित’ हैं और उन्हें इस पर संदेह है कि क्या वह इस सम्मान के हकदार हैं।
हैरत में डालने वाली एक ख़ास बात तो यह है कि अभी उन्हें पद संभाले हुए एक साल भी नहीं हुआ फिर एक साल में उन्होंने ऐसा क्या कर दिया कि उन्हें 2009 का शांति का नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा कर दी गई इसमें कोई दो मत नहीं कि ओबामा के प्रयास सराहनीय नहीं हैं नोबेल पुरस्कारों के लिए बनी निर्णायक समिति ने अपने बयान में कहा है कि बराक ओबामा को यह पुरस्कार देने का निर्णय उनके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक प्रयासों को विशेष गति देने के लिए किया गया है
इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए ओबामा के चुने जाने की खबर अमेरिकियों के साथ ही शेष विश्व के लोगों के लिए भी चौंका देने वाली ही है क्योंकि उनका नाम न तो संभावितों की सूची में कहीं था और न ही नोबेल शांति पुरस्कार के दावेदारों में उनके बारे में कोई अटकल थी। ओबामा ऐसे तीसरे पदस्थ राष्ट्रपति हैं जिन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला है। वर्ष 1906 में टी. रूजवेल्ट और 1919 में वूड्रो विल्सन को भी नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है। वर्ष 2002 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर को भी यह पुरस्कार मिला था।
यहाँ एक ख़ास बात और गौर करने लायक यह है कि अमेरिका को भले ही कई लड़ाइयों के लिए दोषी ठहराया जाता रहा हो, लेकिन शांति के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वालों में सबसे आगे अमेरिकी ही हैं। 1901 में शुरुआत से अब तक करीब दो दर्जन अमेरिकियों को यह पुरस्कार मिल चुका है।
एक और रोचक तथ्य यह है कि ओबामा ने 20 जनवरी 2009 को अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में काम शुरू किया। नोबेल शांति पुरस्कार के नाम लेने की अंतिम तारीख 1 फरवरी 2009 थी। यानी 11 दिन के उनके कार्यकाल पर उन्हें विश्व में अमन स्थापित करने का सम्मान दे दिया गया! यही नहीं, निर्णायकों ने अपने वोट जून में दे दिए थे- यानी तब भी चार माह हुए थे ओबामा के उन प्रयासों को, जो किसी और को तो खैर दिखे तक नहीं, किन्तु नोबेल कमेटी को ‘असाधारण, अद्वितीय’ लगे। सम्मान की घोषणा वाले दिन तक भी वे नौ माह पुराने ही ‘शांति के क्रांतिकारी’ हैं।
अंततः अब हर आदमी के दिल में एक ही सवाल जन्म ले रहा है कि अब कहीं यह पुरस्कार राजनीति से प्रेरित तो नहीं हो गया ?
सन १९८० से शांति के लिए नोबल पुरस्कार विजेताओं की सूची :-
<><><> 2009: यूं एस प्रेसिडेंट बराक ओबामा
<><><> 2008: मर्त्ति आहतिसाड़ी
<><><> 2007: इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज, अल गोरे
<><><> 2006: मुहम्मद युनुस, ग्रामीण बैंक
<><><> 2005: इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेन्सी, मोहमद एल्बरादी
<><><> 2004: वंगारी माथाई
<><><> 2003: शिरीन एबादी
<><><> 2002: फोर्मेर यूं एस प्रेजिडेंट जिमी कार्टर
<><><> 2001: यूनाइटेड नेशन्स, कोफी अन्नान
<><><> 2000: किम डे-ज़ंग
<><><> 1999: मेडेसिंस साँस फ़्रन्तियरर्स
<><><> 1998: जॉन ह्युमे, डेविड त्रिम्ब्ल
<><><> 1997: इंटरनेशनल काम्पैन तो बैन लैंडमाइंस, जोडी विलियम्स
<><><> 1996: कार्लोस फिलिपे ज़िमेनेस बेलो, जोसे रामोस-होर्ता
<><><> 1995: जोसफ रोटब्लाट, पुगवाश कोंफ्रेंस ऑन साइंस एंड वर्ल्ड अफेयर्स
<><><> 1994: यासेर अराफात, शिमोन पेरेस, यित्ज्हक राबिन
<><><> 1993: नेल्सन मंडेला, ऍफ़.डब्ल्यू. दे क्लर्क
<><><> 1992: रिगोबेर्ता मंचू तुम
<><><> 1991: औंग सान सू क्यी
<><><> 1990: मिखाइल गोर्बाचेव
<><><> 1989: 14th दलाई लामा
<><><> 1988: यूएन पीसकीपिंग फोर्सेस
<><><> 1987: ऑस्कर अरिअस सांचेज़
<><><> 1986: एली विएसेल
<><><> 1985: इंटरनेशनल फिजिसियन फॉर द प्रिवेंशन ऑफ़ न्यूक्लियर वार
<><><> 1984: डेसमंड टूटू
<><><> 1983: लेक वालेसा
<><><> 1982: अल्वा मिर्डल, अलफोंसो गार्सिया रोब्ल्स
<><><> 1981: ऑफिस ऑफ़ द यूं एन हाई कमीश्नर फॉर रिफ्यूजी
<><><> 1980: अदोल्फो पेरेज़ एस्कुइवेल

October 2, 2009

क्या गांधी को सिर्फ गोडसे ने मारा ?

आज दो अक्टूबर यानि गांधी जयंती वो दिन जिस दिन अहिंसा के पुजारी ने जन्म लेकर इस धरती को पुण्य किया था लेकिन आज २ अक्टूबर का दिन महज़ एक औपचारिकता बनकर ही रह गया है राजनेता राष्टपिता को श्रद्धा सुमन अर्पित कर गांधी विचारों को अपनाने का संकल्प लेते हैं यह सिलसिला काफी तो समय से चल रहा है कल से फिर धर्म, जात और क्षेत्रीयता के नाम पर देशवासियों को बाँट कर अपने स्वार्थ की रोटियाँ सेकना शुरू कर देगे स्कूल, कॉलेज के छात्र छात्राएं हों या फिर, कामकाजी वर्ग, या फिर व्यवसाई वर्ग, हट व्यक्ति दो अक्तूबर को गाँधी जयंती से ज्यादा छुट्टी के दिन के रूप में जानता हैं । आज की आधुनिक पीढ़ी गाँधी के विचारों से पूरे तरह अनजान है । यही वजह है कि अहिंसा के पुजारी के इस देश में हिंसा अपने चरम पर है स्वदेशी अपनाने का नारा देने वाले गांधी के देशवासी अपनी संस्कृति छोड़ विदेशी को अपनाने में जुटे हुए हैं
गांधी के विचारों से अनजान है यही वजह है कि उनमें धैर्य नही है, आज की हिंसक घटनाओं का सीधा असर देश की ऍम जनता पर पद रहा है लेकिन किसी को क्या ? गांधी जयन्ती तो हर साल आती है ! राजनैतिक पार्टियों एवं अन्य संगठनो का नजरिया बिल्कुल साफ है, मांगे मनवानी हो शहर बंद कर दो, सरकार से नाराजगी है, नेताओ के पूतले फूंक दो, सरकार से बात मनवानी है, बसे फूंक दो । विरोध प्रदर्शन करना है रेलें फूंक दो । हम ऐसे ही हैं और ऐसे ही रहेंगे हमें क्या ? "ये फूंक दो-जला दो प्रथा" गांधी के देश की संस्कृति बनती जा रही है । कौन कहता है गांधी को गोडसे ने मारा, आज हर दिन हर पल, चौक चौराहों से लेकर सदन तक गांधी के विचारों और आदर्शों की क्रमिक हत्या होती है । और वो हत्याएं करने वाले भी हम में से ही एक हैं "जैसे राम से बड़ा राम का नाम" वैसे ही "गांधी से बड़े गांधी के विचार" जिनकी हमारे देश में हर रोज़ हत्या होती है क्या हम कह सकते हैं ? कि - गांधी को सिर्फ गोडसे ने मारा