आज दो अक्टूबर यानि गांधी जयंती वो दिन जिस दिन अहिंसा के पुजारी ने जन्म लेकर इस धरती को पुण्य किया था लेकिन आज २ अक्टूबर का दिन महज़ एक औपचारिकता बनकर ही रह गया है राजनेता राष्टपिता को श्रद्धा सुमन अर्पित कर गांधी विचारों को अपनाने का संकल्प लेते हैं यह सिलसिला काफी तो समय से चल रहा है कल से फिर धर्म, जात और क्षेत्रीयता के नाम पर देशवासियों को बाँट कर अपने स्वार्थ की रोटियाँ सेकना शुरू कर देगे स्कूल, कॉलेज के छात्र छात्राएं हों या फिर, कामकाजी वर्ग, या फिर व्यवसाई वर्ग, हट व्यक्ति दो अक्तूबर को गाँधी जयंती से ज्यादा छुट्टी के दिन के रूप में जानता हैं । आज की आधुनिक पीढ़ी गाँधी के विचारों से पूरे तरह अनजान है । यही वजह है कि अहिंसा के पुजारी के इस देश में हिंसा अपने चरम पर है स्वदेशी अपनाने का नारा देने वाले गांधी के देशवासी अपनी संस्कृति छोड़ विदेशी को अपनाने में जुटे हुए हैं
गांधी के विचारों से अनजान है यही वजह है कि उनमें धैर्य नही है, आज की हिंसक घटनाओं का सीधा असर देश की ऍम जनता पर पद रहा है लेकिन किसी को क्या ? गांधी जयन्ती तो हर साल आती है ! राजनैतिक पार्टियों एवं अन्य संगठनो का नजरिया बिल्कुल साफ है, मांगे मनवानी हो शहर बंद कर दो, सरकार से नाराजगी है, नेताओ के पूतले फूंक दो, सरकार से बात मनवानी है, बसे फूंक दो । विरोध प्रदर्शन करना है रेलें फूंक दो । हम ऐसे ही हैं और ऐसे ही रहेंगे हमें क्या ? "ये फूंक दो-जला दो प्रथा" गांधी के देश की संस्कृति बनती जा रही है । कौन कहता है गांधी को गोडसे ने मारा, आज हर दिन हर पल, चौक चौराहों से लेकर सदन तक गांधी के विचारों और आदर्शों की क्रमिक हत्या होती है । और वो हत्याएं करने वाले भी हम में से ही एक हैं "जैसे राम से बड़ा राम का नाम" वैसे ही "गांधी से बड़े गांधी के विचार" जिनकी हमारे देश में हर रोज़ हत्या होती है क्या हम कह सकते हैं ? कि - गांधी को सिर्फ गोडसे ने मारा
गांधी के विचारों से अनजान है यही वजह है कि उनमें धैर्य नही है, आज की हिंसक घटनाओं का सीधा असर देश की ऍम जनता पर पद रहा है लेकिन किसी को क्या ? गांधी जयन्ती तो हर साल आती है ! राजनैतिक पार्टियों एवं अन्य संगठनो का नजरिया बिल्कुल साफ है, मांगे मनवानी हो शहर बंद कर दो, सरकार से नाराजगी है, नेताओ के पूतले फूंक दो, सरकार से बात मनवानी है, बसे फूंक दो । विरोध प्रदर्शन करना है रेलें फूंक दो । हम ऐसे ही हैं और ऐसे ही रहेंगे हमें क्या ? "ये फूंक दो-जला दो प्रथा" गांधी के देश की संस्कृति बनती जा रही है । कौन कहता है गांधी को गोडसे ने मारा, आज हर दिन हर पल, चौक चौराहों से लेकर सदन तक गांधी के विचारों और आदर्शों की क्रमिक हत्या होती है । और वो हत्याएं करने वाले भी हम में से ही एक हैं "जैसे राम से बड़ा राम का नाम" वैसे ही "गांधी से बड़े गांधी के विचार" जिनकी हमारे देश में हर रोज़ हत्या होती है क्या हम कह सकते हैं ? कि - गांधी को सिर्फ गोडसे ने मारा
2 comments:
गाँधी को थोडा थोडा सबने मारा ...!!
गाँधी के शरीर को गोडसे ने मारा, यह बात १००% सच है. मगर भारत के निधर्मी नेताओं ने गाँधी के विचारों को सिर्फ मारा ही नही, तो उनका
दूरउपयोग करते हुवे भारत की जनता को बेसहारा बेहाल , मुन्नाभाई बनाया .
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