October 2, 2009

क्या गांधी को सिर्फ गोडसे ने मारा ?

आज दो अक्टूबर यानि गांधी जयंती वो दिन जिस दिन अहिंसा के पुजारी ने जन्म लेकर इस धरती को पुण्य किया था लेकिन आज २ अक्टूबर का दिन महज़ एक औपचारिकता बनकर ही रह गया है राजनेता राष्टपिता को श्रद्धा सुमन अर्पित कर गांधी विचारों को अपनाने का संकल्प लेते हैं यह सिलसिला काफी तो समय से चल रहा है कल से फिर धर्म, जात और क्षेत्रीयता के नाम पर देशवासियों को बाँट कर अपने स्वार्थ की रोटियाँ सेकना शुरू कर देगे स्कूल, कॉलेज के छात्र छात्राएं हों या फिर, कामकाजी वर्ग, या फिर व्यवसाई वर्ग, हट व्यक्ति दो अक्तूबर को गाँधी जयंती से ज्यादा छुट्टी के दिन के रूप में जानता हैं । आज की आधुनिक पीढ़ी गाँधी के विचारों से पूरे तरह अनजान है । यही वजह है कि अहिंसा के पुजारी के इस देश में हिंसा अपने चरम पर है स्वदेशी अपनाने का नारा देने वाले गांधी के देशवासी अपनी संस्कृति छोड़ विदेशी को अपनाने में जुटे हुए हैं
गांधी के विचारों से अनजान है यही वजह है कि उनमें धैर्य नही है, आज की हिंसक घटनाओं का सीधा असर देश की ऍम जनता पर पद रहा है लेकिन किसी को क्या ? गांधी जयन्ती तो हर साल आती है ! राजनैतिक पार्टियों एवं अन्य संगठनो का नजरिया बिल्कुल साफ है, मांगे मनवानी हो शहर बंद कर दो, सरकार से नाराजगी है, नेताओ के पूतले फूंक दो, सरकार से बात मनवानी है, बसे फूंक दो । विरोध प्रदर्शन करना है रेलें फूंक दो । हम ऐसे ही हैं और ऐसे ही रहेंगे हमें क्या ? "ये फूंक दो-जला दो प्रथा" गांधी के देश की संस्कृति बनती जा रही है । कौन कहता है गांधी को गोडसे ने मारा, आज हर दिन हर पल, चौक चौराहों से लेकर सदन तक गांधी के विचारों और आदर्शों की क्रमिक हत्या होती है । और वो हत्याएं करने वाले भी हम में से ही एक हैं "जैसे राम से बड़ा राम का नाम" वैसे ही "गांधी से बड़े गांधी के विचार" जिनकी हमारे देश में हर रोज़ हत्या होती है क्या हम कह सकते हैं ? कि - गांधी को सिर्फ गोडसे ने मारा

July 21, 2009

सदी का सबसे लंबा सूर्यग्रहण कल, वैज्ञानिकों में खासा उत्साह


चांद-सितारों और खगोलीय घटनाओं में दिलचस्पी रखने वालों सहित तमाम लोगों खासा उत्साह है, क्योंकि बुधवार २२ जुलाई को इस सदी का सबसे लंबे समय तक चलने वाला खग्रास सूर्यग्रहण देखा जा सकेगा। करीब 360 वर्ष बाद किसी क्षेत्र विशेष में हो रही इस अद्भुत खगोलिया घटना को देखने के लिए पूरे देश में रोमांच की स्थिति है। दिन की शुरुआत के साथ ही शुरू होने वाला यह सूर्यग्रहण पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों पर लगभग तीन घंटे 25 मिनिट तक दिखाई देगा।
कब होता है पूर्ण सूर्यग्रहण :- खग्रास सूर्यग्रहण तब होता है, जब चंद्रमा सूर्य के सामने आ जाता है और सूर्य की चमकीली सतह चंद्रमा के कारण ढंक जाती है। खग्रास सूर्यग्रहण को पृथ्वी की सतह से एक पतली पट्टी पर पड़ने वाले स्थानों से ही देखा जा सकता है।
कहाँ कहाँ देखा जा सकेगा खग्रास सूर्यग्रहण :- जिन भारतीय शहरों से खग्रास सूर्यग्रहण देखा जा सकता है, उनमें भावनगर, सूरत, उज्जैन, इंदौर, भोपाल, जबलपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, गया, पटना, भागलपुर, जलपाईगुड़ी, गुवाहाटी और डिब्रूगढ़ शामिल हैं। मध्यप्रदेश के भोपाल में पूर्ण सूर्यग्रहण 6.22 से 6.26 बजे के बीच लगभग साढ़े तीन मिनट तक चलेगा। आम लोग भी अपने स्तर पर सूर्यग्रहण का नजारा देख सकें इसके लिए कुछ संस्थाओं ने सोलर फिल्टर चश्मे उपलब्ध करवाने की व्यवस्था की है। मप्र विज्ञान सभा सदस्य के एस तिवारी के अनुसार आंचलिक विज्ञान केंद्र तथा जवाहर विद्यालय से कोई भी न्यूनतम कीमत में सोलर फिल्टर चश्मा प्राप्त कर सकता है। मध्यप्रदेश के जिन शहरों में पूर्ण सूर्यग्रहण दिखेगा उनमें इंदौर, उज्जैन, देवास, सीहोर, खंडवा, विदिशा, रायसेन, भोपाल, होशंगाबाद, इटारसी, सागर, दमोह, नरसिंहपुर, जबलपुर, सतना, मैहर, रीवा, सीधी, शहडोल शामिल हैं।
अध्ययन के लिए विशेष इन्तेजाम :- सदी का सबसे लंबी अवधि का सूर्यग्रहण 22 जुलाई को भोपाल समेत देश के अन्य शहरों में दिखाई देगा। इसके अध्ययन और दर्शन के लिए शासकीय और निजी संस्थाओं ने विशेष इंतजाम किए हैं। रीजनल साइंस सेंटर ने सोमवार से जागरूकता कार्यक्रम की शुरुआत की, वहीं साइंस सेंटर (ग्वालियर) मप्र मंगलवार से तीन दिनी महोत्सव शुरू कर रहा है, जिसमें इसके प्रभाव पर अध्ययन किया जाएगा।
ग्रहण बताएगा सूरज की गर्मी का राज :- इंदौर सहित दुनियाभर में वैज्ञानिकों ने सूर्यग्रहण के दौरान कई प्रयोगों की तैयारी की है। इतना लंबा खग्रास सूर्यग्रहण इसके बाद ठीक 123 वर्ष बाद 13 जुलाई 2132 को दिखेगा। इस ऐतिहासिक खगोलीय घटना के बारे में नेहरू प्लेनेटेरियम के पूर्व निदेशक जे.जे. रावल का कहना है कि प्रभात की वेला में सूर्यग्रहण होने की वजह से ग्रहण के समय शेडाबेक फिनोमिनन स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगी और इस अवधि में वायुमंडल में कंपन्न का एहसास होगा। हल्के सफेद-काली पट्टी भी वातावरण में देखी जा सकेंगी। यह सूर्यग्रहण एक भारतीय वैज्ञानिक की 1981 में इंटरनेशनल जर्नल ‘अर्थ, मून एंड प्लेनेट’ में प्रकाशित उस थीसिस को समर्थन देगा जिसमें कहा गया था कि सूर्य के इर्दगिद वलय (घेरे) एवं छोटे-छोटे गृह होने की संभावना है। यह खगोलशास्त्री एवं नेहरू प्लेनेटेरियम, दिल्ली के पूर्व निदेशक जे जे रावल ने विश्व के सामने रखी थी। उन्होंने आगे बताया कि खग्रास सूर्यग्रहण के समय सूर्य के इर्दगिर्द जो रंगपटल (स्पैक्ट्रम ) बनता है, उससे सूर्य के वातावरण के तापमान एवं प्रेशर की जानकारी प्राप्त हो सकती है।
14 इंच के टेलिस्कोप से देखेंगे ग्रहण :- 22 जुलाई को होने वाले सदी के सबसे बड़े सूर्यग्रहण के लिए सभी ओर तैयारियां चल रही हैं। इसे देखने के लिए वैज्ञानिकों ने कई सुझाव दिए और कई जगह विशेष व्यवस्था की गई है। खगोलशास्त्र में रुचि रखने वालों के लिए ग्रहण बड़ी उत्सुकता का विषय है। शहर में ऐसे ही लोगों के लिए सूर्यग्रहण देखने का इंतजाम आईपीएस एकेडमी में किया जा रहा है। यहां १४ इंच के सेलिस्ट्रोन टेलिस्कोप से सूर्यग्रहण लाइव देखा जा सकता है। एकेडमी के आईएसएलटी विभाग के डायरेक्टर प्रो. एम.एल. शर्मा ने बताया यह टेलिस्कोप प्रदेश का सबसे शक्तिशाली टेलिस्कोप है। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे सूर्यग्रहण देख सकें इसलिए सीसीडी कैमरे लगाकर स्क्रीन पर भी ग्रहण दिखाया जाएगा।
तारेगना में भी जुडा शोधकर्ताओं का हुजूम :- सूर्यग्रहण पट्टी में ऐतिहासिक खगोलीय घटना का गवाह बनने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त स्थान साबित होने के बाद आर्यभट्ट की धरती तारेगना इसके लिए पूरी तरह तैयार है। दुनिया भर से वैज्ञानिकों का हुजूम अपने पूरे साजो सामान के साथ बिहार के तारेगना स्थान से सूर्यग्रहण का नजारा देखेगा। मुख्यमंत्री समेत विशिष्ट लोगों के लिए अनुमंडल का रेफरल अस्पताल तो अन्य लोगों के लिए तारेगना के गांधी मैदान, सेंट मैरी स्कूल तथा सेंट माइकल स्कूल को तैयार किया गया है। तारेगना में तैयारियों और शहर में बाहरी लोगों के जमघट से स्थानीय लोगों के कौतूहल को पंख लग गए हैं। विभिन्न विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के वैज्ञानिक और छात्र भी आज शाम तक तारेगना पहुंच जाएंगे। इस सिलसिले में अखिल भारतीय जनविज्ञान नेटवर्क एवं भारत ज्ञान विज्ञान समिति से जुड़े एवं पूर्व राष्ट्रपति डा. ए पी जे अब्दुल कलाम के सहयोगी रहे डा. एम पी परमेश्वरन, नेटवर्क के अध्यक्ष सी पी नारायणन, महासचिव डा. अमित सेनगुप्ता, राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद के वैज्ञानिक शशि आहूजा, भारत ज्ञान विज्ञान समिति के सचिव आशा मिश्र, मुख्य रूप से राजधानी पहुंच गए हैं। स्पेस के डा. विक्रांत नारंग भी 21 की शाम तक तारेगना पहुंच जाएंगे। पटना तथा अन्य जगहों से पहुंच रहे लोगों ने सूर्यग्रहण देखने को स्थानीय लोगों के मकान की छतें भी बुक करा ली हैं। बाहरी लोगों की हलचल और यहां चल रही प्रशासनिक तैयारियों ने पूरे माहौल में उत्सुकता घोल दी है। आर्यभट्ट की धरती का होने का गौरव उनके हावभाव में झलक जाता है।
नासा की रिपोर्ट से सुर्खियों में आया तारेगना :- पर्यटकों का रुख तारेगना की ओर करने में अमेरिका के नेशनल एरोनाटिक एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन [नासा] द्वारा इस सूर्य ग्रहण के संबंध में जारी करीब 200 पृष्ठों की रिपोर्ट ने अहम भूमिका निभाई है। रिपोर्ट में सूर्यग्रहण के संदर्भ में तारेगना की खूबियां गिनाई गई हैं। नासा के मुताबिक तारेगना में बदली छाने की औसत संभावना इलाहाबाद में 77 और बनारस में 71 प्रतिशत के मुकाबले 63 प्रतिशत है। साथ ही धूप की चमक [सनशाईन] का औसत मुंबई के 18 प्रतिशत, इंदौर के 25 प्रतिशत, इलाहाबाद के 34 प्रतिशत के मुकाबले तारेगना में 43 प्रतिशत है। तारेगना में ये दो फैक्टर नेपाल, बांग्लादेश, भूटान एवं चीन से बेहतर हैं जहां ये सूर्य ग्रहण दिखाई देगा। ऐसे में सूर्य ग्रहण के नजारे के लिए यह सबसे बेहतर स्थान है।
घटेगा गुरुत्वाकर्षण :- कहा जाता है कि ग्रहण के दौरान पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण कम हो जाता है। चीन में छह स्थानों पर हाई सेंसिटिव उपकरण लगाए जाएंगे, जो ग्रहण काल के दौरान पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण क्षमता रिकॉर्ड करेंगे।
सूर्यग्रहण देखने के लिए क्या करें :- गत्ते में पिन छेद करके उसे सूर्य की किरणों के सामने रखकर सूर्य की छवि किसी छाया वाली दीवार पर प्रक्षेपित करें। एक छोटे दर्पण को कागज के टुकड़े से ढ़ककर कागज में दो सेंटीमीटर व्यास का छिद्र बनाकर इससे दीवार पर सूर्य की छवि प्रक्षेपित करें। पूर्णता की स्थिति में आप सूर्य को सीधा निहार सकते हैं, मगर लगातार न देखें।
ग्रहण देखने के लिए यह न करें :- धुंआयुक्त ग्लास, रंगीन फिल्म, सनग्लास, नानसिल्वर ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म का इस्तेमाल न करें। टेलीस्कोप या बाइनाकुलर से सूर्य को कभी न देखें। पूर्ण सूर्यग्रहण की दशा को लगातार न देखें।
राशियों पर असर :- ग्रहण का धार्मिक महत्व भी है। मंदिरों में इसके लिए भी विशेष तैयारियां की गई हैं। ग्रहण काल में भगवान की मूर्ति को स्पर्श नहीं किया जाता है। ज्योतिषों के अनुसार ग्रहण का कुछ राशियों में शुभ तो कुछ राशियों में अशुभ फलदायक रहेगा कुछ राशियों में मिश्रित फल मिलेंगे
मेष: स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव, दुर्घटना की संभावना
वृष: रुके काम बनेंगे। वाणी पर संयम रखें।
मिथुन: खर्च अधिक, चिंताएं बढ़ेंगी
कर्क: कोर्ट के मामलों में सतर्क रहें, वाहन सावधानी से चलाएं।
सिंह: अधिकारियों से विवाद होगा। लेनदेन नहीं करें।
कन्या: आर्थिक लाभ होगा। शुभ कार्य होंगे।
तुला: मिलेजुले प्रभाव होंगे। पदोन्नति हो सकती है।
वृश्चिक: परिवार में मतभेद उभरेंगे। काम रुक सकते हैं।
धनु: समय कष्टप्रद रहेगा। वाहन सावधानी से चलाएं।
मकर: स्वास्थ्य प्रभावित होगा। संतान की चिंता बढ़ेगी।
कुंभ: शत्रु शांत होंगे। काम बन सकते हैं।
मीन: मिश्रित फल मिलेंगे। धैर्य बना रहा तो फायदा होगा।

June 5, 2009

विश्व पर्यावरण दिवस - ३८ सालों से इस परम्परा का बखूबी पालन कर रहे हैं |


आज हम ३८ वां विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं पिछले ३८ सालों से इस परम्परा का बखूबी पालन कर रहे हैं लेकिन इसके कितने बेहतर परिणाम मिले यह किसी से छिपा नहीं है विश्व पर्यावरण दिवस (WED) की शुरुआत यूनाइटेड नेशंस इनवायरमेंट प्रोग्राम के तहत यूं.एन एसेम्बली द्वारा 1972 में की गई थी वर्ष 1972 से प्रतिवर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। और इस साल इस आयोजन की थीम है-'आपके ग्रह को आपकी जरूरत है! जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए एक हों'। साथ ही इसका मुख्य उद्देश्य आम जनमानस में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता लाना था हालाकि इस दिशा में कुछ हद तक सफलता ज़रूर मिली लेकिन क्या इसे सराहनीय कहा जा सकता है ..... ? क्या आज जो परिणाम हमारे सामने है उन्हें आशानुरूप कहा जा सकता है ..... ? नहीं
पूरी दुनिया के मुकाबले हिमालय ज्यादा तेज़ गति से गर्म हो रहा है एक आंकड़े के मुताबिक गत 100 वर्षों में हिमालय के पश्चिमोत्तर हिस्से का तापमान 1.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है जो कि शेष विश्व के तापमान में हुए औसत इजाफे (0.5-1.1 डिग्री सेल्सियस) से अधिक है। रक्षा शोध एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) और पुणे विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र में बर्फबारी और बारिश की विविधता का अध्ययन किया और पाया कि एक और बढ़ती गर्मी के कारण सर्दियों की शुरुआत अपेक्षाकृत देर से हो रही है तो दूसरी और बर्फबारी में भी कमी आ रही है। शोधकर्ताओं का कहना है कि पश्चिमोत्तर हिमालय का इलाका पिछली शताब्दी में 1.4 डिग्री सेल्सियस गर्म हुआ है जबकि दुनिया भर में तापमान बढ़ने की औसत दर 0.5 से 1.1 डिग्री सेल्सियस रही है। “अध्ययन का सबसे रोचक निष्कर्ष यह रहा कि पिछले तीन दशकों के दौरान पश्चिमोत्तर हिमालय क्षेत्र के अधिकतम और न्यूनतम तापमान में तेज इजाफा हुआ जबकि दुनिया के अन्य पर्वतीय क्षेत्रों जैसे कि आल्प्स और रॉकीज में न्यूनतम तापमान में अधिकतम तापमान की अपेक्षा अधिक तेजी से वृद्धि हुई है।” अध्यान के लिए इस क्षेत्र से संबंधित आंकड़े भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) स्नो एंड अवलांच स्टडी इस्टेब्लिशमेंट (एसएएसई) मनाली और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटरोलॉजी से जुटाए गए थे।
जलवायु परिवर्तन के कारण अनेक दुष्परिणाम सामने आ रहे है। यदि यह सब ऐसे ही चलता रहा, तो हमारी पृथ्वी को आग का गोला बनते देर न लगेगी। और तब क्या होगा इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती जिस तरह जलवायु परिवर्तन के कारण डायनासोर धरती से अचानक विलुप्त हो गए। ठीक उसी तरह जलवायु परिवर्तन के कारण अन्य जीव-जंतुओं पर भी ऐसा ही खतरा मंडरा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, 2050 तक पृथ्वी के 40 फीसदी जीव-जंतुओं का खात्मा हो जाएगा! इतना ही नहीं जलवायु परिवर्तन का खासा असर इंसानों पर भी पड़ने वाला है जिससे हम अनभिज्ञ नहीं है लेकिन हाँ सतर्क भी नहीं
आज पीढ़ी दर पीढ़ी सुविधाभोगी होती जा रही है। स्कूल जाने के लिए भी आप में से कई बाइक की जिद करते हैं। साइकिल चलाना शान के खिलाफ लगता है। वास्तव में, कुल ऊर्जा खपत का पांचवां हिस्सा हम निजी वाहनों के प्रयोग व सरकारी और बसों आदि के संचालन में ही धुआं कर देते हैं!
जिंदा रहने के लिए सांस लेना जरूरी है, लेकिन फैक्ट्रियों और वाहनों की रासायनिक धुँए से हवा में लगातार कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ रही है जो जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है । एक रिसर्च के मुताबिक आने वाले सौ सालों में वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा मौजूदा स्तर की तीन गुना हो जाएगी। तब हर किसी को ऑक्सीजन मास्क पहनने की ज़रुरत पड़ेगी
दूसरी और सडकों के निर्माण और उद्योगों के विस्तार के चलते अंधाधुंध पेड़ों की कटाई से वर्षा का प्रभावित होना भी जलवायु परिवर्तन का एक विशेष कारण रहा है परिणाम स्वरुप धरती के जलस्तर में भी गिरावट आ रही है पूरे देश में मौजूदा पानी किल्लत यही दर्शाती है
आज ज़रुरत है 5 जून के वास्तविक महत्व को समझने की और पर्यावरण के संरक्षण के प्रति खुद को संकल्पित करने की पर्यावरण संरक्षण दिवस साल में एक बार महज़ एक औपचारिकता के रूप में मानाने का दिन नहीं है बल्कि स्वयं को दूसरों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरित करने का है किसी ने सच ही कहा है "हम बदलेंगे जग बदलेगा, हम सुधरेंगे जग सुधरेगा" यदि पूरे साल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम किया जाय ऐसे आयोजन किये जाएँ जहां आमजनमानस में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता लाइ जा सके पेड़ों की कटाई करने की अपेक्षा ज़्यादा से ज्यादा मात्रा में नए पेड़ और उद्यान लगाये जाएँ धरती के जल स्तर को संतुलित करने के लिए इमारतों, घरों और सडकों का निर्माण "वाटर हारवेस्टिंग" प्रणाली के तहत किया जाये उद्योगों का रासायनिक कचरा नष्ट करने की विधी विकसित की जाए जो सीधे तौर पर पर्यावरण को इतना नुकसान न पहुंचा सकें सामान्य तौर पर हो वाहनों के प्रयोग में कमी लाइ जाये तो जलवायु में होने वाले इस क्रमिक परिवर्तन को रोका जा सकता है ग्लोबल वार्मिंग पर विजय हासिल की जा सकती है

May 31, 2009

नशामुक्ति का का सबसे आसान उपाय



बात जब किसी की प्रियता की की जाए तो वह उसे बेहद पसंद करता है लेकिन जब बात हित की की जाये तो उसे नापसंद करता है आज तम्बाकू निषेध दिवस है यह दिन नशामुक्ति से प्रेरणा देने के लिए मनाया जाता है तम्बाकू एक धीमा ज़हर है जो इसका सेवन करने वाले को धीरे धीरे मौत के मुंह में ले जाता है एक आंकड़े के अनुसार हर साल भारत में लगभग ८ लाख नए केंसर के मामले सामने आते हैं जिनमें से तकरीबन ३.२ लाख मामले मुंह और गले के केंसर से सम्बंधित होते हैं
हर साल हम ३१ मई को तम्बाकू निषेध दिवस मनाते है लेकिन इस धीमे ज़हर से समाज को मुक्त कर पाने में हम कितने सफल रहे हैं इसका जवाब हर कोई जानता है आज हम फिर तम्बाकू निषेध दिवस मना रहे हैं आज देश का अधिकतर नौजवान यहाँ तक की देश के नौनिहाल भी इस चुटकी भर ज़हर की चपेट में आ रहे हैं खास बात तो यह है कि उपयोग में आसान और सुविधाजनक होने के कारण समय दर समय तम्बाकू का प्रचलन भी बढा है मौजूदा हालत और बदलते परिवेश और एकल परिवार व्यवस्था में माता पिटा का अपने बच्चों पर ज़्यादा ध्यान न दे पाने के कारण एक आत्मबलहीन पीढी तैयार हो गई है जो अपने हर समय अपनी प्रियता की बात ही सोचती है और अपने हित के प्रति उसका कोई ध्यान ही नहीं रहता
विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से इस बारे में ‘इण्ड-केन-006’ नामक सर्वेक्षण विश्व तम्बाकू निषेध दिवस से पहले जारी की गई रिपोर्ट में भविष्य की भयावह तस्वीर का खुलासा किया गया है। 66 हजार लोगों पर किए गए इस सर्वे में रतलाम में पता चला कि 12 फीसदी स्कूली बच्चे तम्बाकू का नियमित सेवन करते हैं। इस बात से साफ़ अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाला समय कितना भयावह होगा
ऐसे में साल में एक दिन औपचारिकता मात्र के रूप में तम्बाकू निषेध दिवस मनाना कितना उचित है वास्तव में नशा किसी भी रूप में हो बेहद घातक होता है हर व्यक्ति का किसी मादक पदार्थ को लेने के पीछे मकसद भी अलग अलग होता है लेकिन मकसद चाहे जो हो नुकसान तो उठाना ही पङता है पहले कोई व्यक्ति तम्बाकू का सेवन करता है फिर तम्बाकू उसका सेवन करने लगती हैं किसी भी तरह के नशे से मुक्ति के लिए सिर्फ एक ही उपाय है वह है संयम
वैसे तो संयम कई समस्याओं का समाधान है लेकिन जहां तक नशामुक्ति का सवाल है संयम से बेहतर और कोई दूसरा विकल्प नहीं है हाँ सेल्फ मोटिवेशन भी नशामुक्ति में बेहद कारगर है या फिर किसी को मोटिवेट करके या किसी के द्वारा मोटिवेट होके भी नशे से मुक्त हुआ जा सकता है लेकिन यदि तम्बाकू का नशा करने वाला यदि संयम अपनाए तो इस पर जीत हासिल कर सकता है जब कभी तम्बाकू का सेवन करने की तीव्र इच्छा हो तो संयम के साथ अपना ध्यान किसी अन्य काम में लगा लें ज़्यादातर तम्बाकू को भुलाने की कोशिश करें वास्तव में यदि व्यक्ति हितों के प्रति जागरुक हैं तो वह किसी भी नशे की चपेट में आ ही नहीं सकता और यदि आ भी जाए तो थोडा सा संयम और सेल्फ मोटिवेशन उसे इस धीमे ज़हर से मुक्त कर सकता है तो आज के दिन महज़ एक परम्परा के रूप में तम्बाकू निषेध दिवस मनाने के बजाय तम्बाकू और इसके घातक परिणामो से हम अपने करीबी और अपने मित्रों को परिचित करायें यदि कोई आपका करीबी तम्बाकू या किसी नशे की लत का शिकार है तो उसे मोटिवेट करके उसे संयम का रास्ता बताएं और नशे से मुक्त होने में उसकी मदद करें
कैसे छोड़ें तम्बाकू की आदत? :-
- तम्बाकू छोड़ने लिए आपको एक दिन तय कर लेना चाहिए कि इस दिन से तम्बाकू बंद।
- इसके अपने दोस्तों और पारिवारिक डॉक्टर की भी मदद लें।
- सिगरेट से जुड़ी चीजों को दूर रखें।
- अगर सिगरेट ज्यादा पीने की आदत पड़ ही चुकी है तो भी उसे पीने से पहले छोटी कर लें।
- धीमे जहर के सेवन न करने के प्रति खुद को मोटिवेट करें

May 4, 2009

राखी सावंत का स्वयंबर: मात्र १४ हज़ार, कम से कम ४-५ लाख प्रपोसल तो आते


राखी सावंत के स्वयंबर वाले रियलटी शो में मात्र १४ युवकों ने ही अपनी दिलचस्पी दिखाई है कहने का तात्पर्य यह है कि जब कभी राखी सावंत किसी स्टेज शो में अपने जलवे बिखेरती हैं तो कम से कम इससे चार और पांच गुना भीड़ उमड़ती है इतना बड़ा भारत देश इतने सारे युवा लेकिन राखी को पत्नी बनाने में मात्र १४ हज़ार लोगों ने ही रुची दिखाई न जाने उनमे से ऐसे कितने होंगे जो मात्र पब्लिसिटी के लिए इस स्वयंबर में हिस्सा ले रहे हैं और यदि उनमें से राखी ने किसी से ब्याह रचा भी लिया तो दाम्पत्य जीवन कितने दिन चलेगा ये तो उपरवाला ही जानता है बहरहाल राखी के स्टेज शो जब इतनी तादाद में लोग दिलचस्पी दिखाते हैं तो फिर शादी करके जीवनसंगिनी बनाने में क्या आपत्ती हो सकती है ?
बात दरअसल यह है हर युवा हॉट और बोल्ड प्रेमिका की ख्वाहिश रखता है लेकिन जब बात पत्नी की आती है तो संस्कारिक, पारिवारिक मूल्यों को समझने वाली और कामकाजी लड़की चाहिए क्योंकि शादी के बाद यदि पत्नी को समाज या फिर परिवार वालों के लिए खुद को बदलना पड़े या फिर पत्नी अपनी मन पसंद के कपडे पहने या फिर अपनी इच्छाओं के के लिए खर्च करने में कोई संकोच न करे तो फिर मियाँ बीबी की तू तू मैं मैं तो होनी है और बात बढ़ने में और तलाक़ होने में भी समय नहीं लगता अर्थात राखी सावंत के बोल्ड सीन और उनका डांस लगभग सभी युवा पसंद करते हैं पर राखी सावंत से ब्याह रचा कर घर बसाना हर कोई नहीं चाहता मात्र १४ हज़ार लोगों की संख्या इसी भावना को प्रर्दशित करती है राखी सावंत एक अभिनेत्री होने के नाते परदे पर आइटम नंबर से लेकर किसी की पत्नी या बहू का किरदार बखूबी निभा सकती हैं लेकिन क्या वास्तविक जीवन में एक कुशल पत्नी या बहू बन सकती हैं ? इस रियलटी शो ने ये सवाल ज़रूर खडा कर दिया है ?
बहरहाल राखी सावंत की खूबसूरती और उनकी बाकी सारी खूबियों को देखते हुए १४ हज़ार का आंकडा बेहद ही अपमान जनक है पूरे भारत से कम से कम ४-५ लाख लोग तो अपना प्रपोसल भेजते