June 5, 2009

विश्व पर्यावरण दिवस - ३८ सालों से इस परम्परा का बखूबी पालन कर रहे हैं |


आज हम ३८ वां विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं पिछले ३८ सालों से इस परम्परा का बखूबी पालन कर रहे हैं लेकिन इसके कितने बेहतर परिणाम मिले यह किसी से छिपा नहीं है विश्व पर्यावरण दिवस (WED) की शुरुआत यूनाइटेड नेशंस इनवायरमेंट प्रोग्राम के तहत यूं.एन एसेम्बली द्वारा 1972 में की गई थी वर्ष 1972 से प्रतिवर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। और इस साल इस आयोजन की थीम है-'आपके ग्रह को आपकी जरूरत है! जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए एक हों'। साथ ही इसका मुख्य उद्देश्य आम जनमानस में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता लाना था हालाकि इस दिशा में कुछ हद तक सफलता ज़रूर मिली लेकिन क्या इसे सराहनीय कहा जा सकता है ..... ? क्या आज जो परिणाम हमारे सामने है उन्हें आशानुरूप कहा जा सकता है ..... ? नहीं
पूरी दुनिया के मुकाबले हिमालय ज्यादा तेज़ गति से गर्म हो रहा है एक आंकड़े के मुताबिक गत 100 वर्षों में हिमालय के पश्चिमोत्तर हिस्से का तापमान 1.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है जो कि शेष विश्व के तापमान में हुए औसत इजाफे (0.5-1.1 डिग्री सेल्सियस) से अधिक है। रक्षा शोध एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) और पुणे विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र में बर्फबारी और बारिश की विविधता का अध्ययन किया और पाया कि एक और बढ़ती गर्मी के कारण सर्दियों की शुरुआत अपेक्षाकृत देर से हो रही है तो दूसरी और बर्फबारी में भी कमी आ रही है। शोधकर्ताओं का कहना है कि पश्चिमोत्तर हिमालय का इलाका पिछली शताब्दी में 1.4 डिग्री सेल्सियस गर्म हुआ है जबकि दुनिया भर में तापमान बढ़ने की औसत दर 0.5 से 1.1 डिग्री सेल्सियस रही है। “अध्ययन का सबसे रोचक निष्कर्ष यह रहा कि पिछले तीन दशकों के दौरान पश्चिमोत्तर हिमालय क्षेत्र के अधिकतम और न्यूनतम तापमान में तेज इजाफा हुआ जबकि दुनिया के अन्य पर्वतीय क्षेत्रों जैसे कि आल्प्स और रॉकीज में न्यूनतम तापमान में अधिकतम तापमान की अपेक्षा अधिक तेजी से वृद्धि हुई है।” अध्यान के लिए इस क्षेत्र से संबंधित आंकड़े भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) स्नो एंड अवलांच स्टडी इस्टेब्लिशमेंट (एसएएसई) मनाली और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटरोलॉजी से जुटाए गए थे।
जलवायु परिवर्तन के कारण अनेक दुष्परिणाम सामने आ रहे है। यदि यह सब ऐसे ही चलता रहा, तो हमारी पृथ्वी को आग का गोला बनते देर न लगेगी। और तब क्या होगा इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती जिस तरह जलवायु परिवर्तन के कारण डायनासोर धरती से अचानक विलुप्त हो गए। ठीक उसी तरह जलवायु परिवर्तन के कारण अन्य जीव-जंतुओं पर भी ऐसा ही खतरा मंडरा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, 2050 तक पृथ्वी के 40 फीसदी जीव-जंतुओं का खात्मा हो जाएगा! इतना ही नहीं जलवायु परिवर्तन का खासा असर इंसानों पर भी पड़ने वाला है जिससे हम अनभिज्ञ नहीं है लेकिन हाँ सतर्क भी नहीं
आज पीढ़ी दर पीढ़ी सुविधाभोगी होती जा रही है। स्कूल जाने के लिए भी आप में से कई बाइक की जिद करते हैं। साइकिल चलाना शान के खिलाफ लगता है। वास्तव में, कुल ऊर्जा खपत का पांचवां हिस्सा हम निजी वाहनों के प्रयोग व सरकारी और बसों आदि के संचालन में ही धुआं कर देते हैं!
जिंदा रहने के लिए सांस लेना जरूरी है, लेकिन फैक्ट्रियों और वाहनों की रासायनिक धुँए से हवा में लगातार कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ रही है जो जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है । एक रिसर्च के मुताबिक आने वाले सौ सालों में वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा मौजूदा स्तर की तीन गुना हो जाएगी। तब हर किसी को ऑक्सीजन मास्क पहनने की ज़रुरत पड़ेगी
दूसरी और सडकों के निर्माण और उद्योगों के विस्तार के चलते अंधाधुंध पेड़ों की कटाई से वर्षा का प्रभावित होना भी जलवायु परिवर्तन का एक विशेष कारण रहा है परिणाम स्वरुप धरती के जलस्तर में भी गिरावट आ रही है पूरे देश में मौजूदा पानी किल्लत यही दर्शाती है
आज ज़रुरत है 5 जून के वास्तविक महत्व को समझने की और पर्यावरण के संरक्षण के प्रति खुद को संकल्पित करने की पर्यावरण संरक्षण दिवस साल में एक बार महज़ एक औपचारिकता के रूप में मानाने का दिन नहीं है बल्कि स्वयं को दूसरों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरित करने का है किसी ने सच ही कहा है "हम बदलेंगे जग बदलेगा, हम सुधरेंगे जग सुधरेगा" यदि पूरे साल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम किया जाय ऐसे आयोजन किये जाएँ जहां आमजनमानस में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता लाइ जा सके पेड़ों की कटाई करने की अपेक्षा ज़्यादा से ज्यादा मात्रा में नए पेड़ और उद्यान लगाये जाएँ धरती के जल स्तर को संतुलित करने के लिए इमारतों, घरों और सडकों का निर्माण "वाटर हारवेस्टिंग" प्रणाली के तहत किया जाये उद्योगों का रासायनिक कचरा नष्ट करने की विधी विकसित की जाए जो सीधे तौर पर पर्यावरण को इतना नुकसान न पहुंचा सकें सामान्य तौर पर हो वाहनों के प्रयोग में कमी लाइ जाये तो जलवायु में होने वाले इस क्रमिक परिवर्तन को रोका जा सकता है ग्लोबल वार्मिंग पर विजय हासिल की जा सकती है

May 31, 2009

नशामुक्ति का का सबसे आसान उपाय



बात जब किसी की प्रियता की की जाए तो वह उसे बेहद पसंद करता है लेकिन जब बात हित की की जाये तो उसे नापसंद करता है आज तम्बाकू निषेध दिवस है यह दिन नशामुक्ति से प्रेरणा देने के लिए मनाया जाता है तम्बाकू एक धीमा ज़हर है जो इसका सेवन करने वाले को धीरे धीरे मौत के मुंह में ले जाता है एक आंकड़े के अनुसार हर साल भारत में लगभग ८ लाख नए केंसर के मामले सामने आते हैं जिनमें से तकरीबन ३.२ लाख मामले मुंह और गले के केंसर से सम्बंधित होते हैं
हर साल हम ३१ मई को तम्बाकू निषेध दिवस मनाते है लेकिन इस धीमे ज़हर से समाज को मुक्त कर पाने में हम कितने सफल रहे हैं इसका जवाब हर कोई जानता है आज हम फिर तम्बाकू निषेध दिवस मना रहे हैं आज देश का अधिकतर नौजवान यहाँ तक की देश के नौनिहाल भी इस चुटकी भर ज़हर की चपेट में आ रहे हैं खास बात तो यह है कि उपयोग में आसान और सुविधाजनक होने के कारण समय दर समय तम्बाकू का प्रचलन भी बढा है मौजूदा हालत और बदलते परिवेश और एकल परिवार व्यवस्था में माता पिटा का अपने बच्चों पर ज़्यादा ध्यान न दे पाने के कारण एक आत्मबलहीन पीढी तैयार हो गई है जो अपने हर समय अपनी प्रियता की बात ही सोचती है और अपने हित के प्रति उसका कोई ध्यान ही नहीं रहता
विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से इस बारे में ‘इण्ड-केन-006’ नामक सर्वेक्षण विश्व तम्बाकू निषेध दिवस से पहले जारी की गई रिपोर्ट में भविष्य की भयावह तस्वीर का खुलासा किया गया है। 66 हजार लोगों पर किए गए इस सर्वे में रतलाम में पता चला कि 12 फीसदी स्कूली बच्चे तम्बाकू का नियमित सेवन करते हैं। इस बात से साफ़ अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाला समय कितना भयावह होगा
ऐसे में साल में एक दिन औपचारिकता मात्र के रूप में तम्बाकू निषेध दिवस मनाना कितना उचित है वास्तव में नशा किसी भी रूप में हो बेहद घातक होता है हर व्यक्ति का किसी मादक पदार्थ को लेने के पीछे मकसद भी अलग अलग होता है लेकिन मकसद चाहे जो हो नुकसान तो उठाना ही पङता है पहले कोई व्यक्ति तम्बाकू का सेवन करता है फिर तम्बाकू उसका सेवन करने लगती हैं किसी भी तरह के नशे से मुक्ति के लिए सिर्फ एक ही उपाय है वह है संयम
वैसे तो संयम कई समस्याओं का समाधान है लेकिन जहां तक नशामुक्ति का सवाल है संयम से बेहतर और कोई दूसरा विकल्प नहीं है हाँ सेल्फ मोटिवेशन भी नशामुक्ति में बेहद कारगर है या फिर किसी को मोटिवेट करके या किसी के द्वारा मोटिवेट होके भी नशे से मुक्त हुआ जा सकता है लेकिन यदि तम्बाकू का नशा करने वाला यदि संयम अपनाए तो इस पर जीत हासिल कर सकता है जब कभी तम्बाकू का सेवन करने की तीव्र इच्छा हो तो संयम के साथ अपना ध्यान किसी अन्य काम में लगा लें ज़्यादातर तम्बाकू को भुलाने की कोशिश करें वास्तव में यदि व्यक्ति हितों के प्रति जागरुक हैं तो वह किसी भी नशे की चपेट में आ ही नहीं सकता और यदि आ भी जाए तो थोडा सा संयम और सेल्फ मोटिवेशन उसे इस धीमे ज़हर से मुक्त कर सकता है तो आज के दिन महज़ एक परम्परा के रूप में तम्बाकू निषेध दिवस मनाने के बजाय तम्बाकू और इसके घातक परिणामो से हम अपने करीबी और अपने मित्रों को परिचित करायें यदि कोई आपका करीबी तम्बाकू या किसी नशे की लत का शिकार है तो उसे मोटिवेट करके उसे संयम का रास्ता बताएं और नशे से मुक्त होने में उसकी मदद करें
कैसे छोड़ें तम्बाकू की आदत? :-
- तम्बाकू छोड़ने लिए आपको एक दिन तय कर लेना चाहिए कि इस दिन से तम्बाकू बंद।
- इसके अपने दोस्तों और पारिवारिक डॉक्टर की भी मदद लें।
- सिगरेट से जुड़ी चीजों को दूर रखें।
- अगर सिगरेट ज्यादा पीने की आदत पड़ ही चुकी है तो भी उसे पीने से पहले छोटी कर लें।
- धीमे जहर के सेवन न करने के प्रति खुद को मोटिवेट करें

May 4, 2009

राखी सावंत का स्वयंबर: मात्र १४ हज़ार, कम से कम ४-५ लाख प्रपोसल तो आते


राखी सावंत के स्वयंबर वाले रियलटी शो में मात्र १४ युवकों ने ही अपनी दिलचस्पी दिखाई है कहने का तात्पर्य यह है कि जब कभी राखी सावंत किसी स्टेज शो में अपने जलवे बिखेरती हैं तो कम से कम इससे चार और पांच गुना भीड़ उमड़ती है इतना बड़ा भारत देश इतने सारे युवा लेकिन राखी को पत्नी बनाने में मात्र १४ हज़ार लोगों ने ही रुची दिखाई न जाने उनमे से ऐसे कितने होंगे जो मात्र पब्लिसिटी के लिए इस स्वयंबर में हिस्सा ले रहे हैं और यदि उनमें से राखी ने किसी से ब्याह रचा भी लिया तो दाम्पत्य जीवन कितने दिन चलेगा ये तो उपरवाला ही जानता है बहरहाल राखी के स्टेज शो जब इतनी तादाद में लोग दिलचस्पी दिखाते हैं तो फिर शादी करके जीवनसंगिनी बनाने में क्या आपत्ती हो सकती है ?
बात दरअसल यह है हर युवा हॉट और बोल्ड प्रेमिका की ख्वाहिश रखता है लेकिन जब बात पत्नी की आती है तो संस्कारिक, पारिवारिक मूल्यों को समझने वाली और कामकाजी लड़की चाहिए क्योंकि शादी के बाद यदि पत्नी को समाज या फिर परिवार वालों के लिए खुद को बदलना पड़े या फिर पत्नी अपनी मन पसंद के कपडे पहने या फिर अपनी इच्छाओं के के लिए खर्च करने में कोई संकोच न करे तो फिर मियाँ बीबी की तू तू मैं मैं तो होनी है और बात बढ़ने में और तलाक़ होने में भी समय नहीं लगता अर्थात राखी सावंत के बोल्ड सीन और उनका डांस लगभग सभी युवा पसंद करते हैं पर राखी सावंत से ब्याह रचा कर घर बसाना हर कोई नहीं चाहता मात्र १४ हज़ार लोगों की संख्या इसी भावना को प्रर्दशित करती है राखी सावंत एक अभिनेत्री होने के नाते परदे पर आइटम नंबर से लेकर किसी की पत्नी या बहू का किरदार बखूबी निभा सकती हैं लेकिन क्या वास्तविक जीवन में एक कुशल पत्नी या बहू बन सकती हैं ? इस रियलटी शो ने ये सवाल ज़रूर खडा कर दिया है ?
बहरहाल राखी सावंत की खूबसूरती और उनकी बाकी सारी खूबियों को देखते हुए १४ हज़ार का आंकडा बेहद ही अपमान जनक है पूरे भारत से कम से कम ४-५ लाख लोग तो अपना प्रपोसल भेजते

April 23, 2009

मध्यप्रदेश की १३ लोकसभा सीटों पर औसतन मात्र ४७.३% मतदान

१५ वीं लोकसभा के लियी आज दूसरे चरण में मध्यप्रदेश की २९ में से १३ लोकसभा क्षेत्रों में मतदान शाम ५ बजे संम्पन्न हुआ छुट पुट घटनाओं तथा कुछ जगहों पर चुनाव के बहिष्कार की घटनाओं को छोड़ मतदान आमतौर पर शांतिपूर्ण तरीके से संम्पन्न हुआ मुख्य चुनाव आयुक्त जे एस माथुर ने बताया कि मध्यप्रदेश की १३ लोकसभा सीटों पर औसतन ४७.३% मतदान हुआ है सबसे ज़्यादा मतदान छिंदवाडा लोकसभा क्षेत्र से था जहां मतदान का प्रतिशत ६३.३ रहा वहीं सबसे कम खजुराहो लोकसभा क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत ४०.२ रहा कुल ४७.३% औसतन मतदान में पुरुषों का प्रतिशत ५२.२ तथा माहिलाओं का प्रतिशत ४१.८ रहा जिन १३ संसदीय क्षेत्रों में मतदान होगा उनमें खजुराहो, सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, जबलपुर, मंडला, बालाघाट छिंदवाडा, होशंगाबाद, विदिशा, भोपाल, बैतूल शामिल हैं चुनाव आयोग ने कुल चार मतदान केन्द्रों त्योंथर, सिमरिया, नरता(उदयपुरा), रमखिरिया(उदयपुरा) में पुनः मतदान होने की संभावना जतायी है कटनी में पीठासीन अधिकारी ड्यूटी के दौरान शराब के नशे में पाए जाने पर उसे तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया


कहाँ कितना मतदान
बालाघाट - ५०.८%, बेतूल - ४४%, भोपाल - ४२.६%, छिंदवाडा - ६३.३%, होशंगाबाद - ४७.४%, जबलपुर - ४५.२%, खजुराहो - ४०.२%, मंडला - ४८.१%, रीवा - ४९.८%, सतना - ५०.७%, शहडोल - ४६.३%, सीधी - ४५.६%, विदिशा - ४३.२%


बहरहाल इन चुनावों में पूरे प्रदेश से चुनाव बहिष्कार की भी खबरें आती रहीं हैं चुनाव बहिष्कार की घटनाओं और मतदान के इस गिरते स्तर के बारे आप क्या कहना चाहेंगे ?

April 22, 2009

एक रिसर्च - दुनिया भर की मुख्य नदियों के जल स्तर में भारी गिरावट दर्ज

दुनिया भर की मुख्य नदियों के जल स्तर में गिरावट दर्ज की गई है एक अध्ययन में निकले निष्कर्षों के मुताबिक़ जलवायु परिवर्तन की वजह से नदियों का जल स्तर जल स्तर घाट रहा है और आगे इसके भयावह परिणाम सामने आएंगे अमेरिकन मीटियरॉलॉजिकल सोसाइटी की जलवायु से जुड़ी पत्रिका ने वर्ष 2004 तक, पिछले पचास वर्षों में दुनिया की 900 नदियों के जल स्तर का विश्लेषण किया है जिसमें यह तथ्य निकलकर आया है कि दुनिया की कुछ मुख्य नदियों का जल स्तर पिछले पचास वर्षों में गिर गया है यह अध्ययन अमेरिका में किया गया है अध्ययन के अनुसार इसकी प्रमुख वजह जलवायु परिवर्तन है पूरी दुनिया में सिर्फ़ आर्कटिक क्षेत्र में ही ऐसा बचा है जहाँ जल स्तर बढ़ा है और उसकी वजह है तेज़ी से बर्फ़ का पिघलना भारत में ब्रह्मपुत्र और चीन में यांगज़े नदियों का जल स्तर अभी भी काफ़ी ऊँचा है मगर चिंता ये है कि वहाँ भी ऊँचा जल स्तर हिमालय के पिघलते ग्लेशियरों की वजह से है. भारत की गंगा नदी भी गिरते जल स्तर से अछूती नहीं है उत्तरी चीन की ह्वांग हे नदी या पीली नदी और अमरीका की कोलोरेडो नदी दुनिया की अधिकतर जनसंख्या को पानी पहुँचाने वाली इन नदियों का जल स्तर तेज़ी से गिर रहा है अध्ययन में यह भी पता चला है कि दुनिया के समुद्रों में जो जल नदियों के माध्यम से पहुँच रहा है उसकी मात्रा भी लगातार कम हो रही है इसका मुख्य कारण नदियों पर बाँध बनाना तथा खेती के लिए नदियों का मुँह मोड़ना बताया जा रहा है लेकिन ज़्यादातर विशेषज्ञ और शोधकर्ता गिरते जल स्तर के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं उनका मानना है कि बढ़ते तापमान की वजह से वर्षा के क्रम में बदलाव आ रहा है और जल के भाप बनने की प्रक्रिया तेज़ हो रही है. मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा का भी जल स्तर काफी तेज़ी से गिर रहा है जिसका मुख्य कारण नर्मदा के दोनों तटों पर घटते वन्य क्षेत्र और जलवायु परिवर्तन माना जा रहा है विशेषज्ञों ने प्राकृतिक जल स्रोतों की ऐसी क़मी पर चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा है कि दुनिया भर में लोगों को इसकी वजह से काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. उनका कहना है कि जैसे जैसे भविष्य में ग्लेशियर या हिम पिघलकर ग़ायब होंगे इन नदियों का जल स्तर भी नीचे हो जाएगा.