April 12, 2010

राईट टू एजुकेशन: क्या बच्चों को दिला पायेगा शिक्षा का अधिकार ?


* पैसा आया आड़े, राज्यों ने फैलाए हाथ ?
(कमल सोनी)>>>> चाहे केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकारें एक तरफ तो शिक्षा के लिए धन की कमी नहीं आने देने के बात कहती हैं तो दूसरी तरफ राईट टू एजुकेशन क़ानून को लागू करने में धन के अभाव की बात कहते हुए केन्द्र और राज्य सरकारे आमने सामने खादी है. राईट टू एजुकेशन एक्ट 1 अप्रैल से पूरे भारत में लागू तो हो गया. साथ ही शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद भारत उन 130 से अधिक देशों की सूची में शामिल भी हो गया है, जो बच्चों को नि:शुल्क और आवश्यक शिक्षा उपलब्ध कराने की कानूनी गारंटी प्रदान करते हैं. लेकिन अब सरकार के सामने नई चुनौतियां सामने आने लगीं हैं. देश के राज्यों ने पैसे का आभाव बताते हुए केंद्र के सामने अरबों रुपये की मांग कर दी है. मध्यप्रदेश समेत देश के ११ राज्यों ने केन्द्र से पैसों की मांग की है. परिणामस्वरूप केन्द्र सरकार को इस क़ानून को लागू करवाने में पसीना आ रहा है. वैसे भी शिक्षा अधोसंरचना में कमी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है लेकिन राज्यों का केन्द्र के सामने हाथ फैलाना राईट टू एजुकेशन एक्ट की रह में रोडे अटका रहा है. हालांकि सभी राज्य सरकारें इस क़ानून को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार के साथ होने के बात कर रही हैं लेकिन धन का आभाव बताते हुए असमर्थता भी व्यक्त कर रही हैं. राज्यों का कहना है कि इस कानून को लागू करने में होने वाले खर्च में केन्द्र अपना प्रस्तावित हिस्सा ५५ प्रतिशत से बढ़ाकर ७५-९० प्रतिशत के बीच रखे. बिहार का तो यह कहना है कि केन्द्र शत प्रतिशत राशि वाहन करे. एक अनुमान के मुताबिक़ इस ऐतिहासिक क़ानून को लागू करने में आने वाले पांच सालों में १.७१ लाख करोड रुपये का खर्च आएगा. यहे मुख्य वजह है कि राज्य सरकारों ने केन्द्र के सामने हाथ फैलाये हैं.

क्या हैं चुनौतियां :- क्या सिर्फ कानून बन जाने से देश भर के बच्चों की मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का रास्ता तय हो जाएगा ? निश्चित रूप से नहीं. और फिर यदि देश में कानून बनाने और उसके अमल करने के इतिहास पर गौर करें तो भय सिर्फ इसी बात का लगता है कि कहीं यह क़ानून भी कागजों में ही न रह जाए. शिक्षा का अधिकार कानून लागू होते ही सरकार के सामने नई नई चुनौतियां है. 1५ लाख नए शिक्षकों की भर्ती, नए स्कूल बनाना, स्कूलों में क्लासरूम बढ़ाना, शिक्षकों को प्रशिक्षण देना, निजी स्कूलों के लिए क़ानून को सख्ती से लागू करना. देश के दूर दराज़ के इलाके जहां शिक्षा का परिदृश्य और वहा की जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं हैं वहाँ क़ानून का सख्ती से पालन करवाना. अपने आप में किसी चुनौती से कम नहीं है. इतना ही नहीं दूर दराज़ के क्षेत्रों की शालाओं में शिक्षकों की अनुपस्थिति, अभिभावकों की उदासीनता, सही पाठय़क्रम का अभाव, अध्यापन में खामियां, अव्यवस्था, भ्रष्टाचार इत्यादि कई खामियां है जो राईट टू एजुकेशन एक्ट के अमल में रोडे अटका सकती हैं. भले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह कह दिया हो कि 'सब हो जाएगा और कानून के अमल में धन की कमी आड़े नहीं आने दी जाएगी' लेकिन यकीन जाने तो चुनौतियों की सूची बहुत लंबी है. और फिर शिक्षा के लिए बजट में इतना प्रावधान करना सरकार भी सरकार के लिए इतना आसान नहीं होगा.

सरकार ने भी स्वीकारी चुनौतिया :- अब एक अहम सवाल यह उठता है कि क्या यह कानून वास्तव में हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार दिला पायेगा ? राईट टू एजुकेशन एक्ट महज़ लागू कर देना ही काफी नहीं है. सरकार के समक्ष इसके अमल का असली इम्तिहान तो अब शुरू हो गया है. स्वयं मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल भी इसे बड़ी चुनौती माना है. उन्होंने कहा, 'सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना बड़ी चुनौती है. इसीलिए अब हर राज्य के शिक्षा सचिवों को अलग-अलग बुला कर उनसे मशविरा किया जाएगा.' केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल का दावा तो यह है कि इससे देश के करीब एक करोड़ बच्चों को फायदा होगा. उनके अनुसार इससे छह से 14 वर्ष के बीच की उम्र के इन बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा पाने का अधिकार मिल जाने से शिक्षा हासिल करके अपनी और अपने परिवार की गरीबी दूर करने और विकास की मुख्यधारा में शामिल हो पाने का नया अवसर मिलेगा. मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को लागू करने की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों के अलावा न्यायपालिका और शैक्षिक प्रशासन की भी होगी.

क्या कह रहे हैं राज्य :-

राजस्थान :- प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा डॉ. ललित पवारने कहा कि राज्य धनराशी की भागीदारी में ७५:२५ की भागीदारी चाहता है.
गुजरात :- शिक्षामंत्री रमनलाल वोरा ने कहा कि राज्यों को फंडिग में ४५ प्रतिशत की भागीदारी के लिए कहने का कोई मतलब नहीं है, फंडिग ७५:२५ के अनुपात में होनी चाहिए.
महाराष्ट्र :-कानून को लागू करने के लिए तैयार है. राज्य में पर्याप्त संख्या में मानावाबल उपलब्ध है तथा यहाँ शिक्षको की कमी की कोई विशेष समस्या नहीं है. इससे ६ से १४ वर्ष की आयु के लगभग १.३७ लाख बच्चो को फ़ायदा मिलेगा जो कभी स्कूल नहीं गए है.
मध्यप्रदेश :- शिक्षा को अनिवार्य करने के लिए राज्य को १३ हजार करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी. यह राशि केंद्र सरकार को बहन करनी चाहिए. प्रदेश में इसके लिए १.२५ लाख अतिरिक्त शिक्षको की भी जरुरत होगी.
तमिलनाडू :- स्कूल शिक्षा थंगम थेनारासु के अनुसार शिक्षको की कोई कमी नहीं है. राज्य को सिर्फ एक हजार और शिक्षको की आवश्यकता होगी.
अरुणाचल प्रदेश : शिक्षामंत्री बोसीराम सिराम के अनुसार अच्छे शिक्षको की कमी एक बड़ी समस्या है.
उतरप्रदेश :- मुख्यमंत्री मायावती ने केंद्र पर आरोप लगाया है. कि कानून को लागू करने के लिए धन की व्यवस्था न कर केंद्र इस कानून को लागू करने में व्यावहारिक दिक्कतों को अनदेखा कर रहा है. राज्य के वित्तीय हालात ऐसे नहीं है. कि कानून को लागू करने की लागत को वहन कर सके.
बिहार :- इस अधिनियम को लागू करने के लिए बिहार को ३.३० लाख और शिक्षको तथा १.८ लाख अतिरिक्त क्लासरुम्स की आवश्यकता होगे. मानव संसाधन मंत्री कानून को लागू करने के लिए राज्य को २० हजार करोड़ की जरुरत होगी.
पश्चिम बंगाल :- शिक्षा मंत्री पार्थ डे का कहना है कि हम केंद्र-राज्य में ७५:२५ अनुपात की भागीदारी चाहते है. सरकार एक लाख शिक्षको की भर्ती कर रही है तथा ५०% भर्ती हो चुकी है. निजी स्कूलों का रोना रोया कि हम उन्हें कोटा आरक्षण के लिए बाध्य नहीं कर सकते.
उडीसा :- स्कूल शिक्षा मंत्री प्रताप की मांग है कि फंडिंग ९०:१० के अनुपात में की जाए. इस कानून को लागू करने के लिए उड़ीसा को १६०० करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी. उड़ीसा जैसा गरीब राज्य इस धनराशि को वहन नहीं कर सकता.
आन्ध्र प्रदेश :- राज्य के शिक्षा मंत्री डीएमवी प्रसाद राव ने कहा हम कानून लागू करने के लिए तैयार है. राज्य में शिक्षको की कोई कमी नहीं है क्योकि कुछ स्थानों में उनकी अधिकता है.

क्या है शिक्षा का अधिकार कानून :- भारत आज विश्व की एक प्रमुख आर्थिक महाशक्ति है. चीन के बाद सबसे तेज आर्थिक विकास दर हमारी है. हमारे यहाँ दुनिया का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा और गतिशील व मजबूत उपभोक्ता बाजार मौजूद है. इन तमाम तमगों के बीच अशिक्षा हमारी एक बड़ी भयावह सच्चाई है. अब एक अप्रैल से देश के 6-14 आयुवर्ग के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देना कानूनी रुप से सरकार के लिए जरुरी हो जाएगा. यह सब कुछ संभव हो रहा है बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार एक्ट-2009 की वजह से. केंद्र सरकार ने इस बिल पर पिछले साल ही अपनी मुहर लगा दी थी और तय किया था कि एक अप्रैल 2010 को इसे पूरे देश में लागू कर दिया जाएगा. अनामांकित एवं शाला से बाहर बच्चों के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की जायेगी. किसी भी बच्चे को कक्षा 8 तक फेल करने पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया है. तो दूसरी और शिक्षा सत्र के दौरान कभी भी प्रवेश दिया जाएगा. यह कानून स्कूलों में शिक्षक और छात्रों के अनुपात को सुधारने की बात करता है. मसलन अभी कई स्कूलों में सौ-सौ बच्चों पर एक ही शिक्षक हैं. लेकिन इस कानून में प्रावधन है कि एक शिक्षक पर 40 से अधिक छात्र नहीं होंगे. शालाओं में बच्चों को शारीरिक दण्ड देने एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित करना पूर्णत: प्रतिबंधित कर दिया गया है. इस कानून के अनुसार राज्य सरकारों को बच्चों की आवश्यकता का ध्यान रखते हुए लाइब्रेरी, क्लासरुम, खेल का मैदान और अन्य जरूरी चीज उपलब्ध कराना होगा. शिक्षकों का गैर शिक्षकीय कार्य में लगाना प्रतिबंधित कर दिया गया है. यानि अब शिक्षकों को गैर शिक्षकीय कार्यों में नहीं लगाया जायेगा. कानून के मुताबिक बिना मान्यता के किसी भी स्कूल का संचालन नहीं होगा.

क्या है क़ानून में कमियां :- शिक्षा विदों का कहना है कि इस कानून में 0-6 आयुवर्ग और 14-18 के आयुवर्ग के बीच के बच्चों की बात नहीं कई गई है. जबकि संविधान के अनुछेच्द 45 में साफ शब्दों में कहा गया है कि संविधान के लागू होने के दस साल के अंदर सरकार 0-14 वर्ग के आयुवर्ग के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा देगी. हालांकि यह आज तक नहीं हो पाया. वहीं अंतराष्ट्रीय बाल अधिकार समझौते के अनुसार 18 साल तक की उम्र तक के बच्चों को बच्चा माना गया है. जिसे 142 देशों ने भी स्वीकार किया है. भारत भी उनमें से एक है. ऐसे में 14-18 आयुवर्ग के बच्चों को शिक्षा की बात इस कानून में क्यों नहीं कई गई है ? वहीं दूसरी और इस कानून पर जानकारी के अभाव में असमंजस की स्थिति भी बनी हुई है. और कुछ सवाल हैं जिनके उत्तर उन्हें ढूंढे नहीं मिल रहे. जैसे स्कूल में किन बच्चों को मुफ्त में पढ़ाना है, इसका खर्च क्या सरकार देगी और देगी भी तो कैसे और कितना. २५ फीसदी बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान कानून में है तो क्या क्लास में बच्चों की संख्या बढ़ानी है या पहले की तरह ही यथावत रखनी है. ऐसे कई सवाल स्कूल संचालकों ने उठाए हैं. नए अधिनियम की जानकारी देने के लिए अब तक शिक्षा विभाग ने निजी स्कूल संचालकों को कोई पत्र नहीं लिखा है और ना ही मामले में कोई कार्यशाला का आयोजन किया है. लिहाजा स्कूल संचालक पशोपेश की स्थिति में है.

शिक्षा का अधिकार वाला भारत 135वां देश :- शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद भारत उन 130 से अधिक देशों की सूची में शामिल हो गया है, जो बच्चों को नि:शुल्क और आवश्यक शिक्षा उपलब्ध कराने की कानूनी गारंटी प्रदान करते हैं. वहीं दुनिया के सिर्फ 13 देश ही ऐसे हैं जहां पूरी तरह नि:शुल्क शिक्षा मिलती है. बच्चों को पंद्रह साल तक पूरी तरह नि:शुल्क शिक्षा मुहैया कराने के मामले में चिली सबसे शीर्ष स्थान पर है. यह देश छह से 21 साल की उम्र तक के बच्चों को पूरी तरह मुफ्त और आवश्यक शिक्षा मुहैया कराता है. शिक्षा के अधिकार को दुनियाभर में अहम मानव अधिकार के तौर पर मान्यता है. इसे सबसे पहले मानवाधिकार संबंधी सार्वभौम घोषणापत्र 1948 [यूनिवर्सल डिक्लरेशन आफ ह्यूमन राइट्स 1948] के तहत मान्यता मिली थी.

बहरहाल विश्व स्तर पर आज हमारा भारत देश हर तरह से संपन्न और प्रगतिशील माना जाता हैं. आज देश ने आकाश से बढ़कर ब्रह्माण्ड को छूने में कामयाबी हासिल की हैं. लेकिन इस पूरे प्रगतिशील दौर में आज भी देश में शिक्षा का स्तर पहले अधिक चिंताजनक बना हुआ है. आज भले ही हमारे पास हर एक किलोमीटर पर स्कूल और पाठशालाएं मौजूद हों लेकिन शिक्षा का स्तर लगातार गिरता रहा है. आज दौर में भले ही हमने ज्यादा से ज्यादा बच्चों को स्कूल में दाखिला दिला दिया हो लेकिन शिक्षा के पैमानों में इन बच्चों की स्थिति और भी अधिक चिंताजनक हो गई है. देश में सभी के लिए राईट टू एजुकेशन क़ानून भले ही लागू हो गया हो. लेकिन यह अधिकार महज़ कागजों पर ही सिमट कर ना रह जाए इसके लिए निश्चित रूप कई चुनौतियों का सामना करना होगा. आज राज्य सरकारों का पैसे का अभाव बताकर केन्द्र से राशि की मांग करना भले ही केन्द्र सरकार के पसीने निकाल रहा हो. लेकिन अब जब इस क़ानून को लागू कर ही दिया है. तो हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले इसके लिए हर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.

6 comments:

Jandunia said...

ये बहुत बड़ा सवाल है कौन देगा जवाब।

honesty project democracy said...

Jis din is desh main shiksha wyawshtha ko is desh ke bhrasht mantriyon ke nigrani se hatakar desh ke imandar samajsewkon jaise anna hajare,arvind kejriwal,kiran bedi jaise logon ke nigrani main de diya jayega aur har sarkari aur private school ke kharchon ki har tin mahine main samajik janch karna aniwary kar har school ko no loss no profit ke aadhar par chlana aniwary kar diya jayega ,yakin maniye is desh main shiksha main sudhar usi din se hone lagega.Ham log social audit ke liye hi lar rahen hain aap bhi hamare laraie main shamil hokar iska netritw apne chhetr main karen.LOGIN KAREN http://www.hprdindia.org YA http://www.lokrajandolan.org YA HAMEN FHON KAREN-09810752301

SANJEEV RANA said...

yaha kuch nhi hota bhai

Anonymous said...

Esme sabhi teachars ka ak saman pay honi chahiye.abhi kisi ko 25000 mil rahe hai aur kisi ko 2500.par kaam sabhi barabpr kar rahe hai.kuchh teacher ki to atayamt kharm haal hai.

sandeep soni said...

Esme sabhi teachars ka ak saman pay honi chahiye.abhi kisi ko 25000 mil rahe hai aur kisi ko 2500.par kaam sabhi barabpr kar rahe hai.kuchh teacher ki to atayamt kharm haal hai.

sandeep soni said...

Esme sabhi teachars ka ak saman pay honi chahiye.abhi kisi ko 25000 mil rahe hai aur kisi ko 2500.par kaam sabhi barabar kar rahe hai.kuchh teacher ka to atayant kharb haal hai.