भोपाल (कमल सोनी) >>>> बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जिन्होंने बायोमेट्रिक्स का नाम सुना होगा. और यदि सुना भी हो तो शायद इस तकनीकी से निश्चित रूप से अपरिचित होंगे. दरअसल बायोमेट्रिक्स पहचान की अत्याधुनिक तकनीक है. इस तकनीक के माध्यम से इंसानों के विशेष लक्षणों को आधार बनाकर किसी परिस्तिथी विशेष में सही व्यक्ति की पहचान एक ख़ास अंदाज़ में की जाती है. साथ ही आज की Information Technology के युग में बायोमेट्रिक का व्यापक रूप से इस्तेमाल कर जहां एक ओर सुरक्षा के पुख्ता इन्तेजाम किये जा सकते हैं तो दूसरी और शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लायी जा सकती है. भ्रष्टाचार पर अंकुश भी लग सकता है तो किसी भी विभाग की कार्यशैली की मौजूदा पेचीदिगियों को भी दूर किया जा सकता है. राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय या फिर क्षेत्रीय स्तर पर किसी भी व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित की जा सकती है. इन्ही खूबियों के चलते अमेरिका, जापान, जर्मनी, आस्ट्रेलिया जैसे कई विकसित देश अरबों-खरबों रूपये निवेश कर बड़े पैमाने पर इस बायोमेट्रिक्स तकनीक का इस्तेमाल भी कर रहे हैं. साथ ही Information Technology के माध्यम से नए-नए प्रयोग कर Biometric के व्यापक इस्तेमाल के लिए कई अनुसंधान कार्य जारी हैं.
Biometrics Technology के प्रयोग से जहां एक ओर अपराधिक तत्वों और उनकी अपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लग सकता है तो दूसरी ओर स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक Database तैयार कर कई जोखिमों से बचा जा सकता है. किसी Organization, Company अथवा किसी विभाग के कर्मचारियों को पंजीबद्ध कर प्रतिदिन की उनकी उपस्तिथी से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर Biometrics I-Card के माध्यम से Online Voting करवाकर Fake Voting से भी बचा जा सकता है. इन I-Card के माध्यम से राष्ट्रीय, प्रादेशिक या फिर क्षेत्रीय स्तर पर जनगणना जैसे अहम् कार्य बिना किसी ज़मीनी मशक्कत के सम्पन्न किये जा सकते हैं.
क्या है बायोमेट्रिक्स :- बायोमेट्रिक्स तकनीक इंसानों को ख़ास अंदाज़ में पहचानने का तरीका है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति विशेष में कुछ लक्षण ऐसे होते हैं जो उसे अन्य इंसानों से जुदा अथवा अलग कर देते हैं. यही वो लक्षण हैं जो व्यक्ति विशेष की सटीक पहचान में सहायक होते हैं. इंसानों के इन्ही लक्षणों के नमूने बायोमेट्रिक नमूने कहलाते है. इन बायोमेट्रिक नमूनों को कम्यूटर में एक विशेष डाटाबेस तैयार कर स्टोर कर लिया जाता है. तथा समय आने पर एक विशेष सोफ्टवेयर के माध्यम से व्यक्ति के नमूनों को लेकर डाटाबेस में स्टोर नमूनों से मिलान कर सही व्यक्ति की पहचान कर ली जाती है. जब हम किसी व्यक्ति के बायोमेट्रिक नमूने (फिंगर प्रिंट, आयरिस) एक इलेक्ट्रानिक डिवाइस (फिंगर प्रिंट स्केनर, आयरिस स्केनर) की मदद से कम्प्यूटर में स्टोर करते है इस प्रक्रिया के दौरान सोफ्टवेयर इन नमूनों का विशेष कोड/स्ट्रक्चर तैयार कर लेता है जो कि यूनिक अथवा एक ही होता है तथा दूसरी बार जब मिलान के लिए पुनः फिंगर प्रिंट/आयरिस नमूने लिए जाते है तो सोफ्टवेयर पुनः वही कोड/स्ट्रक्चर तैयार कर डाटाबेस में स्टोर उसी व्यक्ति के कोड/स्ट्रक्चर से मैच कर यह मेसेज दे देता है कि सम्बंधित व्यक्ति कौन है. यह तकनीक उन व्यक्तियों की भी पहचान में सहायक है जो संदिग्ध होते हैं और झुण्ड में रहते हैं. तथा किसी न किसी अपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं.
क्या होते है वे ख़ास लक्षण :- इंसान के वे खास लक्षण जो उसे किसी दूसरे व्यक्ति से अलग पहचान देते हैं उनमें प्राकृतिक, शारीरिक, व्यवहारिक और अनुवांशिक लक्षण शामिल होते हैं. इन लक्षणों को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है.
१. फिजियोलोजिकल २. बिहेवियरल
फिजियोलोजिकल लक्षण :- ये लक्षण मुख्यतः शारीरिक बनावट से सम्बंधित होते हैं. जैसे कि इंसान के फिंगर प्रिंट, आयरिस यानि आँखों की पुतली, चहरे की बनावट, डीएनए, शरीर की गंध इत्यादि कुछ बायोमेट्रिक लक्षण हैं जो व्यक्ति विशेष की पहचान में सहायक होते हैं.
बिहेवियरल लक्षण :- बिहेवियरल लक्षण अर्थात नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि इन लक्षणों को इंसानों के व्यवहारिक लक्षणों में शामिल किया जाता है जैसे बातचीत का तरीका, चलने का ढंग, आवाज़ इत्यादि.
इन बायोमेट्रिक लक्षणों में सबसे ज़्यादा सफल, सरल और सटीक परिणाम देने वाले लक्षण हैं आयरिस तथा फिंगर प्रिंट. यही वजह है इंसानों के इन दो लक्षणों को आधार बनाकर व्यापक रूप से इसके इस्तेमाल के लिए कई प्रयोग किये जा रहे हैं. जिसके सकारात्मक परिणाम भी मिल रहे हैं.
कैसे करती बायोमेट्रिक्स तकनीक काम :- बायोमेट्रिक्स प्रणाली में सबसे पहले एक समूह विशेष का Enrollment किया जाता है और एक डाटाबेस तैयार कर लिया जाता है. यह समूह विशेष कोई भी हो सकता है. चाहे वह स्थानीय स्तर पर हो या फिर राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर या फिर किसी विभाग अथवा कोई कंपनी विशेष के कर्मचारी. किसी भी स्तर के उस समूह विशेष के बायोमेट्रिक नमूने (फिंगर प्रिंट, आयरिस, या फिर दोनों) एक सोफ्टवेयर तथा एक इलेक्ट्रौनिक डिवाइस (फिंगर प्रिंट स्केनर, आयरिस स्केनर) के माध्यम से डाटाबेस में स्टोर कर लिए जाते हैं. फिर इन नमूनों के साथ सम्बंधित व्यक्ति की अन्य जानकारी जैसे नाम, पता, लाइसेंस नंबर, फोटोग्राफ इत्यादि कुछ जानकारियाँ भी स्टोर कर ली जाती है तथा व्यक्ति को एक आई कार्ड भी दे दिया जाता है. फिर समय आने पर पुनः इस आई कार्ड के साथ व्यक्ति का नमूना लेकर डाटाबेस में स्टोर नमूने से मिलान कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि दावा करने वाला व्यक्ति वही हैं कि नहीं जिसके नाम अथवा पते का आई कार्ड वह लेकर आया है.
क्या होते हैं पहचाने के तरीके :- बायोमेट्रिक्स तकनीक से किसी व्यक्ति की पहचान मुख्यतः दो तरीकों से की जाती है :
१.वेरीफिकेशन २.आइडेंटीफिकेशन
वेरीफिकेशन :- जब वन टू वन की तुलना अथवा पहचान करनी हो तो वेरीफिकेशन किया जाता है. अर्थात वह व्यक्ति जो क्लेम कर रहा है उसके बायोमेट्रिक्स नमूने (फिंगर प्रिंट या फिर आयरिस) को लेकर पहले से ही डाटाबेस में स्टोर उसी व्यक्ति के नाम और कोड के बायोमेट्रिक्स नमूनों (फिंगर प्रिंट या आयरिस) से मिलान कर इस बात की पुश्टी की जाती है कि क्लेम करने वाला व्यक्ति कोई दूसरा व्यक्ति तो नहीं.
उदाहरण के लिए वाल्ट डिस्नी वर्ल्ड में बायोमेट्रिक्स तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. वहां टिकिट बिक्री के वक्त टिकिट खरीदने वाले व्यक्ति का फिंगर प्रिंट ले लिया जाता है तथा जब बाद में वह व्यक्ति टिकिट के साथ डिस्नी वर्ल्ड में प्रवेश करता है तो प्रवेश के वक्त पुनः उस व्यक्ति का फिंगर प्रिंट लेकर डाटाबेस में पहले स्टोर फिंगर प्रिंट के साथ मिलान कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रवेश करने वाला व्यक्ति वही व्यक्ति है जिसने टिकिट खरीदा है. कहीं उसकी जगह कोई अन्य व्यक्ति तो टिकिट का इस्तेमाल नहीं कर रहा.
आइडेंटीफिकेशन :- जब वन टू मेनी की तुलना अथवा पहचान करनी हो तो आइडेंटीफिकेशन किया जाता है. आइडेंटीफिकेशन मुख्यतः संदिघ्धों की पहचान के लिए किया जाता है.
कब हुआ पहली बार बायोमेट्रिक्स का इस्तेमाल :- पहली बायोमेट्रिक्स तकनीक का इस्तेमाल वर्ष २००४ में एथेंस (ग्रीस) में हुए ओलम्पिक गेम्स के दौरान किया गया था. जिसमें दर्शकों तथा विसिटर्स जिनमें एथीलीट, कोचिंग स्टाफ, टीम मेनेजमेंट तथा मीडिया कर्मी शामिल थे उनको बायोमेट्रिक्स तकनीक से लैस आई कार्ड दिए गए थे. तथा इन आई कार्ड धारी विसिटर्स को पहचान के बाद ही स्टेडियम में प्रवेश दिया गया था. वर्ष २००४ में एथेंस (ग्रीस) में हुए ओलम्पिक गेम्स के दौरान ऐसा इसीलिये किया गया था क्योंकि वर्ष १९७२ में जर्मनी में हुए ओलम्पिक गेम्स के दौरान आतंकवादी हमले में ११ इस्रायली एथीलीट मारे गए थे.
कहाँ किया जा सकता है बायोमेट्रिक्स तकनीक का इस्तेमाल :-
<><> विभाग,संस्था या किसी कंपनी के कर्मचारियों के बायोमेट्रिक्स नमूनों का डाटाबेस तैयार कर उनकी प्रतिदिन की उपस्तिथी से लेकर उनकी परफोर्मेंस पर नज़र रखी जा सकती है.
<><> इलेक्ट्रौनिक मतदाता पहचान पत्र/इलेक्ट्रौनिक पहचान पत्र बनाकर देश के नागरिकों का रिकॉर्ड एक जगह स्टोर किया जा सकता है. तथा चुनाव के वक्त उसी इलेक्ट्रौनिक मतदाता पहचान पत्र के साथ बायोमेट्रिक्स नमूने से पहचान कर राष्ट्रीय प्रादेशिक अथवा क्षेत्रीय स्तर के ऑनलाइन मतदान संपन्न कराये जा सकते है जिससे न केवल बूथ कैप्चरिंग और फेक वोटिंग से बचा जा सकता है. बल्कि सही मतदान के प्रतिशत का पता भी लगाया जा सकता है.
<><> जन्म के तुरत बाद ही यदि किसी बच्चे के बायोमेट्रिक्स नमूने को लेकर उसकी समस्त जानकारी स्टोर कर लिया जाए और इलेक्ट्रौनिक मतदाता पहचान पत्र/इलेक्ट्रौनिक पहचान पत्र बना दिया जाए तो आने वाले 25 सालों में राष्ट्रहित में पूरा डिजिटल डाटाबेस तैयार किया जा सकता है. साथ ही सुरक्षा के दृष्टिकोण पर किसी संस्था, विभाग, कार्यालय, होटल, या किसी खेल के मैदान या फिर वे सभी स्थान जहां प्रतिदिन कई लोगों का आना-जाना होता है उन जगहों पर प्रवेश के पूर्व इलेक्ट्रौनिक मतदाता पहचान पत्र/इलेक्ट्रौनिक पहचान पत्र अनिवार्य कर प्रवेश कर रहे व्यक्ति की सम्पूर्ण जानकारी लेकर कई जोखिमों से बचा जा सकता है. इसके अलावा रेलवे रिसर्वेशन के वक्त, फ्लाईट रिसर्वेशन वक्त भी इलेक्ट्रौनिक मतदाता पहचान पत्र/इलेक्ट्रौनिक पहचान पत्र को अनिवार्य कर कई आत्मघाती घटनाओं और हमलों को होने से रोका जा सकता है.
<><> अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल पासपोर्ट बनाए जा सकते है.
<><> बैंक अपने ग्राहकों को बायोमेट्रिक्स तकनीक से लैस ATM और Credit Card देकर किसी भी तरह की फ्रॉड गतिविधियों पर रोक भी लगा सकते हैं.
<><> सुरक्षा तंत्र को मज़बूत बनाने के लिए अपराधिक गतिविधियों में संलग्न व्यक्तियों का पृथक से बायोमेट्रिक्स रिकॉर्ड रख उनकी पहचान के साथ उनकी गतिविधयों पर आसानी से नज़र रखी जा सकती है.
भारत में भी हो रहा है बायोमेट्रिक्स का सफल इस्तेमाल :-
<><> 29 जुलाई 2009 से गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय हिसार हरयाना में शिक्षकों व गैर शिक्षक कर्मचारियों की हाजिरी के लिए विवि प्रशासन ने बायोमेट्रिक्स सिस्टम शुरू किया.
<><> 5 अगस्त 2008 से ग्वालियर महापौर विवेक नारायण शेजवलकर ने कर्मचारियों में अनुशासन तथा अपने कार्य के प्रति जबाबदेही बढ़ाने के लिये महाराज बाड़े पर स्थित मुख्यालय पर बायोमेट्रिक्स मशीन का उद्धाटन किया. यह मशीन कर्मचारी के कार्यालय में आने एवं जाने के समय को रजिस्टर करेगी, इसमें प्रत्येक कर्मचारी के ''थम्ब इम्प्रेशन'' को ''स्केन'' कर एक ''कोड नम्बर'' दबाकर एवं अपना ''थम्ब'' (अंगूठा) मशीन के ''स्केनर'' के सामने रखकर अपनी उपस्थिति दर्ज करायेगा। साथ ही इस प्रकार का साफ्टवेयर भी तैयार किया जा रहा है जिसके आधार पर बायोमेट्रिक्स मशीन में प्राप्त डाटा सीधे वेतन संबंधी साफ्टवेयर से लिंक किया जावेगा ताकि इस मशीन में दर्ज उपस्थिति का वेतन निर्धारण में उपयोग किया जा सके।
<><> 26 जून 2009 से दिल्ली की पांच अदालतों जल्द ही बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली प्राम्भ करने के आदेश जारी किये. अदालत के द्वारा कर्मचारियों में अनुशासन बनाए रखने और कार्य संस्कृति विकसित करने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है।
<><> 1 सितम्बर 2009 से केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने कर्मचारियों का तय समय पर आना-जाना सुनिश्चित करने के लिए मंगलवार को नार्थ ब्लॉक स्थित जैसलमेर हाउस और लोकनायक भवन के कार्यालयों में बायोमेट्रिक उपस्थिति नियंत्रण प्रणली (बीएसीएस) का उद्घाटन किया। समय की पाबंदी के मामले में चिदम्बरम ने खुद ही पहल की और सुबह 9 बजे नार्थ ब्लॉक पहुंच गए और बीएसीएस के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
<><> इसके अलावा भी कई कंपनियों और विभागों ने बायोमेट्रिक्स तकनीक का इस्तेमाल कर पायलट बेस पर इस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं
4 comments:
बहुत बढिया व नयी जानकारी भरी पोस्ट है आभार।
in India biometric test is also used in U.K. Visas.by british embassy.
Thanks for given information
Railway mein exam k samay jo biomatric kiya jata hai uska record kab tak rahta hai.
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