April 17, 2009

इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में


यूं तो चुनाव आते ही इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता उसकी सत्यता और पारदर्शिता पर कई सवाल उठाये जाते रहे हैं इसी तारतम्य में एक बार फिर इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ गई है लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता को लेकर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर में एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसे माननीय न्यायालय ने विचारार्थ स्वीकार कर लिया गया है
याचिका कर्ता शेलेन्द्र प्रधान और अनिल चावला ने द्वारा प्रस्तुत याचिका में कहा गया है कि इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की कभी भी किसी निष्पक्ष एजेंसी द्वारा जाँच नहीं की गई है हालाकि इससे पूर्व वर्ष १९९० में इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की जांच के सम्बन्ध में विचार किया गया था याचिका कर्ता का कहना है कि विगत १९ वर्षों में एक बार भी इन इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन की जांच नहीं कराइ गई साथ ही याचिका कर्ताओं ने यह भी तर्क दिया है कि दो दशक पूर्व विकसित तकनीक को आज सुरक्षित और विश्वसनीय मानने का कोई तर्कसंगत या वैज्ञानिक आधार नहीं बनता साथ ही पिछले कुछ वर्षों में विकसित हुई हैकिंग तकनीकी भी सुरक्षित इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के लिए खतरा है
याचिका के साथ भोपाल के एक मतदान केंद्र के ग्यारह मतदाताओं के शपथ पत्र संलग्न किये गए हैं इन शपथ पत्रों में मतदाताओं ने कहा है कि २००८ के विधानसभा चुनाव में उन्होंने शैलेन्द्र प्रधान के पक्ष में मतदान किया था लेकिन शैलेन्द्र प्रधान को तीन ही वोट मिले यह ईवीएम की सत्यता पर एक सवालिया निशान है
वैज्ञानिकों की राय :- याचिकाकर्ताओं ने याचिका के साथ अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिकों टाडा युग्यिकोंदो, एडम्स स्टपल फील्ड, एवियल दी रुबिन, डेन एस वेलेच का वह शोध पत्र दाखिल किया है जिसमें यह दावा किया गया है कोई भी पूर्ण सुरक्षित ईवीएम मशीन नहीं बनाई जा सकती साथ ही विकसित देश और वैज्ञानिकों के कथन के अनुसार कोई भी मशीन पूरी तरह से त्रुटि रहित नहीं बनाई जा सकती वैज्ञानिकों का कहना है कि त्रुटी की संभावना चले एक लाख में एक हो या फिर १० लाख में एक लेकिन वह कभी शून्य नहीं हो सकती
कैसे होता है अन्य देशों में मतदान :- याचिका में कहा गया है कि विकसित देशों में विकसित देशों में वोटिंग मशीन में वोट डालने के बाद मतदाता के लिए यह सुनिश्चित कर लेने की व्यवस्था होती है कि कि उसका मत उसी प्रत्याशी को गया है जिसका उसने बटन दबाया है इसके लिए प्रत्येक मतदाता को वोटिंग मशीन से एक प्रिंट आउट मिलता है जिसमें उसके द्वारा चनित प्रत्याशी का नाम मुद्रित होता है मतदाता उसी प्रिंट आउट को एक अन्य मतपेटी में डाल देता है ऐसे में किसी भी असमंजस या विवाद की स्थिति में मतपेटी के आधार पर पुनः गणना की जा सकती है याचिका कर्ता के अनुसार भारत में मतदाता के पास यह जानने का कोई तरीका नहीं कि उसका मत उसी प्रत्याशी को गया है जिसका उसने बटन दबाया है
क्या है ईवीएम ? :- इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) जैसा की नाम से ही पता चलता है कि ऐसी मशीन जिसका प्रयोग मतदान के लिए होता है समय, पैसा और कर्मचारियों की बचत के उद्देश्य से देश में इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के ज़रिये मतदान प्रारंभ हुआ इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) मुख्यतः दो भाग में होती है पहला बैलेट यूनिट जहां मतदाता से समक्ष प्रत्याशियों के नाम उनका चुनाव चिन्ह और ठीक उसके बगल में एक बटन होता है जिसे दबाकर वह अपना पसंदीदा प्रत्याशी चुनता है दूसरा भाग कंट्रोल यूनिट होता है जिसका कंट्रोल पीठासीन अधिकारी के पास होता है इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) स्वतंत्र और बैटरी से संचालित होती है मशीन के कंट्रोल यूनिट पर एक रिजल्ट बटन होता जो की पूरी तरह से सील होता है मतदान संपन्न होने के बाद मतगणना स्थल पर इस रिजल्ट बटन को दबाकर परिणाम प्राप्त कर लिया जाता है आवश्यकता पड़ने पर परिणाम का प्रिंट आउट भी लिया जा सकता है
बहरहाल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता उसकी सत्यता और पारदर्शिता के लिए कोई विशेष व्यवस्था भी आवश्यक है बार बार इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता उसकी सत्यता और पारदर्शिता यदि सवालों के घेरे में आती है तो यह मतदाता पर भी नकारात्मक प्रभाव छोड़ती है इसी को दृष्टिगत रखते हुए मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग और मध्यप्रदेश मुख्य चुनाव अधिकारी तथा ईवीएम के निर्माताओं को इस सम्बन्ध में जवाब देने हेतु छेः सप्ताह का समय दिया है