April 8, 2009

अभिव्यक्ति का नया माध्यम - जूता

मंगलवार को कांग्रेस मुख्यालय नई दिल्ली में गृहमंत्री पी. चिदंबरम की प्रेस कांफ्रेंस में वो बाकया सामने आया जिसने कुछ माह पूर्व इराक़ में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश की प्रेस कांफ्रेंस की याद दिला दी कांग्रेस मुख्यालय में दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल सिंग ने गृह मंत्री पर जूता दे मारा दैनिक जागरण को भी इससे बहुत हैरानी हुई और उसने इस घटना की निंदा भी की साथ ही घटना को नैतिक पत्रकारिता के खिलाफ बताते हुए संस्थान अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की बात भी कही लेकिन क्या किसी कार्यवाही का औचित्य बनता है जब पी. चिदंबरम ने स्वयं कह दिया कि जरनैल सिंह ने भावनाओं में बहाकर सब कुछ किया स्वयं जरनैल भी यही बात स्वीकारते हुए कहते हैं कि "मेरा तरीका ज़रूर गलत था पर में भावावेश में था" सिक्खों को न्याय नहीं मिला दरअसल जरनैल सिंह ८४ दंगो के मामले में जगदीश टाइटलर को सीबीआई द्वारा क्लीन चित दिए जाने पर खफा थे हालांकि कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से उन्हें माफ़ करने की घोषणा कर दी लेकिन बात यहाँ अभिव्यक्ति की आती है भले वह विरोध स्वरुप ही क्यों न हो इराकी पत्रकार जैदी ने जब अपना जूता बुश पर फैंका तो उसका इरादा बिष के मुंह पर मारना था एक बार निशाना चुका तो फिर दूसरा जूता फैंका और यह सब करके वह अपना विरोध जता रहा था
इराकी पत्रकार की प्रतिक्रया बर्बादी पर भडास थी जबकी जरनैल का जूता प्रकरण अपने समाज को न्याय न मिलाने का विरोध हालांकि इस घटना के बाद टाइटलर और सज्जन का टिकट कतना तो पक्का हुआ कांग्रेस ने पहले ही इसके संकेत दे दिए क्यूंकि एन चुनाव के वक्त वह इस मामले को बेवजह टूल नहीं देना चाहते
बहरहाल पत्रकारिता के नज़रिए से देखा जाए तो यह घटना पत्रकारिता को कलंकित करती है पहले ही विवादों में घिरे मीडिया पर एक नया दाग है जरनैल वहां एक प्रतिष्ठित अखबार के प्रतिष्ठित पत्रकार की हैसियत से गए थे वहां जहां कोई आम इंसान नहीं पहुँच सकता था और एक पत्रकार होने के नाते उन्हें किसी जाती या धर्म विशेष तक अपनी विचारधारा को सीमित नहीं करना चाहिए यह घटना कहीं न कहीं पत्रकारिता के गिरते स्तर का भी प्रतीक है
बहरहाल उस घटना के बाद राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गईं हैं जैदी के जूते की कीमत लाखों डॉलर लगाईं गई थी तो शिरोमणि अकाली दल ने भी जरनैल के जुटी की कीमत २ लाख लगा दी यह भी संभव है कि अकाली दल उन्हें चुनाव लड़ने की पेशकश करे
लेकिन पत्रकारिता के नज़रिए से न देखा जाए तो जैदी और जरनैल के ये जूता प्रकरण अभिव्यक्ति का माध्यम ज़रूर बन गए हैं

1 comment:

संगीता पुरी said...

अभिव्‍यक्ति का नया माध्‍यम बन तो गया है ... पर नहीं बनना चाहिए था।