January 7, 2010

हरिद्वार कुम्भ 14 जनवरी से


(कमल सोनी)>>>> हरि की नगरी हरिद्वार एक बार फिर महाकुंभ मेले के लिए तैयार है. आगामी 14 जनवरी से हरिद्वार कुम्भ मेला प्रारम्भ हो रहा है. कुम्भ मेले में शाही स्नान के साथ अखाड़ों की झांकियां मुख्या आकर्षण का केंद्र होंगी. यूं तो हरिद्वार में कुम्भ मेला १ जनवरी से प्रारम्भ हो चुका है जो की ३१ मई तक चलेगा. लेकिन १४ जनवरी को पहला शाही स्नान होगा तथा 28 अप्रैल बुधवार वैशाख अधिमास पूर्णिमा स्नान होगा. विशेषज्ञों की माने तो कुम्भ का प्रारम्भ पहले शाही स्नान के दिन से ही माना जाता है. 14 जनवरी से शुरू होने वाले महाकुंभ का श्रद्धालुओं में विशेष महत्व है. कुम्भ महापर्व भारत ही नहीं विश्व का सबसे महानतम् मानवीय समागम है. इस अवसर पर भारत ही नहीं विश्वभर के महानतम संत, विचारक, दार्शनिक, समाजसेवी एवं सभी वर्गों के शीर्ष पुरुष एकत्र होकर दार्शनिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं अन्य मानवीय परोप्रेक्ष्यों में राष्ट्र एवं विश्व के कल्याण का चिंतन करते है तथा संत, सद्गुरु जन मनुष्य होने का अर्थ और परम सत्य की प्राप्ति, आत्म साक्षात्कार या भगवत प्राप्ति रूप मनुष्य के परम लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करते है. विरक्त वैष्णव मंडल पंजाब के अध्यक्ष महंत गंगा दास वैरागी महाराज ने बताया कि इस बार विभिन्न समुदायों के 13 अखाड़ों के हरिद्वार में जुटने की संभावना है. उन्होंने बताया कि अखाड़ों में ही नहीं, बल्कि आम जनजीवन और विदेशी पर्यटकों में काफी उत्साह है.
सुरक्षा के इन्तेजाम :- महाकुंभ में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की सुविधा का ध्यान रखते हुए उत्तराखंड प्रशासन भी विशेष प्रबंधों में जुटा हुआ है. मुख्य स्नान के दिन करीब एक करोड़ श्रद्धालुओं के जुटने की संभावना है. इसे देखते हुए करीब छह किलो मीटर क्षेत्र में घाट बनाए गए हैं. इन्हें मिलाकर इस बार 10 किलोमीटर क्षेत्र में घाटों की व्यवस्था की गई है. कुंभ मेले में आतंक घटनाएं रोकने के लिए मेले में इस बार हरियाणा, पंजाब व यूपी से आये करीब सौ घुड़सवार पुलिसकर्मियों की सेवाएं भी ली जा रही हैं. ये घुड़सवार मेले में भीड़ को नियंत्रित करने के अलावा संदिग्ध लोगों पर पैनी नजर भी रखेंगे. शाही स्नान वाले दिन घुड़सवार पुलिस के जवान हरकी पैड़ी क्षेत्र में सुरक्षा को तैनात रहेंगे. महाकुंभ में देश विदेश के करोड़ों श्रद्धालुओं के यहां पहुंचने की उम्मीद है. इस परिप्रेक्ष्य में इस बार मेले में पंजाब, हरियाणा, यूपी से करीब सौ घुड़सवार पुलिस के जवानों की यहां तैनाती की गई है. घुड़सवार पुलिस के ये जवान रात और दिन में अपनी ड्यूटी मुस्तैदी के साथ घूमकर देंगे और भीड़ को नियंत्रण में करेंगे. साथ ही वह मेला क्षेत्र में संदिग्ध लोगों पर पैनी नजर रखेंगे. घुड़सवार पुलिस के जवानों को विशेष रूप से इस बात की हिदायत दी गई है कि वे मेले में भीड़ को एक जगह एकत्रित न होने दें. घुड़सवार पुलिस के जवानों को यदि कोई व्यक्ति संदिग्ध लगेगा तो वह उसे रोककर तलाशी ले सकेंगे. कुंभ मेला डीआईजी आलोक शर्मा ने बताया कि तीन प्रदेशों से घुड़सवार पुलिस के जवान यहां पहुंच चुके हैं. उन्होंने बताया इन घुड़सवार पुलिस के जवानों का काम सिर्फ मेले की भीड़ को नियंत्रण करने का होगा और जिस दिन शाही स्नान होगे घुड़सवार पुलिस के जवानों को हरकी पैड़ी क्षेत्र में विशेष तौर तैनात किया जाएगा. ये भीड़ पर निगरानी रखेंगे, साथ ही कोई भी व्यक्ति संदिग्ध नजर आने पर समुचित कार्रवाई करेंगे. यूं तो इस तरह के इंतजाम किये जा रहे हैं कि आतंकवादी मेले में किसी तरह की गतिविधियों को अंजाम न दे सकें, फिर भी एहतियातन घुड़सवार पुलिस को निर्देश दिये गये हैं कि संदिग्ध लोगों पर सख्त नजर रखें. उन्होने बताया कि इनके ठहरने के लिये घोड़ा अस्तबल वैरागी कैम्प में बनाया गया है. हरिद्वार की आबादी को ‘फ्लोटिंग’ आबादी की संज्ञा देते हुए अयोध्या हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञानदास महाराज ने बताया कि यहां स्थाई आबादी ढ़ाई लाख है, जबकि होटलों, आश्रमों और धर्मशालाओं में रहने वालों को भी जोड़ दिया तो यह आंकड़ा करीब पांच लाख पहुंच जाएगा. इस चुनौती से निपटने के लिए अस्थाई निवास बनाए जा रहे हैं.
हरिद्वार :- हिन्दुओ के अत्यन्त महत्वपूर्ण नगरी में जिसे मोझ नगरी व कुम्भ नगरी भी कहा जाता है. गंगा द्वार अथवा हरिद्वार भ्रारत का विश्व प्रसिद्व तीर्थ है,
अयोध्या,मथुरा,माया,काच्ची,अवन्तिका
पुरी,द्वारावती,चैव सप्तैता तीर्थ मोझदायिका..
इस शलोक में माया से अर्थ मायापुर अर्थात हरिद्वार से है यह भारत के चार प्रमुख कुम्भ क्षेत्रो में से एक एंव सात मोझदायक तीर्थो में से एक है इसके जो नाम प्रचलित है उनमें कपिलाद्वार, स्वर्गद्वार, कुटिलदर्रा, तैमुरलंग वर्णित चौपालीदर्रा, मोयुलो इत्यादि है लगभग आठवी शती में इसका नाम हरिद्वार पडा. यह तीर्थ हिमालय या शिवालिक के मध्य से प्रारम्भ हो जाता है. गंगा के दायी और विल्वक और बायी ओर के पर्वत का नाम नीलपर्वत है हजारों वर्ष की ऐतिहासिक अवधि के दौरान यह अनेक नामो से विख्यात रहा है उत्तराखण्ड के चारों धामों, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री के लिये प्रवेश द्वार के रूप में प्रसिद्ध हरिद्वार ज्योतिष गणना के आधार पर ग्रह नक्षत्रों के विशेष स्थितियों में हर बारहवें वर्ष कुम्भ के मेले का आयोजन किया जाता है. मेष राशि में सूर्य और कुम्भ राशि में बृहस्पति होने से हरिद्वार में कुम्भ का योग बनता है.
स्नान का महत्व :- हिंदू मान्यता में कुंभ का महत्व समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है. मंथन से निकले अमृत के लिए असुरों और देवताओं में खींचतान हुई थी, जिससे अमृत की बूंदें हरिद्वार सहित चार स्थानों में गिरी थीं. यहीं से पतित पावनी गंगा पहाड़ों से उतरकर मैदान की ओर बहती है. कुछ वैज्ञानिक भी मानते हैं कि कुंभ योग के समय गंगा का पानी पॉजीटिव हीलिंग इफ्ेक्ट से भरपूर होता है. ऐसा सूर्य-चंद्रमा और वृहस्पति के इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन के असर से होता है.
कब होता है कुंभ :- ज्योतिषियों के मुताबिक जब वृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में दाखिल होता तब महाकुंभ का योग बनता है. हर 12 साल के बाद महाकुंभ का आयोजन होता है. देश में चार स्थानों प्रयाग उत्तर प्रदेश, हरिद्वार उत्तराखंड, उज्जैन मध्य प्रदेश और नासिक महाराष्ट्र में होता है.
पौराणिक संदर्भ :- एक कथा है कि बार-बार सुर असुरो में संघर्ष हुआ जिसमें उन्होने विराट मद्रांचल को मथनी और नागराज वासुकी को रस्सी बनाकर सागर का मन्थन किया. सागर में से एक-एक कर चौदह रत्न निकले, विष, वारूणि, पुष्पक विमान, ऐरावत हाथी, उच्चेःश्रेवा अश्व, लक्ष्मी, रम्भा, चन्द्रमा, कौस्तुभ मणि, कामधेनु गाय, विश्वकर्मा, धन्वन्तरि और अमृत कुम्भ. जब धन्वन्तरि अमृत का कुम्भ लेकर निकले तो देव और दानव दोनों ही अमृत की प्राप्ति को साकार देखकर उसे प्राप्त करने के लिये उद्यत हो गये लेकिन इसी बीच इन्द्र पुत्र जयन्त ने धन्वन्तरि के हाथों से अमृत कुम्भ छीना और भाग खडा हुआ, अन्य देवगण भी कुम्भ की रक्षा के लिये अविलम्ब सक्रिय हो गये. इससे बौखलाकर दैत्य भी जयन्त का पीछा करने के लिये भागे. जयन्त 12 वर्षो तक कुम्भ के लिये भागता रहा. इस अवधि में उसने 12 स्थानों पर यह कुम्भ रखा. जहां-जहां कुम्भ रखा वहां-वहां अमृत की कुछ बुन्दें छलक कर गिर गई और वे पवित्र स्थान बन गये इसमें से आठ स्थान, देवलोक में तथा चार स्थान भू-लोक अर्थात भारत में है. इन्हीं बारह स्थानों पर कुम्भ पर्व मानने की बात कही जाती है. चूंकि देवलोक के आठ स्थानों की जानकारी हम मुनष्यों को नहीं है अतएव हमारे लिये तो भू-लोक उसमें भी अपने देश के चार स्थानों का महत्व है. यह चार स्थान है हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक. नक्षत्रों, ग्रहों और राशियों के संयोग से इस कुम्भ यात्रा का योग 6 और 12 वर्षो में इन स्थानों पर बनता है. अर्द्ध कुम्भ का पर्व केवल, प्रयाग और हरिद्वार में ही मनाया जाता है. ग्रह और राशियों के संगम के अनुसार इन स्थानों पर स्नान करना मोक्ष दायी माना जाता है. हाल ही में वर्ष 2004 में अद्धकुम्भ का आयोजन हरिद्वार में सम्पन्न हुआ. पूर्ण कुम्भ का आयोजन हरिद्वार में वर्ष 2010 में निर्धारित है.
अविरल जल नहीं तो शाही स्नान नहीं :- उधर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री महंत ज्ञानदास ने ऐलान किया कि गंगा में अविरल जल शाही स्नान के समय प्रवाहित नहीं किया गया तो शाही स्नान नहीं होगा. उन्होंने गंगा में जल कम होने पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि अभी हाल ही में उनके पास रिपोर्ट आई कि उत्तारकाशी में जल विद्युत परियोजनाओं की वजह से गंगा का जल प्रवाहित नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा कि गंगा में वास्तव में अलकनंदा का जल प्रवाहित हो रहा है. ऐसे में महाकुंभ के शाही स्नान पर अविरल गंगा की धारा के बिना कोई शाही स्नान नहीं होगा. सरकार को यदि साधु-संतों को शाही स्नान कराना है तो गंगा का जल अविरल हरकी पैड़ी तक लाने के लिए हर कोशिश करनी होगी.
हरिद्वार कुंभ मेला 2010 स्नान पर्व की महत्वपूर्ण दिन :-
<><><> 14 जनवरी 2010 दिन गुरुवार मकर संक्रान्ति
<><><> 15 जनवरी शुक्रवार मौनी अमावस्या सूर्यग्रहण स्नान
<><><> 20 जनवरी बुधवार बसंत पंचमी
<><><> 30 जनवरी 2010 शनिवार माघ पूर्णिमा
<><><> 12 फरवरी 2010 शुक्रवार श्री महाशिवरात्रि स्नान शाही स्नान
<><><> 15 मार्च2010 सोमवार सोमवती अमावस्या शाही स्नान
<><><> 16 मार्च मंगलवार नवसंवतारंभ स्नान
<><><> 24 मार्च2010 बुधवार श्री राम नवमी स्नान
<><><> 30 मार्च 2010 मंगलवार चैत्र पूर्णिमा पर्व स् नान वैष्णव अखाडे स्नान
<><><> 14 अप्रैल 2010 बुधवार मेष संक्रान्ति शाही स्नान पर्व
<><><> 28 अप्रैल बुधवार वैशाख अधिमास पूर्णिमा स्नान

हरिद्वार महाकुम्भ - कार्यक्रम :-
<><><> सम्पूर्ण गीता ज्ञान यज्ञ - दिनांक ११ फरवरी २०१० से ६ अप्रैल २०१० तक
<><><> योगासन, प्राणायाम, ध्यान प्रतिदिन प्रातः - दिनांक ११ फरवरी २०१० से १४ अप्रैल २०१० तक
<><><> १०८ श्री मद्‍ भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ - दिनांक ७ अप्रैल २०१० से १४ अप्रैल २०१० तक
<><><> समष्टि भंडारा (पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी)
<><><> अष्टोत्तर शत (१०८) श्री राम चरितमानस परायण - १६ मार्च वर्ष परतिपदा से २४ मार्च रामनवमी तक
<><><> होलिकोत्सव - २८ फरवरी २०१०
<><><> प्रतिदिन संत सेवा - दिनांक १२ फरवरी २०१० से १४ अप्रैल २०१० तक
<><><> चंडी यज्ञ - १६ मार्च वर्ष प्रतिपदा से २४ मार्च रामनवमी तक
<><><> भजन संध्या समय-समय पर
<><><> प्रश्नोत्तर समय-समय पर
<><><> धन्यवाद सभा - १५ अप्रैल २०१०

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बढ़िया जानकारी दी है।आभार।