April 22, 2010

कैसे बचाएं अपनी वसुंधरा ? (विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष)


(कमल सोनी)>>>> आज पूरे विश्व में विश्व वसुंधरा दिवस यानि विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जा रहा है. इसे पहली बार अप्रैल 1970 में इस उद्देश्य से मनाया गया था कि लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके. इसमें कोई संदेह नहीं है कि अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर की पुस्तक 'इनकन्वीनिएंट ट्रुथ' और 2007 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र के आईपीसीसी के साथ संयुक्त रूप से मिले नोबेल पुरस्कार ने इस ओर जागरूकता बढ़ाने में मदद की है. अक्सर यह समाचार सुनने को मिलते हैं कि उत्तरी ध्रुव की ठोस बर्फ कई किलोमीटर तक पिघल गई है. सूर्य की पराबैगनी किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकने वाली ओजोन परत में छेद हो गया है. इसके अलावा फिर भयंकर तूफान, सुनामी और भी कई प्राकृतिक आपदों की खबरें आप तक पहुँचती हैं, हमारे पृथ्वी ग्रह पर जो कुछ भी हो रहा है? इन सभी के लिए मानव ही जिम्मेदार हैं, जो आज ग्लोबल वार्मिग के रूप में हमारे सामने हैं. धरती रो रही है. निश्चय ही हम ही दोषी हैं. भविष्य की चिंता से बेफिक्र हरे वृक्ष काटे गए. इसका भयावह परिणाम भी दिखने लगा है. सूर्य की पराबैगनी किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकने वाली ओजोन परत का इसी तरह से क्षरण होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी से जीव-जन्तु व वनस्पति का अस्तिव ही समाप्त हो जाएगा. जीव-जन्तु अंधे हो जाएंगे. लोगों की त्वचा झुलसने लगेगी और त्वचा कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ जाएगी. समुद्र का जलस्तर बढ़ने से तटवर्ती इलाके चपेट में आ जाएंगे.

विश्व पृथ्वी दिवस और उसका इतिहास :- पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल को मनाया जाता है, यह एक दिवस है जिसे पृथ्वी के पर्यावरण के बारे में प्रशंसा और जागरूकता को प्रेरित करने के लिए डिजाइन किया गया है. इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन के द्वारा 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप में की गयी, और इसे कई देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है. यह तारीख उत्तरी गोलार्द्ध में वसंत और दक्षिणी गोलार्द्ध में शरद का मौसम है. संयुक्त राष्ट्र में पृथ्वी दिवस को हर साल मार्च एक्विनोक्स (वर्ष का वह समय जब दिन और रात बराबर होते हैं) पर मनाया जाता है, यह अक्सर 20 मार्च होता है, यह एक परम्परा है जिसकी स्थापना शांति कार्यकर्ता जॉन मक्कोनेल के द्वारा की गयी. सितम्बर 1969 में सिएटल, वाशिंगटन में एक सम्मलेन में विस्कोंसिन के अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन घोषणा की कि 1970 की वसंत में पर्यावरण पर राष्ट्रव्यापी जन साधारण प्रदर्शन किया जायेगा. सीनेटर नेल्सन ने पर्यावरण को एक राष्ट्रीय एजेंडा में जोड़ने के लिए पहले राष्ट्रव्यापी पर्यावरण विरोध की प्रस्तावना दी."यह एक जुआ था," वे याद करते हैं "लेकिन इसने काम किया." जानेमाने फिल्म और टेलिविज़न अभिनेता एड्डी अलबर्ट ने पृथ्वी दिवस, के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. हालांकि पर्यावरण सक्रियता का सन्दर्भ में जारी इस वार्षिक घटना के निर्माण के लिए अलबर्ट ने प्राथमिक और महत्वपूर्ण कार्य किये, जिसे उसने अपने सम्पूर्ण कार्यकाल के दौरान प्रबल समर्थन दिया, लेकिन विशेष रूप से 1970 के बाद, एक रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी दिवस को अलबर्ट के जन्मदिन, 22 अप्रैल, को मनाया जाने लगा, एक स्रोत के अनुसार यह गलत भी हो सकता है. अलबर्ट को टीवी शो ग्रीन एकर्समें प्राथमिक भूमिका के लिए भी जाना जाता था, जिसने तत्कालीन सांस्कृतिक और पर्यावरण चेतना पर बहुमूल्य प्रभाव डाला.

पारिस्थितिकीय फ्लैग का निर्माण :- विश्व के ध्वजों के अनुसार, पारिस्थितिक ध्वज का निर्माण कार्टूनिस्ट रोन कोब्ब के द्वारा किया गया, और इसे 7 नवम्बर, 1969 को लोस एंजेलेस फ्री प्रेस में प्रकाशित किया गया, और फिर इसे सार्वजनिक डोमेन में रखा गया. यह प्रतीक "E" व "O" अक्षरों के संयोजन से बनाया गया था, जिन्हें क्रमशः "Environment" व "Organism" शब्दों से लिया गया था. इस झंडे का प्रतिरूप संयुक्त राज्य अमेरिकी ध्वज से लिया गया था और इसमें एक के बाद एक तेरह हरी और सफ़ेद धारियां थीं.
इसकी केंटन हरी थी और इसमें पीला थीटा था. बाद के ध्वजों में थीटा का उपयोग ऐतिहासिक रूप से या तो एक चेतावनी के प्रतीक के रूप में या शांति के प्रतीक के रूप में किया गया. थीटा बाद में पृथ्वी दिवस से सम्बंधित हो गया.

पृथ्वी दिवस नेटवर्क :- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण नागरिकता और साल भर उन्नति को बढ़ावा देने के लिए 1970 में पृथ्वी दिवस नेटवर्क की स्थापना पहले पृथ्वी दिवस के आयोजकों के द्वारा की गयी. पृथ्वी दिवस के नेटवर्क के माध्यम से, कार्यकर्ता, राष्ट्रीय, स्थानीय और वैश्विक नीतियों में परिवर्तनों को आपस में जोड़ सकते हैं.अन्तराष्ट्रीय नेटवर्क 174 देशों में 17,000 संस्थानों तक पहुँच गया है, जबकि घरेलू कार्यक्रमों में 5,000 समूह और 25,000 से अधिक शिक्षक शामिल हैं, जो साल भर कई मिलियन समुदायों के विकास और पर्यावरण सुरक्षा कार्यकर्ताओं की मदद करते हैं

धरती खो रही है अपना प्राकृतिक रूप :- आज हमारी धरती अपना प्राकृतिक रूप खोती जा रही है. जहाँ देखों वहाँ कूड़े के ढेर व बेतरतीब फैले कचरे ने इसके सौंदर्य को नष्ट कर दिया है. विश्व में बढ़ती जनसंख्या तथा औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में तेज़ी से वृध्दि के साथ-साथ ठोस अपशिष्ट पदार्थों द्वारा उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भी विकराल होती जा रही है. ठोस अपशिष्ट पदार्थों के समुचित निपटान के लिए पर्याप्त स्थान की आवश्यकता होती है. ठोस अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा में लगातार वृध्दि के कारण उत्पन्न उनके निपटान की समस्या न केवल औद्योगिक स्तर पर अत्यंत विकसित देशों के लिए ही नहीं वरन कई विकासशील देशों के लिए भी सिरदर्द बन गई है. उदा. के लिए अकेले न्यूयार्क में प्रतिदिन 2500 ट्रक भार के बराबर ठोस अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन होता है, यहाँ प्रतिदिन 25,000 टन ठोस कचरा निकलता है. इस समय विश्व में प्रतिवर्ष प्लास्टिक का उत्पादन 10 करोड़ टन के लगभग है और इसमें प्रतिवर्ष उसे 4 प्रतिशत की वृध्दि हो रही है. भारत में भी प्लास्टिक का उत्पादन व उपयोग बड़ी तेजी से बढ़ रहा है. औसतन प्रत्येक भारतीय के पास प्रतिवर्ष आधा किलो प्लास्टिक अपशिष्ट पदार्थ इकट्ठा हो जाता है. इसका अधिकांश भाग कूड़े के ढेर पर और इधर-उधर बिखर कर पर्यावरण प्रदूषण फैलाता है. एक अनुमान के अनुसार केवल अमेरिका में ही एक करोड़ किलोग्राम प्लास्टिक प्रत्येक वर्ष कूड़ेदानों में पहुंचता है. इटली में प्लास्टिक के थैलों की सालाना खपत एक खरब है. इटली आज सर्वाधिक प्लास्टिक उत्पादक देशों में से एक है.

पर्यावरण में जहर घोल रहा पॉलीथीन :- आधुनिक युग में सुविधाओं के विस्तार ने सबसे अधिक पर्यावरण को ही चोट पहुंचाई. लोगों की सुविधा के लिए इजाद की गई पॉलीथीन आज मानव जाति के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन गई है. नष्ट न होने के कारण यह भूमि की उर्वरक क्षमता को खत्म कर रही है. यह भूजल स्तर को घटा रही है और उसे जहरीला बना रही है. पॉलीथीन को जलाने से निकलने वाला धुआं ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचा रहा है, जो ग्लोबल वार्मिग का बड़ा कारण है. पॉलीथीन कचरे से देश में प्रतिवर्ष लाखों पशु-पक्षी मौत का ग्रास बन रहे हैं. लोगों में तरह-तरह की बीमारियां फैल रही हैं, जमीन की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है तथा भूगर्भीय जलस्रोत दूषित हो रहे हैं. प्लास्टिक के ज्यादा संपर्क में रहने से लोगों के खून में थेलेट्स की मात्रा बढ़ जाती है. इससे गर्भवती महिलाओं के गर्भ में पल रहे शिशु का विकास रुक जाता है और प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचता है. प्लास्टिक उत्पादों में प्रयोग होने वाला बिस्फेनॉल रसायन शरीर में डायबिटीज व लिवर एंजाइम को असामान्य कर देता है. पॉलीथीन कचरा जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड एवं डाईऑक्सीन्स जैसी विषैली गैसें उत्सर्जित होती हैं. इनसे सांस, त्वचा आदि की बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है. इन थैलों का अधिक इस्तेमाल करके हम न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे है, बल्कि गंभीर रोगों को भी न्यौता दे रहे है. इन्हे यूं ही फेंक देने से नालियां जाम हो जाती है. इससे गंदा पानी सड़कों पर फैलकर मच्छरों का घर बनता है. इस प्रकार यह कालरा, टाइफाइड, डायरिया व हेपेटाइटिस-बी जैसी गंभीर बीमारियों का भी कारण बनते है.
भारत में प्रतिवर्ष लगभग 500 मीट्रिक टन पॉलीथिन का निर्माण होता है, लेकिन इसके एक प्रतिशत से भी कम की रीसाइकिलिंग हो पाती है. अनुमान है कि भोजन के धोखे में इन्हे खा लेने के कारण प्रतिवर्ष 1,00,000 समुद्री जीवों की मौत हो जाती है. इनको निगलने से मवेशियों की मौत की खबरें तो तुमने भी पढ़ी-सुनी होंगी. जमीन में गाड़ देने पर पॉलीथिन थैले अपने अवयवों में टूटने में 1,000 साल से अधिक ले लेती है. यह पूर्ण रूप से तो कभी नष्ट होते ही नहीं हैं. यहाँ तक कि जिन पॉलीथिन के थैलों पर बायोडिग्रेडेबल लिखा होता है, वे भी पूर्णतया इकोफ्रेंडली नहीं होते है.

ग्लोबल वार्मिग :- पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि ही ग्लोबल वार्मिग कहलाता है. वैसे, पृथ्वी के तापमान में बढोत्तरी की शुरुआत 20वीं शताब्दी के आरंभ से ही हो गई थी. माना जाता है कि पिछले सौ सालों में पृथ्वी के तापमान में 0.18 डिग्री की वृद्धि हो चुकी है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि धरती का टेम्परेचर इसी तरह बढता रहा, तो 21वीं सदी के अंत तक 1.1-6.4 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान बढ जाएगा. हमारी पृथ्वी पर कई ऐसे केमिकल कम्पाउंड पाए जाते हैं, जो तापमान को बैलेंस करते हैं. ये ग्रीन हाउस गैसेज कहलाते हैं. ये प्राकृतिक और मैनमेड (कल-कारखानों से निकले) दोनों होते है. ये हैं- वाटर वेपर, मिथेन, कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड आदि. जब सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पडती हैं, तो इनमें से कुछ किरणें (इंफ्रारेड रेज) वापस लौट जाती हैं. ग्रीन हाउस गैसें इंफ्रारेड रेज को सोख लेती हैं और वातावरण में हीट बढाती हैं. यदि ग्रीन हाउस गैस की मात्रा स्थिर रहती है, तो सूर्य से पृथ्वी पर पहुंचने वाली किरणें और पृथ्वी से वापस स्पेस में पहुंचने वाली किरणों में बैलेंस बना रहता है, जिससे तापमान भी स्थिर रहता है. वहीं दूसरी ओर, हम लोगों (मानव) द्वारा निर्मित ग्रीन हाउस गैस असंतुलन पैदा कर देते हैं, जिसका असर पृथ्वी के तापमान पर पडता है. यही ग्रीन हाउस इफेक्ट कहलाता है. दरअसल, पृथ्वी के तापमान को स्थिर रखने के लिए दशकों पूर्व काम शुरू हो गया था. लेकिन मानव निर्मित ग्रीन हाउस गैसों के उत्पादन में कमी लाने के लिए दिसंबर 1997 में क्योटो प्रोटोकोल लाया गया. इसके तहत 160 से अधिक देशों ने यह स्वीकार किया कि उनके देश में ग्रीन हाउस गैसों के प्रोडक्शन में कमी लाई जाएगी. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 80 प्रतिशत से अधिक ग्रीन हाउस गैस का उत्पादन करने वाले अमेरिका ने अब तक इस प्रोटोकोल को नहीं माना है.

मौसम चक्र हुआ अनियमित :- आज धरती पर हो रहे जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि समस्त मानव जाति है. सुविधाभोगी जीवन शैली में सामाजिक सरोकारों को पीछे छोड़ दिया है. जैसे-जैसे हम विकास के सोपान चढ़ रहे हैं वैसे-वैसे पृथ्वी पर नए-नए खतरे उत्पन्न हो रहे हैं. दिन-प्रतिदिन घटती हरियाली व बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण रोज नई समस्याओं को जन्म दे रहा है. इस कारण प्रकृति का मौसम चक्र भी अनियमित हो गया है. अब सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई निश्चित समय नहीं रह गया. हर वर्ष तापमान में हो रही वृद्धि से बारिश की मात्रा कम हो रही है. इस कारण भू जल स्तर में भारी कमी आई है. अगर समय रहते कोई उपाय नहीं किए तो समस्याएं इतना विकराल रूप धारण कर लेंगी. इसलिए सभी को एकजुट होकर पृथ्वी को बचाने के उपाय करने होंगे. इसमें प्रशासन, सामाजिक संगठन, स्कूल, कालेज सहित सभी को इसमें भागीदारी निभानी होगी.

क्या करें :-
1. बाजार जाते समय साथ में कपड़े का थैला, जूट का थैला या बॉस्केट ले जाएं.
2. हम प्रत्येक सप्ताह कितने पॉलीथिन थैलों का इस्तेमाल करते हैं, इसका हिसाब रखें और इस संख्या को कम से कम आधा करने का लक्ष्य बनाएं.
3. यदि पॉलीथिन थैले के इस्तेमाल के अलावा कोई और विकल्प न बचे तो एक सामान को एक पॉलीथिन थैले में रखने के स्थान पर कई सामान एक ही थैले में रखने की कोशिश करे.
4. घर पर पॉलीथिन थैलों का काफी उपयोग किया जाता है. जैसे लंच पैक करना, कपड़े रखना या कोई अन्य घरेलू सामान रखना, इनमें से कुछ को कम करने का प्रयास करे.
5. पॉलीथिन के थैलों से जितना बच सकते है, बचें. पॉलीथिन के थैलों को एक बार इस्तेमाल कर फेंकने के स्थान पर उनका पुन: प्रयोग करने का प्रयास करे.
6. स्थानीय अखबारों में चिट्ठिया लिखकर, स्कूल में पोस्टर के द्वारा या प्रजेंटेशन से इस मसले पर जागरुकता फैलाने का काम करे
7. आज के दिन पोलीथिन के उपयोग से बचें. बाजार जाते समय कप़ड़े का बेग साथ लें जाएँ. ऐसा कर आप पर्यावरण संरक्षण यज्ञ में छोटी ही सही, पर महत्वपूर्ण आहूति दे सकते हैं.
8. बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वे अपने पुराने खिलौने तथा गेम्स ऐसे छोटे बच्चों को दे दें जो कि इसका उपयोग कर सकते हैं. एक तरह से यह रिसाइक्लिंग प्रक्रिया ही होगी क्योंकि एक तो आपके घर की सामग्री नष्ट होने से बच जाएगी, दूसरे जिसे वह मिलेगी उसे बाहर से पर्यावरण के लिए नुकसानदायक सामग्री खरीदनी नहीं पड़ेगी. इससे बच्चों में त्याग की भावना भी बलवती होगी. केवल बच्चों ही नहीं बड़े लोग भी अपने कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक सामान तथा पुस्तकें भेंट कर सकते हैं.

चिंतन मनन का दिन :- विश्व पृथ्वी दिवस महज़ एक दिन मनाने का नहीं है. यह दिन है इस बात के चिंतन मनन का कि हम कैसे अपनी वसुंधरा को बचा सकते हैं ? ऐसे कई तरीके हैं जिसे हम अकेले और सामूहिक रूप से अपनाकर धरती को बचाने में योगदान दे सकते हैं. वैसे तो हमें हर दिन को पृथ्वी दिवस मानकर उसके संरक्षण के लिए कुछ न कुछ करते रहना चाहिए, लेकिन अपनी व्यस्तता में व्यस्त इंसान यदि विश्व पृथ्वी दिवस के दिन ही थो़ड़ा बहुत योगदान दे तो धरती के ऋण को उतारा जा सकता है. हम सभी जो कि इस स्वच्छ श्यामला धरा के रहवासी हैं उनका यह दायित्व है कि दुनिया में कदम रखने से लेकर आखिरी साँस तक हम पर प्यार लुटाने वाली इस धरा को बचाए रखने के लिए जो भी सकें करें क्योंकि यह वही धरती है जो हमारे बाद भी हमारी निशानियों को अपने सीने से लगाकर रखेगी. लेकिन यह तभी संभव होगा जब वह हरी-भरी तथा प्रदूषण से मुक्त रहे और उसे यह उपहार आप ही दे सकते हैं. तो हर दिन को पृथ्वी दिवस मानें और आज से ही नहीं अभी से ही करें इसे बचाने के प्रयास करे.


2 comments:

SANJEEV RANA said...

आशा करता हूँ कि आपके इस लेख को पढ़कर लोग इसके प्रति जागरूक होंगे.

अंजना said...

सही कहा आप ने ।इन छोटी छोटी बातो को अगर ध्यान मे रखा जाएं तो हम पृथ्वी को सुन्दर बना सकते है।