February 4, 2010

क्या भारत में भी वोटिंग अनिवार्यता कानून ज़रूरी....?



(कमल सोनी)>>>> क्या भारत में भी वोटिंग अनिवार्यता ज़रूरी है ? इस सवाल ने एक नई बहस को छेड़ दिया है. बहस इसलिए भी जरूरी है. कि क्या देश की जनता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है ? या फिर वह नेताओं की वादाखिलाफी से तंग आ चुकी है ? कई बार जनता अपने अधिकारों के मायने भी नहीं जानती. यही मुख्य वजह है कि देश में होने वाले लोकसभा चुनावों से लेकर, विधानसभा, नगरिय निकाय तथा पंचायत स्तर के चुनावों में ज्यादा से ज्यादा ६० प्रतिशत मतदान की खबरें आती हैं. क्या बाकी की ४० प्रतिशत जनता अपने अधिकारों से अनभिज्ञ है. या वह अपने अधिकारों के मायने नहीं जानती. आज़ादी के ६३ साल बीत जाने के बाद मतदान के लिए आमजनमानस को जागरूक करने न जीन कितने जागरूकता कार्यक्रम चलाये गए. फिर भी जनता जागरूक कैसे नहीं हुई ? देश में पहली बार स्थानीय निकाय चुनावों में वोटिंग को अनिवार्य बनाया गया है. इस दिशा में सबसे पहला कदम उठाया है गुजरात सरकार ने. गुजरात विधानसभा में पारित अनिवार्य वोटिंग बिल ने नई बहस को जन्म दे दिया है. इस बिल के पारित हो जाने के बाद कुछ ने इसका स्वागत किया है तो कुछ ने इसे गैर संवैधानिक.

अनिवार्य वोटिंग कानून :- अनिवार्य वोटिंग क़ानून के तहत उसमें एक नियमावली बनाई गई है. क़ानून के अंतर्गत इस नियमावली में उल्लेखित कारणों के अतिरिक्त अगर कोई मतदाता मतदान नहीं करता तो चुनाव आयोग उसे डिफाल्टर वोटर घोषित कर देगा. इतना ही नहीं चुनाव आयोग उस मतदाता को जिसने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया उसे दण्डित भी करेगा. यानि नियमावली में उल्लेखित कारणों के अलावा अन्य कोई भी कारण हो आपको मतदान करना की होगा अन्यथा मतदाता को इसका खामियाजा भी भुगतना होगा.

अन्य देशो में भी बना है कानून :- अनिवार्य वोटिंग कानून अन्य देशो में भी बन है. दुनिया के १९ देशों में अनिवार्य वोटिंग कानून लागू है. जिन देशों में अनुवार्य वोटिंग कानून लागू है. उनमें आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, सिंगापूर, तुर्की आड़े देश भी शामिल हैं. जिन देशों में अनिवार्य वोटिंग लागू है उनमें से अधिकांश देशों ने ७० वर्ष से अधिक के बुजुर्गों को अनिवार्य वोटिंग कानून के दायरे से बाहर रखा है.

कहीं स्वागत कहीं विरोध :- गुजरात सरकार द्वारा अनिवार्य वोटिंग कानून बनाने के बाद चुनाव की दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन आएंगे या नहीं इस बात का पता तो आने वाले समय में ही चलेगा लेकिन फिलवक्त अनिवार्य वोटिंग कानून को लेकर दो पक्ष आमने सामने हैं. केंद्र की कांग्रेस नीट यूपीए सरकार इस कानून का विरोध कर रही है. कांग्रेस का कहना है कि मतदाता पर दबाव डालकर मतदान करवाना गैर संवैधानिक है. मतदाता अपना मत देने और न देने के लिए स्वतंत्र है. लेकिन ठेक इसके विपरीत चुनाव सुधार के समर्थकों ने इस कानून का स्वागत किया है चुनाव सुधार समर्थकों ने इस कानून को एक ऐतिहासिक कदम बताया है उनका कहना है कि अनिवार्य मतदाक के साथ नकारात्मक वोटिंग का अधिकार मिलने से मतदाता उम्मीदवारों के प्रति अपने गुस्से का इज़हार खुलकर कर सकेंगे. उनका यह भी कहना है कि इससे निर्वाचन प्रणाली में गुणात्मक सुधार आएगा और धीरे-धीरे मतदाता अपने मतदान के अधिकारों का मूल्य समझने लगेगा. परिणाम स्वरुप मतदान को और अधिक सकारात्मक बनाया जा सकेगा. इस क़ानून के लागू हो जाने के बाद उम्मीदवारों को भय रहेगा कि यदि जनहित में काम न किये तो मतदाता का गुस्सा भी झेलना पड़ेगा.

बहरहाल चुनावों में प्रत्येक मतदाता की भागीदारी जब तक नहीं होगी. तब तक मज़बूत लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती. हमें किसी न किसी रूप में वोटिंग का प्रतिशत बढ़ाना होगा. धन बल के बल पर जीते हुए बाहुबली देश के सच्चे प्रतिनिधि कभी नहीं हो सकते. और ऐसे में देश न ही मज़बूत लोकतंत्र बन सकता. नरेन्द्र मोदी के इस कदम को चुनाव सुधारों से जोडकर देखा जा रहा है. अब गुजरात में इस कानून के लागू हो जाने के बाद गुजरात में ज्यादा से ज़्यादा लोग मतदान के लिए आगे आयेंगे. लेकिन यहाँ देखने वाली दिलचस्प बात यह होगी कि इस क़ानून को कैसे लागू किया जाता है और मतदाता इस पर क्या प्रतिक्रया देते हैं. अगर अनिवार्य और नकारात्मक वोटिंग कानून गुजरात में सफल रहा तो यह गुजरात सरकार का सही कदम होगा. तथा गुजरात पूरे देश में एक रोल मोडल बन जायेगा. और इसे अन्य राज्यों समेत देश भर में लागू किया जा सकेगा. हलाकि इससे पूर्व भी लोकसभा में बीजेपी के एक सांसद अनिवार्य वोटिंग विधेयक लाये थे लेकिन वह पारित न हो सका. लेकिन गुजरात में अनिवार्य वोटिंग कानून बनने के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि यह कितना सफल रहता है.

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