February 27, 2010
दुराचार पर सदाचार की विजय और विजय पर रंगों से उत्सव मनाने का पर्व - होली
खेलें इको फ्रेंडली होली........(होली विशेष)
February 26, 2010
खंड-खंड होते देश में सुरक्षा के बढ़ते खतरे ?
February 22, 2010
डीएलएफ-आईपीएल : खेल या खेल का व्यावसाय ?
पाकिस्तानी खिलाडियों के साथ जो कुछ भी हुआ वह कम नहीं है. भारत पकिस्तान मौजूदा तनाव के मद्देनज़र पहले पाकिस्तानी खिलाडियों से पीसीबी से अनापत्ति प्रमाण पात्र लेन को कहा गया. जब उन्होंने अनापत्ति प्रमाण पत्र ले लिया. तो उनसे सरकार से एनओसी लें. खिलाडियों के एनओसी ले लेने के बाद उनसे कहा गया कि वे भारत से वीजा ले लें. जब उन्होंने वीजा के लिए आवेदन किया तो उन्हें कहा गया कि यदि उन्हें आईपीएल में चुन लिए जाएगा तो उन्हें वीजा मिल जायेगा. जिसके बाद आईपीएल ने ११ पाकिस्तानी खिलाडियों को उन खिलाडियों की सूची में शामिल कर लिया जिनकी बोली लगाईं जानी थी. जिसके बाद बोली लगी तो सभी पाकिस्तानी खिलाड़ी इस बात का इन्तेज़ार करते रहे कि कौन उन्हें खरीदेगा. लेकिन किसी भी पाकिस्तानी खिलाड़ी पर किसी भी टीम ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. यकीनन यह पाकिस्तानी खिलाडियों के लिए ही नहीं बल्कि एक खेल के लिए भी अपमानजनक है.
बीसीसीआई और टीम मालिकों ने झाडा पल्ला :- इस पूरे घटना क्रंम के बाद जब चौतरफा आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ तो बीसीसीआई और आईपीएल टीम मालिकों ने इस विवाद से अपना पल्ला झाड लिया. बीसीसीआई और आईपीएल टीम मालिक अलग अलग तर्क दे रहे हैं. बीसीसीआई का कहना है कि आईपीएल एक अलग संस्था है. उसका बीसीसीआई से कोई लेना देना नहीं है. आईपीएल के सभी फैसले लेने के लिए वह स्वतंत्र है. दूसरा टीम मालिकों ने भी अपने को शुद्ध व्यावसायी दर्शाते हुए कहा कि भारत पाकिस्तान के मौजूदा हालत यही दर्शाते हैं कि दोनों देशों के रिश्तों का कोई भरोसा नहीं. ऐसे में वे अपनी पूंजी ऐसे खिलाडियों पर नहीं लगा सकते जो उनके लिए असमय संकट पैदा कर दें. हलकी यह सच भी है कि टेम मालिकों के लिए आईपीएल सिर्फ एक टूर्नामेंट न होकर एक धंधा है. और धंधे में भावनाओं की नहीं सिर्फ मुनाफे की जगह होती है. उन्हें किसी खिलाड़ी के जस्बात और किसी देश के अपमान से कोई मतलब नहीं. ऐसे में पाकिस्तानी क्रिकेटरों के साथ सहानुभूति के अलावा उनके पास कुछ और नहीं था. खेल मंत्री एमएस गिल ने भी आईपीएल को क्रिकेट में एक व्यापारिक आंदोलन करार देते हुए यह कह दिया कि सरकार इसमें कुछ नहीं कह सकती. हालाकि गृह मंत्री पी चिदंबरम ने अपने एक बयान में कहा था कि आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाडियों को मौक़ा दिया जाना चाहिए था. इस कदम से क्रिकेट का नुक्सान हुआ है.
पहले से नहीं की स्थिति साफ़ :- मुबई हमलों के बाद पहले ही साफ कर दिया गया था कि पाकिस्तानी खिलाडियों की खेल पाना संभव नहीं होगा. लिहाजा बगैर पाकिस्तानी खिलाडियों के आईपीएल साउथ अफ्रिका में अपनी पूरी चमक धमक के साथ संपन्न हुआ. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. यदि आईपीएल की तरफ से पहले ही यह कह दिया जाता कि किसी भी पाकिस्तानी खिलाड़ी को आईपीएल में खेलने की अनुमति नहीं मिलेगी. तो शायद यह विवादास्पद स्थिति निर्मित नहीं होती. हलाकि पाकिस्तानी खिलाडियों के बिना अब यह तमाशा कितनी चमक धमक के साथ होगा यह देखना बेहद दिलचस्प होगा.
बहलहाल भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में पहले भी कडूआहट और मिठास का सिलसिला चलता रहा है. और आगे भी चलता रहेगा. जब कभी कोई बड़ा आतंकी हमला होता है. भारत पाकिस्तान के रिश्तों में कडूआहट आ जाती है. और समय के साथ बातचीत का दौर भी शुरू हो जाता है. फिर कभी भारत पकिस्तान मैत्री मैच खेल दोनों देशों में मधुरता लाने का प्रयास करते हैं. लेकिन फिर इन प्रयासों पर आतंकी संगठन पानी फेर देते हैं. और दोनों देशों के बीच कडूआहट आ जाती है. लेकिन दोनों देशो के बीच की इस तपिश को राजनीतिक रंग न देते हुए इसे मैदान से दूर रखा जाना चाहिए. क्योंकि अभी राष्ट्र मंडल खेलों का आयोजन होगा वहाँ भी पाकिस्तानी टीम आयेगी. इसके बाद क्रिकेट वर्ल्ड कप आयोजन भी भारत में ही होना है. इसके लिए भी पाकिस्तानी क्रिकेट टीम आयेगी. इसीलिये यह ज़रूरी है कि यदि कहीं कि आग जल रही है. तो खोखली राजनीति से प्रेरित होकर उस पर घी डालने के बजाय उस पर पानी डाला जाए तो ज़्यादा बेहतर होगा.
February 20, 2010
असिस्टेड सुसाइड, 'ह्त्या या मदद' ?
(कमल सोनी)>>>> किसी को आत्महत्या में मदद करना 'हत्या है या फिर सहायता' इस विषय पर एक नई बहस छिड़ गई है. असिस्टेड सुसाइड को लेकर इसके समर्थकों और विरोधियों में वैचारिक मतभेद उभरकर सामने आये हैं. आत्म ह्त्या में मदद करने वाले भाले ही अपने परिचितों, रिश्तेदारों और दोस्तों की मौत आसान बना रहे हों. लेकिन इसको लेकर कई विवाद हैं. लोगों का यह भी कहना है कि असिस्टेड सुसाइड एक ह्त्या है. लोगों का कहना है कि असिस्टेड सुसाइड को कानूनी मान्यता मिल जाने पर इसका दुरुपयोग होने लगेगा. और अपराधी इस कानून का सहारा लेकर बच निकलेंगे. हालाकिं विश्व में कई देश ऐसे हैं. जहां असिस्टेड सुसाइड को कानूनी मान्यता है. स्विटज़र लैंड को इस मामले में सबसे आगे जाना जाता है. इसके अलावा बेल्जियम, कनाडा, चीन और अमेरिका में भी असिस्टेड सुसाइड को कानूनी मान्यता है. इसके अलावा दुनिया भर की कई संस्थाएं भी असिस्टेड सुसाइड का समर्थन करती हैं.
असिस्टेड सुसाइड सही या गलत :- असिस्टेड सुसाइड यानी आत्म ह्त्या में मदद करना सही है या गलत इसको लेकर विवाद है. विवाद का मुख्य कारण एक निजी समाचार चैनल की एंकर गोसलिंग है . जिसने अपने प्रेमी को आत्महत्या में मदद की थी. गोसलिंग ने स्वीकार किया है कि उन्होंने दर्द से पीड़ित प्रेमी को आत्महत्या में मदद कर उसे हमेशा के लिए राहत दी है. मामला यह है कि गोसलिंग का प्रेमी घातक बीमारी एड्स से पीड़ित था. गोसलिंग का कहना है कि "कुछ समय पहले मेरे प्रेमी ने मुझसे एग्रीमेंट किया था. जिसमें लिखा है कि जब उसे बहुत दर्द हो और मौत के अलावा कोई रास्ता न हो तो में उसे मौत की नींद सुला दूं. और मैंने जो कुछ भी किया एग्रीमेंट के तहत किया."
असिस्टेड सुसाइड को लेकर कोई सहमति दर्शा रहा है तो कोई असहमत हैं. नेशनल काउन्सिल फॉर पैलियातिव केयर, एज कंसर्न, हेल्प द होस्पीशीज इत्यादि के किये गए सर्वे में ३७३३ डॉ. को शामिल किया गया. जिसमें ६५ फेआसदी डॉ. ने आत्महत्या में मदद को गलत करार दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि इसे कानूनी मान्यता दिया जाना गलत है. वहीं दूसरी और अमेरिका में १५६० नर्सों पर किये गए सर्वे में यह तथ्य निकलकर सामने आया है कि "दर्द से मौत के करीब पहुंचे मरीज़ के लिए यह सही है. उनका कहना है कि गंभीर रूप से बीमार, और मरणासन्न स्थिति में यदि कोई मरीज हो. या फिर उसके शारीरिक अंगों एन काम करना बंद कर दिया हो ऐसी स्थिति में उसे दर्द से छुटकारा दिलाना पाप नहीं है. कुछ लोगों ने असिस्टेड सुसाइड को "ह्त्या का लाइसेंस" करार दिया है.
कई देशो में है कानूनी मान्यता :- बेल्जियम में सुसाइड के लिए आवेदन कर अनुमति मंगाने के इजाजत है. वह व्यक्ति जो बीमार है, और वयस्क है और उसकी बीमारी का कोई उपचार न हो सकता हो, ऐसी स्थिति में यदि मरीज के साथ दो डॉ. सहमती प्रमाण पत्र दे. तो असिस्टेड सुसाइड की अनुमति मिल सकती है. विपरीत कनाडा में भी असिस्टेड सुसाइड और सुसाइड करना जुर्म नहीं है बल्कि अपने शरीर को किसी तरह की कोई क्षति पहुँचाना अपराध ज़रूर है. वहीं चीन तथा अमेरिका के तीन राज्यों में भी असिस्टेड सुसाइड के लिए अनुमति लेने का प्रावधान है. इन मामलों में स्विट्जरलैंड सबसे आगे है. लोग जाकर मर्सी किलिंग, असिस्टेड सुसाइड, सुसाइड के लिए स्विट्जरलैंड जाते हैं. यही वजह है कि स्विट्जरलैंड को दुनिया का सुसाइड पॉइंट कहा जाता है.
बदल सकता है आत्महत्या का मददगार कानून :- स्विट्जरलैंड सरकार जल्द ही अपने देश के एक विवादित कानून में संशोधन कर सकती है जिसके तहत लोगों को आत्महत्या करने में मदद मिलती है। सरकार ने अब इसमें बदलाव की ठान ली है और संशोधन के प्रस्ताव पेश किए जा रहे हैं। दरअसल, इस नीति के तहत गम्भीर रूप से बीमार लोगों को डॉक्टरी सलाह पर आत्महत्या करने का हक दिया गया है। लेकिन इसकी आड़ में ऎसे लोगों को अपना जीवन खत्म करने में मदद की जा रही है जो गम्भीर रोगी नहीं हैं।
इस विषय में आपके क्या विचार हैं ?
February 19, 2010
दुष्कर्म के लिए महिलाएं भी ज़िम्मेदार - रिपोर्ट
February 13, 2010
आओ मनाएँ प्रेम दिवस (वेलेंटाइन डे विशेष)
दुनिया में शायद ही कोई शख्स ऐसा होगा जो प्यार के एहसास से अछूता होगा. प्यार चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो. एक ऐसा सुखद एहसास देता है. जिसे शब्दों में बयान कर पाना बेहद कठिन होता है. इसलिए 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे मनाया जाता है. वेलेंटाइन डे संत वेलेंटाइन की स्मृति में मनाया जाता जिन्हें प्रेम का पक्ष लेने पर 14 फरवरी को फांसी पर चढ़ा दिया गया था. वेलेंटाइन डे यानि प्रेम दिवस. वैसे तो यह दिन हर उम्र वर्ग के व्यक्तियों के लिए होता है. लेकिन इस दिन को लेकर सबसे ज़्यादा उत्साह और इन्तेज़ार होता हैं युवा पीढी में. नया साल आते ही युवाओं को इंतजार होता है इस प्रणय दिवस का. और हर युवा चाहता है कि इस दिन वह कुछ अलग, कुछ खास दिखे ताकि हर एक की नजरें उनकी तरफ हों. युवा प्रेमी युगल इस दिन को मनाने काफी तैयारियां करते हैं. वैसे भी जब बात प्रिय से मिलने की आती है तो आईने के साथ आपका रिश्ता गहरा हो जाता है और जब दिन वेलेंटाइन जैसा खास हो तो किसी प्रश्न की कोई गुंजाइश ही नहीं होती. वाकई जब प्यार किसी से होता है तो हर दिन कोई नया अफसाना बनता है और फिर आगे बढ़ती है प्रेम कहानी. हर प्रेमी युगल अपने प्यार को हमेशा अपने साथ रखने का ख्वाहिशमंद होता है. हर कोई चाहता है कि महबूब के साथ गुजरे हर पल का लेखा-जोखा उसके पास हो ताकि तन्हाइयों में वह उन पलों को याद करके एक बार फिर उस सुखद अहसास की अनुभूति कर सके. आज हर दिल धड़क रहा है, प्यार के इज़हार के लिए, प्यार एक सुहाना अहसास है. साथ ही मन की सबसे प्रभावशाली प्रेरणा भी है. दुनिया में ऐसा कोई भी नहीं जो इस खुशनुमा एहसास से अछूता हो. प्यार के बारे में सदियों से बहुत कुछ लिखा पढा और कहा जाता रहा है. लेकिन फिर भी प्यार एक अबूझ पहेली ही रहा हैं. तभी तो इसे समझ पाने में भूल हो जाती है सिर्फ इसीलिये क्योंकि वास्तव में इसे शब्दों में बयाँ कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं. 14 फरवरी एक ऐसा दिन है जो प्रेमियों के लिए सभी त्योहारों से भी बढ़कर है. इस दिन उनका जीवन अपने वेलेंटाइन के प्यार की सतरंगी रोशनी से जगमगा उठता है और हल्की मीठी सर्दी की तरह सुस्त पड़े जीवन में गुनगुनी धूप की तरह प्यार की दस्तक लेकर आता है.
प्यार वास्तव में किसी के प्रति त्याग और समर्पण की प्रवृत्ती है। प्रेम के कई रूप हैं, प्रेम में सत्य, निष्ठा, आस्था, भरोसा सब है, लेकिन लादा गया समझौता नहीं है प्रेम. इसमें किसी प्रकार की अपेक्षा और स्वार्थ नहीं रह जाता. प्यार तभी प्यार कहा जा सकता है जब उसमें पवित्रता, संवेदना, त्याग, गहराई, साधना, श्रद्धा, और विश्वसनीयता हो. प्यार को सच और झूठ के तराजू में भी नहीं तौला जा सकता. प्यार हमेशा झुकना सिखाता है. बुराई से लड़ने को प्रेरित करता है. सदा आगे बढ़ने का मार्ग दिखाता है. प्रेम का यह पर्व वेलेंटाइन डे महज प्रेम करने या फिर सिर्फ एक त्यौहार की तरह मना लेने का ही अवसर नहीं है, बल्कि प्रेम को समझने का वाला दिन है. वेलेंटाइन-डे भले ही पश्चिम से आया है, जिसकी परिणिति में विरोध के स्वर निकल रहे हैं. लेकिन हम उस देश के वासी हैं जहाँ राधा कृष्ण के अमर प्रेम की पूजा की जाती है. हाँ महज़ कुछ मिथ्यावादी और घटिया राजनीति से प्रेरित लोगों के कारण प्यार को ही पूरी तरह से नकारना या फिर उसे धर्म और संस्कृति के खिलाफ बताना भी उचित नहीं है.
क्यों मनाया जाता है वेलेंटाइन डे :- रोम में तीसरी शताब्दी में सम्राट क्लॉडियस का शासन था। उसके अनुसार विवाह करने से पुरूषों की शक्ति और बुद्धि कम होती है. उसने तानाशाह पूर्ण आदेश जारी कर कहा कि उसका कोई सैनिक या अधिकारी विवाह नहीं करेगा. संत वेलेंटाइन ने इस क्रूर आदेश का विरोध किया. उन्हीं के आह्वान पर अनेक सैनिकों और अधिकारियों ने विवाह किए. आखिर क्लॉडियस ने 14 फरवरी सन् 269 को संत वेलेंटाइन को फाँसी पर चढ़वा दिया. तब से उनकी स्मृति में प्रेम दिवस मनाया जाता है.
आज हमें वेलेंटाइन डे मनाने की ज़रूरत है क्योंकि आज हमारे समाज में प्रेम को गलत नज़रिए से देखा जाता है. आज हमारे समाज में व्याप्त रूढीवादी परम्पराएँ रोम के सम्राट क्लॉडियस की तानाशाह रवैये से कम नहीं हैं. संत वेलेंटाइन भले ही पाश्चात्य संस्कृति से रहे हो लेकिन वे हमारे भी संत हो सकते हैं. यदि उनके सन्देश हमारी जीवन में खुशहाली ला सकते हैं तो क्यों नहीं हम भी 14 फरवरी को प्रेम दिवस मनाएं. प्रेम करने की आजादी प्रत्येक स्त्री-पुरुष का नैसर्गिक अधिकार है. लेकिन हमारे परंपरागत समाज में लडके और लडकी के जीवन के हर फैसले को उसकी इच्छा या अनिच्छा जाने वगैर उस पर थोपे जाते है. वे सभी परिस्थितियां हमारे यहां भी मौजूद हैं जिनमें राजा की तो नहीं, पर परिवार और समाज की तानाशाही से युवा हृदयों की तमन्नाओं का गला घोंट दिया जाता है. धर्म और समाज मूलतः धरती पर जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए अस्तित्व में आये थे. इनके अस्तित्व का एक मुख्य कारण यह भी रहा कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी और समूह में रहना पसंद करता है. जिसे हम समाज कहते हैं. लेकिन हमारे समाज में बने नियम क़ानून आज की मौजूदा परिस्तिथियों में हमारे युवाओं की तमन्नाओं का गला घोंट रहे हैं. संत वेलेंटाइन की स्मृती में मनाया जाने वाले प्रेम दिवस एक ऐसा पर्व है. जिसके माध्यम से युवा धर्म और समाज के तानाशाह रवैये को तोड़ सकते हैं......
हैप्पी वेलेंटाइन डे
February 11, 2010
सबसे ज़्यादा होशियार शार्क पर विलुप्ती का संकट
कैसी होती है शार्क :- शरीर बहुत लम्बा होता है जो शल्कों से ढका रहता है. इन शल्कों को प्लेक्वायड कहते हैं. त्वचा चिकनी होती है. त्वचा के नीचे वसा (चर्बी) की मोटी परत होती है. इसके शरीर में हड्डी की जगह उपास्थि (कार्टिलेज) पाई जाती है. शरीर नौकाकार होता है. इसका निचला जबड़ा ऊपरी जबड़े से छोटा होता है. अतः इसका मुँह सामने न होकर नीचे की ओर होता है जिसमें तेज दाँत होते हैं. यह एक माँसाहारी प्राणी है. शार्क के शरीर में देखने के लिए एक जोड़ी आँखें, तैरने के लिए पाँच जोड़े पखने और श्वांस लेने के लिए पाँच जोड़े क्लोम होते हैं. ग्रेट व्हाइट शार्क 15 वर्ष की युवा अवस्था में पूर्ण विकसित होकर लगभग 20 फीट से अधिक हो जाती है. वहीं टाइगर शार्क युवा अवस्था में लगभग 16 फीट की हो जाती है. इन दोनों को ही आक्रामक और घातक प्रजातियों में रखा जाता है. शार्क की स्किन स्मूथ नहीं होती है. इसे छूने पर बिलकुल सैंड पेपर पर हाथ लगाने का अहसास होता है. शार्क बहुत प्रकार की होती है. कुछ शार्क को उनके शेप के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है जैसे- कुकीकटर शार्क, हेमरहेड शार्क, प्रिकली डॉम फिश शार्क, वूबबिगांग शार्क और ग्रेट व्हाइट शार्क.
बन सकती हैं डॉलफिन जैसी :- अभी तक यह माना जाता रहा है कि शार्क मछलियां खतरनाक होती हैं. उनका मकसद ही दूसरों को नुकसान पहुंचाना होता है लेकिन अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाला रिसर्च पेश किया है, जिसके मुताबिक शार्क मछलियां भी डॉलफिन की तरह आपकी दोस्त बन सकती हैं. यदि उन्हें ट्रेनिंग दी जाए तो वह सभी मनोरंजक कारनामे कर सकती हैं, जिन्हें डॉलफिन्स को ही करते देखा गया है. अमेरिका के सी लाइफ सेंटर्स पर शार्क मछलियों पर कुछ प्रयोग किये गए है. यहां सौ से भी अधिक शार्क मछलियों को डॉलफिन्स की तरह ट्रेनिंग दी गई है. वैज्ञानिकों का मानना है कि शार्क केवल मनुष्यों पर हमले ही नहीं करतीं, बल्कि उन्हें लोगों के मनोरंजन के लिए ट्रेंड भी किया जा सकता है. इन सेंटर्स पर ट्रेनर्स शार्क मछलियों को रंगीन बोर्डस और म्यूजिक के जरिए ट्रेनिंग दी हैं. वैज्ञानिक इवान पैवलोव शार्क को उसी तरह से प्रशिक्षण दे रहे हैं जैसे कुत्तों को दिया जाता है.
विलुप्ती की कगार पर :- शार्क की कई प्रजातियों पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. ये आकलन पर्यवारण संरक्षण के लिए बने अंतरराष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) ने किया है. इस सूची में 64 प्रकार की शार्क का विवरण है जिनमें से 30 फ़ीसदी पर लुप्त होने का खतरा है. आईयूसीएन के शार्क स्पेशलिस्ट ग्रुप से जुड़े लोगों का कहना है कि इसका मुख्य कारण ज़रूरत से ज़्यादा शार्क और मछली पकड़ना है. हैमरहेड शार्क की दो प्रजातियों को लुप्त होने वाली श्रेणी में रखा गया है. इन प्रजातियों में अक्सर फ़िन या मीनपक्ष को हटाकर शार्क के शरीर से हटा कर फेंक दिया जाता है. इसे फ़िनिंग कहते हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पशु-पक्षियों पर नज़र रखने की कोशिश के तहत आईयूसीएन ने नई सूची जारी कर चेतावनी दी थी. संगठन का कहना है कि शार्क ऐसी प्रजाति है जिसे बड़े होने मे काफ़ी समय लगता है और नए शार्क कम पैदा होते हैं.
रक्षा के लिए पर्याप्त कदम नहीं :- आईयूसीएन शार्क ग्रुप के उपाध्यक्ष सोंजा फ़ॉर्डहैम का कहना है कि ख़तरे के बावजूद शार्क की रक्षा के लिए पर्याप्त क़दम नहीं उठाए गए हैं. उन्होंने कहा है कि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन प्रजातियों को बड़े पैमाने पर पकड़ा जा रहा है जिसका मतलब है कि वैश्विक स्तर पर कदम उठाने की ज़रूरत है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने करीब एक दशक पहले शार्क को होने वाले खतरों से आगाह किया था. कई बार शार्क ग़लती से उन जालों में फँस जाते हैं जो मछली पकड़ने के लिए फेंके जाते हैं लेकिन पिछले कई सालों से शार्क को भी निशाना बनाया जा रहा है ताकि उन्हें माँस, दाँत और जिगर का व्यापार किया जा सके. हैमरहैड जैसी प्रजातियों ख़ास तौर पर शिकार बनती हैं क्योंकि उनके फ़िन काफ़ी उच्च गुणवत्ता के होते हैं. गौरतलब है कि शार्क के फ़िन की एशियाई बाज़ार में काफ़ी माँग है.
February 10, 2010
संगाई हिरण के अस्तित्व पर संकट के बादल.....?

किसी समय में सभी जातियों के संगाई हिरण वियतनाम से लेकर मणिपुर तक काफी अधिक संख्या में पाए जाते थे. लेकिन मानवीय अतिक्रमण के चलते लोकतक झील में पाए जाने वाले संगाई का अस्तित्व पर अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं. यदि इनके संरक्षण पर ध्यान ना दिया गया तो संगाई हिरण की विलुप्ति निश्चित है. लुप्तप्राय वन्य जीव का दर्ज़ा मिल जाने के बाद भी इनकी संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. किसी समय में वियतनाम से लेकर पश्चिमी मणिपुर तक हज़ारों की संख्या में पाए जाने वाले संगाई की संख्या जहां पिछली गणना में १६७ थी तो इस बार वह घटकर १०० रह गई है. अब यदि यह यहाँ से भी समाप्त हो गया. तो धरती से संगाई का नामोनिशान मिट जाएगा. ओर संगाई सिर्फ एक इतिहास बन जायेगा. संगाई की तीनो प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं जिनमें सबसे ज़्यादा दयनीय स्तिथि मणिपुर संगाई की है. थाईलैंड में संगाई की एक चौथे प्रजाती भी हुआ करती थी. लेकिन पर्याप्त संरक्षण के आभाव में १९३२ से १९३७ के मध्य यह प्रजाती विलुप्त हो गई.
संगाई का बसेरा :- संगाई का बसेरा लोकतक झील के दक्षिणी हिस्से में तैरती कई की मोटी परत पर उगी हुई घास है. संगाई का यह बसेरा 40 वर्ग किलो मीटर तक फैला हुआ है. इसका मुख्या क्षेत्र १५ वर्ग किमी. है जहां ये संगाई निवास करते हैं. लोकतक झील पूर्वोत्तर भारत की ताज़े पानी की सबसे बड़ी झील है. जिसमें वर्ष भर पानी भरा रहता है. संगाई को इन तैरती घास पर रहना पसंद है. सन १९५२ में मणिपुर सरकार ने इस प्रजाति को विलुप्त घोषित कर दिया था. लेकिन कुछ समय बाद इनका झुण्ड दिख जाने पर इनके संरक्षण ओर इनकी संख्या बढ़ाने की दिशा में काम शुरू हुआ. लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं मिले.
कैसे दिखते हैं :- संगाई एक सुदर ओर शानदार हिरण है. तथा दूर से दिखने पर साम्भर की तरह ही दिखता है. लेकिन इसका आकार संभार से छोटा होता है. संगाई के कन्धों की लम्बाई १०० सेंटीमीटर से लेकर १२० सेंटीमीटर तक होती है. पूंछ को मिलाकर इनकी कुल लम्बाई १२० सेंटीमीटर से १५० सेंटीमीटर रहती है. नर संगाई का रंग कालापन लिए हुए गहरा भोरा या बादामी होता है. इसकी एक खूबी ओर यह होती है कि यह मौसम के अनुसार अपना रंग बदलता है. सर्दियों में गहरा भूरा तथा गर्मियों में हल्का भूरा हो जाता है.
दिवाचार होते हैं :- संगाई हिरण दिवाचार होते हैं अर्थात ये दिन में भोजन करते हैं ओर रात्री में आराम करते हैं. ये मुख्यतः झुंडों में प्रातः काल से ही चरना आरम्भ कर देते हैं. इसे खुले मैदानों, झाडी वाले समतल वनों, तथा दलदल वाले जंगलों में चरना पसंद है.
संरक्षण के लिए स्थानीय प्रयास :- विलुप्ती की कगार पर पहुँच चुके संगाई के संरक्षण के लिए स्थानीय स्तर पर भी कई प्रयास किये जा रहे हैं. संगाई की लगातार कम संख्या होते देख पार्क के आसपास के लोगों ने इनके संरक्षण के लिए क्लब का गठन किया है. इसके अलावा उनके साथ कुछ गैर सरकारी संगठन ने मिलकर इन्वायरमेंटल सोशल रिफौर्मेशन एंड संगाई प्रोटेक्शन फोरम बनाया है. इनकी इकाइयां झील के चारों तरफ हैं जो संगाई के साथ साथ अन्य दुर्लभ प्राणियों के संरक्षण की दिशा में काम कर रहे हैं.
शिकार विलुप्ती का कारण :- संगाई की लगातार कम होती संख्या के पीछे इसका शिकार मुख्या कारण माना जा रहा है. मानवीय हस्तक्षेप की वजह से संगाई का अस्तित्व तो वैसे भी संकट में था रही सही कसर उग्रवादियों ने पूरे कर दी. दूसरी ओर संगाई का मुख्या बसेरा लोकतक झील का विनाश भी आरम्भ हो गया. जो कि संगाई के लिए शुभ नहीं है.
February 8, 2010
करोड़ों खर्च: फिर भी नहीं सुधरी नदियों की दशा
सभी प्रयास असफल :- इन नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए केंद्र ओर राज्य सरकारें कई सालों से प्रयासरत हैं. लेकिन सरकार के ये प्रयास बिलकुल नाकाफी साबित हो रहे हैं. केंद्र ओर राज्य सरकारों के तमाम प्रयासों के बावजूद देश में लगभग १५० नदियाँ प्रदूषित हैं. इनमें कई तो ऐसी नदियाँ हैं जो कि गंदे नाले में परिवर्तित हो गई हैं. इसका सीधा उदाहरण है मध्यप्रदेश का जबलपुर शहर. जहां का मोती नाला कभी मोती नदी हुआ करता था. लेकिन शहर का गंदा पानी कई दशकों से इसमें बहाए जाने के कारण अब यह मोती नाले में तब्दील हो गया है. ठीक इसी तरह एक रिपोर्ट के अनुसार नदियों को पर्दूशन मुक्त करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा नदी संरक्षण योजना चलाई जा रही है. यह योजना देश के २० राज्यों की ३८ नदियों को प्रदूषण मुक्त करने का काम कर रही है. इस योजना में १६७ शहरों को शामिल किया गया है. केंद्र सरकार ने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए गत वर्ष गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन किया. तथा वर्ष २००९-१० में गंगा की साफ़ सफाई के लिएय २५० करोड रु. आवंटित भी किये गए. इससे पूर्व भी १९८५ में तत्कालीन केंद्र सरकार ने गंगा कार्य योजना प्रारम्भ कर ८३७ करोड रुपये गंगा की साफ़ सफाई पर खर्च किये थे बाद में गंगा कार्ययोजना फेज २ प्रारम्भ की गई जिसमे अन्य नदियों यमुना, गोमती, दामोदर ओर महानंदा को भी शामिल कर लिया गया.
बचाया का सकता है यमुना को :- यदि समय रहते सार्थक प्रयास किये गए तो बेहद प्रदूषित नदी यमुना को बचाया जा सकता है. इस बात का खुलासा केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की एक रिपोर्ट में किया गया है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा है कि अब भी कोशिश कर नर्मदा को बचाया जा सकता है. बोर्ड का कहना है कि यद्दपि यमुना का ओक्सिजन लेवल शून्य तक पहुँच गया है लेकिन फिर भी इसे बचाया जा सकता है. जिसके लिए शीघ्र अतिशीघ्र कार्यवाही करनी होगी. इससे पहले भी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दिली जल बोर्ड ओर पर्यावरण मंत्रालय के चेतावनी दे चुका है. लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव में इस दिशा में कोई सार्थक प्रयास नहीं किये जा रहे. यमुना के प्रदूषित होने का अंदाजा बोर्ड की एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक गंगा अपने बहाव क्षेत्र का कुल २ प्रतिशत दिल्ली में बहती है लेकिन इतनी दूरी में ही इसका पानी ७० प्रतिशत प्रदूषित हो जाता है. जिसके बाद यमुना का पानी पीने के लिए तो दूर खेती ओर कपडे धोने के लायक भी नहीं रह जाता. बोर्ड का कहना है कि यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए काफी प्रयास किये जाने की आवश्यकता है. युमना के विषय में इस बात का खुलासा भी हुआ है यमुना के २२ किमी बहने से पहले यमुना का पानी इस्तेमाल के लयक होता है लेकिन दिल्ली के बाद इसका पानी इस्तेमाल के लायक नहीं रहता.
कई एजेंसिया प्रयासरत :- मध्यप्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अलावा कुछ एजेंसियां भी राज्य की नदियों को प्रदुषण मुक्त करने के लिए प्रयासरत हैं. ये एजेंसियां प्रदेश की जीवनदायनी नर्मदा सहित बेतवा, तापी, बाणगंगा, केन, क्षिप्रा, चम्बल, ओर मन्दाकिनी की साफ सफाई में लगी हुई हैं. इसके अलावा पश्चिम बंगाल में कोलकाता मेट्रोपोलिटन विकास प्राधिकरण गंगा को, उत्तरप्रदेश जल निगम गंगा, यमुन, गोमती को प्रदूषण मुक्त करने प्रयासरत हैं.
क्या हो सार्थक हल :- इन नदियों को यदि जल्द से जल्द स्वच्छ न किया गया तो वो दिन दूर नहीं जब ये नदियाँ सिर्फ इतिहास बनकर रह जायंगी. इन नदियों के प्रदूषण का मुख्य कारण है इसमें प्रवाहित किया जाने वाला कचरा. चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो. दूसरा सबसे बड़ा कारण है धार्मिक कारण. इन नदियों में प्रतिदिन लोग अपने घरों से पूजा के बाद के अवशेष लाकर बहा देते हैं साथ ही प्रतिदिन स्नान और उसमें कपडे धोना जानवरों को नहलाना इत्यादि अनेकों कारण नर्मदा को प्रदूषित कर रहे हैं. इन सबसे अलग कारखानों का रासायनिक कचरा भी इन नदियों में बहा दिया जाता है. लेकिन यदि इन नदियों में कचरा प्रवाहित होना बंद हो जाए तो इन नदियों का पानी स्वतः स्वच्छ हो सकता है. अन्यथा सारे प्रयास विफल ही साबित होंगे. इन रासायनिक कचरों के नदियों में प्रवाहित होने के कारण इन नदियों में स्वयं को साफ़ करने की क्षमता भी कम हुई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक नदियों में एक प्रकार का जीव पाया जाता है जो पत्थरों को जोड़ता है पानी को फिल्टर करता है यह प्रकृति का ही एक स्वरुप है जिससे नदियाँ स्वयं को स्वच्छ रखती हैं लेकिन पिछले कुछ सालों में इसमें कमी के चलते नदियों में स्वयं को स्वच्छ करने की क्षमता में भी कमी आई है यदि आज इन नदियों को बचाने की मुहिम न छेड़ी गई तो वह दिन दूर नहीं जब या तो नदियाँ पूरी तरह से प्रदूषित हो जायेगी या उनका अस्तित्व भी खतरे में पड़ जायेगा इन नदियों को स्वच्छ रखने में धार्मिक, सामाजिक, राजनितिक और प्रशासनिक सभी के सहयोग की आवश्यकता है साथ ही ज़रुरत है आमजनमानस में नदियों के महत्व और आगामी भविष्य में नदियों की ज़रुरत को प्रसारित कर जागरुक बनाया जाए ताकि लोग स्वतः ही इन्हें प्रदूषित करने से परहेज़ करें.
February 4, 2010
क्या भारत में भी वोटिंग अनिवार्यता कानून ज़रूरी....?

अनिवार्य वोटिंग कानून :- अनिवार्य वोटिंग क़ानून के तहत उसमें एक नियमावली बनाई गई है. क़ानून के अंतर्गत इस नियमावली में उल्लेखित कारणों के अतिरिक्त अगर कोई मतदाता मतदान नहीं करता तो चुनाव आयोग उसे डिफाल्टर वोटर घोषित कर देगा. इतना ही नहीं चुनाव आयोग उस मतदाता को जिसने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया उसे दण्डित भी करेगा. यानि नियमावली में उल्लेखित कारणों के अलावा अन्य कोई भी कारण हो आपको मतदान करना की होगा अन्यथा मतदाता को इसका खामियाजा भी भुगतना होगा.
अन्य देशो में भी बना है कानून :- अनिवार्य वोटिंग कानून अन्य देशो में भी बन है. दुनिया के १९ देशों में अनिवार्य वोटिंग कानून लागू है. जिन देशों में अनुवार्य वोटिंग कानून लागू है. उनमें आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, सिंगापूर, तुर्की आड़े देश भी शामिल हैं. जिन देशों में अनिवार्य वोटिंग लागू है उनमें से अधिकांश देशों ने ७० वर्ष से अधिक के बुजुर्गों को अनिवार्य वोटिंग कानून के दायरे से बाहर रखा है.
कहीं स्वागत कहीं विरोध :- गुजरात सरकार द्वारा अनिवार्य वोटिंग कानून बनाने के बाद चुनाव की दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन आएंगे या नहीं इस बात का पता तो आने वाले समय में ही चलेगा लेकिन फिलवक्त अनिवार्य वोटिंग कानून को लेकर दो पक्ष आमने सामने हैं. केंद्र की कांग्रेस नीट यूपीए सरकार इस कानून का विरोध कर रही है. कांग्रेस का कहना है कि मतदाता पर दबाव डालकर मतदान करवाना गैर संवैधानिक है. मतदाता अपना मत देने और न देने के लिए स्वतंत्र है. लेकिन ठेक इसके विपरीत चुनाव सुधार के समर्थकों ने इस कानून का स्वागत किया है चुनाव सुधार समर्थकों ने इस कानून को एक ऐतिहासिक कदम बताया है उनका कहना है कि अनिवार्य मतदाक के साथ नकारात्मक वोटिंग का अधिकार मिलने से मतदाता उम्मीदवारों के प्रति अपने गुस्से का इज़हार खुलकर कर सकेंगे. उनका यह भी कहना है कि इससे निर्वाचन प्रणाली में गुणात्मक सुधार आएगा और धीरे-धीरे मतदाता अपने मतदान के अधिकारों का मूल्य समझने लगेगा. परिणाम स्वरुप मतदान को और अधिक सकारात्मक बनाया जा सकेगा. इस क़ानून के लागू हो जाने के बाद उम्मीदवारों को भय रहेगा कि यदि जनहित में काम न किये तो मतदाता का गुस्सा भी झेलना पड़ेगा.
बहरहाल चुनावों में प्रत्येक मतदाता की भागीदारी जब तक नहीं होगी. तब तक मज़बूत लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती. हमें किसी न किसी रूप में वोटिंग का प्रतिशत बढ़ाना होगा. धन बल के बल पर जीते हुए बाहुबली देश के सच्चे प्रतिनिधि कभी नहीं हो सकते. और ऐसे में देश न ही मज़बूत लोकतंत्र बन सकता. नरेन्द्र मोदी के इस कदम को चुनाव सुधारों से जोडकर देखा जा रहा है. अब गुजरात में इस कानून के लागू हो जाने के बाद गुजरात में ज्यादा से ज़्यादा लोग मतदान के लिए आगे आयेंगे. लेकिन यहाँ देखने वाली दिलचस्प बात यह होगी कि इस क़ानून को कैसे लागू किया जाता है और मतदाता इस पर क्या प्रतिक्रया देते हैं. अगर अनिवार्य और नकारात्मक वोटिंग कानून गुजरात में सफल रहा तो यह गुजरात सरकार का सही कदम होगा. तथा गुजरात पूरे देश में एक रोल मोडल बन जायेगा. और इसे अन्य राज्यों समेत देश भर में लागू किया जा सकेगा. हलाकि इससे पूर्व भी लोकसभा में बीजेपी के एक सांसद अनिवार्य वोटिंग विधेयक लाये थे लेकिन वह पारित न हो सका. लेकिन गुजरात में अनिवार्य वोटिंग कानून बनने के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि यह कितना सफल रहता है.
February 3, 2010
दहेज एक ऐसी राक्षसी कुप्रथा, जो बन गई विकराल समस्या
स्त्री पुरुष लिगानुपात हुआ प्रभावित :- समाज में व्याप्त दहेज प्रथा का परिणाम यह हुआ कि अनेक निर्धन माता-पिता बेटी के जन्म लेते ही क्रूरता पू्र्वक बेटी का गला दबाकर हत्या करने लगे. इस संबंध में कठोर कानून सरकार को बनाने पड़े फ़िर भी बालिका वध को नहीं रोका जा सका. कन्याओं की गर्भ में ही ह्त्या करवाई जाने लगी. परिणाम स्वरुप समाज में स्त्री पुरुष लिंगानुपात प्रभावित हुआ. आज भी कड़े नियमों की बावजूद भ्रूण लिंग परीक्षा करवाकर कन्याओं को गर्भ में ही ह्त्या करवाने के मामले सामने आते रहते हैं. जो हमारे समाज के लिए बेहद चिंता का विषय है.
दहेज़ है क्या और इसकी शुरुआत कहा से हुई? :- आम तौर पर विवाह के समय कन्या पक्ष द्वारा जो भेट दी जाती है उसे दहेज़ कहते है. दूसरे शब्दों में दहेज़ वह नगद भुगतान व सामान होता है जो दुल्हे को दुल्हन के परिवार द्वारा विदाई के समय दिया जाता है. भारतीय वैवाहिक संस्कृति में कन्यादान एक महत्वपूर्ण रिवाज है इसी के साथ दहेज़ को भी जोड़ के देखा जा सकता है. दरअसल, भारत की अपनी एक परंपरा और संस्कृति रही है. यहाँ लड़की को सदेव पराया धन समझा जाता रहा है. लड़की को धूम धमाके से विदा किया जाता रहा है. पहले पहल दहेज़ के लेन देन में दोनों ही पक्षों की आपसी सद्भावना प्रकट होती थी. विवाह के बाद पुत्रि पराई हो जाती थी और पिता की संपत्ति पर उसका कोई अधिकार नहीं रह जाता था. यही वजह है कि पिता इसी सम्पति का कुछ भाग अपनी इच्छा से प्रसन्नता पूर्वक दहेज़ के रूप में विदाई के समय अपनी बेटी को देता है. तब दहेज़ देने का उद्देश्य यह होता था कि शादी के बाद यदि लड़की पर कोई विपत्ति आये या फिर उसके पति की मृत्यु हो जाए तो वह पिता द्वारा दिया गए धन का उपयोग अपनी आजीविका आदि में कर सके. ज्यादातर यही माना जाता रहा है कि दहेज़ जैसी कुप्रवृति हमारे समाज की संस्कृति नहीं रही है यह तो विदेशी सभ्यता की देन है. लेकिन एक पुत्री को वस्तु तथा साथ में दिए जाने वाले सामान को उपहार समझना इसी समाज की बहुत पुराणी परंपरा है हमारे पुराणों में कई प्रकार के विवाहों का उल्लेख किया गया है, जिनमे आदर्श विवाह ब्रह्म विवाह को माना गया है. इस विवाह में विद्या और आचार युक्त वर को बुलाकर उसे उत्तम वस्त्रो व अन्य वस्तुओ सहित कन्या का भी दान किया जाता था जो कन्यादान कहा जाता है. तब कन्या एक दान की वस्तु (न कि एक मनुष्य ) मानी जाती थी तथा इस दान के साथ उत्तम वस्त्र तथा अलंकार (आभूषण, उपहार आदि ) भी दिया जाता था. इस प्रकार यहाँ से दहेज़ की शुरुआत मानी जा सकती है. राजाओ के समय में भी दहेज़ में हजारो नौकर चाकर, दास दासियों, हाथी घोड़े दिया जाना सर्वविदित है. अन्य संस्कृति में भी दहेज़ लेने देने का रिवाज है लेकिन वह थोडा अलग है. मसलन मुस्लिम संस्कृति के अनुसार निकाह काजी के सामने दूल्हा दुल्हन को दिए जाने वाले तय मेहर की रकम अदा करेगा तथा दोनों पक्ष विवाह कुबूल करके निकाहनामे में अपने अपने दस्तखत करेंगे. यहाँ पर दूल्हा दुल्हन को मेहर के रूप में कुछ धन देता है. इन समुदायों के अतिरिक्त अन्य समुदायों में भी यह प्रथा अब ज्यादा प्रचलित होने लगी है, जिसके प्रमाण यदा कदा सामने आते रहते है.
दहेज बना स्टेटस सिम्बल :- वर्त्तमान समय में हालात ये हैं दहेज एक स्टेटस सिम्बल बन गया है. दैनिक उपभोग की वस्तुतों के अलावा, नकद में मोटी रकम, भौतिक सुख सुधाओं की वस्तुएं जैसे लेटेस्ट गाड़ी, फ्रीज़, टीवी, या अन्य महंगी वस्तुएं शामिल हैं. दहेज आज एक स्टेटस सिम्बल बना है इसका सीधा उदाहरण इस बात से ही लगाया जा सकता है जिसमें शादी के पहले ही वर पक्ष अपनी प्रतिष्ठा के अनुसार कन्या पक्ष को दहेज देने के दबाव बनाता है. कहने का सीधा मतलब यह है कि जिसको जितना ज़्यादा दहेज मिलता है उसका उतना ज्यादा रुतबा रहता है. लेकिन ऐसा अक्सर देखने में आता है कि शादी के समय वर पक्ष की मांग पूरी कर देने के बाद भी शादी के बाद वर पक्ष और पैसों की मांग करता है. तथा इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि वर पक्ष की हर मांग को मानने के बाद भी कन्या अपनी ससुराल में सुखी रहेगी. दूसरी और इस समस्या के विकराल रूप धारण करने के पीछे एक कारण दहेज देने की होड भी हैं. कन्या पक्ष द्वारा भी ज़्यादा से ज़्यादा दहेज देकर समाज में अपना रुतबा अपन स्टेटस बनाये रखने की भी मंशा रहती है.
दहेज प्रतिषेध अधिनियम :- दहेज बुरी प्रथा है. इसको रोकने के लिये दहेज प्रतिषेध अधिनियम १९६१ बनाया गया है पर यह कारगर सिद्घ नहीं हुआ है. इसकी कमियों को दूर करने के लिये फौजदारी (दूसरा संशोधन) अधिनियम १९८६ के द्वारा, मुख्य तौर से निम्नलिखित संशोधन किये गये हैं:
* भारतीय दण्ड संहिता में धारा ४९८-क जोड़ी गयी.
* साक्ष्य अधिनियम में धारा ११३-क, यह धारा कुछ परिस्थितियां दहेज मृत्यु के बारे में संभावनायें पैदा करती हैं.
* दहेज प्रतिषेध अधिनियम को भी संशोधित कर मजबूत किया गया है.
पर क्या केवल कानून बदलने से दहेज की बुराई समाप्त हो सकती है. - शायद नहीं. यह तो तभी समाप्त होगी जब हम दहेज मांगने, या देने या लेने से मना करें. उच्चतम न्यायालय ने भी १९९३ में, कुण्डला बाला सुब्रमण्यम प्रति आंध्र प्रदेश राज्य में कुछ सुझाव दिये हैं. एक प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि दहेज की बुराई केवल कानून से दूर नहीं की जा सकती है. इस बुराई पर जीत पाने के लिये सामाजिक आंदोलन की जरूरत है. खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र में, जहां महिलायें अनपढ़ हैं और अपने अधिकारों को नहीं जानती हैं. वे आसानी से इसके शोषण की शिकार बन जाती हैं.
न्यायालयों को इस तरह के मुकदमे तय करते समय व्यावहारिक तरीका अपनाना चाहिये ताकि अपराधी, प्रक्रिया संबन्धी कानूनी बारीकियों के कारण या फिर गवाही में छोटी -मोटी, कमी के कारण न छूट पाये. जब अपराधी छूट जाते हैं तो वे प्रोत्साहित होते हैं और आहत महिलायें हतोत्साहित. महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमे तय करते समय न्यायालयों को संवेदनशील होना चाहिये.
अधिनियम के दुरुपयोग :- दहेज प्रथा को रोकने के लिए दहेज प्रतिषेध अधिनियम भी बनाया गया लेकिन यह अधिनियम भी विवादों के घेरे में आ गया. इस अधिनियम के दुरुपयोग की भी खबरें आने लगीं. कई बार ससुराल पक्ष की कुंवारी लडकी या फिर बुज़ुर्ग व्यक्ति को भी शिकायत के आधार पर जेल भेज दिया जाता है. तथा जब अदालती कार्यवाही के बाद में जब फैसला आता है तो ससुराल पक्ष के उन लोगों को बरी कर दिया जाता है. ऐसे में वर पक्ष का भी समाज में सर नीचा हो जाता है. कई बार वर पक्ष निर्दोष होते हुए भी इस कदर उलझ जाते हैं कि वे स्वयं को बेगुनाह साबित नहीं कर पाते.
बहरहाल आज अगर यह कहा जाए कि दहेज एक नारीवादी समस्या है तो यह गलत होगा. क्योंकि दहेज एक सामाजिक समस्या है. भले ही समाज में दहेज प्रथा को बंद करने के लिए नियम बने हों लेकिन इस समस्या को तब तक काबू नहीं किया जा सकता जब तक की समाज ज्यादा से ज़्यादा दहेज लेने और देने की होड समाप्त न हो जाए. समाज में अमीर गरीब और माध्यम सभी वर्गों के लोग रहते हैं अमीर वर्ग को दहेज लेने और देने की होड से कोई फर्क नहीं पडता. माध्यम और गरीब परिवारों में इसके गंभीर परिणाम सामने आते हैं. आज यदि इस दहेज प्रथा पर रोक लगानी है तो इसके लिए समाज के योवाओं को ही आगे आना होगा. महिलाओं को शिक्षित होना होगा. महिलायें यदि आर्थिक रूप से स्वतंत्र होंगी, शिक्षित होंगी तो अपने हक की लड़ाई ज्यादा बेहतर तरीके से लड़ सकती हैं साथ ही शोषण होने से भी खुद को बचा सकती हैं. जब तक सारा समाज ही दहेज दानव के विरुद्ध उठ खड़ा नहीं होता तथा दहेज लेने वालों के मुंह काले करके सारे नगर में घूमाने की प्रथा सामान्य नहीं हो जाती, तब तक दहेज का दानव अपने दुष्ट खेल ही खेलता रहेगा.