January 28, 2009

अनुसूचित जाति और जनजाति पर बलात्कार के मामलों में मध्यप्रदेश अव्वल

<><><>(कमल सोनी)<><><> अनुसूचित जाति और जनजाति पर बलात्कार के मामलों में मध्यप्रदेश पूरे देश में नंबर वन है कम से कम राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो, गृह मंत्रालय के आंकडों से तो यही पता चलता है सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 तथा अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के अंतर्गत दर्ज मामलों की समीक्षा तथा निगरानी करने के लिए गठित समिति द्वारा अनुसूचित जातियों और जनजातियों पर हो रहे अत्याचार और अपराधों को रोकने और उनके तौर तरीके बनाने के लिए राज़धानी भोपाल में आहूत एक सभा में देश के पांच राज्यों में अनुसूचित जाती और जनजाति की महिलाओं पर हुए बलात्कार के मामलों की ताजा सूची जारी की है सूची में मध्यप्रदेश अनुसूचित जाति और जनजाति पर बलात्कार के मामलों में सबसे अव्वल रहा है
ब्यूरो द्वारा वर्ष २००५-०७ के समयावधी में अनुसूचित जाति और जनजाति पर हुए बलात्कार के मामलों की ताज़ा सूची जारी के है सूची दर्शाए आंकडों की बात करें तो मध्यप्रदेश में ही अनुसूचित जाति और जनजाति पर बलात्कार के 5763 मामले दर्ज किये गए हैं जिनमें 4225 प्रकरण अनुसूचित जाति, और 1538 प्रकरण अनुसूचित जनजाति की महिलाओं पर किये गए बलात्कार के हैं मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति की कुल आबादी ९१.५ लाख है तथा अनुसूचित जनजाति की आबादी १२२.३ लाख दूसरा अनुसूचित जाति पर ४६.२% तथा अनुसूचित जनजाति पर १२.६% मामले दर्ज हैं
समीक्षा और निगरानी समिति कि इस बैठक में सामजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री श्री मति मीरा कुमार कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति पर होने वाले अत्याचारों पर अंकुश लगाने निरंतर बैठकें आयोजित किये जाने की ज़रुरत है उन्होंने राज्य सरकारों और संघ राज्य क्षेत्रों से अनुरोध किया कि वे जिले के अन्दर अनुसूचित जाति और जनजाति पर सर्वाधिक अत्याचार होने वाले क्षत्रों की पहचान करें तथा अत्याचारों को रोकने के लिए विशेष पॅकेज तैयार करें उन्होंने आर्थिक विकास योजनाओं, भूमि सुधार हेतु कारगर कार्य करने, न्यूनतम मजदूरी को सख्ती से लागू करने, नज़दीकी पुलिस स्टेशन तक पहुँचने हेतु सड़क निर्माण, विशेष रूप से महिला और सवा सहायता समूह का विकास करने इत्यादि को पॅकेज में शामिल करने का विशेष अनुरोध किया श्री मति मीरा कुमार ने जानकारी दी कि डॉ अम्बेडकर प्रतिष्ठान में एक नई योजना प्रारंभ की गई है जिसके अंतर्गत अनुसूचित जाति और जनजाति पर होने वाले जघन्य अपराधों के शिकार को तात्कालिक रूप से आर्थिक सहायता प्रदान करने की व्यवस्था भी की गई है उन्होंने राज्य सरकारों को सुझाव दिया कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय समिति का गठन किया जाय और वर्ष में दो बार बैठकें आयोजित कर अनुसूचित जाति और जनजाति पर होने वाले जघन्य अपराधों की समीक्षा की जाय
<<<<< राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो, गृह मंत्रालय के आंकड़े >>>>>

1 comment:

अनिल कान्त said...

वैसे छूआछूत ......अरे हमसे छो मत जाना .....पर काम वासना मिटाने के लिए बलात्कार सवर्णों का (पुरुषों) अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति की महिलाएं सबसे अच्छा खिलौना और सबसे आसान तरीका रहा है .....जानते हैं की आख़िर हर पहुँच की जगह तो हमारे आदमी हैं देख लेंगे ...पहले तो यही डरा धमका देंगे .....वगेरह वगेरह .....जब तक न्याय और पुलिस व्यवस्था सही नही होती ...सबको एक समान नही देखती ऐसा होता रहेगा ......सबसे पहले पुलिस और कानून व्यवस्था सही की जाए तभी न्याय मिलेगा और इन सब पर अंकुश लगेगा