<><><>(कमल सोनी)<><><> स्वस्थ्य रहना सभी का मौलिक अधिकार है और प्रतिदिन योग करने से तन और मन स्वस्थ्य तो रहता ही है साथ ही पूरा दिन स्फूर्ति भी देता है लेकिन क्या योग इस्लाम की खिलाफत है ? या फिर गैर इस्लामी है ? यह एक विवाद बना हुआ है
दारुम उलूम (देवबंद) ने कहा है कि योग करना गैर इस्लामी नहीं है उन्होंने मुस्लिम समुदाय द्वारा योग करने पर उठे विवाद को सिरे से खारिज करते हुए इस धार्मिक संथा ने कहा कि योग का मतलब स्वयं को स्वस्थ्य रखना है दारुम उलूम (देवबंद) प्रवक्ता आदिल सिद्दीकी ने अपने एक वक्तव्य में कहा कि इस्लाम में योग को लेकर कोई समस्या नहीं है योग को बेवजह मज़हबी रंग दिया जा रहा है जो कि पूरी तरह से गलत है
श्री सिद्दीकी ने कहा कि प्रतिदिन योग करने का मकसद खुद को सेहतमंद रखना है उन्होंने बताया कि इस्लाम में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है जिसमें किसी को स्वस्थ्य रहने की मनाही हो उन्होंने कहा कि इस्लाम में सेहत को प्राथमिकता दी गई है और सेहतमंद जीवन जीने के लिए मुस्लिम समुदाय योग को एक्स्सरसाईस के रूप में कर सकते हैं उन्होंने प्रत्येक मुसलमान को प्रतिदिन पांच बार नमाज़ पढ़ने की बात कहते हुए कहा कि नमाज़ पढ़ना भी एक प्रकार की एक्स्सरसाईस ही है उन्होंने नमाज़ की प्रक्रिया पर गौर फरमाते हुए कहा कि यदि नमाज़ भी एक प्रकार का योग ही है जो किसी व्यक्ति को स्वस्थ्य रहने में अहम् भूमिका निभाती है
गौरतलब है मुस्लिम समुदाय पर योग करने पर प्रतिबन्ध लगाया गया है मुसलमानों के योग करने पर विवाद उस समय गहराया था जब मलेशिया नॅशनल फतवा काउंसिल ने मुस्लिम समुदाय के योग करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था हाल ही में इन्डोनेशिया में भी मुसलमानों के योग करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था ख़ास बात यह है कि यह प्रतिबन्ध मुसलमानों में योग के प्रति बढ़ते रुझान को देखकर लगाया गया था इस प्रतिबन्ध के पीछे यह भी दलील दी गई थी योग करते समय होने वाले मंत्रोच्चार से मुसलमानों की आस्था डगमगा जायेगी इन सबसे पूर्व मध्य प्रदेश में प्रतिवर्ष होने वाले सामूहिक सूर्ये नमस्कार के लिए भी कुछ मुस्लिम समुदायों द्वारा सूर्य नमस्कार में हिस्सा लेने पर आपत्ती जतायी गई थी
बहरहाल योग भारतीय संस्कृति की एक अहम् हिस्सा है जो स्वस्थ्य रहने में अहम् भूमिका निभाता है लेकिन योग को एक मज़हबी रंग देना या फिर उसे किसी धर्म विशेष का बताना वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन दारुम उलूम (देवबंद) के इस वक्तव्य के बाद मुस्लिम समुदाय के उन लोगों को राहत ज़रूर मिलेगी जो योग के प्रति अपना रुझान रखते हैं वैसे भी योग किसी धर्म विशेष का न होकर सभी के लिए है और पूरी दुनिया में भारतीय योग परम्परा को विशेष महत्व भी प्राप्त है
दारुम उलूम (देवबंद) ने कहा है कि योग करना गैर इस्लामी नहीं है उन्होंने मुस्लिम समुदाय द्वारा योग करने पर उठे विवाद को सिरे से खारिज करते हुए इस धार्मिक संथा ने कहा कि योग का मतलब स्वयं को स्वस्थ्य रखना है दारुम उलूम (देवबंद) प्रवक्ता आदिल सिद्दीकी ने अपने एक वक्तव्य में कहा कि इस्लाम में योग को लेकर कोई समस्या नहीं है योग को बेवजह मज़हबी रंग दिया जा रहा है जो कि पूरी तरह से गलत है
श्री सिद्दीकी ने कहा कि प्रतिदिन योग करने का मकसद खुद को सेहतमंद रखना है उन्होंने बताया कि इस्लाम में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है जिसमें किसी को स्वस्थ्य रहने की मनाही हो उन्होंने कहा कि इस्लाम में सेहत को प्राथमिकता दी गई है और सेहतमंद जीवन जीने के लिए मुस्लिम समुदाय योग को एक्स्सरसाईस के रूप में कर सकते हैं उन्होंने प्रत्येक मुसलमान को प्रतिदिन पांच बार नमाज़ पढ़ने की बात कहते हुए कहा कि नमाज़ पढ़ना भी एक प्रकार की एक्स्सरसाईस ही है उन्होंने नमाज़ की प्रक्रिया पर गौर फरमाते हुए कहा कि यदि नमाज़ भी एक प्रकार का योग ही है जो किसी व्यक्ति को स्वस्थ्य रहने में अहम् भूमिका निभाती है
गौरतलब है मुस्लिम समुदाय पर योग करने पर प्रतिबन्ध लगाया गया है मुसलमानों के योग करने पर विवाद उस समय गहराया था जब मलेशिया नॅशनल फतवा काउंसिल ने मुस्लिम समुदाय के योग करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था हाल ही में इन्डोनेशिया में भी मुसलमानों के योग करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था ख़ास बात यह है कि यह प्रतिबन्ध मुसलमानों में योग के प्रति बढ़ते रुझान को देखकर लगाया गया था इस प्रतिबन्ध के पीछे यह भी दलील दी गई थी योग करते समय होने वाले मंत्रोच्चार से मुसलमानों की आस्था डगमगा जायेगी इन सबसे पूर्व मध्य प्रदेश में प्रतिवर्ष होने वाले सामूहिक सूर्ये नमस्कार के लिए भी कुछ मुस्लिम समुदायों द्वारा सूर्य नमस्कार में हिस्सा लेने पर आपत्ती जतायी गई थी
बहरहाल योग भारतीय संस्कृति की एक अहम् हिस्सा है जो स्वस्थ्य रहने में अहम् भूमिका निभाता है लेकिन योग को एक मज़हबी रंग देना या फिर उसे किसी धर्म विशेष का बताना वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन दारुम उलूम (देवबंद) के इस वक्तव्य के बाद मुस्लिम समुदाय के उन लोगों को राहत ज़रूर मिलेगी जो योग के प्रति अपना रुझान रखते हैं वैसे भी योग किसी धर्म विशेष का न होकर सभी के लिए है और पूरी दुनिया में भारतीय योग परम्परा को विशेष महत्व भी प्राप्त है
2 comments:
हम तो भईया, मुस्लिमों की उल्टी-सीधी दलीलों से परेशान हैं, कोई कुछ समझना ही नहीं चाहता, चलो कहीं तो सहमति है!
काश देव्बन्द की यह बात फैल पाती
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